Sunday, December 22, 2024
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नसीरुद्दीन शाह की बीवी ने ‘चिड़िया की आँख’ वाली कथा का बनाया मजाक: हरिद्वार से लेकर मणिपुर और द्वारका तक घूमे थे अर्जुन, फिर भी उनके जीवन को बताया ‘नीरस’

हम आज मित्रता के मामले में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संबंधों की दुहाई देते हैं। दोनों में ऐसा निःस्वार्थ संबंध था कि श्रीकृष्ण ने सारथि बन कर पूरे महाभारत के युद्ध में अर्जुन का मार्गदर्शन किया। युद्ध से पहले जो उनके उद्गार फूटे, उन्हें हम 'भगवद्गीता' के रूप में जानते हैं।

बॉलीवुड में ज्ञानियों की कमी नहीं है। अब नसीरुद्दीन शाह की बीवी रत्ना पाठक शाह सामने आई हैं, जिन्होंने महाभारत पर ऐसा ज्ञान बाँचा है जिससे लगता है कि उन्होंने कभी कोई हिन्दू शास्त्र पढ़ा ही नहीं है। ‘कूल’ बनने के लिए हिन्दू धर्म में सम्मानित किसी भी किरदार को नकार देना इस गिरोह का पेशा है। रत्ना पाठक शाह ने अर्जुन को निशाना बनाया है, जिसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से एक माना गया। उनका मानना है कि लक्ष्य के चक्कर में अर्जुन का जीवन एकदम नीरस हो गया।

अर्जुन ने आसपास देखा ही नहीं: रत्ना पाठक शाह

रत्ना पाठक शाह ने ‘चलचित्र टॉक्स’ से बातचीत करते हुए कहा, “सब लोग बोलते हैं कि एक ही लक्ष्य होना चाहिए और उसी पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए, एक ही फोकस होना चाहिए। मगर, अर्जुन ने कितना कुछ मिस आउट कर दिया। इतना फोकस करने में पूरी दुनिया, उसने अपने आसपास के सुंदर जंगल को देखा ही नहीं। उसके आसपास जो लोग थे, उनके साथ भी उसका नहीं जम पाया। एक लक्ष्य के चक्कर में आप कितना कुछ हाथ से निकल जाने देते हैं।”

रत्ना पाठक शाह ने इस दौरान ‘एक लक्ष्य’ और ‘चिड़िया की आँख पर नज़र’ वाले मुहावरे का भी मजाक बनाया। बता दें कि अर्जुन को नकली चिड़िया की आँख भेदने के लिए कहा गया था, उनके भाई लोग ये नहीं कर पाए लेकिन अर्जुन ने ये कर दिखाया क्योंकि उन्हें चिड़िया या उनके आसपास के पेड़-पौधों की जगह सिर्फ चिड़िया की आँख दिख रही थी। एकाग्रता का उदाहरण देते हुए महाभारत की इस कथा को एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को सुनाती आई है। लेकिन ‘कूल’ और ‘वोक’ लोगों के लिए ये बकवास है।

क्या सचमुच अर्जुन ने सब कुछ हाथ से निकल जाने दिया? क्या सचमुच उनके आसपास जो भी लोग थे उनसे उसकी नहीं पटती थी? क्या सचमुच अर्जुन का ध्यान अपने लक्ष्य पर इतना था कि उन्होंने वन्य जीवन को नहीं जिया, पक्षियों के कलरव नहीं सुने, पशुओं को क्रीड़ा करते हुए नहीं देखा, पेड़-पौधों से मधुर फल तोड़ कर नहीं खाए, फूलों से नहीं खेला? क्या सचमुच ऐसा है? आइए, जानते हैं कि महाभारत इस विषय में क्या कहता है, क्योंकि मुझे नहीं लगता रत्ना पाठक शाह को वेद व्यास से अधिक जानकारी है।

अर्जुन जहाँ भी गए, लोगों के मन में बस गए

हम आज मित्रता के मामले में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संबंधों की दुहाई देते हैं। दोनों में ऐसा निःस्वार्थ संबंध था कि श्रीकृष्ण ने सारथि बन कर पूरे महाभारत के युद्ध में अर्जुन का मार्गदर्शन किया। युद्ध से पहले जो उनके उद्गार फूटे, उन्हें हम ‘भगवद्गीता’ के रूप में जानते हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना सखा माना। अगर अर्जुन में कोई गुण नहीं होता तो फिर द्वारकाधीश भला क्यों उन पर भरोसा जताते? कृष्ण-अर्जुन की जोड़ी लोकप्रिय हो पाती क्या?

अर्जुन और द्रोणाचार्य के संबंध के बारे में क्या ही कहना। गुरु द्रोण ने तो अर्जुन को इस धरती पर उस काल के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर का तमगा दे रखा था। एकलव्य का अंगूठा लिए जाने के पीछे एक कारण ये भी बताया जाता है कि वो अर्जुन से अधिक शूरवीर किसी को देखना नहीं चाहते थे। बचपन से ही उनकी लगन एवं मेहनत के गुरु द्रोण कायल थे। एक बार उन्हें मगरमच्छ ने पानी में पकड़ लिया था, फिर अर्जुन ने मगर का मुँह बाणों से बींध कर अपने गुरु को छुड़ाया। जो एक सच्चा मित्र और शिष्य रहा, भला उसके बारे में कैसे कहा जा सकता है कि लोगों से उसके संबंध अच्छे नहीं थे?

नागकन्या उलूपी अर्जुन पर मोहित हो गई थी। दोनों ने विवाह भी कर लिया। उसने ही वरदान दिया था कि कोई जलीय जीव उसे नुकसान नहीं पहुँचा पाएगा। दोनों के पुत्र का नाम इरावन कहलाया। इसी तरह मणिपुर पहुँचने पर अर्जुन को वहाँ की राजकुमारी चित्रांगदा से प्रेम हुआ। उन दोनों का बभ्रुवाहन नामक एक पुत्र भी हुआ। स्वर्ग में इंद्रदेव से शिक्षा ग्रहण करने गए अर्जुन से अप्सरा उर्वशी को भी प्रेम हो गया था, लेकिन अर्जुन उसे उस नज़र से नहीं देखते थे।

अर्जुन ने जल, जंगल, पहाड़ सबको देखा, खूब देखा

और हाँ, अर्जुन ने वन भ्रमण के दौरान जंगल को देखा, खूब देखा। हरिद्वार यात्रा के समय रास्ते में उन्होंने रास्ते में रमणीय एवं विचित्र वन, सरोवर, नदी, सागर, देश और कई पुण्यतीर्थ देखे – इसका वर्णन महाभारत के आदिपर्व के 213वें अध्याय में आपको मिल जाएगा। हरिद्वार में ही उसका उलूपी के साथ मिलन हुआ था, उलूपी जब अर्जुन पर मोहित हुई तब वो गंगा नदी में ही स्नान कर रहा था। अगले ही अध्याय में वर्णन है कि अर्जुन ने अगस्त्यवट, वशिष्ठपर्वत और भृगुतुंगपुर का दौरा किया।

कई पवित्र स्थानों का अर्जुन ने भ्रमण किया। फिर वर्णन है कि उसने नैमिषारण्य में बहने वाली उत्पलिनी नदी, नंदा, अपरनन्दा, कौशिकी (कोसी), महानदी, गया तीर्थ और गंगा जी के भी दर्शन किए। अंग, वंग और कलिंग के तीर्थों में भी अर्जुन घूमे। अर्जुन ने मणिपुर के बाद पश्चिम की यात्रा आरंभ की और प्रभाष क्षेत्र में पहुँचे। वहीं पर श्रीकृष्ण ने भी उनसे मुलाकात की थी। वहाँ रैवतक पर्वत पर उन्होंने नट-नर्तकियों के नृत्य देखे। रत्ना पाठक शाह को समझना चाहिए कि अर्जुन का ध्यान लक्ष्य पर था, इसका मतलब ये नहीं कि उनका जीवन नीरस था।

वहीं पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने भ्रमण और अन्य स्थानों की सुंदरता के बारे में बताया। उन्होंने कहाँ क्या देखा, ये सब वर्णित किया। रैवतक पर्वत पर अर्जुन वृष्णि एवं अंधक वंश के लोगों के एक बड़े उत्सव में सहभागी बने, गायन एवं नृत्य में हिस्सा लिया। उसी उत्सव में अर्जुन का श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ मिलन हुआ था। आगे वर्णन है कि कैसे बड़े भाई बलराम की इच्छा के विरुद्ध सुभद्रा को अर्जुन के साथ भगा दिया। अतः, अर्जुन के जीवन में उत्सव भी था और रंग भी।

रत्ना पाठक शाह को महाभारत पढ़नी चाहिए। ‘चिड़िया की आँख’ देखने का ये अर्थ कतई नहीं है कि आपको अपने आसपास की सुध ही न हो, आपके अपने आसपास के लोगों से अच्छे संबंध ही न हो। अर्जुन ने प्रेम भी किया, रास-विलास भी किया, धर्मकार्य भी किए, युद्ध भी लड़ा, वो एक अच्छे शिष्य और मित्र रहे, एक अच्छे भाई और पुत्र रहे। द्रौपदी को एकांत में युधिष्ठिर के साथ देखने के बाद उन्होंने भाई के वचन के लिए ही अज्ञातवास लिया था। खैर, नसीरुद्दीन शाह की बीवी को ये सबसे क्या मतलब।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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