अनिंद्यो चक्रवर्ती रवीश कुमार को समझा रहे हैं कि यदि सरकार खूब सारे रुपए छापकर जनता में बाँट दे तो अर्थव्यवस्था तुरंत ठीक हो सकती है। इस पर रवीश कुमार भी अपनी सहमति दर्ज कराते नजर आए रहे हैं। बता दें कि हाल ही में रवीश कुमार को प्रतिष्ठित रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
अगर एनडीटीवी को सीबीआई के दीवार फाँदने पर मर्यादा और 'तेलगी को भी सम्मान से लाया गया था' याद आ रहा है तो उसे यह बात भी तो याद रखनी चाहिए पूर्व गृह मंत्री को कानून का सम्मान करते हुए, संविधान पर, कोर्ट पर, सरकारी संस्थाओं पर विश्वास दिखाते हुए, एक उदाहरण पेश करना चाहिए था।
NDTV: आरोप है कि NNPLC को FIPB बोर्ड की मंजूरी उस समय के FDI प्रावधानों को ताक पर रखकर दी गई। प्रणय रॉय, राधिका रॉय और विक्रम चंद्रा पर मुकदमा IPC की धारा 120-B, 420, और भ्रष्टाचार-निरोधी अधिनियम, 1988 की धारा 13(1) और 13(2) के अंतर्गत दर्ज किया गया है।
आख़िर एनडीटीवी का असली मालिक कौन सा व्यक्ति या संस्था है? शेयर्स की हेराफेरी के पीछे मकसद क्या था? इन सबमें आईसीआईसीआई बैंक का क्या हित था? 2004 से अब तक की कहानी पढ़ कर जानिए क्यों 'मीडिया की स्वतन्त्रता' का रोना रो रहे हैं रॉय दम्पति?
इस फ़ोटो पर जेडीयू विधायक ने तर्क दिया कि अचानक उनके गाल पर एक कीड़ा बैठ गया था, जिसे वो हटा रहे थे। ठीक इसी बीच किसी ने यह फ़ोटो खींच ली और सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। विधायक शर्फुद्दीन के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि सलामी दाएँ हाथ से दी जाती है।
NDTV खुद अपने अलावा और किसी को यह धोखा नहीं दे रहा कि ऐसे संदिग्ध संस्थान से कोई अवॉर्ड लेकर और उसपर इतरा कर उसने अपनी खोई हुई विश्वसनीयता को वापिस हासिल कर लिया है।
रवीश कुमार ने पुलवामा हमले के बाद एक इंटरव्यू में कहा था कि भारतीय मीडिया बेरोजगारी जैसे मसलों की बजाए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को तूल दे रही है ताकि सत्ताधारी दल को चुनावी फायदा हो सके। पाकिस्तानी मीडिया ने इस बयान का हवाला देकर भारत पर युद्धोन्माद पैदा करने का आरोप लगाया।
एनडीटीवी ने सेबी के जून 2015 और मार्च 2018 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। दरअसल, एनडीटीवी ने आयकर विभाग द्वारा की गई 450 करोड़ रुपए की कर (Tax) माँग और कंपनी के शीर्ष कार्यकारी अधिकारियों द्वारा की गई शेयरों की बिक्री संबंधी सूचनाएँ शेयर बाजारों को देने में देरी की थी।
"सामजिक अस्थिरता, हेट क्राइम्स, बढ़ती असहिष्णुता, महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार और जाति-धर्म से सम्बंधित हिंसा हमारे देश में अनियंत्रित हो चले हैं। सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो आर्थिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा।"