महबूबा मुफ्ती को चश्मे शाही में रखा गया है। उनके बारे में पता चला है कि वो अपना समय किताबें पढ़कर काट रही हैं। इसके अलावा प्रशासन की ओर से उन्हें पास के मुगल गार्डन में टहलने की अनुमति मिली हुई है।
महबूबा के साथ विवाद के दौरान उमर उन पर चिल्ला पड़े। उन्होंने महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भाजपा के साथ 2015 में गठबंधन करने का आरोप मढ़ा। महबूबा ने भी उमर को याद दिलाया कि किस तरह से उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने भाजपा का साथ दिया था।
8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा था कि उनकी याचिका पर नियत समय पर ही सुनवाई होगी।
दूसरे ट्वीट में उमर अब्दुल्ला ने चेतावनी भरे लहजे में लिखा था, “मेरे शब्दों को याद रखना। या तो आर्टिकल 370 रहेगा या फिर जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा।”
राज्य प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से श्रीनगर में अनिश्चितकाल तक धारा 144 लगा दी है। इस आदेश के तहत इलाके में लोगों की किसी तरह की आवाजाही नहीं हो सकेगी और सभी शैक्षणिक संस्थान भी बंद रहेंगे।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने बताया कि पिछले पाँच महीनों में घुसपैठ की कोई घटना नहीं हुई है। कुछ खबरों के मुताबिक सेना के अफसरों ने भी इस बात की पुष्टि की है। ऐसे में तो सैनिकों को वापस लेने की बात होनी चाहिए, क्योंकि खतरा घट रहा है फिर 38,000 सैनिकों को वहाँ भेजने की वजह क्या हो सकती है?
सेना के मुताबिक श्रद्धालुओं को निशाना बनाने के लिए आईईडी ब्लास्ट करने की साजिश रची गई थी। आतंकवादियों के पास से पाकिस्तान सेना की लैंडमाइंस बरामद की गई है। अमरनाथ यात्रा रूट से अमेरिकन स्नाइपर राइफल एम-24 भी बरामद की गई है।
इस मुलाकात के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा, "हमने पीएम मोदी से कहा कि रियासत में कोई ऐसे कदम न उठाए जाएँ, जिससे वहाँ की स्थिति खराब हो। हमने 35-A और 370 का भी मामला उठाया। साथ ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की माँग की।"
2016 में एक मुठभेड़ में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी को सशस्त्र बलों ने मार गिराया था। 23 मई, 2019 को ज़ाकिर मूसा मारा गया था। मूसा अल-क़ायदा का कश्मीर प्रमुख था।
उमर अब्दुल्ला हों या फिर शेहला रशीद, सोशल मीडिया पर अफवाहों और मनगढ़ंत मुद्दों पर अपने प्रलापों की वजह से अक्सर चर्चा में बने रहने वाले इन सभी का कारगिल विजय की वर्षगाँठ पर सन्नाटे में चले जाना तो यही दर्शाता है कि इनकी खुशियाँ और प्राथमिकताएँ अन्य नागरिकों से भिन्न हैं।