Monday, May 6, 2024
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मंदिर में दंडवत करते दिखे CJI बोबडे तो कट्टरपंथियों को लगी मिर्ची, बाइक को लेकर भी फैलाया गया झूठ

एक दक्षिण भारतीय ट्विटर हैंडल ने लिखा कि अगर किसी खास मजहब के जज ने मस्जिद में नमाज पढ़ी होती और उस तस्वीर को सर्कुलेट कर-कर के हिन्दू सवाल उठाने लगते तो इस देश का सेकुलरिज्म खतरे में आ जाता। उन्होंने कहा कि तब उन आलोचकों को इस्लामॉफ़ोबिक ठहराते हुए लिबरल्स पागल हो जाते।

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे का एक फोटो सोमवार (जून 28, 2020) को पूरे दिन ट्विटर पर वायरल होता रहा, जिसमें वो एक हार्ले डेविडसन बाइक पर बैठे दिख रहे हैं। हालाँकि, वो बाइक चलाते हुए नहीं दिखे। तस्वीर में बाइक का स्टैंड लगा हुआ है, जिससे पता चलता है कि वो बस उसकी फील ले रहे थे। बाइक पर सीजेआई एसए बोबडे की तस्वीर उनके गृह क्षेत्र नागपुर की थी। वहीं उनकी एक मंदिर में भी तस्वीर वायरल हुई।

इसके बाद सोशल मीडिया पर प्रपंचों का दौर शुरू हो गया। प्रशांत भूषण ने कहा कि सीजेआई एसए बोबडे 50 लाख की बाइक ‘चला रहे हैं’, जो एक भाजपा नेता की है। उन्होंने दावा किया कि सीजेआई ने बिना मास्क, सैनिटाइजर या हेलमेट के राजभवन परिसर में बाइक चलाया। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि सीजेआई एसए बोबडे ने सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन पर रख कर जनता को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रखा है।

‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, लोगों का कहना है कि जस्टिस बोबडे को तो उस बाइक के मालिक तक के बारे में कुछ पता नहीं था, जो प्रशांत भूषण के दावों की पोल खोलता है। वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि एक जस्टिस बोबडे एक पौधरोपण कार्यक्रम में गए थे, जहाँ एक ऑटोमोबाइल डीलर ने वो बाइक भेजी थी। उन्होंने बाइक चलाई भी नहीं। बताया गया है कि वो रिटायरमेंट के बाद हार्ले डेविडसन की बाइक ख़रीदने की योजना बना रहे हैं।

वहीं अब सीजेआई बोबडे का एक मंदिर में दण्डवत प्रणाम करते हुए वीडियो वायरल हुआ है, जिसके बाद प्रपंची कह रहे हैं कि क्या एक लोकतांत्रिक देश के मुख्य न्यायाधीश का इस तरह से अपनी आस्था प्रकट करना उचित है? सैयद उस्मान नामक ट्विटर यूजर ने उनकी वीडियो शेयर कर के पूछा कि पहचानिए कौन? इशिता यादव ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि ये देश के मुख्य न्यायाधीश हैं, जो एक मंदिर में सम्मानपूर्वक प्रार्थना कर रहे हैं। इसमें दिक्कत क्या है?

कई अन्य लोगों ने भी इस वीडियो को लेकर प्रपंच फैलाने वालों को जवाब दिया। एक अव्यक्ति ने ध्यान दिलाया कि जब कोई खास मजहब वाला ऐसा करता है तो उसका महिमामंडन किया जाता है क्यों हाल ही में एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी का बीच सड़क पर नमाज पढ़ते हुए तस्वीर को सुखद बताते हुए खूब शेयर किया गया था। फिर ये भेदभाव क्यों? एक यूजर ने पूछा कि एक हिन्दू मंदिर में पूजा कर रहा है जो कि सामान्य बात है, इसमें किसी को क्या समस्या हो सकती है और क्यों?

एक दक्षिण भारतीय ट्विटर हैंडल ने लिखा कि अगर किसी खास मजहब के जज ने मस्जिद में नमाज पढ़ी होती और उस तस्वीर को सर्कुलेट कर-कर के हिन्दू सवाल उठाने लगते तो इस देश का सेकुलरिज्म खतरे में आ जाता। उसने कहा कि तब उन आलोचकों को इस्लामॉफ़ोबिक ठहराते हुए लिबरल्स पागल हो जाते। कई यूजरों ने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी व अन्य नेताओं की इफ्तार पार्टी करते हुए फोटो शेयर कर के दिखाया कि इन सब पर तो हंगामा नहीं होता।

दरअसल, जस्टिस एसए बोबडे राम मंदिर की सुनवाई वाली पीठ में भी शामिल थे, तभी से लिबरल समूह उनसे नाराज़ है। उन्होंने जामिया के उपद्रवी छात्रों को हिंसा रोकने की सलाह दी थी, जो वामपंथी गिरोह को नागवार गुजरा। इससे पहले वो जनेऊ पहन कर तिरुपति मंदिर में दर्शन के लिए पहुँचे थे, जिससे इस्लामी कट्टरवादी उन पर आक्षेप लगाते रहते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा को मंजूरी दिए जाने से भी कई प्रपंची सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साध रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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