महिलाओं के स्वास्थ्य और हर घर तक गैस कनेक्शन पहुँचाने के लिए पिछले साल केंद्र की मोदी सरकार ने उज्जवला योजना (Ujjwala Yojna) 2.0 को लॉन्च किया था। सरकार के इस कार्यक्रम का यह असर देखने को मिल रहा है कि खाना पकाने के लिए LPG गैस के उपयोग के कारण साल 2019 में ही प्रदूषण से होने वाली मौतों में से 1.5 लाख लोगों की जान बचाई जा सकी है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के कारण उस वर्ष कम से कम 1.8 मिलियन टन पीएम 2.5 उत्सर्जन में कटौती का आकलन किया गया है।
पर्यावरण के क्षेत्र में लंबे वक्त से काम कर रहे अजय नागपुरे, रितेश पाटीदार और वंदना त्यागी लंबे वक्त से वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) इंडिया के लिए काम कर रहे हैं। ये स्टडी इन्हीं तीनों ने की है। नागपुरे आईआईटी रुड़की से पीएचडी किए हैं और पर्यावरण प्रदूषण पर 18 साल से काम कर रहे हैं। साल 2019 में भारत आने से पहले वो मिनेसोटा विश्वविद्यालय में ह्यूबर्ट हम्फ्रे स्कूल ऑफ पब्लिक अफेयर्स में सेंटर फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरनमेंटल पॉलिसीज के साथ काम करते थे।
वंदना त्यागी भी एक पर्यावरण इंजीनियर हैं औऱ आईआईटी रुड़की में रिसर्च फेलो थीं। उसी संस्थान से 2017 में ग्रेजुएट हुए पाटीदार स्थाई स्वच्छ खाना पकाने के ऊर्जा समाधान, वायु प्रदूषण और संबंधित नीतियों पर शोध कर रहे हैं। इन रिसर्चर्स का मानना है कि उज्ज्वला योजना के जितने लाभ बताए जा रहे हैं असल में ये उससे कहीं अधिक हो सकते हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान नागपुरे ने कहा, “घरेलू खाना पकाने से बायोमास जलाने से वायु प्रदूषण में 30-40 प्रतिशत का योगदान हो सकता है। यहाँ लाभ का अनुमान केवल साल 2019 के लिए लगाया गया है। ऐसे ही लाभ बाद के सालों में भी हुए होंगे। हालाँकि, इसका पूरा डेटा अभी तक हमारे पास नहीं है। मैं कहूँगा कि उज्ज्वला योजना एयर क्वालिटी में सुधार औऱ वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए सबसे प्रभावी सरकारी योजना है।”
रिसर्च की मुख्य बातें
नागपुरे ने अपनी टीम के साथ उज्ज्वला योजना के कारण मौतों में आई कमी का आकलन करने के लिए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) स्टडी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली को अपनाया, जिसे अक्टूबर 2020 में द लैंसेट में प्रकाशित किया गया था। जीबीडी की यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन वाशिंगटन के सहयोग से की गई, जिसमें यह दावा किया गया था कि वायु प्रदूषण दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हत्यारा है, जिसके कारण 2019 में लगभग 6.67 मिलियन मौतें हुई थी। उस स्टडी में यह भी पता चला था कि भारत में घरेलू वायु प्रदूषण के कारण ही 2019 में 6.1 लाख मौतें हुई थीं।
नागपुरे की टीम के रिसर्च के मुताबिक, बायोमास के माध्यमिक उपयोग ध्यान में रखा जाता है तो 2019 में इनडोर वायु प्रदूषण से संबंधित मौतें बढ़कर 10.2 लाख हो गईं। उज्ज्वला योजना न होती तो मरने वालों की संख्या 11.7 लाख तक हो सकती थी। ऐसे में उज्ज्वला के कारण घरेलू वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में लगभग 13 प्रतिशत की कमी आई।
कब शुरू हुई उज्ज्वला योजना
गौरतलब है प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरुआत 2016 में की गई। इसका उद्देश्य देश की महिलाओं को खाना पकाने के पारंपरिक ईंधन से मुक्ति दिलाना था। इसमें शुरुआती तौर पर मार्च 2020 तक 8 करोड़ नए एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया था। हालाँकि, समय से पहले सितंबर 2019 में ही इसे हासिल कर लिया गया। अध्ययन के मुताबिक, इस साल जनवरी तक इस योजना के तहत 9 करोड़ नए एलपीजी कनेक्शन शुरू किए गए थे। अब देश के 28 करोड़ से अधिक घरों में से 99.8 प्रतिशत के पास एलपीजी कनेक्शन है। 2015 में यह 61.9 फीसदी तक था।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी घर एलपीजी में शिफ्ट हो गए हैं। नागपुरे के अध्ययन में पाया गया कि 2019 में केवल 65 प्रतिशत परिवार प्राथमिक खाना पकाने के ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग कर रहे थे। नागपुरे का कहना है कि उज्ज्वला योजना द्वारा प्रदान किए गए प्रोत्साहन के अभाव में, यह संख्या लगभग 47 प्रतिशत होती। इसके कारण राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश के गाँवों में स्वास्थ्य की स्थितियों में 50 फीसदी का सुधार हुआ है।