कल ही बैंगलुरू में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के मंच से पाकिस्तान के समर्थन में लगे नारों और उन्हीं की पार्टी के नेता वारिस पठान के मुस्लिमों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काने वाले बयान के बाद सियासत गरमा गई है। अभी तक जहाँ इन मंचों से नागरिकता कानून के विरोध कि आड़ में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के खिलाफ ही अपशब्द निकलते थे, तो वहीं बृहस्पतिवार को ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की नारेबाजी भी होने लगी। इसी घटना पर भाजपा ने ओवैसी से सवाल भी पूछा है कि कहीं यह सब प्रायोजित तो नहीं?
बीजेपी मीडिया सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने भी ओवैसी के मंच से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाली लड़की अमूल्या लियोना की एक वीडियो को ट्वीट किया और आशंका जाहिर की है कि कहीं जो हाल में दिख रहा है, उसके पीछे भी कोई बड़ी साजिश तो नहीं? क्योंकि इस वीडियो में अमूल्या लियोना ये कहते दिख रही है कि मंच पर जो बोलना होता है उसके पीछे पूरी टीम होती है।
In this dated video, the girl who raised ‘Pakistan zindabad’ slogans at Asaduddin Owaisi’s ‘anti-CAA’ rally, explains that she may be the face but there is a big ‘lobby’ of senior activists and advisors, who advise her on what to speak…
— Amit Malviya (@amitmalviya) February 20, 2020
The rot is deeper than what is visible! pic.twitter.com/qOD8Wkg3Rw
अब हालाँकि, यह बात सब जानते हैं कि ‘स्टेज के पीछे पूरी टीम’ होने की बात करती अमूल्या लियोना की ये वीडियो पुरानी है और वर्तमान घटना के साथ इसका सम्बन्ध ढूँढने के लिए एक बार फिर उत्सुकतावश शेयर की जा रही है। वैसे भी कल के वीडियो से स्पष्ट देखा जा सकता है कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के बाद तो अमूल्या की स्थिति ऐसी नहीं रह गई थी कि वो इतनी शान से और आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू दे पाती। लेकिन सोशल मीडिया पर लोग जो सवाल पूछ रहे हैं, वो इस बिनाह पर पूछ रहे हैं कि जब अन्य विरोध प्रदर्शन और भाषणों के पीछे अमूल्या की एक पूरी टीम होती है, उनके सलाहकार होते हैं, कई कार्यकर्ता होते हैं, उनके साथी होते हैं, तो क्या ऐसा इस बार भी तो नहीं?
ये सवाल वाजिब है, और वर्तमान परिस्थियों के मुताबिक पूछा भी जाना चाहिए। क्योंकि सीएए विरोध प्रदर्शन में पाकिस्तान जिंदाबाद के साथ ही देश विरोधी और हिंदुत्व विरोधी नारे लगना आम बात नहीं रह गया है। वो भी तब, जब एक पूरा समुदाय इसी बात को आधार बनाकर धरना दे रहा हो कि यह कानून किस न किसी तरह से उनके समुदाय के खिलाफ साजिश है।
‘Pakistan zindabad’ slogans raised at an ‘anti-CAA’ rally in Bengaluru’s Freedom Park with Asaduddin Owaisi on stage…
— Amit Malviya (@amitmalviya) February 20, 2020
This is the under belly of these protests! pic.twitter.com/nvXAxgFdsn
मगर, ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग से लेकर असम को भारत से काटने की योजना बनाने वाले शरजील इमाम तक का समर्थन करने वाले वामपंथी मीडिया गिरोह का क्या..जो समय दर समय केवल ये साबित करने पर जुटा हुआ है कि न ही कन्हैया कुमार और न ही उनकी यह पूरी गैंग गलत है, न जामिया में हिंसा करने वाले लोग, न शरजील इमाम और न ही अमूल्या लियोना।
#WebQoof | An old video interview of Amulya Leona is being circulated online, claiming she gave the interview to expose the people who had asked her to raise a ‘pro-Pak’ slogan at an anti-CAA event in Bengaluru.https://t.co/8lSktqPEaB
— WebQoof (@QuintFactCheck) February 21, 2020
अमूल्या के पक्ष में उतरा ‘ दी क्विंट’
अमूल्या लियोना का पक्षधर बनकर ‘द क्विंट’ ने एक फैक्ट चेक किया है। जिसमें बताया है कि किस तरह ट्विटर पर लोग इस पुराने वीडियो को शेयर कर रहे हैं और यूजर्स में भ्रम की स्थिति फैला रहे हैं। जबकि स्पष्ट है कि यहाँ भ्रम की स्थिति नहीं फैलाई जा रही? यहाँ केवल एक सवाल हो रहा है कि कहीं इस बार भी अमूल्या के नारों में पूरी एक टीम का हाथ तो नहीं? लेकिन ‘द क्विंट’ इसे फिर भी जस्टिफाई करने पर आमादा है, ताकि CAA विरोधी मंच से निकली ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की गूँज को किस तरह से धीमा किया जा सके।
प्रोपेगैंडा वेबसाइट ‘द क्विंट’ अपने इस फैक्ट चेक के जरिए खुद ही बताता है कि उन्होंने इस वीडियो को खोजने का प्रयास किया और पाया कि जिस वीडियो को आज प्रासंगिक बनाकर शेयर किया जा रहा है, वो तो 31 जनवरी की है और उसका तो बैंगलुरू वाले किस्से से कोई लेना-देना ही नहीं है। दी क्विंट ने स्पष्टीकरण दिया है कि अमूल्या तो उन प्रोटेस्ट के बारे में कह रही थी, जो उसने 31 जनवरी से पहले किए।
यहाँ सोचने वाली बात है कि 31 जनवरी से पहले ऐसा तो नहीं था न कि सीएए/एनआरसी/एनपीआर के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहे थे और अगर हो रहे थे, तो अमूल्या इसमें शामिल नहीं थीं? दोनो चीजें थीं और अमूल्या की इन प्रदर्शनों में सहभागिता उसके सोशल मीडिया अकॉउंट से लगाई जा सकती है।
इसलिए, अमूल्या लियोना की बातों को सुनकर संदेह उत्पन्न होना जाहिर है। लेकिन इन सवालों को खारिज करने के लिए की गई कोशिश भी बताती हैं कि आज ये वामपंथी मीडिया अपने इन्हीं फैक्ट चेक और एंजेंडाधारी पत्रकारिता से लोगों की सोचने की क्षमता पर चोट कर रहा है, ताकि पाठक भ्रमित हो और इनकी तरह से सोचना शुरू करे।
गौरतलब है कि ‘द क्विंट’ के फैक्ट चेक के अलावा एनडीटीवी ने अमूल्या के ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे को जस्टिफाई करने का प्रयास किया है। अमूल्या के एक पुराने फेसबुक पोस्ट को शेयर करते हुए एनडीटीवी ने इस बिंदु पर लिखा है कि अमूल्या ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में पिछले सप्ताह पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी देशों की तारीफ की थी। एनडीटीवी के अनुसार अमूल्या ने लिखा था, “हिन्दुस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद, बांग्लादेश जिंदाबाद, श्रीलंका जिंदाबाद, नेपाल जिंदाबाद, अफगानिस्तान जिंदाबाद, चीन जिंदाबाद, भूटान जिंदाबाद। अमूल्या ने कन्नड़ भाषा में लिखे पोस्ट में कहा था कि अपने देश से प्यार करें और दूसरे देशों का सम्मान करें।”
बता दें कि वामपंथी मीडिया गिरोह द्वारा देश के ख़िलाफ़ नारे लगाने वालों के प्रति ये उदारवादी रवैया कोई नया नहीं। इससे पहले भी कई बार ऐसे मौके आए हैं, जब फैक्ट के जरिए, पाठकों को ये समझाने का प्रयास हुआ कि उन्हें जो स्पष्ट दिख रहा है, वो गलत है, और सही सिर्फ़ वो है, जिसको उनकी वेबसाइट या उनके गिरोह के चैनल अंतिम सत्य बता रहे हैं।
इसका सबसे हालिया उदाहरण, ऑल्ट न्यूज़ द्वारा जामिया हिंसा से संबंधित फैक्ट चेक का है। जिसमें पत्थर को वॉलेट बताकर पेश किया गया। इसलिए अगर अब दी क्विंट जैसे प्रोपेगैंडा-धारी स्रोत अमूल्या को भी क्लीन चित देने का प्रयास करते नजर आएँ तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।