मध्य प्रदेश के गुना में दलित परिवार पर पुलिस द्वारा लाठी चलाने वाले वीडियो में मीडिया की बड़ी भूमिका सामने आ रही है। यानी, मीडिया ने सिर्फ उस पहलू को दिखाया है, जहाँ पुलिस इस दंपति पर लाठियाँ बरसा रही है, जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे पहले राजू के परिवार द्वारा पुलिस के साथ की गई हाथापाई का कहीं जिक्र तक नहीं है।
पुलिस और अधिकारियों पर शासन द्वारा जल्दबाजी में और बिना इस विवादित जमीन का इतिहास देखे ही जल्दबाजी में फैसला ले लिया गया। दरअसल, जिस जमीन को लेकर यह वीडियो सामने आया, वह वर्षों से विवादित है और इस विवाद का कारण एक BSP लीडर नागकन्या है, जिसने कि इस पूरे प्रकरण को दूर से ही देखा और राजू अहिरवार और उसके परिवार को ही मुख्य चेहरा बनाकर बचती रही।
शहर से लगी 50 करोड़ की बेशकीमती जमीन पर 30 साल से बसपा की पूर्व पार्षद नागकन्या और उसके भूमाफ़िया पति गब्बू पारदी का कब्जा है। हैरानी की बात है कि BSP प्रमुख मायावती ने भी इस घटना को दलितों पर अत्याचार बताया है और कहा है कि भाजपा और कॉन्ग्रेस मिलकर दलितों के खिलाफ अत्याचार करते हैं।
विवादित जमीन, भू-माफ़िया और बसपा कनेक्शन
मध्य प्रदेश के गुना जिले में जिस जमीन से कब्जा हटाने को लेकर पुलिस और दलित परिवार के बीच हाथापाई की घटना हुई, वह वास्तव में एक सरकारी जमीन है। लगभग 50 करोड़ रुपए कीमत की इस 45 बीघा जमीन, जो कि शासन ने कॉलेज निर्माण के लिए आरक्षित की है, पर पिछले 30 वर्षों से बसपा की पूर्व पार्षद नागकन्या और उनके पति गब्बू पारदी ने कब्जा कर रखा है।
वर्ष 2009-13 के बीच गुना के वार्ड 23 से नागकन्या बहुजन समाज पार्टी (BSP) की पार्षद रही हैं। पुलिस द्वारा कब्जा हटाने के लिए की गई पिटाई के बाद शासन द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई में हटाए गए गुना के कलेक्टर एस विश्वनाथन का कहना है कि नागकन्या का पति गब्बू पारदी भू-माफिया की श्रेणी में आता है, जो कि हमेशा ही विवाद के समय मौके से गायब हो जाता है।
गुना के पूर्व कलेक्टर एस विश्वनाथ का कहना है गब्बू पारदी के नाम पर सरकारी रिकॉर्ड में 80 बीघा से अधिक जमीन है। दो से तीन बीघा में उसका आलीशान आवास बना हुआ है। और अब वह तकरीबन 50 करोड़ रुपए कीमत की इस सरकारी जमीन को कब्जाने के फेर में था।
इस जमीन के विवादित होने के चलते दो साल नागकन्या और गब्बू पारदी ने फसल की बोआई के लिए राजू अहिरवार को इसकी जिम्मेदारी दी थी। सत्ता में मजबूत पकड़ होने के चलते बसपा नेता नागकन्या के चंगुल से इस जगह को मुक्त कराने में प्रशासन को भी लंबे समय से समस्या का सामना करना पड़ रहा था। और यह पहली बार नहीं था, जब प्रशासन की टीम वहाँ अवैध कब्जा हटाने पहुँची हो।
मंगलवार (जुलाई 14, 2020) को जब पुलिस और प्रशासन की टीम ने इस भूमि पर पहुँचकर एक बार फिर कब्जा हटाने की शुरुआत की तो विवाद हो गया। इस कार्रवाई में अवैध कब्जाधारियों के इतिहास को सामने लाने के बजाए मीडिया द्वारा पुलिस और प्रशासन को ही विलेन साबित कर दिया गया।
लेकिन इससे पहले भी दो बार इस विवादित जमीन से प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाया गया था। शहर की एसडीएम शिवानी गर्ग के नेतृत्व में पिछले दिसंबर में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई थी।
उस दौरान भी इस प्रकरण को लेकर भारी हंगामा हुआ था। कब्जाधारी महिलाओं ने एक महिला आरक्षक से मारपीट की थी लेकिन उसका वीडियो बनाकार सोशल मीडिया पर वायरल नहीं किया गया।
अतिक्रमण हटाए जाने की प्रक्रिया के दौरान अतिक्रमणकारी गब्बू पारदी की पत्नी और बसपा नेता नागकन्या ने 7-8 माह के बच्चे को जमीन पर पटकने की कोशिश की थी, जिसे महिला अधिकारी शिवानी गर्ग ने तत्परता दिखाते हुए अपनी गोद में पकड़ लिया और एक अनहोनी होने से बचाया।
एसडीएम शिवानी गर्ग न केवल इस घटना को रोका बल्कि उक्त जमीन को पारदी परिवार से मुक्त करा कर संबंधित विभाग को सौंप दिया था। तब, कलेक्टर गाइड लाइन के अनुसार, इस जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ रुपए आँकी गई थी।
इस दौरान पुलिस ने हंगामा करने वाले गब्बू पारदी, नागकन्या सहित उसके परिवार के 8 लोगों को गिरफ्तार किया है। लेकिन ऊँची राजनीतिक पकड़ वाले पारदी समुदाय की धमकियों से प्रशासन भी सहम गया था।
इसके बाद एसडीएम ने खुद जेसीबी चलाई और फसल को नष्ट करना शुरू कर दिया। इसके बाद 4 जेसीबी मशीनों से अवैध रूप से कब्जाई गई जमीन पर फसल को नष्ट कर दिया और जमीन के बीच जेसीबी से खोदकर सीमा भी तय कर दी।
जिसके बाद आधी जमीन पर कॉलेज निर्माण कार्य शुरू हुआ था। अब इसे विभाग की लापरवाही ही कहा जा सकता है कि दिसंबर से जुलाई तक, 7 माह गुजर जाने के बाद भी यह निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका था और दोबारा इस पर कब्जाधारियों द्वारा फसल बो दी गई।
पारदी समुदाय के भारी नाटक के बीच अधिकारियों द्वारा कड़ाके की ठंड में इस जगह पर सफाई और कब्जा हटाने का काम तत्परता से भी किया गया। वह जमीन न्यायाधीश आवास और सरकारी कालेज के लिए आवंटित थी।
यहाँ 12 करोड़ की लागत से एक्सीलेंस कॉलेज बनाया जाना है, लेकिन अतिक्रमण की वजह से काम शुरू नहीं हो सका। पारदी समुदाय तब भी प्रशासन को इसे उन्हें वापस सौंप देने की दलील देता रहा।
सबसे हालिया प्रकरण में जिस राजू अहिरवार की पुलिस द्वारा पिटाई का मामला सामने आया है, उसके भाई का कहना है कि उनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है और वो सभी भाई बटाई पर जमीन लेकर ही परिवार पाल रहे हैं। करीब दो साल पहले उनका गब्बू पारदी से संपर्क हुआ था, जिसके बाद यह जमीन उन्हें बटाई पर मिली थी।
दुर्भाग्यवश कीटनाशक पीना, अपने नवजात बच्चे को जमीन पर पटकना और प्रशासन के साथ हाथापाई की घटनाएँ मीडिया की सुर्ख़ियों से गायब हैं। मीडिया ऐसा कर के इस पूरे किस्से में भू-माफियाओं के प्रवक्ता की तरह पेश आया है, जबकि हम सभी इस घटना में मीडिया के बनाए नैरेटिव पर प्रशासन की कार्रवाई को अमानवीय और दरिंदगी बताते आए हैं।
बसपा प्रमुख मायावती ने गुना की इस घटना को लेकर एक के बाद एक ट्वीट करते हुए कई सवाल किए हैं। मायावती ने कहा कि एक ओर तो भाजपा और इसकी सरकार दलितों को बसाने का ढिंढोरा पीटती है।
दलितों की शुभचिंतक बसपा प्रमुख ने सवाल किया है कि यही पहले कॉन्ग्रेस के शासन में हुआ करता था तो फिर दोनों सरकारों में क्या अंतर है।
1. मध्यप्रदेश के गुना पुलिस व प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के नाम पर दलित परिवार को कर्ज लेकर तैयार की गई फसल को जेसीबी मशीन से बबार्द करके उस दम्पत्ति को आत्महत्या का प्रयास करने को मजबूर कर देना अति-क्रूर व अति-शर्मनाक। इस घटना की देशव्यापी निन्दा स्वाभाविक। सरकार सख्त कार्रवाई करे।
— Mayawati (@Mayawati) July 16, 2020
जबकि इस पूरी घटना में भूमाफियाओं और कब्जाधारियों के बसपा सम्बन्ध के सामने आने से एकमात्र सवाल बसपा प्रमुख से सिर्फ यह किया जाना चाहिए कि सरकारें कोई भी हों, किस्सा किसी भी राज्य का क्यों न हो? लेकिन बसपा कार्यकर्ता और उनकी कार्यशैली में गुंडावाद और भूमाफिया होना पहली आवश्यकता क्यों है?