"कभी ये मंदिर था, भक्ति का, समर्पण का! अब ऐसा खंडहर है कि शराबियों और गंदगी फैलाने वालों के लिए भी सुरक्षित नहीं है। समय आ गया है कि तमिलनाडु के मंदिर मुक्त हों।"
"भगवान पद्मनाभ के चरण कमलों की भक्त होने के अलावा, मैं सिर्फ 'पीपल फ़ॉर धर्म' की अध्यक्षा हूँ, जिन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया था। न कम न ज़्यादा।"
सत्ता के परिवर्तन और समय के चक्र से कभी-न-कभी कॉन्ग्रेस, माकपा, हिन्दू कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले 'मुल्ला मुलायम' की सपा जैसे लोग वापिस आ ही जाएँगे। उस समय अगर राम मंदिर सरकारी नियंत्रण में रहे तो क्या होगा, ये कभी सोचा है?
रंगराजन ने अर्चक पर झूठे आरोप को दुर्भाग्यपूर्ण और पुलिस के अधिकार-क्षेत्र के बाहर बताते हुए पुलिस पर उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने राज्य के Endowments विभाग से दो सवाल भी पूछे......
हिन्दू खुद ही न इस मुद्दे पर जागरुक है न उद्वेलित, इसलिए सरकारें भी मस्त नींद से ग्रस्त हैं। जानना ज़रूरी है कि मंदिरों की हुंडी में, दान-पेटिका में जो पैसा श्रद्धालु अपने देवता के प्रति कृतज्ञता में, मंदिर के काम के लिए, पुजारी जी की आजीविका के लिए डालते हैं, उस पैसे पर सरकारें कैसे डाका डालती हैं।
हिन्दू मंदिरों की ज़मीनों पर काफ़ी समय से यह फर्जीवाड़ा जारी है। 20124.08 एकड़ की मंदिरों की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा हुआ है। यह कब्ज़ा ऐसे होता है कि मंदिर की ज़मीन जिसे रियायती दरों पर किराए पर दी जाती है, वह उसका प्रयोग खुद न कर आगे दूसरों को ज़्यादा महंगे दामों पर किराए पर दे देते हैं।