Sunday, September 29, 2024
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10 साल की उम्र में गलती से भारत में घुसा फिर भी बना रहा ‘मुसलमान’, 22 साल बाद पाकिस्तान लौटा तो अपने भी कह रहे ‘काफिर’: सिराज मुहम्मद की कहानी फिल्मी है, पर सच्ची है

सिराज खान को पाकिस्तान में काफिर कहकर ताने दिए जाते हैं, उनकी बीवी को उनके रंग की वजह से कोसा जाता है, उनके बच्चों से भी लोग दूरी बनाते हैं... यही सब देख सिराज की पत्नी साजिदा कहती कि लोग कहते हैं कि भारत में मुस्लिमों के साथ गलत व्यवहार होता है लेकिन ये तो पाकिस्तान है।

10 साल की उम्र में एक लड़का गलती से गलत ट्रेन पकड़कर भारत आ गया था। यहाँ आकर वो करीबन 22 साल रहा। यहाँ उसने शादी की, उसके बच्चे हुए, एक परिवार: बना। इसके बाद उसने सोची कि क्यों न सबको लेकर अपने ही मुल्क चला जाए। उसने लौटने का फैसला किया। लेकिन उस समय उसे ये नहीं पता था जिस जगह को वो अपना समझकर जा रहा है वहाँ उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा।

हम बात कर रहे हैं कि 38 साल के सिराज मुहम्मद खान की जिनकी कहानी हाल में पाकिस्तानी समाचार पोर्टल डॉन पर प्रकाशित हुई है। सिराज खान पिछले छह साल से खैबर पख्तूनख्वा (केपी) प्रांत के बट्टाग्राम में एक किराए के कमरे में रहता है। उसकी बीवी और तीन बच्चे हैं। सिराज के पास पाकिस्तानी पहचान है लेकिन उसका परिवार भारतीय है।

सिराज बताते हैं कि उनका जन्म 1986 में मनसेहरा जिले के बाहपी इलाके कोंश घाटी के शरकूल गाँव में हुआ था। वह 1996 में 10 साल की उम्र में बस में सवार होकर लाहौर पहुँचे और बस टर्मिनल से रेलवे स्टेशन तक पैदल चलकर एक ट्रेन में चढ़ गए। उन्हें लगा कि वह ट्रेन उन्हें कराची लेकर जाएगी लेकिन वो ट्रेन समझौता एक्सप्रेस थी जिसमें चढ़ वह भारत पहुँच गए। छोटा बच्चा होने के नाते उस समय उन्हें इमीग्रेशन की सख्त प्रक्रिया से भी नहीं गुजरना पड़ा।

वह भारत पहुँचे ये सोचकर कि वो कराची आ गए। धीरे-धीरे समझ आया कि ये कराची नहीं भारत है। वह घबराए, रास्ते में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन लोग अच्छे मिले तो मुश्किलें इतनी बड़ी नहीं लगीं। कहीं किसी ने उन्हें पैसे देकर दिल्ली से मुंबई जाने को कहा, तो किसी ने उन्हें अहमदाबाद के आश्रय स्थान तक पहुँचा दिया। उनकी पहचान के लिए उन्हें शिमला से कश्मीर तक ले जाया गया। उनके बताए पते पर चिट्ठियाँ भेजी गईं और भी बहुत कुछ हुआ।

सिराज ने भारत में रहकर छोटे-मोटे काम करते हुए अपना गुजारा शुरू किया। फिर तनख्वाह आने पर उन्होंने मुबंई के विजय नगर झुग्गी में कमरा किराए पर लिया। यहाँ उनकी मुलाकात साजिदा से हुई। दोनों ने 2005 में शादी की। पहले उन्हें एक बेटी हुई फिर 2010 में दो जुड़वा लड़के।

इस तरह सिराज ने भारत में अपना पूरा परिवार बनाया। उनके बच्चों के जन्म के साथ उन्होंने भारत में नागरिकता के लिए आवेदन किया। धीरे-धीरे उन्हें आधार, राशन और मतदाता कार्ड सब मिल गया। 2009 में उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई।

सब ठीक था, मगर सिराज को ये लगने लगा कि जब उनका असली परिवार पाकिस्तान में है तो वो इस परिवार को उनसे दूर क्यों रखे। वह प्रवर्तन निदेशालय के पास गए। कहानी सुनाई और पाकिस्तान जाने की इच्छा रखी। शुरू में तो उन्हें कानून के तहत अवैध रूप से भारत आने पर पकड़कर जेल में रख दिया गया, लेकिन बाद में किसी तरह वो पाकिस्तान पहुँचे। सीमा पार करने के बाद उनसे पूछताछ हुई उन्हें उनके घर जाने की इजाजत मिली। बस में बैठ उन्होंने सोचा कि शायद कुछ ठीक हो, मगर ठीक होने की बजाए चीजें बिगड़ गईं।

दरअसल, करीबन 22 साल बाद सिराज घर लौटे तो उनके परिजन उन्हें देख खुश नहीं हुए। उलटा भाई ने तो ये कह दिया कि वो प्रॉपर्टी के लिए लौटे हैं। उन्हें उनके अम्मी-अब्बा संदेह की नजर से देखने लगे। उन्हें जासूस, हिंदू और काफिर कहा जाने लगा। उनकी हालत ऐसी कर दी गई कि उन्हें पाकिस्तान लौटने पर पछतावा होने लगा।

इसी बीच उनका परिवार उनसे मिलने वीजा लेकर पाकिस्तान आया। मगर साजिदा के साथ तो सिराज से भी बद्तर हुआ। साजिदा ने बताया कि वहाँ लोग साजिदा के रंग रूप को लेकर गंदी टिप्पणी करते थे। साजिदा ने दुखी होकर कहा कि लोग कहते रहते हैं कि भारत में मुसलमानों के लिए रहना मुश्किल है लेकिन हकीकत यह है कि यहाँ कभी उन्होंने ऐसी नफरत नहीं झेली जैसी पाकिस्तान में झेली। उनके बच्चों को स्कूल में बहिष्कृत किया गया, हर बार मजाक उड़ाया गया। डर से पूरा परिवार एक कमरे में रह था क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके साथ इससे भी बुरा हो सकता है।

हालात इतने बुरे हो गए कि साजिदा को घर लौटना पड़ा। उन्होंने पाकिस्तान में अपने अनुभव को नरक जैसा बताया। बाद में बच्चों को देखते हुए उन्हें दोबारा सिराज के पास जाना पड़ा। अब उनका परिवार एक है लेकिन पाकिस्तान में उनके परिवार के वीजा एक्सटेंशन करवाने के लिए रिश्वत माँगी जा रही हैं। उन्हें कुछ नहीं समझ आ रहा कि वो क्या करें और कैसे उस परिवार के साथ रहें जिसे उन्होंने भारत में बनाया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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