भारत के बड़े कारोबारी समूह अडानी ग्रुप को निशाना बनाने वाला ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) अमेरिका से भारी फंडिंग लेता है। वही अमेरिकी एजेंसियाँ उसे पैसा देती हैं, जो भारत विरोधी कामों में लिप्त रही हैं। यह सारा खुलासा एक फ्रांसीसी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
OCCRP को 2007 में स्थापित किया गया था। यह दावा करता है कि विश्व के 6 महाद्वीपों में पत्रकारों का एक नेटवर्क है, जो इस अपराध और भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में एक्सपर्ट हैं। OCCRP का दावा है कि वह पूरी तरह स्वतंत्र संस्थान है लेकिन अब फ्रांसीसी अखबार मीडियापार्ट ने खुलासा किया है कि यह अमेरिका के विदेश विभाग और एजेंसी USAID से पैसा लेते हैं।
मीडियापार्ट ने 2 दिसम्बर, 2024 को इस संबंध में एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है। ‘द हिडेन लिंक्स बिटवीन जायंट ऑफ़ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म एंड यूएस गवर्मेंट’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में मीडियापार्ट ने बताया है कि कैसे OCCRP पर अमेरिका की सरकार का बड़ा प्रभाव है।
मीडियापार्ट ने बताया, “जहाँ OCCRP खुद को पूरी तरह से स्वतंत्र बताता है, इसके मैनेजमेंट ने अमेरिका पर पूरी तरह से निर्भर कर दिया है। यह जानकारी इस जाँच में पता चली है।” मीडियापार्ट ने बताया है कि OCCRP का गठन ही अमेरिकी सरकार के पैसे से हुई थी।
किस तरह अमेरिकी पैसे पर जिंदा है OCCRP
मीडियापार्ट की रिपोर्ट के अनुसार, अभी भी OCCRP की फंडिंग का लगभग 50% से अधिक अमेरिकी एजेंसियाँ देती हैं। यह एजेंसियाँ OCCRP में अपने लोगों को नियुक्त करती हैं। ड्रियू सुलिवान इनमें से एक हैं। मीडियापार्ट ने यह भी बताया कि OCCRP जहाँ अमेरिकी एजेंसियों से फंडिंग लेने की बात स्वीकारती है, वहीं यह नहीं बताती कि इसको कितनी फंडिंग मिलती है।
मीडियापार्ट ने यह भी बताया कि OCCRP अपने लेखों में भी कभी यह जानकारी नहीं दी कि उन्हें अमेरिका से फंडिंग मिलती है। USAID का OCCRP दखल कितना अधिक है, इसका अंदाजा USAID के एक अधिकारी की एक बात से लगाया जा सकता है।
USAID के यूरोप और यूरेशिया के सीनियर एडवाइजर माइक हेनिंग ने OCCRP को USAID की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक बताया था। OCCRP ने अपने रिकॉर्ड से भी यह बात हटा दी है कि अमेरिकी सरकार ने उसकी स्थापना में क्या रोल निभाया था।
इस रिपोर्ट में केवल यूनाइटेड नेशन द्वारा पैसे दिए जाने का उल्लेख किया है। ड्रयू सुलिवन ने दावा किया है कि यूनाइटेड नेशंस से मिला पैसा असल में OCCRP को मिला पहला फंड था। OCCRP को स्थापना के बाद से अब तक अमेरिकी सरकार से कम से कम 47 मिलियन डॉलर, यूरोपियन देशों (ब्रिटेन, स्वीडन, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, स्लोवाकिया और फ्रांस) से 14 मिलियन डॉलर तथा यूरोपियन यूनियन से 1.1 मिलियन डॉलर मिल चुके हैं। यह धनराशि OCCRP ने अपनी वेबसाइट पर नहीं बताई है।
OCCRP की रिपोर्टिंग पर अमेरिकी सरकार का प्रभाव
मीडियापार्ट के अनुसार, OCCRP ने एक और प्रोजेक्ट को भी चलाया है जिसके अंतर्गत यह उन रिपोर्ट के आधार पर कानूनी कार्रवाई करता है जिनकी इसने जाँच की है। दिलचस्प बात यह है कि तथाकथित ‘स्वतंत्र संगठन’ अमेरिकी सरकार की कभी आलोचना नहीं करता है।
इसकी अधिकांश रिपोर्ट रूस, माल्टा, साइप्रस और वेनेजुएला जैसे देशों के बारे में खूब एक्टिविज्म करता है। मीडियापार्ट ने खुलासा किया है कि अमेरिका के विदेश विभाग ने वेनेजुएला के भ्रष्टाचार को उजागर करने और उसका मुकाबला करने के मिशन के लिए OCCRP को 173,324 डॉलर भी दिए है।
वेनेजुएला पर अमेरिका ने सैंक्शन लाद रखे हैं। मीडियापार्ट ने कहा, “एक पत्रकार संगठन द्वारा अमेरिका की पहल पर और उससे पैसे लेकर ऐसी गतिविधियों का नेतृत्व करना, यहाँ तक कि एक उचित कारण के लिए भी, महत्वपूर्ण नैतिक प्रश्न उठाता है।”
अडानी पर हमले का OCCRP का है इतिहास
अगस्त 2023 में, ऑपइंडिया ने भविष्यवाणी की थी कि OCCRP अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ के नक्शेकदम पर चलते हुए भारतीय बाजार में उथल-पुथल मचाने की योजना बना रहा है।हमने खुलासा किया था कि OCCRP को जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF), फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर ब्रदर्स फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से फंड मिलता है।
OSF ने संगठन की क्रॉस-बॉर्डर रिपोर्टिंग को ‘मजबूत’ करने और प्रभाव बढ़ाने के लिए संगठित OCCRP को $8,00,000 (₹6.61 करोड़) का अनुदान भी दिया। ‘पत्रकारों के नेटवर्क’ ने अब तक दो हिट लेख प्रकाशित किए हैं। एक अगस्त 2023 में और दूसरा मई 2024 में। अडानी समूह और मॉरीशस स्थित फंड ‘360 वन’ द्वारा OCCRP के इन दावों को खारिज कर दिया गया।
यहाँ तक कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी फैसला सुनाया था कि OCCRP की रिपोर्ट का इस्तेमाल सेबी द्वारा चल रही जाँच पर संदेह जताने के लिए नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी सत्यापन के किसी संगठन की रिपोर्ट पर सबूत के तौर पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
मीडियापार्ट के खुलासे ऐसे समय में हुए हैं जब गौतम अडानी को रिश्वतखोरी के कथित आरोपों को लेकर अमेरिका में परेशान किया जा रहा है। गौरतलब है कि जिस USAID से OCCRP पैसा लेता है, वह कई देशों में सरकारें बदलने के लिए ज़िम्मेदार रहा है।
USAID का है सरकारें बदलने में इतिहास
USAID हाल ही में बांग्लादेश भी सत्ता परिवर्तन के खेल में शामिल था। USAID ने यहाँ ऐसी एजेंसियों को मदद दी थी जो शेख हसीना की सत्ता को अस्थिर करने के लिए लगी हुई थीं।बांग्लादेश में यह योजना अमेरिका ने 2019 से ही चालू कर दी थी। USAID ने यहाँ IRI नाम की एक संस्था को पैसा दिया था।
IRI ने इसके लिए एक कार्यक्रम चलाया और यह जनवरी 2021 तक चला । IRI ने कहा इस कायर्क्रम का उद्देश्य बांग्लादेश के भीतर उन लोगों को आवाज देना है, जो हसीना की दमनकारी सत्ता के विरुद्ध खड़े हो सकें। IRI ने अपने इस कार्यक्रम में LGBT, बिहारी और बाकी समुदायों के लोगों के समूहों को समर्थन दिया।
इसके तहत 77 ‘एक्टिविस्ट’ को ट्रेनिंग भी दी गई। इन लोगों को बड़ी धनराशि भी दी गई। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि अमेरिका उन लोगों को अपने पक्ष में बोलने के लिए तैयार कर रहा था जो हसीना का विरोध कर सकें। IRI ने 2021 में एक और प्रोग्राम चलाया था। इसके लिए उसे अमेरिकी एजेंसी NED से 9 लाख डॉलर की मदद मिली थी। इस कार्यक्रम के तहत IRI ने उन नेताओं को तैयार करने का लक्ष्य रखा था जो आगे जाकर बड़ी आवाज बन सकें।