Sunday, November 24, 2024
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देशद्रोह क़ानून: थूक कर चाटने का नाम है कपिल सिब्बल

येक पे रहना - या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो - देशद्रोह मामले में ई काला कोट गड़बड़ बोलता जी - 7 साल में पलट जाता जी!

महान गीतकार सिब्बल के बोल

2016 की एक सुपर डुपर फ्लॉप फ़िल्म है- शोरगुल। ₹1 करोड़ की कमाई को भी तरस गई इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान कपिल सिब्बल से इसके गाने लिखने का अनुरोध किया गया। खाली बैठे बेरोज़गार सिब्बल के पास जब यह प्रस्ताव आया, तब वो अपने काले कोट के साथ घर की एक खूँटी से टंगे हुए थे। चूँकि काम-धाम तो कोई था नहीं, कॉन्ग्रेस की सत्ता जा चुकी थी, अवॉर्ड वापसी का दौर भी जा चुका था और भारतीय राजनीति के साथ-साथ उनके घर में भी उनके लायक ऐसा कोई कार्य नहीं बचा था, तो उन्होंने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत भी वह अपने साप्ताहिक अवकाश पर थे। ऐसे में, मोदी के बारे में सोचते-सोचते कपिल सिब्बल ने गाने के बोल कुछ यूं लिखे-

तेरे बिना जी ना लगे, नजरों में भी तू ही दिखे…

कपिल सिब्बल के लिखे ये बोल आज भी उन पर फिट बैठते हैं। नरेंद्र मोदी के बिना उनका दिल नहीं लगता क्योंकि जब तक मोदी से जुड़ा कोई मुद्दा हाथ न आए, अपने काले कोट के साथ खूँटी पर टंगे होने के अलावे उनके पास कोई चारा नहीं बचता है। और उनकी नजरों में तो लगातार मोदी हैं ही, क्योंकि उनकी घड़ियाँ हमेशा इसी इन्तजार में बीतती हैं कि काश कोई ऐसा मुद्दा हाथ आ जाए, जिस पर खड़े-खड़े कुछ भी ABCD बोल कर 10 जनपथ की वफ़ादारी साबित कर सकें।

एक दशक पहले थूका, अब चाटा

ताजा मामला सिब्बल के थूक कर चाटने जैसा है। इस मामले में वो प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे महारथियों से सीधी टक्कर ले रहे हैं। उन्होंने इस बार कुछ अलग करने की सोच रखी है। इसी क्रम में सिब्बल ने ख़ुद को मीडिया के सामने खड़ा पाया। ये कॉन्ग्रेस नेताओं की विशेषता है। जैसे पीकू फिल्म में अमिताभ बच्चन किसी भी बात को पेट और कब्ज़ से जोड़ देते हैं, ठीक वैसे ही, कॉन्ग्रेस के नेतागण भी अपने घर में बिल्ली द्वारा फोड़े गए छीके के लिए भी मोदी को ही दोष देते हैं। बीवी से साधारण झगड़े के बाद भी वे खुद को कैमरे के सामने खड़ा हो कर मोदी को गाली देते हुए पाते हैं।

कॉन्ग्रेस के नेता कैमरे के सामने आते हैं या फिर कैमरा उनके पास आ जाता है- यह भी एक विवादित तथ्य है। भाजपा नेताओं की दिक्कत यह है कि कल को अगर कॉन्ग्रेस का कोई नेता यह बोल दे कि मोदीजी ने उनके घर की खिड़की का काँच तोड़ दिया है- तो भी मीडिया उसे इतना हाईलाइट करता है कि 10 भाजपा नेताओं को इसे झूठा साबित करने के लिए सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आना पड़ता है।

राम मंदिर मुद्दे पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील सिब्बल और उनके बाकी के प्रतिद्वंदियों के बीच अंतर यह है कि बाकी आज थूकते हैं तो कल चाट लेते हैं, कपिल बाबू थोड़ा समय लेते हैं, लेकिन चाटते जरूर हैं। जैसे कि प्रशांत भूषण ने पहले आलोक वर्मा का विरोध किया और बाद में समर्थन में उतर आए। बाकी लोग इतना ज्यादा गैप नहीं रखते। कपिल सिब्बल ने 2011-12 में थूका और उस थूक को भलीभाँति सड़ाया और सात सालों बाद उसे चाट लिया। ताजा ख़बरों के अनुसार प्रशांत भूषण ने भी यह बयान ज़ारी कर दिया है कि सिब्बल इस थूक कर चाटने वाली इंडस्ट्री के अगले युवा सुपरस्टार हैं।

कार्टून बनाने पर सिब्बल के क़ानून के तहत जेल

असीम त्रिवेदी याद होंगे आपको। कॉन्ग्रेस के एक से एक भ्रष्टाचार के मामलों पर उन्होंने कई कार्टून बनाए थे। कॉन्ग्रेस नेताओं को ‘कार्टून’ हमेशा से पसंद नहीं रहे हैं, सिवाय एक के जिसका वो हुकूम बजाते हैं। ऐसे में त्रिवेदी के इस कृत्य को दिल पर लेते हुए उस समय देशद्रोह सहित तीन चार्ज लगा दिए गए। इसमें कपिल सिब्बल या कॉन्ग्रेस नेताओं की गलती नहीं है क्योंकि उनके लिए उनका देश, राज्य, जिला और पंचायत- सब उनकी पार्टी ही है और एक ही परिवार दशकों से वहाँ का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, डीएम और मुखिया- सब है। आलम यह है कि कभी-कभी वो अपने नेताओं के असली फोटो को भी कार्टून समझ कर देशद्रोह के चार्ज ठोक दिया करते थे।

असीम त्रिवेदी की वेबसाइट को भी सिब्बल के क़ानून का प्रयोग करते हुए बंद कर दिया गया था। इसके अलावा कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता पूरे अन्ना हज़ारे आंदोलन, जिनसे असीम जुड़े थे, को देशद्रोह के तहत घसीटने को आतुर थे। आज अगर सिब्बल का क़ानून होता तो शायद वह ख़ुद भी जेल की हवा खा रहे होते क्योंकि कई लोग उनके चेहरे से ही ऑफेण्डेड हैं।

IT से IT तक का सफ़र

तत्कालीन IT मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने 2010 में एक क़ानून (IT एक्ट, सेक्शन 66A) बनवाया, जिसमें इंटरनेट पर पोस्ट किए गए किसी भी कंटेंट से अगर कोई नेता ‘ऑफेंड’ हो जाता है, तो पुलिस उस पोस्टकर्ता को सलाख़ों के पीछे भेज सकती है। सालों तक इस क़ानून के खूब दुरुपयोग हुए लेकिन सिब्बल मिर्ज़ापुर के उस ‘*#@वाले चचा’ की तरह नाचते रहे। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक दावा किया कि ममता बनर्जी ने एक बार खुद की असली फोटो को ही कार्टून समझ लिया था और इसे पोस्ट करने वाले बेचारे तृणमूल कार्यकर्ता को जेल जाना पड़ा था।

पहले सिब्बल का नाता IT डिपार्टमेंट से था, आज भी उनका नाता IT से ही जुड़ा हुआ है। वो अलग बात है कि वो IT इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी थी और ये वाली IT इनकम टैक्स है। सिब्बल के इस IT से IT तक के सफ़र में फ़र्क सिर्फ इतना है कि उस वाले IT में वो अकेले थे जबकि इस वाली IT में उनका पूरा परिवार भी शामिल है।

जब सिब्बल से 66A के बारे में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि मैंने नहीं, संसद ने ये क़ानून बनाया है। उसके बाद से पत्रकार कैमरा और माइक लिए ‘संसद भवन’ की प्रतिक्रया का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन संसद भवन ने पत्रकारों से बातचीत करने से साफ़ इनकार कर दिया है। वैसे कॉन्ग्रेस का निर्जीव चीजों पर ठीकरा फोड़ने का पुराना इतिहास रहा है। दस सालों तक तो ऐसा समय चला था, जब सरकार के अच्छे कार्यों का श्रेय 10 जनपथ में बैठीं मोहतरमा के पास जाता था और जहाँ भी सरकार निष्फल साबित होती थी- उस मुद्दे का ठीकरा एक न बोलने वाले ‘जीव’ पर फोड़ दिया जाता था।

ताज़ा ख़बरों के अनुसार 66A को सिब्बल का क़ानून कहने से उनकी अपनी ही पार्टी उनसे ऑफेंड हो गई है और उन पर सिडिशन का चार्ज ठोकने वाली है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि जिस देशद्रोह का चार्ज लगा कर उसने 45 साल पहले ही उत्पल दत्त जैसे महान कलाकार को जेल में ठूँस दिया था, उसके साथ आजकल के लड़के सिब्बल का नाम कैसे जोड़ा सकता है! कॉन्ग्रेस का कहना है कि देशद्रोह का चार्ज लगा कर लोगों को जेल भेजने के पुरोधा तो हम हैं, सिब्बल तो बस उसके IT सेल का हेड रहा है।

येक पे रहना, या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो

अब उसी सिब्बल ने नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के तहत देशद्रोह वाले क़ानून को हटाने की वकालत की है। उन्होंने इसे अंग्रेजों का क़ानून बताया है। महान गीतकार ने ANI को बयान देते हुए कहा कि इस क़ानून को हटा देना चाहिए। उनका बयान जायज है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो वो ‘हार्डिक’ जैसों को डिफेंड कैसे कर पाएंगे। वैसे भी कॉन्ग्रेस में राजद्रोह का मतलब है उनके आकाओं का विरोध, देश का नहीं।

देशद्रोह को अंग्रेजों का क़ानून बताने वाले सिब्बल ने 2012 के एक इंटरव्यू में IT एक्ट के सेक्शन 66A का बचाव करते हुए कहा था कि ये कानून सही है क्योंकि ये UK, USA जैसे देशों के क़ानून पर आधारित है और उन्होंने उन देशों से ‘सटीक शब्द’ उधार लिए हैं।

सिब्बल के इस क़ानून का ख़ूब दुरुपयोग हुआ। एक बार कुछ यूँ हुआ कि किसी ने सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ इंटरनेट पर कुछ पोस्ट कर दिया। इसके बाद घबराए सिब्बल ने माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, गूगल सहित पूरे इंटरनेट जगत को तलब कर लिया। सोनिया के ख़िलाफ़ कुछ लिखना अपराध है। कॉन्ग्रेस सरकारों के अनगिनत भ्रष्टाचारों पर कार्टून बनाना अपराध है। लेकिन जब ‘हार्डिक’ जैसा कोई भटका हुआ युवा अपनी खोटी क्रांति शुरू करता है और उसमें 12 युवकों की मृत्यु हो जाती है, तब सिब्बल और उनका काला कोट- दोनों ही खूँटी से उतर आते हैं और अपने-आप को अदालत की दहलीज पर पाते हैं

12 हत्याओं पर बैठ कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले ‘हार्डिक’ के लिए पैरवी करने सुप्रीम कोर्ट जाते समय सिब्बल यह भूल जाते हैं कि इसी कोर्ट ने उनके मंत्रालय द्वारा बनाए गए IT एक्ट के सेक्शन 66A को 2015 में ख़त्म कर दिया था। अब इस बात पर सिब्बल टिप्पणी करते हुए अपने संसद वाले बयान की तरह यह बात भी कह सकते हैं: “हार्डिक को मैं नहीं, मेरी काली कोट डिफेंड कर रही है।” उनके इस बयान का अगर कोई नहीं तो गुरमेहर कौर तो जरूर समर्थन करेगी।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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