आजकल न तो फंड जुटाने वाले प्लेटफॉर्म्स की कमी है और न ही सार्वजनिक रूप से फंड की माँग करने वाले लोगों की। ‘Ketto’ और ‘Donatekart’ सहित ऐसे कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स हैं, जो लोगों को सामाजिक कार्यों के लिए फंड इकट्ठा करने की सुविधा देते हैं। ऐसे में तथाकथित पत्रकार राना अय्यूब, TMC नेता और कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के पूर्व करीबी साकेत गोखले और कॉन्ग्रेस नेता के करीबी गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी जैसे विवादित चेहरे भी शामिल हैं, जिन पर जनता से जुटाए गए फंड्स के दुरुपयोग का आरोप लगा।
साकेत गोखले ने सोशल मीडिया पर खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, RSS और भाजपा के खिलाफ एक बड़ा एक्टिविस्ट बता कर प्रचारित किया। उन्होंने ‘मोदी सरकार की पोल खोल कर समाज में बदलाव लाने’ की बातें करते हुए खुद को ‘RTI एक्टिविस्ट’ बताया। उन्होंने 2019 में पूर्णकालिक RTI एक्टिविस्ट बनने के लिए लिबरल जमात से रुपए इकट्ठे किए। उन्होंने इसके लिए लाखों रुपए जुटा लिए। उन्होंने कई RTI दायर कर के दिखाया भी कि वो ‘काम’ कर रहे हैं, लेकिन इन RTIs का शायद ही कोई असर हुआ और ये महत्वपूर्ण भी नहीं थे।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी की पत्नी और IFS अधिकारी लक्ष्मी पुरी पर अनर्गल आरोप लगाने के लिए अदालत से उन्हें फटकार भी मिली। उन्होंने लोगों द्वारा इकट्ठा किए गए फंड्स के दुरुपयोग के आरोपों पर इसकी तुलना अपनी ‘सैलरी’ से कर डाली। उन्होंने कहा कि वो अपने मासिक खर्चे के लिए ऑडिट के डिटेल्स देने के इच्छुक नहीं हैं। राहुल गाँधी के साथ ट्विटर डीपी हटा कर उन्होंने ममता बनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस का दामन थाम लिया। अब वो क्राउडफंडिंग से मिले पैसों को अपनी ‘सैलरी’ बता रहे।
अब बात करते हैं फेक न्यूज़ फैलाने और इस्लामी कट्टरवादियों का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए कुख्यात राना अय्यूब की, जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान खुद को गरीबों का मसीहा साबित करने की भरसक कोशिश की। वो किसी NGO से जुड़ी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने ‘Ketto’ के जरिए पैसे इकट्ठा करने शुरू कर दिए। पत्रकार होते हुए वो FCRA के नियमानुसार विदेशी चंदा नहीं ले सकतीं, लेकिन उन्होंने विदेश से भी फंड्स लिए। कोरोना की दूसरी लहर में भी उन्होंने ऐसा अभियान चलाया एक करोड़ रुपए जुटा लिए।
इसके बाद उन्होंने ज़रूरतमंदों की मदद करते हुए कुछ तस्वीरें पोस्ट की। नियम है कि ऐसे फंड जुटाने वाले को टैक्स देने से लेकर ज़रूरी दस्तावेजों को जमा कराना पड़ता है। लेकिन, उन्हें बिना किसी दस्तावेजों के रुपए मिल गए। हालाँकि, इसके बाद जब आपत्ति जताई गई तो सोशल मीडिया के विरोध के बाद उन्होंने विदेशी चंदे लौटा दिए। उन्होंने अपने ‘चैरिटी के कार्य’ के लिए सरकार द्वारा खुद को निशाना बनाए जाने के आरोप मढ़े। ‘Ketto’ को भी बयान जारी करना पड़ा कि उनके फंडरेजर की जाँच चल रही है।
इसी तरह मई 2021 में गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने ‘We The People Charitable Trust’ नामक संस्था के एक फंडरेजर का समर्थन किया। इस पर विवाद हुआ, क्योंकि ‘We The People Charitable Society’ नाम की एक NGO पहले से मौजूद थी। चैरिटी कमिश्नर ने नाम में इस समानता के कारण कार्रवाई की चेतावनी भी दी। प्रशासन ने इस NGO के बैंक खाते फ्रीज किए, लेकिन मेवानी ने सरकार को ही दोषी ठहराया। नेता भी FCRA के तहत विदेशी चंदा इकट्ठा नहीं कर सकते।
इसी तरह 2018 में कठुआ रेप कांड की पीड़िता के नाम पर पीड़ित परिवार के लिए JNU की छात्र नेता रहीं शेहला रशीद और अधिवक्ता दीपिका सिंह राजावत ने फंड्स जुटाए। हालाँकि, बाद में मीडिया रिपोर्ट्स से पता चला कि ये रुपए पीड़ित परिवार तक कभी पहुँचे ही नहीं। इस फंडरेजर में सक्रिय रहे ताहिर हुसैन को बाद में बलात्कार के आरोप में जेल हुई। शेहला ने आधार कार्ड के कारण ज्वाइन अकाउंट खुलवाने में दिक्कत, डायरेक्ट ट्रांसफर के लिए माध्यम न होने से लेकर परिवार द्वारा मीडिया रिपोर्ट्स को नकारे जाने जैसे बहाने बनाए।
लेकिन, लोगों ने उनके हर दावे की पोल खोल दी। इस खबर को प्रकाशित करने वाले पत्रकार ने परिवार के रिकॉर्डिंग्स के हवाले से दावा किया कि उन तक ये पैसे पहुँचे ही नहीं। दीपिका सिंह राजावत ने कॉन्ग्रेस में शामिल होने का फैसला लिया और अब वो जम्मू कश्मीर में पार्टी की प्रवक्ता हैं। वो कठुआ रेप पीड़िता के लिए अदालत में भी पेश नहीं होती थीं और 110 सुनवाइयों में से वो मात्र 2 में पहुँचीं। शेहला रशीद ने पूर्व IAS शाह फैसल की पार्टी का साथ देने का निर्णय लिया, लेकिन शाह फैसला ने राजनीति ही छोड़ दी।
इसी तरह के आरोप पूर्णकालिक ‘आंदोलनजीवी’ तीस्ता सेतलवाड़ पर भी लगे। उन पर गोधरा दंगा के पीड़ितों के नाम पर पैसे इकट्ठा कर के उसमें गड़बड़ी करने का आरोप है। 1.51 करोड़ रुपए जुटाए गए थे, जिनमें गड़बड़ी के आरोप लगे। बाल ‘पर्यावरण एक्टिविस्ट’ के रूप में प्रचारित की जा रहीं लिसीप्रिया कँगुजम पर भी ऑक्सीजन सिलिंडरों के लिए 75 लाख जुटा कर गड़बड़ी के आरोप लगे। उनके नाम पर एक NGO ने फंडरेजिंग का जिम्मा संभाला था। इसी तरह की गड़बड़ी के आरोप ‘हेमकुंड फाउंडेशन’ के खालिस्तानी समर्थकों पर भी लगे।