"यही वो जगह है, जहाँ हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल का बलिदान हुआ था। यही वो जगह है, जहाँ बुरका और टोपी पहने हुए हजारों की भीड़ ने दिल्ली पुलिस पर हमला किया। हमला करने से पहले CCTV कैमरा को तोड़ दिया। यहाँ तक कि इसके बाद उन्होंने जश्न भी मनाया।"
सोशल मीडिया पर चाँदबाग की वो वीडियो सैलाब की तरह तैर रही है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं ने पुलिस अधिकारियों पर पत्थर से हमला कर उन्हें घायल किया। लेकिन, इसके बाद भी सुशांत सिंह पूछते हैं कि दिल्ली की हिंसक भीड़ में औरतें थीं क्या? मैंने तो नहीं सुना। सोचिए कितना शर्मसार करने वाला है सुशांत का ये ट्वीट।
“इस चरमपंथी समूह के विचारों से डर फैलता है जिससे लोग डरते हैं और घबराते हैं। अगर हम डरते हैं और घबराते हैं, तो वे जीत जाते हैं। हम इस धमकी का जवाब नहीं देंगे।”
पुलिस इस बात का पता लगा रही है कि आखिरकार इनका नेटवर्क किस प्रकार से जामिया में सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रोटेस्ट में काम कर रहा था व किस प्रकार से इन्हें फंंडिंग हो रही थी और दिल्ली में चल रहे सीएए के विरोध प्रदर्शन में इसका इस्तेमाल कैसे किया गया।
हिंसा के काफी समय बाद तक पुलिस का शक शाह आलम की तरफ नहीं गया था। जिसके कारण उसके ऊपर कोई एफआईआर नहीं हुई और न ही उससे कोई पूछताछ हुई। बस फिर क्या था, इसी का फायदा उठाकर वह फरार हो गया।
कपिल मिश्रा ने ऐलान किया कि इन दंगों में जिन 7 लोगों की नृशंस हत्या की गई, उन सभी को 3-3 लाख रुपए दिए जाएँगे। वहीं, 5 गंभीर रूप से घायलों को 2-2 लाख रुपए दिए जाएँगे जबकि 3 पीड़ित परिवारों को 1-1 लाख रुपए दिए जाएँगे।
इंटेलिजेंस के अधिकारियों के अनुसार जहाँजैब सामी नामक यह कश्मीरी, आईएस खुरासान विंग के पाकिस्तानी कमांडर हुजैफा अल बाकिस्तानी के सम्पर्क में था, जिसने कश्मीरी युवाओं को रेडिकलाइज कर आतंकी संगठन ज्वाइन करवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
दंगाई भीड़ ने बिजेंद्र के घर की छत को ही हमले के लिए बेस बना लिया और वहाँ कब्ज़ा कर लिया। छत पर क़रीब 90 आदमी थे। पत्थर ढो-ढो कर लाए जा रहे थे। मंदिर पर पूरे 6 घंटे तक हमले किए गए लेकिन वामपंथी मीडिया (ख़ासकर न्यूज़लॉन्ड्री) ने "मंदिर पर हमला हुआ ही नहीं" का नैरेटिव गढ़ा।
"दरियागंज दिल्ली गेट पर इसी 'पिंजरा तोड़' के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने पुलिस के साथ झड़प की लेकिन इनमें से किसी एक को भी गिरफ़्तार नहीं किया गया। वो सभी हिंसक हरकतें कर के भाग खड़े हुए। फँसा कौन? स्थानीय लोग। करनी उनकी और भुगतना हमें पड़ रहा है।"