Sunday, May 26, 2024
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26/11 में कसाब की गोली खाकर भी जिंदा रह गए थे हरिश्चंद्र, उसे सजा दिलाने वाले चश्मदीद अब भूखे तड़पने को मजबूर

हरिश्चंद्र ने स्पेशल कोर्ट के सामने अजमल कसाब को पहचाना था और उसके खिलाफ गवाही दी थी। वे कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल की गोलियों से घायल भी हुए थे। उन्होंने इस्माइल को अपने ऑफिस बैग से मारा भी था।

26/11 हमले में आतंकी अजमल कसाब की शिनाख्त करने वाले और पूरे मुंबई हमले में कामा अस्पताल के बाहर आतंकियों की दो गोलियाँ पीठ पर खाने वाले हरिश्चंद्र श्रीवर्धनकर को मुंबई के एक इलाके में फुटपाथ पर पड़ा पाया गया। लगभग 60 साल के हरिश्चंद्र, डेन डिसूजा नाम के एक व्यक्ति की ‘साथ रास्ता दुकान’ के पास पड़े मिले। बाद में उनकी जानकारी मिलने पर डिसूजा और उनके दोस्तों ने हरिश्चंद्र को उनके घर पहुँचाने का जिम्मा उठाया।

बताया जा रहा है कि हरिश्चंद्र को उनके घरवालों ने उनके घर से निकाल दिया था और वे कई दिनों से सड़क पर पड़े थे। ऐसे में जब डिसूजा ने उन्हें अपनी दुकान के बाहर देखा तो उनसे बात करने की कोशिश की। लेकिन यहाँ वो कुछ शब्द जैसे ‘हरिश्चंद्र’, ‘बीएमसी’ और ‘महालक्ष्मी’ बोल सके। जब दुकान मालिक ने उन्हें कुछ खाने को दिया, वो उसे खा भी नहीं पाए। ऐसे में जो शब्द उन्होंने मुँह से निकाले उन्होंने उसी के आधार पर उनके परिवार की खोज करनी शुरू की। अंत में जाकर महालक्ष्मी में रहने वाले उनके भाई के बारे में खबर मिली।

आईएमसी केयर नाम की संस्था चलाने वाले डिसूजा के दोस्त टिमोथी गायकवाड़ ने इस संबंध में बताया कि काफी मेहनत के बाद डिसूजा ने हरिश्चंद्र के भाई को खोजा, जो महालक्ष्मी में रहते हैं।

गायकवाड ने कहा कि उन लोगों ने पूरा एक दिन बीएमसी कॉलोनी में उनके भाई को खोजने में लगाया और जब वे मिले तो उन्होंने ही हरिश्चंद्र के बारे में सूचना दी कि वे कल्याण में रहते हैं और ये भी बताया कि उनका 26/11 से क्या संबंध था और किस तरह से उन्होंने कसाब को सजा दिलाने में मदद की

बता दें, हरिश्चंद्र ने स्पेशल कोर्ट के सामने अजमल कसाब को पहचाना था और उसके खिलाफ गवाही दी थी। वे कसाब और उसके साथी अबू इस्माइल की गोलियों से घायल भी हुए थे। उन्होंने इस्माइल को अपने ऑफिस बैग से मारा भी था।

भाई से सूचना एकत्रित करते गायकवाड ने बुजुर्ग के बारे में पता लगाने और उनकी मदद करने के लिए पुलिस की सहायता ली। बाद में अग्रिपाड़ा पुलिस ने महामारी के समय में बुजुर्ग की मदद करने के लिए उनके बेटे को पास जारी किया और 1 मई को वे उन्हें कल्याण लेकर गए।

एनजीओ चलाने वाले गायकवाड कहते हैं कि सबसे दुखद बात ये हैं कि उनका परिवार उनका ख्याल नहीं रखना चाहता। वे हमसे उन्हें आश्रम में भर्ती कराने को बोल रहा था। हम चाहेंगे कि लोग आगे आएँ और इस असाधारण व्यक्ति की मदद करें। उन्होंने एक आतंकवादी को सजा दिलाने में मदद की। उनके सिर पर चोट लगने के बाद से उन्हें बोलने में समस्या है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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