अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी बहस का विषय है। कुछ लोग इस पर खुलकर राय रख रहे हैं और कुछ लोग खुद को इस से अलग रख रहे हैं। प्रेस की स्वतंत्रता आखिर है क्या? सबसे पहली बात तो यह कि प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। इसका मकसद एक ‘वॉचडॉग’ की तरह काम करना होता है, हालाँकि, आदर्श परिस्थितियों में ही यह संभव है वरना प्रेस अक्सर पालतू पशु की तरह ही नजर आती है।
प्रेस जिस घोटाले को उजागर करना चाहता है उसे इस सवाल पूछने और उसका दमन करने के बजाय उसका जवाब दिया जाना चाहिए। रिपब्लिक टीवी के खिलाफ मुंबई पुलिस और सोनिया सेना की मुहिम पर एक वर्ग सवाल किए जा रहा है कि NDTV, वायर, या फिर क्विंट के समय आप क्यों चुप थे? लेकिन क्या इन सबके मामले प्रेस या पत्रकारिता से ही जुड़े हुए थे?
NDTV की आतंकी हमले की कवरेज
NDTV पठानकोट आतंकी हमले की लाइव रिपोर्टिंग कर चुका है, जो कि गैरकानूनी होने के साथ ही देश के प्रति भी गैरजिम्मेदाराना रवैया था। प्रणय रॉय और राधिका रॉय पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस है, करोड़ों के हेरफेर की बात है, तो फिर इसकी जाँच प्रेस पर हमला कैसे कही गई? जबकि जो कुछ भी महराष्ट्र में अर्णब के खिलाफ चल रहा है वह तो स्पष्ट तौर पर राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है।
वायर: सिद्दार्थ वरदराजन
यूएस की नागरिक सिद्दार्थ वरदराजन, जो कि प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ के भी संस्थापक हैं, ने एक ट्वीट में खुला झूठ लिखा था। तबलीगी जमात को बचाने के लिए ‘द वायर’ ने फेक न्यूज़ चलाते हुए लिखा कि जिस दिन इस इस्लामी संगठन तबलीगी जमात का मजहबी कार्यक्रम हुआ, उसी दिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 25 मार्च से 2 अप्रैल तक अयोध्या प्रस्ताविक विशाल रामनवमी मेला का आयोजन नहीं रुकेगा क्योंकि भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना वायरस से बचाएँगे।
‘द वायर’ ने फेक न्यूज़ चला तो दी लेकिन वो पकड़ा गया। ‘द वायर’ ने अपने लेख में ऐसा दावा किया और उसके संपादक वरदराजन ने इस लेख को शेयर भी किया। लेकिन, उनकी पोल खुलते देर न लगी। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने सिद्धार्थ वरदराजन की ये चोरी पकड़ ली और उन्हें जम कर फटकार लगाई। उन्होंने सिद्धार्थ को चेताया कि अगर उन्होंने अपनी इस फेक न्यूज़ को तुरंत डिलीट नहीं किया तो कार्रवाई की जाएगी और उन पर मानहानि का मुकदमा भी चलाया जाएगा।
फर्जी बयानों के जरिए, किसी राज्य की सरकार और सीधा उसके मुख्यमंत्री के हवाले से कुछ भी मनगढ़ंत बयान चला देना, वह भी एकदम मजहबी मामलों में, क्या इसमें भी प्रेस की स्वतन्त्रता का हवाला दिया जाना चाहिए था?
प्रशांत कनौजिया
‘इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी’ इस वाक्य का पत्रकारिता से कितना वास्ता है? प्रशांत कनौजिया ने ये शब्द उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेकर एक फर्जी तस्वीर शेयर करते हुए लिखी थी। लखनऊ पुलिस ने 8 जून 2019 को खुद को स्वतंत्र पत्रकार कहने वाले प्रशांत जगदीश कनौजिया को उसके आवास से गिरफ्तार किया था।
6 जून को कनौजिया ने फेसबुक और ट्विटर पर एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें हेमा नाम की एक युवती मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर खड़ी होकर खुद की योगी आदित्यनाथ की प्रेमिका बता रही थी। साथ ही वो ये भी दावा कर रही थी कि सीएम योगी उसके साथ एक साल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात कर रहे हैं। प्रशांत ने इस वीडियो को ‘इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी’ कैप्शन के साथ शेयर किया था।
द क्विंट – राघव बहल
ED का काम ही पैसों की हेरफेर पर नजर रखना और कार्रवाई करना है। उन्हें ‘द क्विंट’ के खिलाफ सबूत मिले तो उन्होंने कार्रवाई की। यह एक प्रक्रिया के ही अंतर्गत हुआ और राघव बहल के घर और ऑफिस में छापा मारा गया। इसे कैसे आप प्रेस फ्रीडम पर हमला बता देंगे?
इस विषय पर विस्तृत चर्चा आप इस यूट्यूब लिंक पर देख सकते हैं