दिल्ली दंगों में चार्जशीट दाखिल होने का सिलसिला शुरू होते ही 'मासूम' नैरेटिव गढ़ने की कोशिशें भी शुरू हो गई है। जानिए, मोनिका अरोड़ा से कैसे रची गई थी पूरी साजिश।
इस कलाकार के इरादे इस दिशा में तब और मजबूत हुए, जब 19 जनवरी को उन्होंने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार पर 30 साल बीत जाने पर भी लोगों को चुप देखा।
किसी भी प्रवासी में मोदी के विरोध जैसी कोई भावना नहीं थी। यहाँ तक कि कई लोगों की राय थी कि अगर मोदी पीएम नहीं होते तो देश की स्थिति और खराब हो सकती थी।
चाहे कोई भी वर्ग हो वो उनकी किताब की चाहकर भी नकारात्मक आलोचना नहीं कर सकता, क्योंकि उन्होंने अपनी किताब में सिर्फ़ सच्चाई लिखी है। वे कहते हैं कि किताब में मौजूद कहानियों को पाठक अपने से जोड़कर महसूस कर पाएगा और उसे ये भी लगेगा कि अगर वो इन मुद्दों पर लिखता तो वैसा ही लिखता जैसे श्रीमुख ने उन्हें पेश किया।
दीपिका को चुप कराने के लिए जब इस्लामिक नारे लगाए गए, तब वह अपनी सीनियर रहीं आकृति रैना का पत्र पढ़ रही थीं। हिंदू कॉलेज में राजनीति विज्ञान की छात्रा रहीं आकृति ने पत्र में अपने ही परिवार के विस्थापन की कहानी लिखी थी।
ऑपइंडिया पर ABVP JNU के छात्र मनीष जांगिड़ का वो इंटरव्यू, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे साज़िश के तहत जेएनयू में हिंसा हुई और तुरंत कॉन्ग्रेस व वामपंथी नेता पहुँच गए। उन्होंने राहुल कँवल पर भी बड़ा आरोप लगाया। जेएनयू में कैसे वामपंथी गुंडों को बचाया जा रहा है, जानें मनीष के शब्दों में।
"बंगालियों या तमिल लोगों की तरह हम अपनी भाषा से प्रेम नहीं करते। हमें महानगरों में, मॉल्स में, कॉरपोरेट दफ्तरों में, मैथिली बोलने में शर्म आती है। यह हीन भावना हम मैथिली बोलने वालों ने खुद ही विकसित की है।"
"मंत्रालय तो पहले भी थे, योजनाएँ भी हैं लोकिन जब तक आप जिम्मेदारी फिक्स नहीं करेंगे, मंत्रालय तो मंत्री, सेक्रेटरी, इंजीनियर जुटाने का जरिया बन कर रह जाएगा। लोगों को शामिल करने से पहले सरकार को इस आपदा को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए।"