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सेना का राजनीतिकरण मोदी कर रहा है या विपक्ष? इस वैचारिक जंग में पुराने क़ायदों को तोड़ना ज़रूरी है
रैलियों में यह बोला जाएगा, बार-बार बोला जाएगा क्योंकि हाँ, भारत के नागरिकों को पहली बार महसूस हो रहा है कि पाकिस्तान या बाहरी आतंकी मनमर्ज़ी से हमला कर के भाग नहीं सकते। यह सरकार उनकी सीमाओं को लाँघ कर निपटाएगी, बार-बार।
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प्रिय चुनाव आयोग, ये हो क्या रहा है?
टीवी चैनलों के एंकर जो कर रहे हैं, क्या वो प्रोपेगेंडा नहीं है। हर रात चालीस मिनट तक सरकार की हर योजना को बेकार बताना भी प्रोपेगेंडा ही है। आखिर चुनाव आयोग इसके लेवल प्लेइंग फ़ील्ड का निर्धारण करेगा कैसे? क्या मीडिया संस्थानों के लिए कोई तय क़ायदा है जहाँ चुनाव आयोग सुनिश्चित कर सके कि इतने मिनट इस पार्टी की रैली, और इतने मिनट इस पार्टी की रैली कवर की जाएगी?
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मोदी की सारी रैलियों पर रोक, चुनावों तक जलदस्यु बन कर रहें: EC और SC
पहले विवेक ओबरॉय अभिनीत मोदी फिल्म पर रोक लगवाने के बाद विपक्षी दलों को यह तर्क सूझा कि अगर फिल्म पर रोक लगवाई जा सकती है, तो फिर आदमी पर क्यों नहीं। इसके तुरंत बाद ही गिरोह सक्रिय हो उठा।
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तेजस्वी यादव: शेर का बेटा हूँ; सुप्रीम कोर्ट: लालू चोर है; बिहारी: ये लेख पढ़ लो
अगर बिहार में सच में गुंडे बचे होते, और उनमें थोड़ा भी ज़मीर होता तो तुम्हें सड़क पर पटक कर, तुम्हारी बाँह पर वही गोद देते, जो अमिताभ के हाथ पर किसी ने गोदा था, "मेरा बाप चोर है।"
मीडिया हलचल
सेक्स ही सेक्स… भाई साहब आप देखते किधर हैं, दि प्रिंट का सेक्सी आर्टिकल इधर है
बढ़ते कम्पटीशन के दौर में सर्वाइवल और नाम का भार ढोते इन पोर्टलों के पास नग्नता और वैचारिक नकारात्मकता के अलावा फर्जीवाड़ा और सेक्स ही बचता है जिसे हर तरह की जनता पढ़ती है। लल्लनपॉट यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में पीएचडी करने वाले ही ऐसा लिख सकते हैं।
अन्य
स्थिर आँखों की एक हलचल जब जीवन की सबसे बड़ी ज़रूरत बन जाती है
संतान जब दो महीने से आईसीयू में हो, बोलना चाहे और आवाज न निकले, लगातार सर्जरी होती रहे, डॉक्टर आपको बताते रहे कि इसमें समय लगेगा, आप धैर्य दिखाते हैं, आप पत्नी का हाथ पकड़ते हैं, दूसरे बच्चों को गोद में सुलाते हैं, उसे सरल शब्दों में बताते हैं कि उसका भाई कल की अपेक्षा आज बेहतर है।
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रवीश बाबू, राहुल की आय, सोनिया के बहनोई और प्रियंका के फ़ार्महाउस पर प्राइम टाइम कहिया होगा? (भाग 3)
आपने सत्ता की आलोचना को अपनी घृणा के सहारे खूब हवा दी, लेकिन आपने देश के नकारे विपक्ष और एक परिवार पर एक गहरी चुप्पी ओढ़े रखी। इसको अंग्रेज़ी में कन्विनिएंट साइलेन्स कहते हैं। यहाँ आप न्यूट्रल नहीं हो रहे, यहाँ आप जानबूझकर एक व्यक्ति का पक्ष ले रहे हैं ताकि उसकी छवि बेकार न हो।
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राहुल गाँधी: मिडिल क्लास की जेब में ऐसे हाथ डालूँगा और यूँ ₹72,000 वाला ‘न्याय’ निकाल लूँगा
न्याय योजना को बजट में जगह देने के लिए आमदनी चाहिए, आमदनी बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ाना होगा, चाहे लोगों पर हो, या वस्तुओं पर। दोनों ही स्थिति में भार वापस आम आदमी पर ही पड़ेगा। राहुल गाँधी को लगता है कि इतने बैंक हैं, वहाँ से पैसे ले लेंगे। राहुल गाँधी ऐसा सोच सकते हैं, क्योंकि वो राहुल गाँधी हैं।