Thursday, May 2, 2024
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माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर: युद्ध में माँ की मूर्ति होती थी त्रिपुरा के राजा के साथ, पवित्र शक्तिपीठों और 10 महाविद्याओं में से एक

माता त्रिपुर सुंदरी को 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है। जब भी त्रिपुरा के राजा किसी युद्ध में जाते थे तब माता चंडी की छोटी प्रतिमा अपने साथ लेकर जाते थे।

सनातन हिन्दू धर्म में भारत के पूर्वोत्तर भाग को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। इसे भगवान सूर्य का स्थान माना जाता है क्योंकि इस दिव्य भारत भूमि में सबसे पहला सूर्योदय यही पूर्वोत्तर भाग ही देखता है। हालाँकि पूर्वोत्तर भारत अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और स्थानीय जनजातीय संस्कृति के कारण अधिक प्रसिद्ध है लेकिन यहाँ कई ऐसे धार्मिक स्थान भी हैं, जिनका इतिहास पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। त्रिपुरा का त्रिपुर सुंदरी मंदिर भी उन्हीं सनातन क्षेत्रों में से एक है, जिनका वर्णन हिंदुओं के प्राचीनतम ग्रंथों में किया गया है।

मंदिर का इतिहास एवं संरचना

त्रिपुरा के गोमती जिले के प्राचीन उदयपुर शहर में स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर हिंदुओं के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और इसे पूर्वोत्तर भारत के महत्वपूर्ण स्थानों में गिना जाता है। हिन्दू ग्रंथों में इस स्थान का वर्णन एक ऐसे क्षेत्र के रूप में किया गया है, जहाँ माता सती का दाहिना पैर गिरा था। इस क्षेत्र को माताबाड़ी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है और यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यहाँ माँ भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है।

त्रिपुरा में 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान राजा धन्य माणिक्य का शासन था। यह माना जाता है कि एक रात राजा को स्वप्न में माता त्रिपुर सुंदरी ने तत्कालीन राजधानी उदयपुर में एक पहाड़ी के ऊपर अपनी उपस्थिति के बारे में बताया और उन्हें यह आज्ञा दी कि उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया जाए। इसक बाद राजा माणिक्य ने सन् 1501 के दौरान इस मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुशैली एकरत्न के हिसाब से कराया गया है। चूँकि जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है उसका आकार कछुए की पीठ के समान है, अतः इस स्थान को ‘कूर्म पीठ‘ भी कहा जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित दो प्रतिमाएँ स्थापित हैं। लगभग 5 फुट ऊँचाई की मुख्य प्रतिमा माता त्रिपुर सुंदरी की है जबकि 2 फुट की एक अन्य प्रतिमा, जिसे ‘छोटो माँ’ कहा जाता है, माता चंडी की है। ऐसा माना जाता है कि जब भी त्रिपुरा के राजा किसी युद्ध में जाते थे तब माता चंडी की छोटी प्रतिमा अपने साथ लेकर जाते थे। मंदिर के नजदीक ही कल्याण सागर नाम का एक बड़ा तालाब स्थित है, जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में कछुए पाए जाते हैं। यहाँ कछुओं को भोजन कराना मंदिर की परंपरा का ही एक हिस्सा है।

मंदिर का प्रमुख त्यौहार

वैसे तो साल में दो बार आने वाली नवरात्रि को भारत भर में मौजूद देवी मंदिरों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है लेकिन माता त्रिपुर सुंदरी के इस मंदिर का प्रमुख त्यौहार दीपावली है। त्रिपुरा में स्थित इस प्राचीन मंदिर में दीवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि और श्रावण महीने में भी मंदिर में श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर हिंदुओं के वैष्णव और शाक्त संप्रदाय का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। मंदिर के प्रसादम के रूप में ‘पेड़ा’ श्रद्धालुओं को दिया जाता है।

राधाकिशोर गाँव में स्थित इस मंदिर को तंत्र विद्या का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर में तांत्रिक साधना का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। असम में स्थित कामाख्या शक्तिपीठ की तरह इस स्थान पर भी आस-पास के इलाकों में तांत्रिकों के होने और तंत्र साधन करने के प्रमाण मिलते हैं। कारण यह है कि माता त्रिपुर सुंदरी को 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है।

कैसे पहुँचें?

उदयपुर का नजदीकी हवाईअड्डा अगरतला में स्थित महाराजा बीर बिक्रम एयरपोर्ट है, जो यहाँ से मात्र 59 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा उदयपुर में रेलवे स्टेशन भी है, जो लमडिंग रेलवे डिवीजन के अंतर्गत आता है। यहाँ से असम और त्रिपुरा के प्रमुख शहरों के लिए रेलमार्ग की सुविधा उपलब्ध है।

इसके अलावा सड़क मार्ग से भी उदयपुर, त्रिपुरा और असम के कई शहरों से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्थित उदयपुर से बाकी शहरों के लिए बेहतर रोड कनेक्टिविटी है।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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