ब्रज क्षेत्र में फाल्गुन माह लगते ही होली की शुरूआत हो जाती है, लेकिन इसके सबसे खास बरसाने की लड्डू मार होली और लट्ठ मार होली मानी जाती है। वृंदावन मथुरा और खासकर बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठ मार होली और लड्डू मार होली को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की भीड़ एकत्र होती है।
रंगों के त्योहार होली की शुरुआत बुंदेलखंड के एरच कस्बे से हुई है, जो झाँसी जिले में पड़ता है। चौंक गए ना? दरअसल यही वो कस्बा है, जो कभी असुरराज हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करता था।
सनातन में ऐसी कहानियों का बहुत गूढ़ अर्थ था। प्रतीक रूप से ऐसा माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
"आप गतिशीलता का तभी आनंद ले पाएँगे या उत्सव मना पाएँगे, जब आपका एक पैर स्थिरता में दृढ़ता से जमा होगा। और दूसरा गतिशील।" मकर संक्रांति का पर्व इस बात का भी उद्घोष है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर स्थिरता का एहसास हो।
समुदाय विशेष का जिक्र किए जाने पर आपत्ति को डीएम ने खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि खुफिया एजेंसी से मिले इनपुट को ध्यान में रख कर ही उन्होंने आदेश जारी किया और इसका मकसद सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखना था।
चैती छठ में खासा धूम-धाम देखने को नहीं मिलता है। जबकि कार्तिक छठ में ज्यादा चहल-पहल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कम ही व्रती चैती छठ करते हैं। गरमी के कारण कार्तिक छठ से ज्यादा मुश्किल होता है चैती छठ करना।
भारतीय संस्कृति में हम साल के इस नए पड़ाव का, जब हमारे पास सर्वाधिक सौर ऊर्जा होती है, हम इसे ‘मकर संक्रांति’ के रूप में मनाते हैं। इसलिए हम सूरज का स्वागत करते हैं।