Sunday, November 17, 2024
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‘The Wire’ ने फर्जी एप वाली स्टोरी तो हटा ली, लेकिन उसके सहारे दुनिया भर में भारत के खिलाफ माहौल बनाया गया उसका क्या? विकिपीडिया भी प्रपंच में शामिल

आज भी लोगों के बीच ये भ्रम है कि विकिपीडिया एक न्यूट्रल प्लेटफॉर्म है, जबकि सच्चाई ये है कि वामपंथी विचारधारा वाले लोगों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया है और उनके प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाने के लिए इसका जम कर इस्तेमाल किया जाता है।

‘द वायर’ ने ‘Meta’ कंपनी को लेकर अपनी स्टोरीज वापस ले ली है और आतंरिक जाँच’ की बातें कही है। अब उसने ‘Tek Fog’ पर कुछ महीनों पहले की गई रिपोर्टिंग को भी वापस ले लिया है। उसने दावा किया था कि इस नाम के एप से भाजपा सोशल मीडिया को कंट्रोल कर रही है।

अगस्त 2020 के एक ट्वीट और फर्जी सूत्रों के आधार पर मीडिया संस्थान ने भाजपा नेता देवांग दवे को इस एप के पीछे का दिमाग बताया था और कहा था कि ये शक्तिशाली एप सोशल मीडिया में अपने हिसाब से ट्रेंड्स चलाता है और आलोचकों के लिए घृणा फैलाता है। देवांग दवे ने इससे इंकार किया, लेकिन फिर भी ‘The Wire’ ने बिना किसी सबूत इस स्टोरी को चलाया।

मीडिया संस्थान ने जनवरी 2022 में प्रकाशित किए गए खबर में दावा किया था कि इस एप के माध्यम से भाजपा कई व्हाट्सएप्प ग्रुप्स को मैनेज करती है और भाजपा विरोधी पत्रकारों को प्रताड़ित करने के अलावा ट्विटर ट्रेंड्स भी हाईजैक करती है। साथ ही दावा किया गया था कि ये एप सशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के सभी सिक्योरिटी फीचर्स की धज्जियाँ उड़ाता है। इसकी मानें तो इस ‘सुपरपॉवर’ एप के पास अमेरिका और नासा से भी ज्यादा शक्तियाँ हैं। उसने ये तक कह दिया कि व्हाट्सएप्प-ट्विटर एकाउंट्स को हैक करना इस एप के लिए बच्चों का खेल है।

ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्टिंग के जरिए कई बार बताया है कि इस तरह का कोई एप नहीं है और ये सब ‘द वायर’ के दिमाग की उपज है। हमने उसकी स्टोरीज में कई लूपहोल भी खोज निकाले। अब कई महीनों के बाद ‘Meta’ मामले में बेइज्जती के बाद प्रोपेगंडा पोर्टल ने ‘टेक फॉग’ वाली स्टोरीज भी वापस ले ली है। ध्यान देने वाली बात ये है कि देवेश कुमार नामक व्यक्ति ने इन दोनों मामलों में सह-लेखन किया था। 23 अक्टूबर, 2022 को ‘द वायर’ ने एक फ्लैश मैसेज के जरिए Tek Fog’ वाली स्टोरीज को हटाने का ऐलान किया।

‘द वायर’ ने ‘Meta’ वाली स्टोरीज हटाने का किया ऐलान

बस अपना चेहरा बचाने के लिए ‘The Wire’ ऐसा कर रहा है, ताकि वो दिखावा कर सके कि वो ‘पारदर्शिता’ का अनुसरण करता है और उसके यहाँ ‘आंतरिक जाँच’ भी होती है। हालाँकि, इन स्टोरीज के सहारे दुनिया भर में भारत की जो बदनामी हुई, उसकी भरपाई कौन करेगा?

‘फ्रीडम हाउस’ नामक संस्था ने भी इसी स्टोरी के आधार पर भारत को बदनाम किया था। उसने भारत में हिंसक प्रदर्शनों का समर्थन भी किया। कई अन्य संस्थाओं ने इस स्टोरी के सहारे भारत को बदनाम करने की साजिश रची थी।

ऐसे वाशिंगटन पोस्ट, ब्लूमबर्ग और विकिपेडिया ने ‘Tek Fog’ वाले दावे को आगे बढ़ाया, जो अब पूरा फर्जी साबित हो चुका है

भारत की नकारात्मक छवि बनाने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने ‘The Wire’ की ‘Tek Fog’ वाली काल्पनिक कहानी का सहारा लिया। इनमें वाशिंगटन पोस्ट और ब्लूमबर्ग शामिल हैं। इन लोगों ने इस काल्पनिक दावे को आगे बढ़ाया कि भाजपा एक एप के जरिए सोशल मीडिया को नियंत्रित कर रही है। दावा किया गया कि अपने आलोचकों को भाजपा इस एप के सहारे घृणा का शिकार बनाती है और ट्रेंड्स भी अपने हिसाब से चलाती है।

ये दुनिया भर में वामपंथी मीडिया का एक गठजोड़ दिखाता है, जो झूठ के सहारे भारत को बदनाम करने में लगा हुआ है। इस फर्जीवाड़े के सामने आने के बाद ये लोग माफ़ी तक नहीं माँगते, लेकिन तब तक देश की छवि को नुकसान पहुँचा चुके होते हैं। ब्लूमबर्ग के दो लेखकों कल्पन और एंडी मुखर्जी को ही ले लीजिए, जिन्होंने ‘द वायर’ की स्टोरी को आधार बना कर एक ओपिनियन लेख लिखा। कई मीडिया संस्थानों ने इसे प्रकाशित किया।

‘Freedom House’ संस्था ने इसके आधार पर भारत को किया था बदनाम

इस लेख में उस तथाकथित एप को लेकर ऐसे-ऐसे दावे किए गए, जैसे ‘द वायर’ ने भी नहीं किए थे। उन्होंने इसे एक ब्राउज़र पर आधारित एप्लिकेशन बता कर ‘सर्वशक्तिमान’ साबित करने की कोशिश की। जो एप अस्तित्व में ही नहीं है, उसके बारे में अजीबोगरीब दावे करते हुए इन दोनों ने लिखा कि ये एक मिलिट्री ग्रेड का PSYOP है, अर्थात साइकोलॉजिकल हथियार। एक रिसर्चर का बयान छापते हुए उन्होंने दावा किया कि ये सिर्फ कुछ ही सरकारों के पास है, जिसका इस्तेमाल ‘दुश्मन जनसंख्या’ पर किया जाता है।

विकिपीडिया के कई लेख में भारत को बदनाम करने के लिए ‘द वायर’ के ‘टेक फॉग’ वाले फर्जीवाड़े को उद्धृत किया गया। इसके लिंक्स लगा कर फर्जी दावे किए गए। इसके आधार पर एक लेख में भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी के गिरने का दावा किया गया और इसके लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया। “Freedom of the press in India” नामक एक विकिपीडिया आर्टिकल इस लेख को साइट करता है।

आज भी लोगों के बीच ये भ्रम है कि विकिपीडिया एक न्यूट्रल प्लेटफॉर्म है, जबकि सच्चाई ये है कि वामपंथी विचारधारा वाले लोगों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया है और उनके प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाने के लिए इसका जम कर इस्तेमाल किया जाता है। झूठ फैलाए जाते हैं। इस पर उपलब्ध अधिकतर सूचनाएँ पक्षपाती हैं और उनका आधार वामपंथी प्रकाशन होते हैं। इसके संस्थापक लैरी सेंगर अब इसके साथ नहीं हैं और वो इस मुद्दे के बारे में खुल कर बात कर चुके हैं।

विकिपीडिया पर इसी स्टोरी के सहारे चला भारत विरोधी प्रोपेगंडा

उनका कहना है कि विकिपीडिया का उद्देश्य था सूचनाओं को न्यूट्रल तरीके से पेश करना, लेकिन ये कब का इस नीति को भूल चुका है। अब ये सिर्फ लिबरल राजनीतिक एंगल से चीजें चलाता है। नाजी प्रोपेगंडा मंत्री गोएबेल्स का एक बयान यहाँ पर याद करने लायक है। उन्होंने कहा था कि जब क झूठ को सौ बार दोहराया जाता है तब वो सच लगने लगता है। ‘द वायर’ ने भले अपनी स्टोरीज हटा ली हों, लेकिन उसके आधार पर कई जगह जो झूठ और प्रोपेगंडा फैला हुआ है, वो चलता ही रहेगा।

‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने भी ‘द वायर’ के झूठ का प्रचार-प्रसार किया

भारत की छवि को भी ‘The Wire’ की फर्जी रिपोर्टिंग से नुकसान तो पहुँचा ही, साथ ही ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ को भी इसमें उसका साथ देने के लिए याद किया जाना चाहिए। इस संस्था ने एक बयान जारी कर के ‘महिला पत्रकारों’ पर हमले का रोना रोया, जो इस स्टोरी के पक्ष में खड़े हुए थे। क्या अब यही संस्था अपने बयान को वापस लेकर माफ़ी माँगेगा और एक दूसरा बयान जारी कर ‘द वायर’ की निंदा करेगा?

अब जब ‘द वायर’ की पोल खुल गई है और इस फर्जीवाड़े को उसे भी मानना पड़ा है, एडिटर्स गिल्ड चुपचाप ही रहे शायद। हम भारतीय नागरिकों के लिए इस घटना में काफी सीख है। हमें सतर्क रहना होगा। एक प्रोपेगंडा आर्टिकल के कारण ये लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को इतना नुकसान पहुँचा सकते हैं और मोदी सरकार को लेकर नकारात्मक माहौल बना सकते हैं। इससे अनुमान लगा लीजिए कि वर्षों से चल रहे प्रोपेगंडा के तहत अनगिनत लेख और वीडियो के जरिए इन्होंने देश का कितना नुकसान किया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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