देश और राजधानी दिल्ली में कोरोना तेजी से फैल रहा है। हर दिन कोरोना के आँकड़े पिछले रिकॉर्ड को तोड़ रहे हैं। हालात ये हैं कि मरीजों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है, तो दूसरी तरफ कब्रिस्तान में भी सुपुर्द-ए-खाक करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। दिल्ली के ITO स्थित कब्रिस्तान ‘जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम दिल्ली’ की तस्वीरें और आँकड़ा डराने वाला है। मुर्दों को सुपुर्द-ए-खाक करने की जगह बनाने के लिए JCB मशीन की मदद लेनी पड़ रही है।
कब्रिस्तान के केयरटेकर शमीम का कहना है कि अप्रैल से पहले के 55 दिनों में सिर्फ 5 कोरोना संक्रमितों की डेड बॉडी आई थी। लेकिन पिछले 3 दिन में ही 5 गुना यानी 25 डेड बॉडी आ चुकी है। एक अप्रैल से 11 अप्रैल तक 39 शवों को दफनाया जा चुका है, शमीम को कब्रिस्तान में शवों की बढ़ती तादाद और कम होती जगह की फिक्र सताने लगी है।
शमीम के मुताबिक अब सिर्फ 100 शवों को दफनाने की जगह बची है, अगर मौत का यही आँकड़ा रहा तो 10 से 12 दिनों में भर जाएगी। इसको लेकर कब्रिस्तान से जुड़ी कमेटी को जानकारी दे दी गई है। कब्रिस्तान में शवों को दफनाने का काम करने वाले वसीम की शिकायत है कि उन्हें इस काम के वक्त इस्तेमाल के लिए पीपीई नहीं दी जाती। इससे उनकी जिंदगी को भी खतरा रहता है।
गौरतलब है कि पिछले साल भी इस कब्रिस्तान का भी कुछ ऐसा ही हाल था। इसमें से 5 बीघा जमीन कोरोना संक्रमण से मरने वालों को दफन करने के लिए आरक्षित की गई थी। दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, कुछ ही हफ्तों में इस 5 बीघे जमीन का 75 फीसदी हिस्सा भर चुका था। शमीम के हवाले से दैनिक भास्कर ने बताया था कि जिस रफ्तार से मौतें हो रही है कोरोना संक्रमितों के लिए आरक्षित यह कब्रिस्तान हफ्ते भर से भी कम समय में भर जाएगा। उन्होंने बताया था कि इसके बाद ऐसे लोगों का शव दफन करने के लिए कब्रिस्तान प्रबंधन कमिटी को और जमीन आवंटित करनी पड़ेगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी सरकार के लापरवाही भरे रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “आप लोग (दिल्ली सरकार) गहरी नींद में थे और आपको झकझोर कर नींद से उठाना पड़ा। जब हम आपको झकझोरते हैं तब आप कछुए की चाल चलने लगते हैं।”
राँची में कब्र खोदने के लिए नहीं मिल रहे मजदूर
वहीं राँची के रातू कब्रिस्तान में कब्र खोदने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। कब्रिस्तान में मृतकों की लंबी कतार है क्योंकि मृतकों को दफनाने के लिए कब्र नहीं है। कब्रिस्तान में कब्र खोदने वाले मजदूर कोविड संक्रमण के डर से कब्रिस्तान से भाग खड़े हो रहे हैं। कब्र खोदने के लिए रातू कब्रिस्तान में जेसीबी की व्यवस्था की जा रही है ताकि शवों को दफनाया जा सके। मंगलवार (अप्रैल 13, 2021) को भी रातू कब्रिस्तान में करीब 10 शव पहुँचे, जिनमें 2 शव कोविड पॉजिटिव मरीजों के थे लेकिन कब्र खोदने वाले मजदूर नदारद रहे।
लखनऊ में बढ़ रहा खुदाई का रेट
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी शवों को दफनाने में दिक्कतें आनी शुरू हो गई हैं। शहर में बढ़ते मौतों के ग्राफ से श्मशान से लेकर कब्रिस्तानों तक की व्यवस्था प्रभावित हुई है। राजधानी के प्रमुख कब्रिस्तानों में सामान्य दिनों के मुकाबले इन दिनों कहीं अधिक मय्यतें आ रही हैं। जिससे लगातार गड्ढे खुदवाए जा रहे हैं, क्योंकि कोरोना संक्रमित लाशों को दफनाने के लिए गहरे गड्ढे खोदे जाते हैं इसलिए खुदाई का रेट भी बढ़ गया है।
गुजरात में एडवांस में खुद रही कब्र
हालात यह हैं कि जिन कब्रिस्तानों में औसतन दो-चार, दस मय्यतें दफन होने आती थीं वहाँ पर इस समय ताँता लगा हुआ है। शहर के सबसे बड़े कब्रिस्तान ऐशबाग की बात करें दो पिछले दो हफ्ते में यहाँ 210 मय्यतों को दफनाया गया है। इनमें 14 शव संक्रमित थे जिन्हें दूसरी जगह गहरा गड्ढा खोदकर दफनाया गया।
इधर गुजरात में भी कुछ ऐसा ही हाल है। कोरोना के बढ़ते कहर को देखते हुए कब्रिस्तानों में एडवांस में कब्रों की खुदाई की जा रही है। सूरत में महामारी का इतना ज्यादा प्रकोप बढ़ गया है कि शवों को लाने वाली मुर्दाघर की गाड़ियों की कमी आने लगी है। एक वाहन में कई शव ढोए जा रहे हैं। शव वाहन एक साथ कई शवों को लेकर निकलते हैं और उन्हें अलग-अलग कब्रिस्तान पर उतारते हुए चलते बनते हैं। सूरत में रहने वाले लोगों का कहना है कि इतना बुरा वक्त हमने अपनी पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा।