बचपन से ही हर एक छात्र को वर्ण व्यवस्था (Varna System) के बारे में पढ़ाया जाता है। सदियों से वर्ण व्यवस्था पर बहस होती आ रही है, लेकिन सही मायने में वर्ण व्यवस्था क्या है इसे कोई सही रूप से समझा नही पाया है। कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के अध्याय 5 में वर्ण व्यवस्था पर जो छात्रों को पढ़ाया जा रहा है, वही आज समाज में आपसी मतभेद का सबसे बढ़ा कारण बनता जा रहा है।
कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के पृष्ठ संख्या 47-48 में लिखा है, “पुरोहितों ने लोगों को चार वर्णों में विभाजित किया, जिन्हें वर्ण कहते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक वर्ण के अलग-अलग कार्य निर्धारित थे। पहला वर्ण ब्राह्मणों का था। उनका काम वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना था, जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था। दूसरा स्थान शासकों का था, जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था। उनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।
इसी में आगे लिखा गया है, “तीसरे स्थान पर विशु या वैश्य थे। इनमें कृषक, पशुपालक और व्यापारी आते थे। क्षत्रिय और वैश्य, दोनों को ही यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त था। वर्णों में अंतिम स्थान शूद्रों का था। इनका काम अन्य तीनों वर्गों की सेवा करना था। इन्हें कोई अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था। प्रायः महिलाओं को भी शूद्रों के समान माना गया।”
शूद्रों को लेकर इसमें कहा गया है, “महिलाओं तथा शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था। राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य पुरोहितों के अनुसार, सभी वर्गों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। उदाहरण के तौर, पर ब्राह्मण माता-पिता की संतान ब्राह्मण होती थी।”
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— Vivek pandey (@Vivekpandey21) September 1, 2022
NCERT के द्वारा वर्णित वर्ण व्यवस्था के इस अध्याय को आधार बनाते हुए लेखक के द्वारा एक आरटीआई (RTI) NCERT को दायर की गई थी। इस RTI में NCERT से 2 प्रमुख बिन्दुओं पर जानकारी माँगी गई थी।
- प्रायः महिलाओं को भी शूद्रों के समान माना गया है। महिलाओं तथा शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।
- पुरोहितों के अनुसार सभी वर्णों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। उदाहरण के तौर पर, ब्राह्मण माता-पिता की संतान ब्राह्मण होती थी।
इन दोनों प्रमुख बिन्दुओं पर NCERT के पास कोई भी तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नही है। NCERT ने मनुस्मृति का उल्लेख तो किया, लेकिन उसके पास इसकी कोई सत्यापित कॉपी भी नहीं है, जिसके आधार पर छात्रों को यह वर्षों से पढ़ाया जा रहा है।
भारत देश के इतिहास एवं पारम्परिक रीति-रिवाजों से हम भी भली-भाँति परिचित हैं, जहाँ महिलाओं को ईश्वर के रूप में सदियों से पूजा जाता आ रहा है। इसके बावजूद हमारे देश में महिलाओं को वेद पढ़ने का अधिकार कैसे नहीं दिया गया? वेदों के अध्ययन को लेकर यजुर्वेद के अध्याय 26 के दूसरे मंत्र में लिखा गया है:
“हे मनुष्यों! मैं ईश्वर (यथा) जैसे (ब्रह्मराजन्याभ्याम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय (अर्याय) वैश्य (शूद्राय) शूद्र (च) और (स्वाय) अपने स्त्री, सेवक आदि (च) और (अरणाय) उत्तम लक्षणयुक्त प्राप्त हुए अन्त्यज के लिए (च) भी (जनेभ्यः) इन उक्त सब मनुष्यों के लिए (इह) इस संसार में (इमाम्) इस प्रकट की हुई (कल्याणीम्) सुख देने वाली (वाचम्) चारों वेद रूपवाणी का (आवदानि) उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छे प्रकार उपदेश करें।”
इस मंत्र में साफ-साफ चारों वर्णों को वेदों का पाठ करने के लिए कहा गया है। हर एक वर्ण को वेदों का पाठ करने की पूरी पूरी आजादी है तो फिर NCERT बिना प्रमाणिकता के क्यों ऐसे लेख छात्रों को पढ़ा रहा है, जो समाज में आपसी मतभेद का कारण बन रहा है?
NCERT की पुस्तक में लिखा है, पुरोहितों के अनुसार सभी वर्णों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। उदाहरण के तौर पर, ब्राह्मण माता-पिता की संतान ब्राह्मण ही होती थी। NCERT ने इसका स्रोत मनुस्मृति को बताया है, जिसका सत्यापित प्रमाण उनके पास नहीं है।
वहीं, मनुस्मृति में महाराज मनु ने लिखा है, “ब्राह्मण शूद्र बन सकता है और शूद्र ब्राह्मण बन सकता है। किसी भी वर्ण का व्यक्ति ऐसे गुणों को प्राप्त करके किसी भी वर्ण में बदल सकता है।” भगवद्गीता में लिखा है, “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण उनके गुणों और कौशल से वितरित होते हैं और वे जो कर्म करते हैं, वह जन्म से प्राप्त नहीं होता है।”
इस पूरे अध्याय में NCERT ने वेदों में वर्णित कथनों को घूमा-फिरा कर लिखा है और आज तक छात्रों को यही सब पढ़ाया जा रहा है। जब शिक्षा ही मतभेदों की तर्ज पर दी जाएगी तो लोगों मे मतभेद होना लाजिमी है।