नमस्कार,
मैं लानत कुमार झा
आज बात बिहार की। वहाँ के बाढ़ की। मीडिया को तो आपके जीने-मरने से मतलब नहीं। उसे पेगासस का झूठा प्रलाप भाता है। राकेश टिकैत के बड़बोले बोल पर उसका मन नाचता है। पर मैं गोदी मीडिया का पत्रकार हूँ। व्हाट्सप्प (Whatsapp) यूनिवर्सिटी से ज्ञान पाता हूँ। इसलिए हाजिर हूँ बिहार और बाढ़ की बात लेकर। वैसे चुनावी मौसम होता तो हर ओर इसका ही शोर होता। मैग्सेसे, गोयनका, पुलित्जर… सारे के सारे कुमार इसकी ही बात करते। सबसे तेज वीरांगना माइक लेकर तसला पर बैठ कवर करती।
फोटो पर #सवाल उठे हैं,#जवाब-मुझे जिस गांव के अंदर जाना था वहां तक पहुंचने का एकमात्र साधन ये है.4 लोग मुझे ले जा रहे हैं उनका यही काम है इस पार से उस पार ले जाना,जबसे बाढ़ आई है.उन्हें इसके बदले पैसे देने की कोशिश की तो जवाब था कि आप ये सरकार को दिखाइये ताकि हमें बोट मिल जाये. pic.twitter.com/WSOKOjwPo3
— Chitra Tripathi (@chitraaum) July 27, 2019
इस बरस मौसम का मिजाज बदला-बदला सा लगता है। इसलिए लानतों की बरसात करता हूँ। सुशासन की सरकार पर नहीं। न बीते जंगलराज पर। न कॉन्ग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों पर। ये सारे के सारे तो निर्दोष हैं। निरीह हैं। लानतों की हकदार वे नदियाँ हैं जो उफनती हैं। वह पानी है जो खेत-खलिहान से लेकर घर-द्वार में घुसती है। आगे बढ़ने से पहले नीचे के ट्वीट का वीडियो देखिए;
बिहार में बाढ़ की त्रासदी pic.twitter.com/ZsnRHo3Xzu
— रणविजय सांडिल्य (@ranvijaysandily) July 21, 2021
वीडियो दरभंगा जिले के महिसौत गाँव का है। बाढ़ की वजह से दाह संस्कार के लिए सूखी जमीन नहीं बची है। ऐसे में शिवनी यादव के दाह संस्कार के लिए उनके परिजनों ने मचान बनाया है। उस पर मिट्टी की वह कोठी रखी है जिसमें कल तक वे अनाज रखते थे। कोठी में शिवनी यादव का शव रखा गया। फिर लकड़ी डाली गई। परिजनों की मौजूदगी में बेटे रामप्रताप ने नाव से मुखाग्नि दी। बाढ़ में डूबे गाँव को छोड़ शिवनी परलोक चले गए।
लेकिन यह जीवटता भी कुछ को नहीं भाई। सरकार और व्यवस्था को लगे कोसने। इस मामले में लानत की हकदार वह मोबाइल है, जिससे तस्वीर खींची गई। वह कैमरा है जिससे वीडियो बनाई गई। दोनों को हजार लानतें भेजता हूँ ताकि उन्हें पता चले कि यह कोई नई बात नहीं है। हर साल इस मौसम में कई ऐसे ही परलोक की यात्रा करते हैं। इसमें नया क्या? खबर क्या?
अब आगे बढ़ते हैं। खबर है कि कोसी, भूतही बलान और कमला एक अल्पविराम के बाद फिर उफान मारने लगी हैं। हजारों प्रभावित हैं। इनको भी लानत भेजता हूँ। नदियों को उफनने का इतना शौक ही क्यों है? कई नदियाँ मर गईं। दिल्ली की यमुना नाला बन गई। ‘रन’ में तो विजय बोला भी था- साला छोटी गंगा बोल नाले में कूदा दिया। तो हे बिहार की नदियों उफनने और बचे रहने का तुमको ही कौन सा चस्का है?
लानतें उन हजारों-लाखों लोगों को भी भेजता हूँ जो इस बाढ़ का रोना रोते हैं। क्या जरूरत है कि तुम्हें वहीं पड़े रहने की जहाँ हर साल बाढ़ आती है। तुमको भी सालाना नौटंकी करना है। वहीं रहोगे भी और हर साल कोसोगे भी। ये नहीं कहीं और निकल लें।
सरकार बेचारी करे क्या। हर साल तुम्हें बाढ़ से बचाने के नाम पर तटबंध तो मजबूत करती ही है। तो लानतें टूटने वाले तटबंध को भेजो। उसे हर साल मजबूत कर खुद का व्हाइट हाउस खड़ी करने वाली बाँहों को नहीं। जब तुम डूबते हो तो चूड़ा, तिरपाल भी सरकार बाँटती ही है। कुछ डूबकर मर जाते हो तो नाव लेकर मदद करने भी पहुँच जाती ही है। अब पानी में डूबे घर में साँप के काटने से कोई मर जाए तो सरकार क्या करे। तुम्हारी तरफ से लानत उस साँप को भेजता हूँ। लानत उस सड़क को भी, उस पुल को भी जो डूबती है, टूटती है। सरकार का काम था बनाना, उसने वह कर दिया। डूबना तो तुम्हारे नसीब का लिखा है। सो, लानत अपने नसीब को भेजो।
लानत उस पब्लिक को है जो हर साल डूबती है। डूबकर अपनी ही चुनी हुई सरकार, अपने ही चुने हुए प्रतिनिधि को गरियाती है और चुनावी बरस में फिर से उनको ही चुनती है। अरे बेगैरतों जब तुमने उन्हें दिल्ली-पटना में रहने के लिए चुना है तो वे बाढ़ में तुम्हारे डूबे गाँव के टूरिज्म पर क्यों आएँ?
जय मिथिला, जय मखाना pic.twitter.com/e7esfsd5jr
— Ajit Jha (@JhaAjitk) July 20, 2021
बनना है तो गोपाल जी ठाकुर बनो। अशोक यादव बनो। सीखो इनसे आपदा में अवसर बनाना। पानी न हो तो मखाना कहाँ से आए? मखाना न हो तो मखाने की माला कैसे बने? माला न हो तो ‘महाराज’ सिंधिया के गले की शोभा कैसे बढ़े? जब शोभा न हो तो कैसी तुम्हारी संस्कृति? दुनिया में कौन तुम्हें पहचानेगा? इसलिए सबको भेजे लानतें वापस लेता हूँ। डूबे हुए लोगों को इकट्ठे सारे लानते भेजता हूँ। सुशासन के दर पर सलाम ठोकता हूँ।