Monday, December 23, 2024
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1000 साल तक अक्षुण्ण रहे अयोध्या का राम मंदिर, इसलिए 3 मंजिल इमारत की ऊँचाई जितनी खोदी जमीन: रामनवमी पर सीधे रामलला के मुख पर पड़ेंगी सूर्य की किरणें

मंदिर में भगवान का वर्तमान स्वरूप तो मंदिर में स्थापित होगा ही, लेकिन एक दूसरी विशाल मूर्ति की भी प्राण प्रतिष्ठा होगी, क्योंकि 19 फीट की दूरी से श्रद्धालुओं को देखना है। जो नई प्रतिमा स्थापित होगी उसकी आँखें सम्मुख होंगी, ताकि आँखों से आँखों का संपर्क बने। उनके पदचिह्न सम्मुख होंगे। यह विग्रह 2.5 से 3 फीट का हो सकता है।

अयोध्या में 71 एकड़ में बन रहे भगवान राम का भव्य एवं विशाल मंदिर के पहले चरण का काम अगले साल दिसंबर में पूरा हो जाएगा। इस मंदिर को नागर शैली में बनाया जा रहा है। इसके साथ ही इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह भव्य मंदिर कम-से-कम 1,000 साल तक हर परिस्थिति में अपनी भव्यता और आभा बिखेरता रहे। इस मंदिर को कुछ ऐसा बनाया जा रहा है कि रामनवमी के दिन रामलला का मस्तक भगवान सूर्य की किरणों से सुशोभित हो।

यह मंदिर तीन चरणों में पूरा होगा। पहला चरण का काम 30 दिसंबर 2023 को पूरा होगा। इस दौरान भगवान श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित हो जाएँगे। दूसरा चरण 30 दिसंबर 2024 को पूरा होगा। इसमें मंदिर की पहली और दूसरी मंजिल का काम पूरा हो जाएगा। कलाकृति बनाने का काम छोड़कर लगभग सारा काम पूरा हो जाएगा। अंतिम चरण में साल 2025 में मंदिर के पूरे 71 एकड़ का काम पूरा हो जाएगा।

यह मंदिर कम से कम एक हजार साल तक इसी स्वरूप में विद्यमान रहेगा। इसके लिए इस मंदिर को विशेष तौर पर डिजाइन किया गया है। मंदिर के निर्माण प्रक्रिया को लेकर श्रीराम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, “ये हमारे लिए चुनौती थी। हमारे इंजीनियरों के लिए भी चुनौती थी। इंजीनियर कहते थे कि इसके हमारे पास कोई मापदंड ही नहीं है। तो हम ये कैसे कहेंगे कि ये एक हजार साल होगा। इसके बाद अध्ययन किया गया। पुराने मंदिरों को देखा गया, उनका विश्लेषण किया गया।”

मिश्रा ने बताया कि साधु-संतों ने कहा था कि मंदिर में लोहा का प्रयोग नहीं किया जाएगा, क्योंकि लोहे का जीवन सिर्फ 94 साल का होता है। लोहे के अलावा, संतों ने लोहा और सीमेंट को मिलाकर जो RCC होता है, उसे नहीं करने का फैसला किया था। मंदिर की नींव में पाइल फाउंडेशन की जाएगी। मिश्रा बताते हैं कि जब इसके बारे में IIT चेन्नै को बताया गया तो वे आश्चर्यचकित हो गए कि पाइल फाउंडेशन से तो आजकल पूरी दुनिया में निर्माण होता है। इसके बाद मिट्टी को टेस्ट कर उसे हटाने पर सहमति बनी।

नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, “नींव को करीब-करीब 15 मीटर यानी 3 मंजिला इमारत के बराबर मिट्टी हटा दी गई और उसमें इंजीनियर्स मिट्टी डाली गई। IIT चेन्नै, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रूड़की और IIT कानपुर ने मिलकर बताया कि ऐसे फॉर्मूलेशन से मिट्टी बनाई जाए, जिसकी गुणवत्ता 28 दिन में स्टोन की तरह हो जाए। इस तरह 15 मीटर नींव जो भरा गया वो एक तरह से पत्थर भरा गया।”

उन्होंने आगे बताया, “15 मीटर भरने के बाद उसका अगला लेयर करीब 3 मीटर का था, उसे राफ्ट कहा जाता है, उसे बनाया जाना था। उस राफ्ट की भी गुणवत्ता यही होनी थी कि वह भी स्टोन जैसा हो। इसमें एक सबसे महत्वपूर्ण चुनौती आई। जब हम राफ्त (सीमेंट आदि के मिश्रण) को डालते हैं और उसमें क्रैक आ जाए तो वह स्वीकार नहीं है। शुरू की जो पहली 9 लाइन बनीं, उनमें क्रैक आ गए। जाँच के बाद कम्बाइंड रिपोर्ट में कहा गया कि तापमान को नियंत्रित करना होगा और स्लैब को छोटा करना होगा।”

मंदिर के प्लींथ को लेकर उन्होंने बताया कि यह करीब 3.5 मीटर – 4 मीटर की है। उस पर सबने ग्रेनाइट डालने की बात कही। इसकी वजह ये है कि ग्रेनाइट पानी बिल्कुल नहीं सोखता, स्टोन क्वालिटी बेस्ट है, उसकी यूनिफॉर्मिटी का मुकाबला नहीं है। हालाँकि, लागत बहुत है लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं था। इसके बाद जब ग्रेनाइट डाला जाने लगा तो देखा गया कि एक-एक स्लैब दो टन का है। इस तरह सात लेयर पड़ेंगे तब प्लींथ का काम पूरा होगा। इसके लिए कर्नाटक के सबसे बेस्ट माइंस से ग्रेनाइट के 17,000 ब्लॉक्स मँगाए गए। उन्हें मँगाने से पहले नमूने को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टोन रिसर्च को भेजा गया। जब उन्होंने सर्टिफाई किया, तब उसे मँगवाया गया।

अयोध्या के कारसेवकपुरम में पिछले 30 साल से तराशे जा रहे पत्थरों को लेकर मिश्रा ने कहा कि जाँच दल को बुलाकर उस स्टोन की जाँच कराई गई और उनमें से 40 प्रतिशत पत्थर को सही पाया गया, जिन्हें वर्तमान आर्टिटेक्ट अनुसार इस्तेमाल किया जा सकता है। बाकी जो पत्थर हैं, उनका उपयोग पिलर बनाने में किया जाएगा और अगर उसके लिए वे सही नहीं पाए गए तो उनका उपयोग नहीं किया जाएगा। इसी तरह कारसेवकों ने जो गाँव-गाँव से लाखों ईंट इकट्ठा किए थे, उन्हें भी नीचे डाल दिया गया है और वे आज मंदिर के हिस्से हैं।

मंदिर नागर शैली में बन रहा है। इसे इसलिए चुना गया, क्योंकि माना गया कि यह अयोध्या में सबसे अधिक स्वीकृत होगी। मंदिर में मंडप कैसा होगा, स्तंभ कैसे होंगे, पिलर के किस-किस लेयर पर कौन-कौन से भगवान होंगे, गर्भगृह के सामने प्रहरी कौन होगा, गर्भगृह के सामने हनुमान जी और गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना कैसे होगी। ये सारी चीजें नागरी शैली में एक-एक विवरण पर चर्चा की गई है।

मंदिर में भगवान के स्वरूप को लेकर मिश्रा ने बताया कि मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरी जी की अध्यक्षता में हो रहा कि भगवान का वर्तमान स्वरूप तो मंदिर में स्थापित होगा ही, लेकिन एक दूसरी विशाल मूर्ति की भी प्राण प्रतिष्ठा होगी, क्योंकि 19 फीट की दूरी से श्रद्धालुओं को देखना है। जो नई प्रतिमा स्थापित होगी उसकी आँखें सम्मुख होंगी, ताकि आँखों से आँखों का संपर्क बने। उनके पदचिह्न सम्मुख होंगे। यह विग्रह 2.5 से 3 फीट का हो सकता है।

मंदिर का मुख्य भवन 8 एकड़ में फैला होगा। इसकी लंबाई 360 फीट और चौड़ाई 235 फीट होगी। मंदिर का शिखर 161 फीट ऊँचा होगा। यह शिखर गर्भगृह के ठीक ऊपर स्थित होगा। तीन तल वाले इस मंदिर पर कुल 366 स्तंभ होंगे। प्रत्येक स्तंभ पर धर्मग्रंथों पर आधारित चित्र उकेरे जाएँगे। मंदिर के पूर्व दिशा में सिंहद्वार स्थित होगा यही मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार होगा।

सिंहद्वार के आगे नृत्य मंडप, रंग मंडप, गृह मंडप और सबसे अंत में गर्भगृह होगा। गर्भगृह में भगवान राम अपने भाइयों- लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न के साथ विराजमान होंगे। गर्भगृह के ऊपर प्रथम तल पर राम दरबार का निर्माण होगा। इसमें भगवान राम माता जनकी, अपने तीनों भाइयों, भक्त हनुमान और अन्य देवी-देवताओं के साथ विराजमान रहेंगे।

खुदाई की दौरान मिले कलाकृतियों के लेकर मिश्रा ने बताया कि मंदिर बनाने के दौरान खुदाई के दौरान भी कलाकृतियाँ मिलती रहीं। शुरू में शिवलिंग मिला, जो अद्भुत था। पूजा के विभिन्न स्वरूप भी मिले। ये कलाकृतियाँ कुछ कमिश्नर के यहाँ हैं, कुछ सुप्रीम कोर्ट ने लॉक करा दिया है। जितनी कलाकृतियाँ मिली हैं, उन्हें देखने के लिए कोर्ट की अनुमति लेनी पड़़ती है। जब यहाँ म्यूजियम बन जाएगा, तब उसमें इन्हें प्रदर्शित किया जाएगा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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