पूरा जुर्माना तो ₹86,500 का था, लेकिन 5 घंटों की मनुहार करने के बाद जाधव ने ₹70,000 चुका कर जान बचाई। सोशल मीडिया पर वायरल रसीद के मुताबिक अशोक जाधव ने ₹70,000 का अर्थ-दंड पिछले हफ्ते चुकाया है।
एसजेटीए ने इन मठों को जगन्नाथ मंदिर की संपत्ति बता कर ढाहना शुरू कर दिया। सरकार का कहना है कि इन मठों के बिल्डिंग सुरक्षित नहीं हैं और इसीलिए इन्हें हटाना ज़रूरी है। लांगुली मठ 300 वर्ष पुराना था। इसे रैपिड एक्शन फाॅर्स और पुलिस की मौजूदगी में ढाह दिया गया। 900 वर्ष पूर्व निर्मित एमार मठ को भी नहीं बख्शा गया।
माना जाता है कि भुवनेश्वर के पास "पहला" नाम के गाँव में दूध की बर्बादी होते देखकर मंदिर के पुजारियों ने ही उन्हें रसगुल्ला बनाने और दूध को बचा लेने की विधि सिखाई। इस तरह ओडिशा में "पहला रसगुल्ला" के नाम से ये प्रसिद्ध हुआ।
कल (22 जुलाई 2019) जब जगन्नाथ पुरी के एक पुजारी की तस्वीरें इन्टरनेट पर नजर आने लगीं तो कुछ तथाकथित हिन्दुओं की मासूम, अहिंसक, गाँधीवादी, सेक्युलर भावना बड़ी बुरी तरह आहत हो गईं।
पर्यावरण एवं पशु कल्याण मंत्रालय ने ओडिशा सरकार को पहले से ही आगाह कर रखा है कि राज्य के 6 जिलों से मवेशियों को ट्रांसपोर्ट कर पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ले जाया जाता है। मंत्रालय ने ओडिशा के परिवहन विभाग को सभी प्रमुख जगहों ख़ासकर राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में चेक पोस्ट बनाने को कहा था।
विधायक की शपथ लेने के एक महीने के बाद भी उन्हें घर नहीं मिला है। उन्होंने बताया, "दो दिन पहले फुटपाथ पर सोने के दौरान उनका फोन चोरी हो गया, उनके निजी सचिव पर भी कुछ लोगों ने हमला किया।"
इस वीडियो को पुरी के एसपी ने ख़ुद ट्विटर पर शेयर किया। उन्होंने लिखा, “1200 वॉलिंटियर्स, 10 संगठनों और घंटों की मेहनत के बाद रथयात्रा 2019 के दौरान ऐम्बुलेंस की सरल संचालन के लिए ह्युमन कॉरिडोर बनाना संभव हो पाया।”
मरांडी के इन बयानों के बाद ओडिशा की जनता ने उनका जमकर विरोध किया है। हरिबलदेव मंदिर के पुजारी अरुण मिश्रा और कामेश्वर त्रिपाठी ने कहा है कि उन्हें इसकी सजा भगवान जगन्नाथ देंगे।
अजय बहादुर सिंह की कहानी भी जानने लायक है। उनके पिता इंजिनियर थे और उनकी इच्छा थी कि बेटा डॉक्टर बने। इसके लिए अजय जी-जान से जुट कर तैयारी भी कर रहे थे। लेकिन, अचानक से घर में विपत्ति आन पड़ी। अजय को चाय बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन अपने सपने को नहीं मारे वो और...
मेहर ने कहा, “मुझे इस घटना के लिए खेद है, लेकिन मुझे जन आक्रोश के मद्देनजर इंजीनियर को उठक-बैठक करने के लिए कहने को मजबूर होना पड़ा। लोग सड़क निर्माण की गुणवत्ता खराब होने को लेकर नाराज थे। अगर मैंने उन्हें उठक-बैठक करने के लिए नहीं कहा होता, तो वे लोग इंजीनियर को नुकसान पहुँचा सकते थे।”