Saturday, November 23, 2024
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अब पूरे देश में ‘किसान’ करेंगे विरोध प्रदर्शन, हिंसा के लिए माँगी ‘माफी’… लेकिन अगला निशाना संसद को बताया

शुक्रवार से बजट सेशन शुरू हो रहा है। जब देश की संसद में बजट पेश किया जा रहा होगा, तब वो फिर से संसद की तरफ मार्च करेंगे। 'किसान' नेता इस उम्मीद में बैठे हैं कि विपक्षी नेता संसद में उनका बचाव करेंगे।

दिल्ली में गणतंत्र दिवस के शुभ मौके पर हुई ‘किसानों’ की ट्रैक्टर रैली के कारण 153 पुलिसकर्मी घायल हुए और जगह-जगह हिंसा हुई। अब भी किसान नेता अपनी गलती न मानते हुए बेशर्मी से हिंसा का बचाव कर रहे हैं, पुलिस पर ही दोष मढ़ रहे हैं और पूरे देश में प्रदर्शन की धमकी दे रहे हैं। राकेश टिकैत की भी बयानबाजी चालू है। किसान संगठनों ने कहा है कि वो केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे और इसे पूरे देश में फैलाएँगे।

किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि फ़रवरी 1, 2021 को जब देश की संसद में बजट पेश किया जा रहा होगा, तब वो फिर से संसद की तरफ मार्च करेंगे। उन्होंने कहा कि मंगलवार (जनवरी 26, 2021) को हुई जबरदस्त हिंसा के बावजूद ये योजना स्थगित नहीं की गई है। हालाँकि, जनता व पुलिस को हुई परेशानी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट और पुलिस-प्रशासन इस बार सख्त रवैया अख्तियार कर सकता है।

अब तक किसान संगठनों को जो भी थोड़ा-बहुत समर्थन मिल रहा था, इस पूरे दिन के हुड़दंग के बाद उनसे पूछे जा रहे सवालों का वो अजीबोगरीब जवाब दे रहे हैं। अब ये किसान नेता कह रहे हैं कि विरोध प्रदर्शन देशव्यापी हो गया है और वो तीनों कानूनों को खत्म करने के साथ-साथ MSP की गारंटी वाली माँग पर अड़े हुए हैं। शुक्रवार से बजट सेशन शुरू हो रहा है और ये किसान नेता इस उम्मीद में बैठे हैं कि विपक्षी नेता संसद में उनका बचाव करेंगे।

भाजपा और केंद्र सरकार ने भले ही इस पूरी हिंसा पर कोई आधिकारिक बयान न दिया हो, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय कानून-व्यवस्था को पुनः स्थापित करने की प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ज़रूर किसान नेताओं के उस वादे की याद दिलाएगी, जिसमें उन्होंने प्रदर्शन के शांतिपूर्ण रहने की बात की थी। पंजाब एक ऐसा राज्य है जो संवेदनशील है, पाकिस्तान की सीमा से सटा है और खालिस्तानी अलगाववादी ताकतें सिर उठा रही हैं – यही कारण है कि किसान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ प्रशासन सख्त नहीं हुआ।

पंजाब में चुनाव भी होने हैं, ऐसे में उस वक़्त गड़बड़ी की आशंका भी है। किसानों के लाख प्रयास के बावजूद उनका विरोध प्रदर्शन पंजाब और दिल्ली से सटे हरियाणा-उत्तर प्रदेश के इलाकों से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। महिला किसान अधिकार मंच की कविता कुरुगंटी ने कहा कि ये उपद्रवी किसान आंदोलन का हिस्सा नहीं थे। ऑल इंडिया किसान सभा के पी कृष्णा प्रसाद को लगता है कि अब दूसरे राज्यों के किसान भी उत्साह में आकर सड़कों पर निकलेंगे।

ये सभी इस उम्मीद में चल रहे हैं कि अब ये आंदोलन पैन-इंडिया हो जाएगा। यानी अब ये किसान नेता हिंसा में भी राजनीति की खेती कर के मोदी सरकार के खिलाफ अपने अंध-विरोध को किसानों के हित में आए कृषि कानूनों के सहारे हवा देना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि मीडिया में भले ही उनकी करतूतों के कारण नकारात्मक कवरेज मिली, ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता तो चला। इसीलिए, अब देश भर में अराजकता की तैयारी है।

वहीं किसान नेता राकेश टिकैत ने खालिस्तानी समर्थक दीप सिद्धू से पल्ला झाड़ते हुए उसे भाजपा का कार्यकर्ता बता दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उसकी तस्वीर होने का दावा किया। जबकि वो बरखा दत्त सरीखों को इंटरव्यू दे-दे कर भिंडरवाला का बचाव करने में लगा हुआ था। राकेश टिकैत ने कहा कि ये किसानों का आंदोलन है और किसानों का ही रहेगा। उन्होंने दावा किया कि बैरिकेडिंग तोड़ने वालों को ये जगह छोड़नी होगी और अब वो इस आंदोलन का हिस्सा नहीं रहेंगे।

अब डैमेज कंट्रोल के लिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं क्योंकि उन्हें सरकारी कार्रवाई के साथ-साथ जनभावनाओं का भी भय है। राकेश टिकैत ने दावा किया कि उन्होंने सभी आंदोलनकारियों को अपनी छड़ी लाने को कहा था, जिसमें झंडे लगे हों। लाठी-डंडों से पुलिस की पिटाई होने पर उन्होंने कहा कि आप मुझे एक भी ऐसा झंडा दिखा दीजिए, जिसमें छड़ी न हो, वो अपनी गलती स्वीकार लेंगे। उन्होंने कहा:

“हमारे किसानों के कई ट्रैक्टर वापस नहीं आए हैं। हमारे ट्रैक्टरों को पुलिस ने तोड़फोड़ डाला है। अब पुलिस को उन ट्रैक्टरों को बनवा कर हमें वापस देना होगा और नुकसान की भरपाई करनी पड़ेगी। हम जानकारी जुटा रहे हैं कि कितने ट्रैक्टर तोड़े गए। हिंसा पुलिस ने की या किसी ने भी, हम इसकी निंदा करते हैं। सबका सहयोग रहा है – किसानों का, पुलिस का। गलती पुलिस की है। उन्होंने रूट गलत दिया। बेचारे किसानों को क्या पता कि कहाँ डाइवर्जन है, कहाँ ओवरब्रिज है। वो भटक गए।”

उधर अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में खालिस्तान समर्थकों ने कानून के विरोध में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया और खालिस्तानी झंडे लहराए। वॉशिंगटन के प्रमुख प्रदर्शनकारियों में से एक, नरेंद्र सिंह ने कृषि कानूनों को ‘भारत के मानव अधिकारों और लोकतंत्र का उल्लंघन’ कहा। वह बोले कि वो लोग हर साल 26 जनवरी को काला दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन इस साल हम भारत में किसानों के साथ एकजुटता से खड़े हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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