12 फरवरी को सतना जिले के चित्रकूट से दो जुड़वाँ भाइयों, श्रेयांश और प्रियांश, को अपराधियों ने अगवा कर लिया था। परिवार वालों से ₹20 लाख की माँग की गई, जो उन्होंने दे दी। ख़बरों में यह भी कहा जा रहा है कि अपहरण करने वाले अपराधियों ने एक करोड़ रुपए फिरौती में माँगे थे।
हालाँकि, अपराधियों ने शनिवार को दोनों भाइयों की हत्या कर दी जिनके हाथ बंधे शवों को उत्तरप्रदेश के बांदा में नदी के पास पाया गया। बच्चों के शव बरामद होने के बाद चित्रकूट में कुछ जगहों पर हिंसा की भी खबरें हैं।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के सत्ता में आते ही राजनैतिक हत्याओं का सिलसिला शुरु हो गया था। भाजपा के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई थी जिस पर सरकार ‘आपसी रंजिश’ बताकर मुँह बचाती रही।
सरकार के निकम्मेपन और बेकार के बयानों का आलम यह है कि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा इस अपराध के लिए उत्तर प्रदेश की पूरी सरकार का इस्तीफा माँग रहे हैं, “बच्चों की तलाश में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश पुलिस का संयुक्त अभियान चल रहा था। अपराध उत्तर प्रदेश में हुआ है। यह वहाँ की भाजपा सरकार की नाकामी है। छह लोग गिरफ्तार किए गए हैं। मामला फास्टट्रैक कोर्ट में चलाया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए।”
लोगों में रोष, कई जगह विरोध प्रदर्शन
कानून व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है। आम जनता सोशल मीडिया के माध्यम से अपना रोष प्रकट कर रही है। साथ ही, कई जगहों पर सरकार की इस नाकामी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। पुलिस के 1500 जवान चित्रकूट में तैनात हैं।
जनता में सरकार के निकम्मेपन को लेकर सोशल मीडिया में भी लोग लिख रहे हैं। ग्वालियर के अरविन्द शर्मा का कहना है कि मध्यप्रदेश में भाजपा-शिवराज के शासन में शायद ही कोई ऐसा ह्रदय विदारक वाकया हुआ हो, लेकिन वर्तमान सरकार ने जब से सत्ता संभाली है अराजकता की स्थिति निर्मित हो गई है।
उन्होंने राजनैतिक स्थिति से अवगत कराते हुए कहा, “यहाँ के मंत्री जनता की नहीं बल्कि अपने-अपने आकाओं की खुशामद में लगे हुए हैं। सीएम कमलनाथ हैं लेकिन ड्राइविंग सीट पर दिग्विजय बैठे हुए हैं। दिग्विजय सिंह जो कि सरकार में किसी पद पर नहीं हैं, मंत्रियों के विधानसभा में दिए जाने वाले जवाबों को सार्वजनिक रूप से खारिज कर देते हैं।”
कमलनाथ सीएम बनने के बाद से हज़ारों अधिकारियों और कर्मचारियों को इधर से उधर कर चुके हैं। ट्रांसफर उद्योग अपने चरम पर है, हर रोज कई ट्रांसफर हो रहे हैं, कई अधिकारियों का तो इस दौरान दो-दो बार ट्रांसफर का ऑर्डर थमाया जा चुका है।
नतीजतन जिन अधिकारियों को लोगों के जान-माल की हिफाजत के कार्य में जुटना चाहिए था, वे अपना ट्रांसफर करवाने या रुकवाने की भागदौड़ में लगे हुए हैं, और यही कारण है कि यह नकारा सरकार इन दो मासूमों की जान भी नहीं बचा सकी।