भारत में सद्भाव और भाईचारे की कमी कभी नहीं रही पर पिछले कुछ सालों से कुछ विशेष विचारधारा के लोग जानबूझकर एक ऐसा नैरेटिव सेट करना चाहते हैं, मानो जैसे घोर अशांति में शांति स्थापित करने की कमान इन्हीं के हाथों में है। ख़ैर, बात इतनी आगे निकल गई है कि विचार को विज्ञापन की आड़ में परोसने की भी शुरुआत हो चुकी है। कुछ नैरेटिव गढ़ने वाले पत्रकार, फ़िल्मकार, विज्ञापन निर्माता इसके कुशल खिलाड़ी हैं। बात हो रही है सर्फ एक्सेल के नए विज्ञापन की, सर्फ एक्सेल ने होली पर एक नया विज्ञापन लॉन्च किया है।
विज्ञापन में एक हिंदू बच्ची होली के दिन साइकिल लेकर गली मे निकलती है जहाँ छतों पर बच्चे बाल्टियों में रंगों से भरे बैलून रखे हुए हैं। बच्ची पूछती है, “रंग फेंकना है, फेंको” तो सभी बच्चे उस पर रंगों से भरे बैलून फेंकने लगते हैं। बच्ची गली में साइकिल घुमा-घुमाकर रंगों से सराबोर हो जाती है। जब बच्ची पर रंग पड़ना बन्द हो जाता है तो वो साइकिल रोककर छत पर खड़े बच्चों से पूछती है, “हो गए रंग खत्म या और है?”
बच्चों के मना करते ही, आवाज देती है, “आ जा” और तब एक घर से झक सफ़ेद कुर्ता पजामा पहने मुस्लिम बच्चा, बाहर निकलता है। जिसे हिन्दू बच्ची अपने साइकिल के पीछे बैठाकर मस्जिद छोड़ने जाती है। बच्चा कहता है, “नमाज पढ़कर आता हूँ।” और उसी दौरान विज्ञापन में शबाना आजमी की आवाज सुनाई देती हैं- अपनों की मदद करने में दाग लगे तो “दाग” अच्छे हैं।
‘रंग लाए संग’ इस टैग लाइन से यह विज्ञापन जारी है। टैग लाइन तो अच्छा है पर इस टैग लाइन में फिर से वही हिन्दू-मुस्लिम सेंटीमेंट उछालने की कोशिश की गई है। इसकी आड़ में बच्चों के कोमल मन में भी ज़हर बोने का सुनियोजित प्रयास किया गया है।
फेसबुक से लेकर ट्विटर पर इस विज्ञापन को लेकर एक मुहिम छिड़ी है। मुहिम में सर्फ एक्सेल बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर से कई सवाल पूछे जा रहे हैं, साथ ही इस ऐड को आगे बढ़ाने और निर्माण के लिए ज़िम्मेदार प्रिया नायर, कार्यकारी निदेशक, होम केयर, हिंदुस्तान यूनिलीवर और लोव लिंटास के क्षेत्रीय रचनात्मक अधिकारी कार्लोस परेरा को हटाने की माँग की जा रही है।
सोशल मीडिया पर उठाए जा रहे सवालों की बात करें तो पहला यही है कि होली के रंगों को “दाग” क्यों कहा जा रहा है? इससे पहले 2017 में सर्फ एक्सेल ने रमजान पर एक विज्ञापन जारी किया था जहाँ रमजान में मुस्लिम प्रतीकों और उनके सेंटीमेंट्स का भरपूर ख्याल रखा गया है। ध्यान से देखने पर कहीं न कहीं वही नैरेटिव दिखाने की कोशिश की गई है कि हिन्दुओं के त्यौहार होली की वजह से कितने लोग नमाज़ पढ़ने नहीं जा पाते, रंगों की वजह से वह अपने घर में ही दुबके रहते हैं या उन्हें देर हो जाती है। एक प्रकार से नमाज को पवित्र और होली के त्यौहार को गंदा और दागदार दिखाने बताने का प्रयास किया गया हैं।
दूसरा सवाल यह उठाया जा रहा है कि यहाँ जानबूझकर हिन्दू लड़की चुनी गई है, हिन्दू लड़का भी चुना जा सकता था? लेकिन बचपन से मदद, मानवता के नाम पर हिन्दू बच्चियों और माँ बाप के अंदर लव जिहाद के बीज बो देने की चाल है।
इसके बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या सर्फ एक्सेल मुहर्रम पर ऐसा विज्ञापन बना सकता है जहाँ मुस्लिम बच्ची, हिन्दू बच्चे को मातम के खून के छींटों से बचाते हुए, उन्हें अपने कपड़ों पर लेते हुए मन्दिर ले जाए आरती के लिए, पूजा के लिए? और तब शबाना आजमी की आवाज़ गूँजे, अपनों की मदद के लिए, दाग लगे तो दाग अच्छे हैं। क्या ऐसी हिम्मत है सर्फ एक्सेल में ?
या बक़रीद पर जब चारों तरफ जानवर काटे जा रहे हों, गलियों में खून बह रहा हो तब कोई मुस्लिम लड़की उस खून में अपने पैर और कपड़े गंदे करते हुए किसी हिन्दू लड़के को मन्दिर में पूजा के लिए लेकर जाए, और पीछे से शबाना आज़मी की मधुर आवाज आए- अपनों की मदद के लिए दाग लगें तो दाग अच्छे हैं। क्या है ऐसा विज्ञापन बनाने की हिम्मत सर्फ एक्सेल में?
अंत में एक और प्रश्नवाचक अपील भी है, कि क्या सिर्फ हिंदुओं ने ही अपने आपको इतना सस्ता कर लिया है कि मिलार्ड, केजरी, ममता, वामपंथी बुद्धिजीवी, कॉन्ग्रेसी मीडिया, ज़िहादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, तथाकथित सेक्युलर या कोई और, जिसका भी दिल करे वही जी भर के छेड़छाड़ करे हिन्दुओं की परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं से?
इस विज्ञापन के कर्ता-धर्ता कार्लोस परेरा, जो नाम से ही ईसाई नज़र आ रहे हैं, क्या इतनी हिमाकत करेंगे कि ईसाई पर्व और मान्यताओं के खिलाफ थोड़ा भाईचारा दिखाएँ? क्या ये बताएंगे दुनिया को कि कैसे ईसाईयों ने मतांतरण और मुस्लिमों ने जिहाद के नाम पर आतंक मचा रखा है? वहाँ के दाग नज़र नहीं आ रहे? क्या दाग वहाँ ज़्यादा गहरा है? उनके दाग धुल जाएँ तो पूरी मानवता दुहाई देगी। और हाँ, उस समय सर्फ एक्सेल तो ये कहने की हिमाकत भी नहीं कर सकेगा कि दाग अच्छे हैं। बहरहाल, ऐसा न कुछ हुआ है और न निकट भविष्य में होने की उम्मीद है। क्योंकि यहाँ पूरा विश्व उन्हें धार्मिक प्रतीकों से लेकर, मज़हब और उनकी रवायतों से ठीक से परिचय करा देगा।
फ़िलहाल, सोशल मीडिया पर सर्फ एक्सेल के बहिष्कार की अपील ने रंग पकड़ लिया है। इस बार संस्था नहीं क्रिएटिविटी की आड़ में विचारधारा का ऐसा खेल खेलने वाले प्रिया नायर और कार्लोस परेरा के खिलाफ भी मुहिम चलाई जा रही है। बहुसंख्यक आर्थिक ताकत से इस बार कंपनी को यह एहसास करने की कोशिश की जा रही है कि कब तक हिन्दुओं की सहनशीलता का इम्तिहान लिया जाएगा। जिस प्रकार का नैरेटिव गढ़ने की ये लोग कोशिश कर रहे हैं, उससे ज़्यादा शांति और सद्भाव से भारत के लोग रह रहे हैं।