Friday, October 18, 2024
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भिंडराँवाले के बाद कॉन्ग्रेस ने खोजा एक नया ‘संत’… तब पैसा भेजते थे, अब संसद में कर रहे खुला समर्थन: समझिए कैसे नेहरू-गाँधी परिवार की पार्टी ने पैदा किया था ‘खालिस्तान’

पूरा माज़रा शुरू होता है 1977 से, जब अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन पंजाब में जीत कर सत्ता में आया, जैल सिंह को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा और बतौर CM उनके कार्यकाल की जाँच के लिए गुरदयाल सिंह आयोग का गठन हुआ। बताते चलें कि यही जैल सिंह बाद में भारत के राष्ट्रपति बने।

जरनैल सिंह भिंडराँवाले – ये नाम शायद ही किसी को न पता हो। भारत को खंडित करने के मंसूबे रखने वाला ये शख्स पंजाब को देश की शेष भूमि से काटने के लिए हथियार उठा चुका था, लेकिन ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में भारतीय सेना ने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में घुस कर उसे मार गिराया। इसके बाद अक्टूबर 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, अगस्त 1986 में पूर्व सेनाध्यक्ष अरुण श्रीधर वैद्य और अगस्त 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हुई।

क्रमशः दिल्ली, पुणे और चंडीगढ़ में ये हत्याएँ हुईं। खैर, इतिहास में झाँक कर देखने पर अब तक ये तो बिलकुल ही साफ़ हो चुका है कि एक घाव को नासूर बनाने वाली कॉन्ग्रेस ही थी। जरनैल सिंह भिंडराँवाले, जिसे आज भी खालिस्तानी कट्टरपंथी ‘संत’ कह कर संबोधित करते हैं, उसे इसी कॉन्ग्रेस पार्टी ने खड़ा किया था जो आज खुलेआम एक और खालिस्तानी अमृतपाल सिंह का समर्थन कर रही है। और तो और, अमृतपाल सिंह पर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ (NSA) लगाए जाने को पूर्व कॉन्ग्रेसी CM चरणजीत सिंह चन्नी ने लोकसभा में खड़े होकर ‘आपातकाल’ बताया।

‘संविधान हत्यारी’ कॉन्ग्रेस अमृतपाल सिंह के समर्थन में

बड़ी बात तो ये है कि जून 1975 से लेकर मार्च 1977 तक, यानी पूरे 21 महीने देश पर आपातकाल थोपने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी ही थी और प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गाँधी। इस विषय पर काफी बातें की जा चुकी हैं, संविधान माथे पर लेकर नाचने वालों की पार्टी की इस करतूत को हर साल दुनिया को याद दिलाने के लिए मोदी सरकार ने प्रतिवर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का निर्णय लिया है। आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि खालिस्तान के समर्थन वाला पूरा माजरा क्या है।

अमृतपाल सिंह खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुना गया है। ये काफी भयावह है, क्योंकि बिना चुनाव प्रचार किए 2800 किलोमीटर दूर डिब्रूगढ़ के जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने कॉन्ग्रेस, भाजपा, अकाली दल और AAP – चरों बड़ी पार्टियों को निर्दलीय लड़ कर मात दे दी। इस लोकसभा क्षेत्र में अमृतसर, तरनतारन, कपूरथला और फिरोजपुर – 4 जिलों की 9 विधानसभा सीटें आती हैं। सोचिए, पंजाब के 4 जिलों के लोगों के मन में अमृतपाल को लेकर सहानुभूति 80 के दशक की याद दिलाती है या नहीं।

चरणजीत सिंह चन्नी, जो जालंधर से सांसद चुने गए हैं, वो लोकसभा में कहते हैं कि एक चुने हुए सांसद को जेल में बंद कर के रखा गया है, ये अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ है। अमृतपाल सिंह कौन है? आइए, जानते हैं। 19 वर्ष की उम्र में दुबई पहुँचने वाले अमृतपाल सिंह की पुरानी तस्वीरें आप देखेंगे तो उसने पगड़ी तक नहीं पहन रखी है। खैर, इस देश में ऐसा ही चलता है। जब 5 वक्त का नमाज न पढ़ने वाला मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिमों को भड़का कर इस देश को खंडित कर सकता है तो फिर अमृतपाल सिंह को छोड़ ही दीजिए।

अमृतपाल सिंह: नासूर बनने से पहले ही मोदी सरकार ने किया काबू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों के हित के लिए 3 कानून लेकर आई थी। इसके बाद पश्चिमी यूपी और पंजाब के किसानों ने 1 साल तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं को घेरे रखा। अंत में केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और तीनों कानूनों को वापस लेना पड़ा। बताया गया कि ‘किसान आंदोलन’ में खालिस्तानी तत्व घुस गए थे, इसीलिए देश की सुरक्षा को देखते हुए ये फैसला लिया गया। अमृतपाल सिंह उन नेताओं में शामिल था, जिसने सिखों को इन तीनों कानूनों के नाम पर मोदी सरकार के खिलाफ भड़काया।

उससे पहले दीप सिद्धू ये सब काम कर रहा था, जिसने ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन भी बना रखा था। फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में उसकी मौत के बाद अमृतपाल सिंह के पास संगठन की कमान आ गई। 2021 में गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर चढ़ कर खालिस्तानी झंडा फहराए जाने और राष्ट्रध्वज तिरंगे का अपमान करने वाली भीड़ को उकसाने वालों में दीप सिद्धू भी शामिल था। अमृतपाल सिंह खुद को जरनैल सिंह भिंडराँवाले से प्रेरित बताता था, उसकी तरह वेशभूषा रखता था। मोगा के रोड गाँव में भिंडराँवाले का जन्म हुआ था, वहाँ अमृतपाल ने रैली की

उस रैली में उसने कहा कि देश के सिख ‘गुलाम’ हैं और उन्हें ‘आज़ादी’ के लिए लड़ने की ज़रूरत है। 24 फरवरी, 2023 को हद ही हो गई जब अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने अजनाला में पुलिस थाने पर ही हमला बोल दिया। लवप्रीत सिंह नामक शख्स को छुड़ाने के लिए बंदूकें और तलवार लेकर थाने में घुसी सिख भीड़ ने ढाल के तौर पर पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब ले रखा था। उसने पंजाब के CM भगवांत मान और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक को धमकी दी। इससे पहले कि वो भिंडराँवाले की तरह नासूर बनता, उसे धर-दबोचा गया।

कॉन्ग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडराँवाले को पैदा किया: कहते हैं पूर्व सेना व ख़ुफ़िया अधिकारी

आखिर यही गलती कॉन्ग्रेस ने भी तो की थी, गलती नहीं बल्कि जानबूझकर ये सब किया गया था। भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी R&AW के स्पेशल सेक्रेटरी रहे GBS सिद्धू ने ANI की मुखिया स्मिता प्रकाश के साथ पॉडकास्ट में बताया था कि तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने हिन्दुओं को भयभीत करने के लिए जरनैल सिंह भिंडराँवाले को खड़ा किया था। उनकी मंशा थी कि देश की अखण्डता को लेकर लोगों में भय पैदा हो। GBS सिद्धू का स्पष्ट कहना था कि खालिस्तान का मुद्दा अस्तित्व में ही नहीं था, इसे लाया गया।

पूर्व ख़ुफ़िया अधिकारी ने आगे बताया था कि कॉन्ग्रेस अपने मोलभाव के लिए एक ‘ऊँचे दर्जे का संत’ पैदा करना चाहती थी। खुद कमलनाथ ने ये बात कही थी, जो बाद में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। गाँधी परिवार के करीबी रहे कमलनाथ ने ये भी कहा था कि कॉन्ग्रेस पार्टी जरनैल सिंह भिंडराँवाले को पैसे भेजती थी। कट्टरवादी संगठन ‘दमदमी अक्साल’ के मुखिया जरनैल सिंह भिंडराँवाले को 6 जून, 1984 को 37 वर्ष की उम्र में मार गिराया गया था। अमृतपाल सिंह की उम्र अभी 31 वर्ष है।

जिस ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में उसे मार गिराने में सफलता प्राप्त हुई थी, उसका नेतृत्व करने वाले भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल (अब रिटायर्ड) कुलदीप सिंह बराड़ को भी सुन लेते हैं। उन्होंने बताया था कि तत्कालीन PM इंदिरा गाँधी ने जरनैल सिंह भिंडराँवाले को एक ‘राक्षस’ के रूप में विकसित होने में मदद की थी, और जब वो काबू से बाहर हो गया तो उसे खत्म कर दिया। उन्होंने बताया कि तब तक काफी देर हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि 1982, 83, 84 में पंजाब में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी, पुलिस डरी हुई थी और पूरा राज्य सरकारी नियंत्रण से बाहर था।

कॉन्ग्रेस का ‘संत’ था भिंडराँवाले, अब अमृतपाल में वही खोज

दिवंगत पत्रकार कुलदीप नायर एक घटना का जिक्र करते हैं, जिससे आप समझ जाइएगा कि भिंडराँवाले को बनाने में कैसे कॉन्ग्रेस का रोल था। एक बार एक कमरे में वो कुर्सी पर बैठे हुए थे और साथ में भिंडराँवाले भी था। इसी दौरान स्वर्ण सिंह वहाँ पहुँचे। बता दें कि दिवंगत स्वर्ण सिंह सबसे लम्बे समय तक केंद्र में मंत्री रहने वाले शख्स हैं, उन्होंने विदेश, रक्षा, कृषि और रेलवे जैसे मंत्रालय सँभाले। स्वर्ण सिंह जब कमरे में घुसे तो कुलदीप नायर ने उन्हें अपनी कुर्सी देनी चाहिए।

हालाँकि, सिख समाज से आने वाले स्वर्ण सिंह ने जमीन पर बैठना पसंद किया और कहा कि एक ‘संत’ की मौजूदगी में यही होना चाहिए। लुधियाना में ‘पंजाब केसरी’ और ‘हिंदी समाचार’ के संस्थापक लाला जगत नारायण की हत्या इसी भिंडराँवाले ने की थी। उन्होंने खालिस्तान के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। उनके बेटे रोमेश चंदर को भी मार डाला गया। कुलदीप नायर पूरे घटनाक्रम को समझाते हैं कि कैसे कॉन्ग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडराँवाले को खड़ा किया।

पूरा माज़रा शुरू होता है 1977 से, जब अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन पंजाब में जीत कर सत्ता में आया, जैल सिंह को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा और बतौर CM उनके कार्यकाल की जाँच के लिए गुरदयाल सिंह आयोग का गठन हुआ। बताते चलें कि यही जैल सिंह बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। आयोग ने उन्हें बतौर CM पद के दुरुपयोग का दोषी माना। फिर परिदृश्य में आए संजय गाँधी, जो आपातकाल के दौरान सत्ता के नियंत्रण में थे और अपनी माँ के सरकार के दौरान संविधान के विपरीत जाकर फैसले करने से भी नहीं हिचकते थे।

संजय गाँधी ने ही कॉन्ग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को सलाह दी कि किसी ‘सिख संत’ को पैदा किया जाए। इन सब में जरनैल सिंह भिंडराँवाले को चुना गया, क्योंकि वो इन्हें ‘साहसी’ लगा। जैल सिंह उससे लगातार संपर्क में थे। 13 अप्रैल, 1978 को बैशाखी के दिन निरंकारी सिखों के साथ सिखों के एक अन्य गुट की झड़प हुई। 16 सिख मारे गए। बता दें कि निरंकारियों को सिख अपने मजहब का नहीं मानते, वैसे ही जैसे मुस्लिम अहमदिया समाज को अपना नहीं मानते।

बस, फिर क्या था। इसी घटना का इस्तेमाल जरनैल सिंह भिंडराँवाले ने अकाली दल और जनता पार्टी की संयुक्त सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए किया। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को भागे-भागे अमृतसर जाना पड़ा और निरंकारी समाज के मुखिया गुरबचन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। पंजाब के शिक्षा मंत्री सुखजिंदर सिंह, जो चीन-पाकिस्तान की मदद से खालिस्तान बनाने की बातें करते थे, वो भिंडराँवाले की बैठकों का हिस्सा बनने लगे

आखिर क्यों स्थिति होती जा रही खराब

अब सवाल उठता है कि क्या कॉन्ग्रेस पार्टी फिर से पंजाब में सत्ता पाने और पूरे देश में आग लगाने के लिए अमृतपाल सिंह में अपना संत देख रही है? राहुल गाँधी ने सिख किसान नेताओं के साथ बैठक की है। प्रदर्शनकारी हरियाणा-पंजाब की शंभू सीमा पर बैठे हुए हैं। राहुल गाँधी विदेश जाकर कह चुके हैं कि पूरे देश में केरोसिन तेल छिड़का हुआ है, बस एक छोटी सी चिंगारी और सब कुछ जल उठेगा। तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के कारण इनका उत्साह और बढ़ा हुआ है, देखते हैं आगे क्या होता है। विपक्ष भी इस बार चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के कारण आक्रामक है।

स्थिति भयावह होती जा रही है। कनाडा में खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप वहाँ की सरकार के भारत पर मढ़ दिया, उसके लिए दुनिया के कई गुरुद्वारों में अरदास हुई। कनाडा में मंदिरों पर हमले हो रहे हैं। SFJ (सिख्स फॉर जस्टिस) का मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू वीडियो जारी कर कनाडा के हिन्दुओं कोभारत लौटने की धमकी दे रहा है। ‘अकाल तख़्त’ हरमंदिर साहिब में खालिस्तानी आतंकियों की तस्वीरें लगाने के लिए प्रस्ताव पारित करता है, जिनमें निज्जर के अलावा भारतीय विमान हाईजैक करने वाला गजिंदर सिंह और ‘खालिस्तानी कमांडो फोर्स’ का मुखिया रहा परमजीत सिंह पंजवार शामिल है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
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