बिहार के मुंगेर में अनुराग पोद्दार की हत्या के बाद सामने आने वाली तस्वीरें शायद कुछ समय बाद हमारी स्मृतियों से गायब हो जाएँगी। हम भूल जाएँगे कि अनुराग की माँ ने आखिरी बार अपनी गोद में अपने बेटे का सिर तो रखा था, लेकिन उसका दिमाग निकल कर बाहर सड़क पर पड़ा था।
आखिर हमें अब पालघर के साधुओं की वह तस्वीर भी कहाँ देखने को मिलती है जिसमें उग्र भीड़ का शिकार होने से पहले वह दया याचना की अपेक्षा लिए पुलिस की ओर देख रहे थे।
मुंगेर की माँ की यह तस्वीर भी धीरे-धीरे धुंधली हो जाएगी। अनुराग की मृत्यु न तो पहली है और न आखिरी। आदर्श नगर का राहुल हो या फिर सुशील, हिंदुओं पर होती बर्बरता अब दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। जो तत्परता किसी तबरेज, अखलाख के मरने पर शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिखाई जाती है, उससे हिंदू आज तक अछूता है।
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