कॉन्ग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान भरसक यह प्रयास किया कि देश में हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव खड़ा किया जाए। मालेगाँव बम धमाका मामले के जरिए देश की हिन्दू आबादी पर प्रश्न खड़े गए। हिन्दू संतों और सैनिक को प्रताड़ित किया गया ताकि कैसे भी भगवा आतंकवाद की बात साबित की जा सके। धीमे-धीमे भगवा आतंकवाद शब्द सामने लाया गया और फिर एक पूरे धमाके का दोष ही हिन्दुओं पर डाल दिया गया।
दरअसल, मालेगाँव धमाका तो 2008 में हुआ था लेकिन इससे काफी पहले ही कॉन्ग्रेस की सरकार देश की बहुसंख्यक आबादी को विलेन बनाने के लिए काम पर लग चुकी थी। कॉन्ग्रेस सरकार के दौर में इस तैयारी की सबसे पहली झलक 2006 में मिलती है।
कैसे शुरू हुआ हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव
हिन्दू आतंकवाद के बारे में केंद्र सरकार में अंडर सेक्रेटरी रहे RVS मणि अपनी किताब में बताते हैं कि उन्हें एक बार केन्द्रीय मंत्री शिवराज पाटिल ने बुलाया था। पाटिल गृह मंत्री थे और मणि गृह मंत्रालय में आतंक के मामलों से जुड़ा एक विभाग देख रहे थे। मणि ने बताया कि पाटिल के कमरे में उन्हें IPS हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह भी बैठे हुए मिले। सिंह और करकरे ने इसके बाद मणि से पूछताछ चालू की। मणि से हालिया आतंकी घटनाओं के बारे में पूछा गया।
उनसे पूछा गया कि उनके आरोपित कौन हैं, उनमें जाँच की स्थिति क्या है, कौन-कौन से संगठन जुड़े हुए हैं। जब मणि ने उन्हें बताया कि अधिकांश आतंकी हमले एक ही मजहब के लोग कर रहे हैं तो करकरे और दिग्विजय उनकी बातों पर थोड़ा सा असहज नजर आए।
इस दौरान दोनों बात बजरंग दल, हिन्दू और ऐसे ही टॉपिक पर बात करते रहे। मणि का कहना है कि वह नांदेड़ का जिक्र बार बार कर रहे थे। नांदेड़ में एक बम धमाका हुआ था जिसके विषय में बात हो रही थी। मणि बताते हैं कि इस बैठक के कुछ दिनों बाद ही एक हिन्दू व्यक्ति को एक आतंक के मामले में पकड़ा गया।
नांदेड से ही समीर कुलकर्णी नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया। उसे ऊपर आरोप था कि उसने अपनी दुकान में विस्फोटक छुपा रखे थे, इनमें धमाका हुआ था। बताया गया कि समीर बजरंग दल के कार्यालय भी जाता था। इस मामले में समीर कुलकर्णी को हिन्दू आतंकवादी बताने की कोशिश हुई। इस पूरे मामले में करकरे की भूमिका संदिग्ध थी।
मालेगाँव धमाका और पूरी साजिश
महाराष्ट्र के मालेगाँव में 29 सितम्बर, 2008 को एक मोटरसाइकिल में धमाका हुआ जिसमें 6 लोग मारे गए। इसी मालेगाँव धमाका मामले के बाद कॉन्ग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को आगे बढ़ाना चालू कर दिया। इस मामले में कई ऐसे लोगों को पकड़ा गया जो कि हिन्दू संगठनों से जुड़े हुए थे। कई ऐसे गवाह लाए गए जिनके जबरदस्ती बयान दिलवाए गए और RSS-VHP नेताओं को इस मामले में फँसाने की साजिश भी रची गई। यह अब काम तब की महाराष्ट्र ATS ने किया।
इस मामले में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, स्वामी असीमानंद समेत कई हिन्दू व्यक्ति आरोपित बनाए गए। कर्नल पुरोहित को इस मामले में RDX देने का आरोपित बताया गया। साध्वी प्रज्ञा पर धमाके के लिए बाइक देने का आरोप लगा। इस धमाके में आरोपित बनाए गए कई लोगों को समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में भी आरोपित बनाया गया था। इसी के बाद पूरा नैरेटिव बुना जाने लगा कि देश में हिन्दू आंतकवाद भी है।
महाराष्ट्र ATS इस मामले में कर्नल पुरोहित और अन्य गवाहों के जरिए बड़े हिन्दू नेताओं को भी फँसाना चाहती थी। इसके लिए कर्नल पुरोहित को प्रताड़ित किया गया। उनकी टांग तोड़ी गई। उसने कहा गया कि वह मालेगाँव मामले में तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और RSS-VHP के बड़े नेताओं का नाम ले और यह बात स्वीकार कर लें कि धमाका उन्हीं ने किया है। इसके अलावा साध्वी प्रज्ञा को इतना मारा गया कि उनकी रीढ़ की हड्डी में तक समस्या आ गई और उन्हें वेंटीलेटर पर भर्ती होना पड़ा।
यह सब इसीलिए किया गया ताकि देश में हिन्दुओं की आवाज उठाने वालों को आतंकवादी सिद्ध किया जाए और इस्लामी आतंकवाद के बराबर में हिन्दू आतंकवाद जैसे जूते नैरेटिव को खड़ा कर दिया जाए। बम धमाकों को रोक पाने में विफल कॉन्ग्रेस सरकार इस कोशिश में लगी रही कि देश की बड़ी हिन्दू आबादी को कैसे अपराधबोध में डाला जाए। हालाँकि उसकी यह कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं। ATS की मारपीट के कारण गवाहों ने शुरू में तो बयान दिए लेकिन बाद में उन्होंने भी सच्चाई बयाँ की।
ध्वस्त हो गया हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव, सामने आई प्रताड़ना की कहानी
कॉन्ग्रेस के राज में इस बात के खूब प्रयास हुए कि हिन्दू आतंक का नैरेटिव गढ़ा जाए लेकिन बाद में यह सब फेल हो गया। इसके उलट जिन लोगों पर इन मामलों में मुकदमे किए गए थे, उनकी प्रताड़ना की कहानियाँ सामने आईं। ATS के आरोपों पर 17 गवाह कोर्ट में अपने बयान से मुकर गए। इनमें से एक गवाह ने भी खुलासा किया कि उसको धमका कर हिन्दू नेताओं के नाम लेने के लिए कहा गया था। यहाँ तक कि जिन साध्वी प्रज्ञा को आरोपी बनाया गया था, उन्हें भी इस मामले में दाखिल की गई आखिरी चार्जशीट में दोषी नहीं माना गया।
कर्नल पुरोहित को भी इस मामले में जमानत मिली। इसके बाद इन लोगों ने बताया कि कैसे ATS ने इन्हें इस बात पर मजबूर किया कि वह देश में हिन्दू आतंकवाद की बात स्वीकारें। साध्वी प्रज्ञा ने बताया कि हेमंत करकरे, परमबीर सिंह समेत कई पुलिस अधिकारियों ने उन्हें जमीन पर गिरा कर पीटा, उन्हें गालियाँ दी, उनसे भद्दे सवाल पूछे। उनको पुरुष कैदियों के साथ पोर्न दिखाया। साध्वी को बेल देने की बात आई तो उस न्यायाधीशों को तक धमकाया गया।
कर्नल पुरोहित का पैर तोड़ दिया गया। उन्हें कई दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा, इस दौरान उनको नंगा करके मारा गया। उनके प्राइवेट पार्ट पर हमला हुआ। उन्हें बालों से खींचा गया। उन पर यह दबाव डाला गया कि वह RSS-VHP के बड़े नेताओं का नाम लें, उन्हें इस मामले में फँसाएँ। कोर्ट में गवाहों के पलटने और ATS की कारस्तानियों के बताने के बाद हिन्दू आतंकवाद का नैरेटिव मुंह के बल गिरा है।