कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुर्का मामले पर सुनाए गए अपने फैसले में कहा है कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य प्रथा नहीं है और शैक्षणिक संस्थानों में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। हालाँकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस दौरान ये भी कहा कि क्लासरूम से बाहर महिलाएँ क्या पहनती हैं, ये उनका अधिकार है और इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस कोड सबको बराबर दिखाने के लिए होता है और इसका पालन होना चाहिए।
लेकिन, केंद्र सरकार और हिन्दुओं को भला-बुरा कहने वाला कट्टरवादी इस्लामी गिरोह को न्यायपालिका का ये फैसला पसंद नहीं आया और उन्होंने इसके खिलाफ भी बयानबाजी शुरू कर दी। बुर्का पक्ष ने अब सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। वहीं कर्नाटक सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है। कर्नाटक के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संस्थागत अनुशासन को व्यक्तिगत चॉइस के ऊपर महत्ता मिली है, जिससे अनुच्छेद-25 को समझने में नया मोड़ आया है।
खुद को ‘मुस्लिम’ और भाषा-विज्ञान में पोस्टग्रेजुएट बताने वाली आफरीन फातिमा ने इस फैसले का विरोध करते हुए ट्विटर पर लिखा, “कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से सीमाएँ लाँघी है और इस्लाम में क्या ज़रूरी है, क्या नहीं – ये सब तय कर के उसने अपने अधिकार से ज्यादा बातें की हैं। ये अस्वीकार्य है।”
Karnataka High Court has clearly overstepped and is out of it's place to comment on what is essential to Islam and what is not. Unacceptable!
— Afreen Fatima (@AfreenFatima136) March 15, 2022
‘मुस्लिम एक्टिविस्ट’ और ‘जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी’ में इतिहास की छात्रा आयशा रेना ने लिखा, “सोचिए कि इस फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं का कैसे अमानवीकरण किया जाएगा और उन्हें गालियाँ दी जाएँगी। हमलोग इसके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।”
Imagine the dehumanisation and villification Muslim women are going to face following this order.
— Aysha Renna (@AyshaRenna) March 15, 2022
We will fight this. #handsoffmyhijab #HijabisOurRight
उमर सोफी नाम की मुस्लिम महिला ने लिखा, “इसे जरा फिर से पढ़िए। मुस्लिम महिलाओं के लिए जज मिस्टर अवस्थी ने इसका निर्णय लिया कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य है या नहीं।” साथ ही उन्होंने ‘हिजाब विवाद’ का टैग भी लगाया। उन्हें लोगों ने याद दिलाया कि पैनल में एक मुस्लिम जज (जस्टिस जेएम काजी) भी थीं और उन्होंने भी यही फैसला दिया।
Read that again, the judge Mr. Awasthi decided for Muslims whether Hijab is essential to Islam or not. #HijabControversy
— Umar Sofi (@Umar__sofi) March 15, 2022
अब बात करते हैं मीडिया पोर्टल ‘The Wire’ की सीनियर एडिटर आरफा खानुम शेरवानी की, जिन्होंने लिखा, “भारत में एकमात्र ‘अनिवार्य’ चीज अब बहुसंख्यकवाद ही है। अब बहुसंख्यक ही तय करेंगे कि अल्पसंख्यक कैसे रहें। अब इस पर कानूनी ठप्पा भी लग गया।”
The only ‘essential’ thing in India now is majoritarianism.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) March 15, 2022
The majority will dictate the terms for minorities.
It has got a legal stamp today.
जावेद हुसैन नाम यूजर ने आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करते हुए लिखा, “अब सारे कुत्ते हमारे खिलाफ हो रहे हैं।”
Ab sare kutte hamare khilaaf ho rahe hain
— Javed Husain (@JavedHu76025032) March 15, 2022
खुद को मुस्लिम और मानवाधिकार कार्यकर्ता बताने वाले आसिफ जीएम ने इसे अदालत की जगह ‘RSS का फैसला’ करार दिया।
Karnataka High Court dismisses petitions filed by Muslim girls seeking permission to wear hijab in classroom.
— Ashif Gm (@GmAshifpf) March 15, 2022
This is not Court judgment, it’s #RSS decision.!#KarnatakaHijabRow#HighCourt #HijabControversy #HijabVerdict pic.twitter.com/o9ZcYjOSL1
AIMIM से जुड़े मुबाशिर ने लिखा, “वाह! एक धर्मनिरपेक्ष अदालत ने इस्लाम में हिजाब के अनिवार्य न होने का फतवा जारी किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुस्लिम महिलाओं के कपड़े उतार दिए। इससे वो सभी नंगी महिलाएँ खुश होंगी, जिनके मुस्लिम नाम हैं। ये कहने के लिए क्षमा कीजिए, लेकिन भारतीय न्यायपालिका में मेरा कोई भरोसा नहीं बचा है। “
Wow, a Secular court gave Fatwa of #Hijab being not essential religious practice! It must make happy all those Nangi women who have Muslim names, Karnataka High Court "Disrobed" Muslim women today, Sorry to say I have no faith left in Indian Judiciary. https://t.co/edxi254Vdx
— Mubashir (@rubusmubu) March 15, 2022
बता दें कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि हिजाब सिर्फ एक वस्त्र नहीं है, बल्कि महिलाओं का अधिकार है कि वो क्या चुनती हैं। इसी तरह AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जजमेंट से असहमत होने का उन्हें अधिकार है और उन्हें आशा है कि याचिकाकर्ता अब सुप्रीम कोर्ट जाएँगे। कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस पर भी दुःख जताया था कि किस तरह हिजाब को मुद्दा बना कर शांति भंग करने की कोशिश की गई।