Thursday, October 31, 2024
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जस्टिस सुनील गौड़: 2015 में गाँधी परिवार के चहेते थे, अब कॉन्ग्रेस को क्यों बुरे लगते हैं?

अगर जस्टिस गौड़ आज से 4 वर्ष पहले अच्छे थे तो आज बुरे कैसे हो गए? खैर, इन सब से बेख़बर कॉन्ग्रेस नेता लगे हुए हैं- भाजपा की आलोचना में, जस्टिस गौड़ की आलोचना में, न्यायपालिका-कार्यपालिका और विधायिका, सब कुछ की आलोचना में......

पी चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया केस में बुरे फँसे हैं। अगस्त 20, 2019 को दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम ज़मानत याचिका खारिज़ कर दी थी, जिसके बाद उनकी गिरफ़्तारी का रास्ता साफ़ हो गया था। इसके बाद वह गिरफ़्तारी के भय से गायब हो गए थे। 22 अगस्त को वह कॉन्ग्रेस मुख्यालय पर दिखे, जहाँ उन्होंने अन्य नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इसके बाद वह अपने जोर बाग़ स्थित आवास पर चले गए। घर बंद होने के कारण सीबीआई ने दीवार फाँद कर उन्हें गिरफ़्तार किया। गिरफ़्तारी के बाद उन्हें सीबीआई की कस्टडी में भेज दिया गया और बाद में कस्टडी की समयावधि 30 अगस्त तक बढ़ा दी गई।

यह सारा घटनाक्रम शुरू हुआ हाईकोर्ट द्वारा उनकी अग्रिम ज़मानत अर्जी खारिज़ किए जाने के बाद। जस्टिस (रिटायर्ड) सुनील गौड़ ने उस दिन चिदंबरम की 2 याचिकाएँ खारिज़ की। एक याचिका उनकी अग्रिम ज़मानत को लेकर थी तो दूसरी गिरफ़्तारी से राहत प्रदान करने की। जस्टिस सुनील गौड़ ने दोनों याचिकाओं को खारिज़ कर दिया। इसके बाद जाँच एजेंसियों के लिए चिदंबरम को गिरफ़्तार करने का रास्ता साफ़ हो गया। इसके बाद ख़बरें आईं कि जस्टिस सुनील गौड़ कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं।

आज हम इन सबका जिक्र इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि कॉन्ग्रेस ने जस्टिस सुनील गौड़ पर बड़ा आरोप लगाया है। जब ये ख़बर आई कि जस्टिस गौड़ को रिटायरमेंट के बाद ‘Prevention of Money Laundering Act (PMLA) Appellate Tribunal’ का अध्यक्ष बनाया गया है, कॉन्ग्रेस ने कांस्पीरेसी थ्योरी पर काम करना शुरू कर दिया। कॉन्ग्रेस ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और जस्टिस गौड़, दोनों पर ही आरोप लगाया कि यह लेनदेन का मामला है। लेनदेन का मामला अर्थात जहाँ दो पक्ष एक-दूसरे को फ़ायदा पहुँचाते हैं।

हालाँकि, अभी तक उनकी नियुक्ति को लेकर कोई अधिकारिक बयान या ऑर्डर नहीं आया है लेकिन कॉन्ग्रेस ने ख़बरों के आधार पर प्रतिक्रिया देते हुए आरोप-प्रत्यारोप के इस खेल में न्यायपालिका को भी घसीट लिया। कॉन्ग्रेस प्रवक्ता ब्रिजेश कलप्पा ने पूछा कि ऐसा कौन सा जॉब है जहाँ आपको मिली उत्तर पुस्तिका में कॉपी-पेस्ट कर देने पर सबसे ज्यादा मार्क्स मिलते हैं? उन्होंने ख़ुद ही जवाब देते हुए कहा कि जज वाले जॉब में ऐसा होता है। आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह की टिप्पणी करने वाले ब्रिजेश सुप्रीम कोर्ट में वकील भी हैं।

जस्टिस गौर विवादित मीट कारोबारी मोईन क़ुरैशी के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग केस से लेकर नेशनल हेराल्ड तक, कई महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई कर चुके हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि जो कॉन्ग्रेस आज जस्टिस गौड़ के पीछे पड़ी है, उसी कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार कभी उनकी ही अदालत में सुनवाई चाहता था। जी हाँ, सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी नेशनल हेराल्ड मामले के मुख्य आरोपित हैं। सोनिया-राहुल चाहते थे कि जस्टिस सुनील गौड़ ही उनके मामले की सुनवाई करें। आगे आपको इस बारे में बताएँगे लेकिन पहले जरा समझ तो लें कि कॉन्ग्रेस की खुन्नस का कारण क्या है?

जस्टिस सुनील गौड़ ने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा था कि शुरूआती सबूतों से ऐसा प्रतीत होता है कि पी चिदंबरम न सिर्फ़ इस मामले में मुख्य अभियुक्त हैं बल्कि पूरे मामले में मुख्य साज़िशकर्ता भी हैं। जस्टिस गौड़ ने अपने निर्णय में कहा कि जाँच एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों की व्यापकता और स्तर चिदंबरम को प्री-अरेस्ट बेल के लिए योग्य बनाती हैं। हाईकोर्ट ने कहा, “यह एक वित्तीय अपराध है। इसमें मजबूती से कार्रवाई की जानी चहिए। इतने बड़े स्तर के वित्तीय अपराध में सरकारी जाँच एजेंसियों के हाथ बाँध कर नहीं रखे जा सकते।

जस्टिस सुनील गौड़ की इन्हीं बातों ने कॉन्ग्रेस की नज़र में उन्हें विलेन बना दिया। लेकिन, कॉन्ग्रेस नेता उनके रिटायर होने तक चुप रहे क्योंकि उन्हें ‘कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट’ का डर था। कॉन्ग्रेस को पता था कि जस्टिस गौड़ कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं और इसके बाद उनका नाम लेकर सरकार पर हमला करने में आसानी होगी। और यही हुआ। लेकिन, उससे पहले जानते हैं कि गौड़ ने ऐसा क्या कहा था कि कॉन्ग्रेस और चिदंबरम उनसे खार खाए बैठे हैं। जस्टिस गौड़ ने सपाट शब्दों में साफ़ कर दिया था कि पी चिदंबरम जाँच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में अक्षम रहे हैं और प्रतिक्रिया देने में टाल-मटोल करते रहे हैं।

यह भी जानने लायक बात है कि हाईकोर्ट ने अपना जजमेंट इस वर्ष जनवरी में ही सुरक्षित रख लिया था। अब वापस सोनिया-राहुल पर आते हैं। अगर जस्टिस गौड़ पर कॉन्ग्रेस द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं तो फिर आज से 4 वर्ष पहले उसी कॉन्ग्रेस की तत्कालीन मुखिया और भावी मुखिया क्यों जस्टिस सुनील गौड़ की अदालत में ही अपने केस की सुनवाई चाहते थे?

आश्चर्य की बात तो यह भी है कि न सिर्फ़ कॉन्ग्रेस के नेतागण बल्कि दरबारी पत्रकार भी चारों ओर से गौड़ और केंद्र सरकार के बीच साँठ-गाँठ की बातें चला रहे हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस तरफ़ इशारा किया जा रहा है। सच्चाई और तथ्यों में अपना विश्वास खो चुके ये पत्रकार लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए सीधी-सपाट भाषा में ऐसे समझाते हैं, जैसे देश में आपातकाल चल रहा हो और न्यायपालिका को सचमुच काम नहीं करने दिया जा रहा है। यही तो प्रक्रिया होता है नैरेटिव तैयार करने का।

दरअसल, रोस्टर बदलने के बाद जस्टिस पीएस तेजी को इस मामले की सुनवाई करनी थी। फिर क्या था? सोनिया-राहुल यह माँग लेकर पहुँच गए दिल्ली हाईकोर्ट कि इस मामले को जस्टिस सुनील गौड़ को ही असाइन किया जाए क्योंकि उन्होंने इस मामले में कई बार सुनवाई की है। सोनिया-राहुल के अलावा इस केस में आरोपित गाँधी परिवार के अन्य वफादारों ने भी ऐसी ही माँग की। यह भी जानने लायक बात है कि उस दौरान भी आईएनएक्स केस में चिदंबरम के वकील और कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ही सोनिया-राहुल के वकील थे और वे ही इस माँग को लेकर गए थे।

हालाँकि, कोर्ट ने सोनिया-राहुल की इस माँग को नकार दिया था और जस्टिस तेजी ने ही इस मामले की सुनवाई की। लेकिन यह सवाल रह गया कि अगर जस्टिस गौड़ आज से 4 वर्ष पहले अच्छे थे तो आज बुरे कैसे हो गए? खैर, इन सब से बेख़बर कॉन्ग्रेस नेता लगे हुए हैं- भाजपा की आलोचना में, जस्टिस गौड़ की आलोचना में, न्यायपालिका-कार्यपालिका और विधायिका, सब कुछ की आलोचना में। उनके नेताओं के पूर्व के भ्रष्टाचार पर जाँच की आँच आ रही है। चिल्लाना ज़रूरी है। बिना सच जाने, बिना इतिहास जाने, बिना घटनाओं की तह तक गए। चिल्लाना ज़रूरी है।

जाते-जाते बता दें कि कॉन्ग्रेस पार्टी के शीर्ष परिवार के माँ-बेटे नेशनल हेराल्ड केस में आरोपित हैं और फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं। दिसंबर 2015 में दिल्ली की एक अदालत ने दोनों को 50-50 हज़ार रुपए के पर्सनल बॉन्ड पर ज़मानत दी थी। सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दर्ज कराए गए इस मामले में आरोप है कि यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (YIL) ने एसोसिएट जर्नल प्राइवेट लिमिटेड (AJL) का अधिग्रहण किया, जिसमें कई अनियमितताएँ बरती गईं।

वाईआईएल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सोनिया और राहुल भी शामिल हैं। स्वामी के शिकायत में कहा गया है कि वाईआईएल में सोनिया-राहुल की 76% हिस्सेदारी है और एजेएल को कॉन्ग्रेस पार्टी के फंड्स में से लोन दिए गए, जो ग़ैर-क़ानूनी है

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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