Saturday, April 20, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

कॉन्ग्रेस घोषणापत्र के झूठ और चरमसुख पाते पत्रकार: आदतन तुमने कर दिए वादे…

ज़मीनी स्थिति को ये समझेंगे भी तो कैसे, ये एलीट ख़ानदानों के चिराग़, जिनके गुणसूत्रों में 22 जोड़े तो X और Y हैं, लेकिन तेइसवाँ जोड़ा P और M वाला है, ज़मीन पर उतरे कब कि पता चले हर खेत में फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट ही लगा दोगे तो खेती कहाँ होगी!

कह के लूँगा, कह के लूँगा, कह के लूँगा… तेरी कह के लूँगा!

सत्ता की दलाली के बाद पाए अवार्ड जिनके मेमेंटो तुम लौटा देते हो, लेकिन पैसे और रॉयल्टी नहीं लौटाते। तुम क्या विरोध करोगे, तुम उस लायक नहीं हो, तुम्हारे विरोध में बेईमानी सनी हुई है। तुम्हारी औक़ात नहीं है विरोध करने की क्योंकि तुम भीतर से चोर हो।

लोकतंत्र का लहसुन: रावण से रा.टू होने तक मायावती का मनुवादी होना ज़रूरी है

हिंसक आंदोलनों की नाजायज़ औलादें, लाशों पर पैर रख कर संसद तक पहुँचती है। ऐसी भीड़ें ही इन नाजायज़ बच्चों को जनती है जो बाद में इन्हीं के लिए बने संसाधनों को पत्थर से बने पर्स में, और पार्कों के पिलर पर बने हाथियों में खपा देते हैं।

कॉन्ग्रेस ज्वाइन करते ही लोग बौरा काहे जाते हैं? प्रियंका तो ‘C’ फ़ैक्टर है, पर बाकी?

जिस तरह की पार्टी है, और जैसे चाटुकार लोग हैं, वो लोगों की गालियों वाले ट्वीट को भी 'चर्चा में तो हैं हमलोग' मानकर निकल ले रहे हैं। मालिक तो पहले ही मूर्ख है, वो तो पेपर देखकर पढ़ नहीं पाता, उसको कुछ भी कह दो, क्या फ़र्क़ पड़ता है!

पीसी चाको, कॉन्ग्रेस की चाटो! लटक कर झूलना ही बचा है अब राहुल गाँधी में

चाको और चाको टाइप्स चिरकुट लोग, भूल चुके हैं कि समय बदल गया है और गाँधी चालीसा का पाठ उन्हें सोनिया और राहुल की नज़र में तो 'अले मेला बच्चा' तक तो पहुँचा देगा लेकिन भारत की जनता से नहीं बचाएगा जिसने नेहरू और नकली गाँधियों के कुकर्मों को लगातार झेला है।

लल्लनटॉप की राजनीतिक समझ को दीजिए खाज: लड़के की चीटिंग की खबर को जोड़ा 2019 चुनाव से

चीटिंग की ख़बर थी, लेकिन इसमें ‘विचित्र’ वाला कम्पोनेंट नहीं मिला। जैसे कि ‘लिंग में बाँधकर ले गए थे पुर्ज़े’ या ‘मलद्वार में रखा था कागज को’, जो कि लल्लनटॉप की विशेषता है। फिर खबर बनेगी कैसे जो लल्लनटॉप पत्रकार को मारक मजा दे दे!

पिछले 15 साल के सारे चुनाव और बेगूसराय का वोटिंग पैटर्न कन्हैया को बनाते हैं नंबर 3

2004, 2009 और 2014 के चुनावों में पहले तीन स्थान पर जो पार्टियाँ थीं, 2015 के विधानसभा चुनावों में वामपंथी पार्टी को जितनी सीटें (शून्य) मिलीं, और बेगूसराय के भूमिहारों द्वारा कमल छाप पर मुस्लिम को भी जिताने का पैटर्न, कन्हैया कुमार को तीसरे पोजिशन से आगे नहीं ले जाता दिखता।

इंदिरा की नाक और राहुल का दिमाग वाली प्रियंका जी, भारत कॉन्ग्रेस की बपौती नहीं है

कॉन्ग्रेस ने पार्टी फ़ंड से इसरो नहीं बनवाया था, न ही डीआरडीओ के कर्मचारियों और वैज्ञानिकों को सोनिया गाँधी के हस्ताक्षर वाले चेक जारी हुआ करते थे। कॉन्ग्रेस के नाम ये संस्थान महज़ संयोग के कारण हैं क्योंकि सबसे पहले सत्ता में वही आई।

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