हिंदी में कहावत है, पीलिया के मरीज को सब पीला दिखता है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति को चीजों को वैसी ही देखता है जैसे उसके दिमाग ने पहले से सोचा हुआ है। यही हाल टेलीग्राफ का है।
'द टेलीग्राफ' ने ट्विटर से एक दक्षिणपंथी सोशल मीडिया इन्फ़्ल्युएन्सर एकाउंट का ट्वीट उठाकर पूरी फर्जी घटना को रिपोर्ट की शक्ल में प्रकाशित करने का नायाब कारनामा किया है।
बंगाल से छपने वाला अखबार होने के बावजूद ममता के शासन में यह पेपर भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या, हर जिले में हो रहे मजहबी दंगों और तमाम अपराधों से जलते बंगाल पर चुप्पी साध लेता है। ऐसे तमाम मौकों पर इनकी बुद्धि घास चरने चली जाती है और बेहूदे हेडलाइन सुझाने वाले एडिटरों की रीढ़ की हड्डी गायब हो जाती है। इनका सारा ज्ञान हेडलाइन में अपनी जातिवादी घृणा, हिन्दुओं से धार्मिक घृणा आदि में ही बहता रहता है।