Thursday, November 14, 2024
Homeराजनीति...तो जीतकर भी 'हार' गए कुंडा वाले राजा भैया, अबकी बार अपना भी रिकॉर्ड...

…तो जीतकर भी ‘हार’ गए कुंडा वाले राजा भैया, अबकी बार अपना भी रिकॉर्ड तोड़ न पाए

इस बार राजा भैया को कुंडा से लगभग 30 हजार वोटों से ही जीत मिली है। जबकि चुनाव प्रचार के दौरान उनके समर्थकों ने 'डेढ़ लाख पार' का नारा दिया था।

यूपी विधानसभा चुनावों में प्रतापगढ़ की कुंडा सीट पर एक बार फिर से रघुराज प्रताप सिंह ने लगातार 7वीं बार जीत दर्ज कर ली है। वहीं राजा भैया ने भले ही समाजवादी पार्टी के गुलशन यादव को हरा दिया हो, मगर इस बार उनकी सियासी बादशाहत कम हो गई है। वजह है जीत का बहुत कम अंतर जो कि करीब 30 हजार के आस-पास है। राजा भैया को जहाँ 99612 वोट मिले वहीं सपा के गुलशन यादव को 69297 वोट प्राप्त हुए है।

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया। उत्तर प्रदेश की राजनीति का ऐसा नाम जो कभी किसी मुख्यधारा की पार्टी में नहीं रहे, लेकिन हमेशा चर्चा में रहे। कभी मुलायम सिंह से करीबी के कारण तो कभी मायावती के साथ अदावत के कारण। कभी राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनाने को लेकर तो कभी ‘मगरमच्छ वाले तलाब’ को लेकर।

वे जब भी प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने उतरे कभी जनता ने मायूस नहीं किया। 2022 के ​चुनावों में भी वे जीतने में कामयाब रहे हैं। लेकिन, इस बार वे वैसी जीत हासिल नहीं कर पाए हैं, जो उन्हें पिछले विधानसभा चुनावों में नतीजों के दिन सुर्खियाँ देती रही है। असल में राजा भैया हर चुनावों में अपनी जीत का मार्जिन बढ़ाते रहने को लेकर चर्चित रहे हैं। पर इस बार वे अपना पुराना रिकॉर्ड भी बचाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।

इस बार राजा भैया को कुंडा से लगभग 30 हजार वोटों से ही जीत मिली है। जबकि चुनाव प्रचार के दौरान उनके समर्थकों ने ‘डेढ़ लाख पार’ का नारा दिया था। इरादा था डेढ़ लाख के अंतर से राजा भैया को विधानसभा में पहुॅंचाने का। राजा भैया ने भी अपनी चुनावी सभाओं में यह दावा किया था कि वो इस बार डेढ़ लाख से अधिक मतों के साथ अपनी जीत सुनिश्चित करेंगे। पिछली बार उनकी जीत का मार्जिन करीब एक लाख रहा था। बिल्कुल वैसा ही, जैसा नारा दिया गया था ‘अबकी बार एक लाख पार’।

कुंडा विधानसभा के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो साल 1993 के बाद पहली बार राजा भैया को कुंडा सीट पर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राजा भैया 1993 से लगातार कुंडा सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक बनते आ रहे हैं। प्रदेश में सत्ता किसी की भी रही हो कुंडा की सत्ता राजा भैया के पास ही रही। पिछले डेढ़ दशक से सपा कुंडा में राजा भैया के समर्थन में कोई प्रत्याशी नहीं उतारती रही, जिसके चलते वो आसानी से कुंडा सीट से जीतते रहे हैं। लेकिन, इस बार सपा ने उनके खिलाफ गुलशन यादव को मैदान में उतारा वहीं भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए सिंधुजा मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया था। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजा भैया ने 103, 647 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 136 597 वोट प्राप्त हुए थे। दूसरे नंबर पर 32,950 वोटों के साथ भारतीय जनता पार्टी के जानकी शरण थे। वहीं 2017 के चुनाव में राजा भैया के समर्थकों ने एक लाख पार का नारा दिया था।

अखिलेश यादव से हुआ था मतभेद, पहली बार अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ा चुनाव

राजा भैया और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच किसी जमाने में मधुर रिश्ते हुआ करते थे। राजा भैया को अखिलेश यादव का बेहद खास माना जाता रहा है। मुलायम सिंह यादव से भी राजा भैया के रिश्ते बेहतर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गहराई से नजर रखने वालों की माने तो एक वक्त मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में ठाकुर समाज को सपा से जोड़ने की कवायद राजा भैया के सहारे ही शुरू की थी।

उत्तर प्रदेश में सत्ता बदली, वक्त बदला और अखिलेश और राजा भैया के बीच के रिश्ते सियासी अदावत में तब्दील हो गए। यहाँ तक कि चुनाव प्रचार के दौरान दोनों एक दूसरे पर तंज और फब्तियाँ कसते नजर आए। अखिलेश यादव ने पहली बार राजा भैया के खिलाफ चुनावी रैली भी की और यहाँ तक कह दिया कि इस बार जनता कुंडा में कुंडी लगा देगी। इससे पहले राजा भैया के विषय में एक पत्रकार ने जब अखिलेश यादव से सवाल किया था तो अखिलेश ने राजा भैया को पहचानने से भी इन्कार कर दिया था।

इस अदावत की कहानी का एक सिरा राज्यसभा के चुनावों से भी जुड़ा हुआ है, साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने मायावती की बसपा के साथ गठबंधन किया था। राजा भैया और मायावती की अदावत का किस्सा काफी पुराना है इसी कारण से वे इस गठबंधन से असहज थे। साल 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव में अखिलेश चाहते थे कि राजा भैया गठबंधन के तहत राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को वोट दें। लेकिन, उन्होंने मायावती के खिलाफ जाकर भाजपा प्रत्याशी को वोट दे दिया था।

25 साल तक निर्दलीय लड़ने और जीतने के बाद राजा भैया ने साल 2018 में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नाम से अपनी पार्टी का गठन किया। 2022 के विधानसभा चुनाव में पहली बार अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के चुनाव चिह्न पर राजा भैया ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। राजा भैया की पार्टी इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा की 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बिहार के एक अस्पताल से शुरू हुई दलित लड़के-मुस्लिम लड़की की प्रेम कहानी, मुंबई में रघुनंदन को काटकर मोहम्मद सत्तार ने कर दिया अंत:...

दरभंगा के रघुनंदन पासवान का 17 वर्षीय मुस्लिम प्रेमिका से संबंध था, जिससे लड़की के परिवार के लोग नाराज थे।

ट्रंप सरकार में हिंदू नेता भी, जानिए कौन हैं तुलसी गबार्ड जो होंगी अमेरिकी इंटेलीजेंस की मुखिया: बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए भी उठा चुकी...

डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका की पहली हिन्दू सांसद तुलसी गबार्ड को डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) नियुक्त किया है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -