Saturday, December 21, 2024
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डॉ अनवर को निर्दोष साबित करने के रवीश कुमार का प्राइम टाइम, दर्शकों को बरगलाने के लिए तथ्यों से की छेड़छाड़

डॉ अनवर वही शख्स है, जिसे मुस्तफाबाद में हुए दंगों का मास्टरमाइंड बताया गया। लेकिन रवीश कुमार ने अपनी रिपोर्ट में डॉ एम ए अनवर पर लगे आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया और पुलिस प्रशासन पर इल्जाम मढ़ने के लिए व जनता को भड़काने के लिए पूरी खबर को नया कोण दिया।

हर बार नए झूठ के साथ खुद को पेश करना कोई आसान काम नहीं होता। मगर, एनडीटीवी पत्रकार रवीश कुमार इसे बखूबी करते हैं। रवीश हर बार अपनी ‘विशेष’ रिपोर्टिंग को नया एंगल देने के कारण विवादों में आते हैं और फिर हकीकत खुलते ही उन्हें फजीहत झेलनी पड़ती है। इस बार भी यही सब हुआ है। बस केंद्र बिंदु में अब की मामला दिल्ली दंगों में भीड़ को भड़काने के आरोपित डॉ अनवर से जुड़ा हैं।

डॉ अनवर वही शख्स है, जिसे मुस्तफाबाद में हुए दंगों का मास्टरमाइंड बताया गया। लेकिन रवीश कुमार ने अपनी रिपोर्ट में डॉ एम ए अनवर पर लगे आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया और पुलिस प्रशासन पर इल्जाम मढ़ने के लिए व जनता को भड़काने के लिए पूरी खबर को नया कोण दिया।

अपने प्राइम टाइम में रवीश कुमार ने मुख्यत: इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली दंगों के दौरान सैंकड़ों लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टर पर दिल्ली पुलिस ने दिलबर नेगी की हत्या के मामले में केस दर्ज कर लिया है। जबकि आगे रवीश की रिपोर्ट में इस बात का अलग से उल्लेख किया गया, “हालाँकि डॉ अनवर आरोपित नहीं है। मगर उनका नाम चार्जशीट में है।”

ध्यान दीजिए, पुलिस ने पिछले दिनों एक आरोपपत्र कड़कड़डूमा कोर्ट के महानगर दंडाधिकारी पवन सिंह राजावत के समक्ष दायर किया था। पुलिस ने इस मामले में डॉ अनवर के साथ ही नेहरू विहार निवासी अरशद प्रधान को आरोपित बनाया था।

पुलिस ने बताया था कि फारुकिया मस्जिद पर सीएए और एनआरसी के विरोध में जमा लोगों को 23 फरवरी की रात दंगों के लिए उकसाया गया और डॉक्टर अनवर व अरशद ने इसमें अहम भूमिका निभाई। इस बाबत एक एफआईआर दयालपुर थाने में दर्ज भी हुई।

आरोप-पत्र में कहा गया है कि 15 जनवरी के बाद से ही फारुकिया मस्जिद से कई वक्ताओं ने समुदाय के लोगों को उकसाना शुरू कर दिया था। यहाँ पर अवैध रूप से CAA और NRC का विरोध चल रहा था, जिसमें अलग-अलग तारीख में भाषण देकर लोगों को यह कहा जाता था कि NRC लागू होने के बाद उन्हें नागरिकता नहीं दी जाएगी, उन्हें डिटेंशन कैंप में डाल दिया जाएगा।

यहाँ गौरतलब हो कि डॉक्टर अनवर, न्यू मुस्तफाबाद स्थित अल हिंद हॉस्पिटल का मालिक है। अल हिंद हॉस्पिटल फारुकिया मस्जिद और उस मिठाई दुकान से एक किलोमीटर दूर है, जहाँ दिलबर नेगी काम करता था और दंगाइयों ने जहाँ पहुँचकर उसकी निर्मम हत्या कर दी।

पुलिस द्वारा दायर पत्र के अनुसार फारुकिया मस्जिद में होने वाले विरोध-प्रदर्शन के आयोजक अरशद प्रधान और अल हिन्द हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर एमए अनवर थे। लेकिन, अब रवीश कुमार की रिपोर्ट में इन बिंदु को पूर्णत: नजरअंदाज करते हुए डॉ अनवर को सिर्फ़ इस तरह पेश किया जा रहा है कि उन्होंने दिल्ली दंगों में कई दंगा पीड़ितों का इलाज किया था और वह (डॉ अनवर) अपने ऊपर लग रहे आरोपों से मना कर रहे हैं। फिर भी दिल्ली पुलिस दिलबर नेगी की हत्या के आरोप उनका नाम घसीट रही है।

उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया पर रवीश कुमार की इस अज्ञानता और प्रोपगेंडा फैलानी की कोशिश देखते हुए लोग उनकी थू-थू करते नहीं थक रहे। लोगों का कहना है कि ऐसी झूठी पत्रकारिता अपराध होनी चाहिए और ऐसे झूठ बोलकर दंगे भड़काने वाले पत्रकार को जेल में डाल देना चाहिए। इसके अलावा उनके झूठ का पर्दाफाश करते उनकी वीडियो भी शेयर हो रही है।

DSP देविंदर सिंह पर भी फैलाया रवीश कुमार ने झूठ

बता दें इससे पहले NDTV पर अपने प्राइम टाइम शो में पत्रकार रवीश कुमार ने निलंबित पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह के बारे में झूठ बोला कि मामले में चार्जशीट दायर न होने के कारण उन्हें जेल से रिहा किया गया था।

इसके साथ ही रवीश कुमार ने भारत में पुलिस तंत्र पर आरोप लगाया कि फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम देना, निर्दोष लोगों के खिलाफ फर्जी आतंकी आरोप लगाना, उन्हें 10-20 साल के लिए जेल में बंद करना और इसी तरह की गतिविधियों को अंजाम देना भारतीय पुलिस का मजबूत पक्ष है।

हालाँकि, सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने और उनकी आतंकी गतिविधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की प्रतिबद्धता पर संदेह जताने को लेकर प्रोपेगेंडा फैलाने में व्यस्त रवीश कुमार ने निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह के खिलाफ दर्ज मामले के विवरण को आसानी से नजरअंदाज कर दिया।

जहाँ अदालत ने देविंदर सिंह और वकील इरफान शफी मीर को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा उनके खिलाफ दायर मामले में जमानत दे दी थी। दरअसल, अदालत ने गौर किया कि 90 दिनों की अनिवार्य वैधानिक अवधि बीत जाने के बाद भी आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया था। जिसकी वजह से उन्हें डिफॉल्ट जमानत मिल गई। उन्हें एक लाख रुपए के निजी बांड और इतनी ही राशि के दो मुचलकों पर यह राहत दी गई।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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