जामिया में जिस बच्चे ने गोली चलाई है, वह नाबालिग है। आम तौर पर आप देखेंगे कि पुलवामा में 40 सीआरपीएफ जवानों को उड़ाने वाले आदिल अहमद डार जैसे आदमी के साथ भी रवीश जैसा मीडिया एक अलग तरीके से ट्रीटमेंट करता है। वो कारण ढूँढने लगता है कि इसके साथ बचपन में क्या हुआ था? क्या किसी आर्मी ऑफिसर ने कान पकड़कर उठक-बैठक करवाई थी?
लेकिन वही ट्रीटमेंट इस केस में बदल जाता है। यह बच्चा पिछले दो सालों से इस्लामी आतंक को देख रहा था। इसके मन पर बोझ था। चाहे वह कासगंज में तिरंगा रैली निकालने पर चंदन की मुसलमानों द्वारा गोली मारकर हत्या कर देना हो या फिर झारखंड के नीरज प्रजापति को मार डालना हो। मुसलमानों ने रॉड से हमला किया। मस्जिदों से पत्थरबाजी हो रही थी। नीरज ने सीएए के समर्थन में रैली निकाली थी।
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