प्रशासन 1000 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरों की मदद से पूरे मेला क्षेत्र की निगरानी कर रहा है। पूरे इलाके पर नजर रखने के लिए 40 निगरानी टावर का भी निर्माण किया गया है।
पौष पूर्णिमा के दिन ही शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है। जैन धर्मावलम्बी इसी दिन से पुष्याभिषेक यात्रा की शुरुआत करते हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लोग इस दिन 'छेरता पर्व' मनाते हैं।
'पेशवाई' प्रवेशाई का देशज़ शब्द है, जिसका अर्थ है शोभायात्रा, जो विश्व भर से आने वाले लोगों का स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को विश्व पटल पर सूचित करने के उद्देश्य से निकाली जाती है
कुम्भ मेला का मूल को 8वीं सदी के महान दार्शनिक शंकर से जुड़ती है। जिन्होंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्वान सन्यासीगण की नियमित सभा परम्परा की शुरुआत की थी।