Sunday, November 24, 2024
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साध्वी को दिखाए पोर्न, कर्नल को किया नंगा, मेजर को दी बेटी से रेप की धमकी… क्या हिंदू होना गुनाह?

आज के समय में जहाँ सेना और संत-समाज से जुड़े लोगों को सम्मान देने का काम होता है, उनके लिए पाकिस्तान तक से देश की ठन जाती है, उसी वर्ग को कॉन्ग्रेस की यूपीए सरकार में कथिततौर पर राज्य (महाराष्ट्र) एटीएस ने असहनीय पीड़ा दी थी। इन्हें शारीरिक, सामाजिक और मानसिक रूप से ऐसी ठेस पहुँचाई थी कि अगर आज इनकी कहानी सुन ली जाए तो आत्मा सिहर जाएगी।

हिंदू बहुसंख्यक देश में जो हिंदूविरोधी माहौल आज आपको देखने को मिलता है वो एक रात का या कुछ सालों का काम नहीं है। दशकों से कॉन्ग्रेस की सरकार ने इसकी परिपाटी तैयार की है। कॉन्ग्रेस ही वो पार्टी है जिनके सत्ता में रहने के दौरान ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द अस्तित्व में आया और उन्होंने इसे सही साबित करने के लिए निर्दोषों पर अत्याचार की हदें पार कर दीं।

आपको अगर इस बात को और गहराई से समझना है तो साल 2008 में हुआ मालेगाँव ब्लास्ट के बारे में जानना होगा। इस केस को पढ़कर आपको पता चलेगा कि कैसे कॉन्ग्रेस की प्राथमिकताओं में मुस्लिमों को खुश रखना हमेशा सबसे टॉप पर था, वहीं हिंदू उनके लिए कुछ भी नहीं थे।

बात साल 29 सितंबर 2008 की है। मुंबई के मालेगाँव में ब्लास्ट हुआ था। धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। तब, केंद्र में यूपीए की मनमोहन सरकार थी। चूँकि ये घटना एक मस्जिद के पास घटी थी इसलिए कॉन्ग्रेस ने इसे खूब भुनाया और जन्म दिया ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी को। उन्होंने जगह-जगह इस शब्द का प्रयोग शुरू किया। सवाल उठे, तो अपनी थ्योरी सही साबित करने के लिए वह ऐसे लोगों को पकड़कर प्रताड़नाएँ देने पर आमादा हो गए, जिनसे उनकी थ्योरी को बल मिले। हालाँकि बाद में उनकी इस कुत्सित प्रयास की पोल दुनिया के आगे खुद उनके ही काल के ब्यूरोक्रेट आरवीएस मणि ने खोली थी

आरवीएस मणि एक पूर्व नौकरशाह हैं जिन्होंने कॉन्ग्रेस के दौर में गृह मंत्रालय में एक अंडर-सेक्रेटरी के रूप में काम किया था। अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में, मणि ने संपूर्ण मिलीभगत का वर्णन किया हुआ है। उन्होंने बताया है कि किन-किन खिलाड़ियों ने ‘भगवा आतंक’ की कहानी गढ़ने के लिए मिलीभगत की और कैसे, कई वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता से लेकर कई अन्य लोग इस साजिश में शामिल थे।

वहीं, कोर्ट में भी गवाहों ने यह जानकारी दी थी उनके ऊपर हिंदू नेताओं को फँसाने के लिए कहा गया था। ये जानकारी चौंकाने वाली थी। लेकिन जब तक ये सच सामने आया तब तक कॉन्ग्रेस के तुष्टिकरण का शिकार ‘निर्दोष’ हो चुके थे। इनमें एक देश की सेना के कर्नल पुरोहित थे, मेजर रमेश उपाध्याय थे और भगवाधारी साध्वी प्रज्ञा थीं। तीनों का इस्तेमाल कॉन्ग्रेस ने ये फैलाने के लिए किया कि उनकी हिंदू आतंकवाद की थ्योरी एकदम सही है।

आज के समय में जहाँ सेना और संत-समाज से जुड़े लोगों को सम्मान देने का काम होता है, उनके लिए पाकिस्तान तक से देश की ठन जाती है, उसी वर्ग को कॉन्ग्रेस की यूपीए सरकार में कथिततौर पर राज्य (महाराष्ट्र) एटीएस ने असहनीय पीड़ा दी थी। इन्हें शारीरिक, सामाजिक और मानसिक रूप से ऐसी ठेस पहुँचाई थी कि अगर आज इनकी कहानी सुन ली जाए तो आत्मा सिहर जाएगी। जैसे,

  • साध्वी प्रज्ञा की बात करें तो वह कई बार इस मामले में अपना दर्द साझा करके भावुक हो चुकी हैं। वह वो दर्दनाक समय को नहीं भुला पातीं जब जेल के भीतर उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करने का काम हुआ था। उनके अनुसार, इस केस में हिरासत में लिए जाने के बाद पुरुष कैदियों के साथ रखकर पोर्न वीडियो दिखाए जाते थे और भद्दे सवाल होते थे।

    इसके अलावा कथिततौर पर 4-5 पुलिसकर्मी लगाकर उन्हें मारा जाता था। उनकी पिटाई चमड़े की बेल्ट से होती थी। उनको बिन किसी सबूत के भगवा आतंकी कहा जाता था। उनपर इतने अत्याचार होते थे कि उनकी हालत खुद के पाँव पर चलने लायक नहीं बची थी। उनकी रीढ़ की हड्डी में समस्या आ गई थी और उन्हें वेंटिलेटर पर जाना पड़ा था। इसके अलावा साध्वी प्रज्ञा ने ये भी बताया था कि इन्हीं सबके कारण उन्हें कैंसर और न्यूरो की बीमारी हो गई थी और उनके शरीर में पस पड़ गया था।
  • वहीं मेजर रमेश उपाध्याय ने भी अपने बारे में बताया था कि मालेगाँव ब्लास्ट में कॉन्ग्रेस की यूपीए सरकार ने उनको फँसाया था। हिरासत में लिए जाने के बाद एटीएस उनके साथ बर्बरता करती थी। उन्हें धमकी दी जाती थी कि पत्नी को नंगा घुमाया जाएगा, बेटी का रेप किया जाएगा, बेटे का जबड़ा तोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा उनके मकान मालिक तक को उनके खिलाफ भड़काया गया- आतंकी को क्यों रख रहे हों। जिसके कारण उनके परिवार के सिर से छत छिन गई। उनकी शादीशुदा बेटियों के घरों पर दबिश दी गई । हर वो हालात पैदा कर दिए गए कि वो कैसे भी वो जुर्म कबूलें जो उन्होंने किया ही नहीं। प्रशासन उन्हें इस कदर इस मामले में दोषी बनाना चाहता था कि मेजर का नार्को टेस्ट भी कराया। हालाँकि जब उसमें उन्हें क्लीनचिट मिल गई तो ये बर्दाश्त नहीं हुआ और रिपोर्ट को दबा दिया गया।
  • इसी तरह प्रताड़ना की कहानी भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित की है। रिपोर्ट्स के अनुसार, मालेगाँव ब्लास्ट केस में राज्य (महाराष्ट्र) एटीएस ने कथिततौर पर कर्नल पुरोहित को फँसाने के बहुत प्रयास किए। ये जानते हुए कि जिस समय ये ब्लास्ट हुआ था, उस वक्त वो अपने मिशन पर थे उन्हें हिरासत में लिया गया और देशद्रोही घोषित करने की कोशिश हुई। बाद में उनपर दबाव बनाया गया कि वो पूछताछ में आरएसएस और वीएचपी नेताओं का जबरन नाम लें ताकि हिंदू आतंकवाद की थ्योरी सही साबित हो सके। जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनका पैर तोड़ा गया, उन्हें अवैध रूप से हिरासत में रखा, उन्हें नंगा करके मारा गया, उनके प्राइवेट पार्ट पर हमला किया गया, उन्हें बाल से नोचा और खींचा गया।

… और ये सब इन तीनों के साथ क्यों हुआ… क्योंकि ये तीनों कॉन्ग्रेस की भगवा आतंकवाद की थ्योरी को सही साबित करने के लिए उचित चेहरे थे। 2008 में जहाँ एक तरफ मुस्लिमों को रैलियों के दौरान ये बताकर खुश किया जा रहा था कि मालेगाँव ब्लास्ट को इस्लामी आतंकियों ने अंजाम नहीं दिया है बल्कि हिंदू आतंकवादियों ने दिया है। वहीं दूसरी तरफ, हिंदू नेताओं को पूरे मामले में फँसाने की साजिश चल रही थी।

खुद गवाहों ने इस बात को स्वीकारा था कि उन पर योगी आदित्यनाथ समेत अन्य हिंदू नेताओं का नाम लेने का दबाव था। इसके अलावा जो प्रताड़नाएँ मेजर और कर्नल को दी गई थीं उसका मकसद भी यही था कि ये अपने बयानों में हिंदू नेताओं का नाम ले… लेकिन ये सब होता कैसे? कुछ दिन यूपीए शासन में ये नैरेटिव गढ़ा-बढ़ा। मगर फिर हकीकत सामने आने लगी। केस एनआईए के पास गया, चार्जशीट दाखिल हुई, गवाहों की पेशी हुई और हकीकत खुलती गई। ये भी सामने आया कि ये पूरा नैरेटिव सिर्फ जनता का ध्यान CWG घोटाले से हटाने के लिए किया था। इसी बीच ब्यूरोक्रेट आरवीएस मणि की किताब जनता के बीच आई, जिनसे कॉन्ग्रेस के हिंदूविरोधी चेहरे को शीशे जैसा साफ कर दिया।

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