Monday, November 18, 2024
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भीड़ ने घर में घुस माँ-बेटी को पीटा, फाड़ दिए कपड़े… फिर भी 2 दिन तक पीड़िताओं की कर्नाटक पुलिस ने नहीं सुनी: Video वायरल होने पर दर्ज किया केस

कर्नाटक के बेलगावी में एक महिला और उसकी बेटी पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाकर भीड़ द्वारा हमला करने का मामला सामने आया है। घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। राज्य पुलिस ने इस मामले को दो दिन बाद दर्ज किया। वहीं भाजपा ने इस मामले के प्रकाश में आने के बाद कॉन्ग्रेस शासित प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घटना बेलगावी के थानाक्षेत्र मालामारुति की है। यहाँ के गाँव वड्डारावाड़ी में एक महिला अपनी बेटी के साथ पिछले 4 वर्षों से रहती है। 11 नवंबर को महिला के घर में आसपास के कुछ पड़ोसी घुसे। उन्होंने महिला पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगाया और मकान खाली करने का दबाव बनाने लगे। वो पीड़िता को कॉलगर्ल कह कर बुला रहे थे। इन सभी का कहना था कि महिला के घर में तमाम बाहरी लोगों का आना-जाना था।

महिला ने पड़ोसियों के आरोपों से इंकार किया और मकान खाली करने से मना कर दिया। इस बात पर घर में घुसे पड़ोसी भड़क उठे। उन्होंने पहले महिला और उनकी बेटी को बेरहमी से पीटा । बाद में इन्होंने महिला के कपड़े फाड़ और उसे निर्वस्त्र कर दिया। आरोपितों ने पीड़िता की पिटाई का वीडियो भी अपने मोबाइल में बना डाला। पिटाई के बाद सभी आरोपित पीड़िता को धमकी देते हुए वापास लौट गए। कुछ देर बाद महिला अपने साथ हुई प्रताड़ना की शिकायत करने पुलिस स्टेशन पहुँची।

बताया जा रहा है कि पुलिस ने 2 दिनों तक पीड़िता की शिकयत को अनसुना किया। बाद में महिला की पिटाई और उसको निर्वस्त्र करने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो मामला संज्ञान में लेते हुए पीड़िता को पीटने वाले 3 पड़ोसियों के खिलाफ FIR दर्ज की। इन सभी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115(2), 3(5), 331, 352 और 74 के तहत कार्रवाई की गई है। मामले में जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई की जा रही है। BJP ने इस घटना के बाद कर्नाटक सरकार को आड़े हाथों लिया है। भाजपा का आरोप है कि कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान प्रदेश में महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं।

झारखंड में ‘वर्ग विशेष’ से पत्रकार को भी लगता है डर, सवाल पूछने पर रवि भास्कर को मारने दौड़े JMM कैंडिडेट निजामुद्दीन अंसारी: समर्थकों ने लिया घेर तो ग्रामीणों ने बचाया

झारखंड में केवल बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठियों का ही आतंक नहीं है। ‘वर्ग विशेष’ का खौफ ऐसा है कि पत्रकार भी डरते हैं। रवि भास्कर नाम के एक पत्रकार ने ऑपइंडिया से बातचीत में यह डर साझा किया है। भास्कर का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इसमें सवाल पूछने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के प्रत्याशी निजामुद्दीन अंसारी उन्हें थप्पड़ मारने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

ऑपइंडिया को रवि भास्कर ने बताया है कि अंसारी ने उन्हें धमकी भी दी। उनके समर्थकों ने उन्हें घेर लिया था। उनका माइक तोड़ दिया। स्थानीय ग्रामीणों के कारण उनकी जान बची। उन्होंने यह भी कहा कि यदि मौके पर ‘वर्ग विशेष’ के लोग ज्यादा होते तो उनके साथ ‘अनहोनी’ भी हो सकती थी।

घटना 17 नवंबर 2024 की है जब झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी निजामुद्दीन अंसारी विधानसभा धनवार में लाव लश्कर के साथ अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे। इसी दौरान खबर मंत्र लाइव न्यूज़ चैनल के पत्रकार रवि भास्कर ने उनसे सवाल-जवाब किया। रवि भास्कर ने निजामुद्दीन अंसारी सहित कुछ अन्य नेताओं के द्वारा पूर्व में पाला बदलने को लेकर सवाल किया। इसी सवाल पर निजामुद्दीन अंसारी भड़क उठे।

निजामुद्दीन अंसारी ने पत्रकार की तरफ थप्पड़ ताना और कहा, “मारेंगे दो थप्पड़।” इतना कहकर वो रवि भास्कर की तरफ दौड़ भी पड़े। रवि भास्कर ने JMM प्रत्याशी की इस हरकत का प्रतिरोध किया और उन्हें तमीज से पेश आने के लिया कहा। इसी दौरान मौके पर मौजूद ग्रामीणों और सुरक्षाकर्मियों ने बीच बचाव किया। न्यूज़ मंत्र लाइव ने अपने एक शो में ग्रामीणों को अपने पत्रकार को बचाने के लिए धन्यवाद भी किया है।

रवि भास्कर ने आरोप लगाया कि न सिर्फ निजामुद्दीन अंसारी बल्कि उनके तमाम समर्थक गुंडागर्दी पर उतारू हो गए थे। पत्रकार का माइक भी तोड़ दिया गया। बकौल रवि भास्कर अगर ग्रामीण बीच-बचाव न करते तो उनके साथ कोई बड़ी घटना हो सकती थी। पत्रकार के आसपास मौजूद ग्रामीणों ने भी निजामुद्दीन की इस हरकत को गलत बताया। उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी की हरकत बहुत ही गलत थी। एक ग्रामीण ने कहा, “निजामुद्दीन गुंडा है।”

झारखंड भाजपा ने निजामुद्दीन की इस करतूत को अपने आधिकारिक हैंडल से शेयर किया है। उन्होंने अपने कैप्शन में लिखा, “लगता है पूरा का पूरा झारखंड मुक्ति मोर्चा ही हार की हताशा में डूब गया है। पूर्व विधायक और वर्तमान में धनवार सीट से झामुमो प्रत्याशी निजामुद्दीन अंसारी की बौखलाहट इतनी बढ़ गई है कि वो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानि कि पत्रकार बंधुओं को भी मारने और धमकाने पर उतर आए हैं। जरा सोचिए अभी तो ये सिर्फ प्रत्याशी हैं, कहीं धोखे से अगर ये जीत गए तो जनता पर कितना जुल्म और कहर बरपाएँगे इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।”

वर्ग विशेष के लोग ज्यादा होते तो हो जाती अनहोनी

ऑपइंडिया ने इस घटना के बारे में पत्रकार रवि भास्कर से बात की। रवि भास्कर ने हमें बताया कि अगर निजामुद्दीन अंसारी के सहयोगियों और वर्ग विशेष के लोगों की संख्या ज्यादा होती तो उनके साथ कोई अनहोनी हो जाती। बकौल रवि भास्कर जब उनको निजामुद्दीन अंसारी के समर्थकों ने घेर लिया तब उन्होंने ग्रामीणों से अपनी जान बचाने के लिए गुहार लगाई। इस गुहार पर कई महिलाएँ विरोध करती हुई सामने आईं तब निजामुद्दीन अंसारी अपने समर्थकों सहित वहाँ से वापस लौटा।

रवि भास्कर ने बताया कि वो अपनी कवरेज चुनाव आयोग की बाकायदा अनुमति से कर रहे थे। जाते-जाते निजामुद्दीन अंसारी और उसके साथियों ने पत्रकार को धमकी भी दी है कि चुनाव के बाद उनको देख लिया जाएगा। इन्हीं ने मिल कर पत्रकार का मोबाइल भी छीन लिया था। रवि भास्कर और उनके न्यूज़ संस्थान के अन्य स्टाफ मिल कर जल्द ही मामले की पुलिस में शिकायत करने जा रहे हैं। हमें बताया गया कि इसके लिए वो सभी निजामुद्दीन अंसारी और उनके समर्थकों के खिलाफ आवेदन लिख रहे हैं। रवि भास्कर ने अन्य तमाम मीडिया संस्थानों से अपने खिलाफ हुए अत्याचार पर सहयोग की अपील की है।

मणिपुर सरकार से बाहर हुई NPP, दिल्ली में मैतेई महिलाओं का प्रदर्शन: अमित शाह की हाई लेवल मीटिंग, 2 साल के बच्चे-बुजुर्ग महिला की लाश बहकर असम पहुँची

नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने मणिपुर की NDA सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। NPP ने यह फैसला मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा के बाद किया है। NPP मुखिया कोनराड संगमा ने कहा है कि मणिपुर में बिरेन सिंह की सरकार हिंसा रोकने में असफल रही है, इस कारण से वह अपना समर्थन वापस ले रहे हैं।

NPP मुखिया संगमा ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक पत्र लिखा कर मणिपुर सरकार से समर्थन वापस लेने की जानकारी दी है। NPP ने अभी NDA में रहने या बाहर निकलने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की है। NPP के मणिपुर विधानसभा में 7 विधायक हैं।

NPP के समर्थन वापस लेने के बाद भी राज्य में NDA सरकार को कोई खतरा नहीं है। 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में भाजपा अकेले ही बहुमत है। भाजपा के पास यहाँ 37 सीटें हैं और उसे 9 विधायकों का समर्थन भी हासिल है। हालाँकि, NPP का यह कदम स्थिति की गम्भीरता को दर्शाता है।

NPP ने मणिपुर सरकार से समर्थन तब वापस लिया है जब पिछले एक सप्ताह में राज्य के भीतर भारी हिंसा हुई है। रविवार (17 नवम्बर, 2024) को भी असम में दो लाशें नदी में मिली हैं। यह लाशें मणिपुर से बह कर आई हैं। इनमें से एक लाश वृद्ध महिला जबकि दूसरी 2 साल के एक बच्चे की है।

बच्चे की लाश के साथ काफी बर्बरता की बात सामने आई है। इस लाश से उसका सर गायब था। यह हत्या और बर्बरता करने का आरोप कुकी लड़ाकों पर लगा है। कुकी लड़ाकों ने इस परिवार के कई लोगों को मणिपुर के जिरिबाम से अगवा किया था और उसके बाद हत्या कर दी।

कुकी लड़ाकों ने इन दोनों के साथ ही 4 और परिजनों को अगवा किया था। NDTV की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यह मणिपुर सरकार में काम करने वाले हीरोजीत का परिवार था। उनके बेटे और सास के अलावा उनकी पत्नी, एक और बच्चा, पत्नी की बहन, बहन के बच्चे की भी कुकी लड़ाकों ने हत्या कर दी है।

इन सभी को कुकी लड़ाकों ने मणिपुर के बोरोबेकरा इलाके से एक राहत कैम्प से अगवा किया था। कुकी लड़ाकों ने यह कार्रवाई CRPF से हुई एक मुठभेड़ के दौरान की थी। उन्होंने वापस लौटते समय इन 6 लोगों को अगवा कर लिया था और बाद में मार दिया। इससे पहले CRPF के साथ हुई मुठभेड़ में 11 कुकी लड़ाके मारे गए थे।

मारे गए लोग मैतेई समुदाय से थे। यह 6 लाशें मिलने के बाद राज्य में गुस्सा है। लाशें मिलने के बाद रविवार को मणिपुर के अलग-अलग हिस्सों में भारी हिंसा हुई। लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया। कई जगह तोड़फोड़ भी हुई। कई भाजपा विधायकों के घरों को भी निशाने पर लिया गया है।

कई MLA के घर में आगजनी और हमला किया गया। इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह के घर के बाहर मैतेई समुदाय ने रविवार (17 नवम्बर, 2024) को प्रदर्शन भी किया। उन्होंने 6 लोगों की हत्या के मामले में कार्रवाई की माँग की है।

गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को भी इस मामले में एक मीटिंग की थी। उन्होंने सोमवार को भी इस मसले पर उच्चाधिकारियों के साथ बैठक की है। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि केंद्र सरकार और भी जवान मणिपुर भेजने पर विचार कर रही है।

40 साल से जहाँ रह रहा दलित परिवार, अब वहीं से पलायन को हुआ मजबूर: दरवाजे पर लिखा- ये मकान बिकाऊ है, क्योंकि मुस्लिम प्रताड़ना से परेशान हैं… शादाब समेत 7 पर FIR

मध्य प्रदेश के इंदौर में एक दलित परिवार ने अपने घर के आगे पलायन का पोस्टर चिपका दिया है। पोस्टर में पलायन की वजह मुस्लिम प्रताड़ना को बताया गया है। आरोप है कि पीड़ितों पर मुस्लिमों द्वारा किसी पुराने केस में समझौते का दबाव बनाया जा रहा है। मुख्य आरोपित का नाम शादाब है जिस पर पीड़ित के घर सुतली बम फेंकने का भी आरोप है। रविवार (17 नवंबर 2024) को मामले की शिकायत दर्ज करवाई गई है। हिन्दू संगठनों के विरोध के बाद पुलिस ने 7 आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज हुआ है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घटना इंदौर के बगीचे कॉलोनी की है। यहाँ राजेश कलमोइया अपने परिवार के साथ रहते हैं। वह अपने घर के ही बगल अंडे का ठेला लगा कर गुजर-बसर करते हैं। लगभग 1 माह पहले कॉलोनी में पाइप लाइन का काम हो रहा था। इसी दौरान राजेश की अपने पड़ोस में लगभग 40 वर्षों से रहने वाले शादाब शानू से बहस हुई थी। बताया जा रहा है कि शादाब लगातार राजेश को घूर रहा था जिस पर दोनों में कहासुनी हो गई थी।

इस दौरान शादाब शानू ने राजेश को गंदी-गंदी गालियाँ देते हुए धमकी दी थी। तब राजेश की शिकायत पर शादाब शानू के खिलाफ SC/ST एक्ट सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था। इसी मुकदमे में समझौते के लिए राजेश और उनके परिवार पर शादाब की तरफ से लगातार दबाव बनाया जा रहा था। उनको शादाब शानू की तरफ से परिवार सहित जान से मार डालने की धमकियाँ मिल रहीं थी। शुक्रवार को शादाब, रईस, इरफान, सोनू, सलीम, जल्लू, रिजवान, रेहाना और हिना राजेश की पत्नी के पास दबाव बनाने भी गए थे।

हालाँकि, राजेश ने केस वापस लेने से इंकार कर दिया था। राजेश का कहना है कि शनिवार रात लगभग पौने 3 बजे उनकी नींद घर के पास हुए एक धमाके से खुल गई। राजेश अपनी पत्नी मीनाक्षी के साथ बाहर निकले तो वहाँ उनका पड़ोसी रईस खड़ा मिला। पूछने के बावजूद रईस ने धमाका करने वाले के बारे में कुछ नहीं बताया। इसी दौरान पास एक अन्य बम पड़ा था जिसे मीनाक्षी ने देख लिया। उन्होंने फ़ौरन ही अपने पति को अंदर खींच लिया तभी धमाका हो गया।

राजेश का कहना है कि अगर थोड़ी सी देर हुई होती तो वो इस धमाके की चपेट में आकर झुलस गए होते। शनिवार को हुई इस घटना से तंग आकर राजेश ने अपने घर के बाहर पलायन का पोस्टर चिपका दिया। उन्होंने पोस्टर में लिखा, “यह मकान बिकाऊ है। मुस्लिम प्रताड़ना से परेशान।” इस मामले की जानकारी मिलते ही बजरंग दल के कार्यकर्ता राजेश के घर पहुँचे। उन्होंने शादाब और उसके साथियों पर एक्शन की माँग को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया।

हिन्दू संगठन के सदस्यों का आरोप है कि राजेश के घर पर हुए धमाके में सुतली बम और कीलों का प्रयोग किया गया था। इस मामले की सूचना मिलते ही फ़ौरन ही पुलिस बल मौके पर पहुँचा। पुलिस ने कार्रवाई का भरोसा देकर नाराज लोगों को समझाया। आसपास के CCTV फुटेज को खंगाला गया। डॉग स्क्वायड को भी बुलवाया गया। घटनास्थल से बरामद कीलों और छर्रों को कब्ज़े में लेकर जाँच के लिए लैब भेज दिया गया है।

जाँच के दौरान शादाब शानू की तरफदारी करने वाले भी वहाँ पहुँच गए थे। वह राजेश के आरोपों को झूठा बता रहे थे। पुलिस ने दूसरे पक्ष को भी समझा कर वापस भेजा। फ़िलहाल इंदौर पुलिस ने इस केस में 7 आरोपितों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है। क्षेत्र के एडिशनल डीसीपी आनंद यादव के अनुसार, दोनों परिवार 40 साल से आमने-सामने रह रहे हैं। घटना के पीछे कहासुनी का पुराना विवाद है। पटाखे फोड़ने के आरोपों के समर्थन में अभी तक पुलिस को सबूत नहीं मिल पाए हैं। फिलहाल मामले में जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

‘मैं गुजरात सरकार का फैन हो गया हूँ’ : तेलंगाना में शराब वाले गानों पर बैन लगने से भड़के दिलजीत दोसांझ, बोले- आप ड्राय स्टेट घोषित करो, मैं गाने नहीं बनाऊँगा

पंजाबी सिंगर दिलजीत दोसांझ ने हाल ही में अहमदाबाद में एक कॉन्सर्ट के दौरान तेलंगाना सरकार द्वारा भेजे गए नोटिस पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इस नोटिस का जिक्र करते हुए कहा कि यदि सभी राज्य शराब को प्रतिबंधित कर दें, तो वह कसम खाते हैं कि वह शराब पर कोई गाना नहीं गाएँगे। दिलजीत ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि वह खुद शराब नहीं पीते और उनके पास केवल कुछ ही गाने हैं जो शराब पर आधारित हैं। उन्हें भी वो कभी भी बदलकर सुना सकते हैं।

अहमदाबाद के मंच से, दिलजीत ने कहा– “एक खुशखबरी है कि आज मुझे कोई नोटिस नहीं आया है लेकिन मैं फिर भी शराब पर कोई गाने नहीं गाऊँगा, क्योंकि गुजरात ड्राय स्टेट है।”

वह तेलंगाना सरकार द्वारा दिए गए नोटिस पर बोले- “मैंने डिवोशनल गाने दर्जनों गाए, पिछले 10 दिनों में भी मैंने दो गाने डिवोशनल गाए। एक शिव बाबा पर और एक गुरुनानक बाबा पर, लेकिन उस पर किसी ने कोई बात नहीं की। हर बंदा सिर्फ पटियाला पेग की बात कर रहा हैं। लेकिन भाई मैंने खुद किसी को फोन करके पटियाला पेग लगाने को नहीं कहा। मैं गाना गाता हूँ बस। बॉलीवुड में तो हजारों गाने शराब पर हैं। मेरा एक-दो गाने है। मैं वो भी नहीं गाऊँगा। मुझे टेंशन ही नहीं है क्योंकि मैं तो खुद शराब नहीं पीता।”

दोसांझ आगे बोले, “आप मेरे को छेड़ो मत। मैं जहाँ जाता हूँ, चुप करके अपना प्रोग्राम करता हूँ, चला जाता हूँ। आप क्यों छेड़ रहे हो मुझे। ऐसा करते हैं, एक मूवमेंट शुरू करते हैं। जब इतने लोग इकट्ठे हो जाएँ तो मूवमेंट शुरू हो सकती है, जितनी भी स्टेट हैं हमारे यहाँ, अगर वो सारी अपने आपको ड्राय स्टेट घोषित कर दें तो अगले ही दिन दिलजीत दोसांझ अपनी लाइफ में शराब पर कोई गाना नहीं गाएगा।”

उन्होंने कहा, “अगर सरकारें ड्राय स्टेट नहीं बन सकतीं तो एक दिन का ड्राय डे घोषित कर दें मैं तब भी नहीं गाऊँगा। मेरे लिए गाने बदलना बहुत आसान हैं। मैं कोई नया कलाकार नहीं हूँ कि ये गाना बदलकर नहीं गा सकता। मैं गाने बदलकर गाऊँगा और गानों में उतना ही मजा आएगा।” उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता सब कह रहे हैं कि गुजरात ड्राय स्टेट हैं। अगर ये सच है तो मैं खुलेआम कह रहा हूँ कि मैं गुजरात सरकार का फैन हो गया हूँ। मैं उन्हें खुला सपोर्ट करता हूँ। हम तो चाहते हैं कि अमृतसर भी ड्राय स्टेट बन जाए। शुरू करते हैं। मैं शराब पर गाना गाने बंद कर दूँगा।”

बता दें कि पिछले दिनों तेलंगाना में दिलजीत का कॉन्सर्ट हुआ था। उस समय तेलंगाना तेलंगाना सरकार ने उन्हें नोटिस जारी कर कहा था कि वो स्टेज पर कहीं शराब, ड्रग्स से जुड़े गाने न गाएँ। इसी के बाद दिलजीत ने स्टेज पर गाने के बोल में बदलाव करके अपना जवाब दिया था।

इधर मुस्लिम लड़की के हिंदू प्रेमी की मौलाना-फौजियों ने पीट पीटकर कर दी हत्या, उधर मोहम्मद युनुस मान नहीं रहे बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहा अत्याचार

बांग्लादेश में एक हिन्दू युवक की मौलानाओं और फौज ने पीट-पीट कर हत्या कर दी। युवक को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसका एक मुस्लिम लड़की से प्रेम प्रसंग करता था। यह घटना जिस दिन हुई उसके अगले दिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद युनुस ने कहा कि अल्पसंख्यकों पर हमलों की बातें झूठी हैं और उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह घटना बांगाल्देश के ढाका मंडल के किशोरगंज जिले में हुई। यहाँ करीमगंज उपजिला में रहने वाले रिदॉय रोबी दास की शनिवार (17 नवम्बर, 2024) की हत्या कर दी गई। रिदॉय यही नाई का काम करता था और उसकी खुद की दुकान थी।

उसे शुक्रवार को उसकी दुकान से ही 3 मौलानाओं और बाकी कुछ लोगों ने उठा लिया। रिदॉय का अपहरण करने वालों में स्थानीय प्रशासन के लोग भी शामिल थे। उसके साथ ही उसके एक चचेरे भाई को भी उठाया गया। इसके बाद उन्हें एक अनजान जगह पर ले जाया गया।

यहाँ पर मुस्लिम मौलानाओं ने उसको बुरी तरीके से पीटा और यातनाएँ दी। इसके बाद उसका फोन भी छीन लिया। इसके बाद जब रिदॉय अधमरा हो गया तो उसे पास के फौजी कैम्प में एक ऑटो में भेज दिया गया गया। यहाँ पर फौजियों ने रिदॉय और उसके चचेरे भाई को अलग कर दिया।

रिदॉय से फौजी कैंप में भी पूछताछ हुई। यहाँ से उसे अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि जब उसे इलाज के लिए लाया गया था तब उसके शरीर पर पिटाई के निशान थे। अस्पताल में भर्ती किए जाने के बाद शनिवार सुबह उसकी मौत हो गई।

फौजियों ने रिदॉय के घरवालों को फोन करके उसकी मौत की सूचना दी। रिदॉय के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और यहाँ से रिपोर्ट आने के बाद ही उसकी मौत का कारण स्पष्ट हो सकेगा। रिदॉय के साथ ले जाए गए शकील रबी दास ने कहा है कि उसे नहीं पता फौजी कैम्प में रिदॉय के साथ क्या हुआ।

स्थानीय मौलानाओं ने आरोप लगाया है कि रिदॉय जिस मुस्लिम लड़की से प्रेम करता था उसको हिन्दू बनाना चाहता था, इसलिए उसको यह सजा दी गई। रिदॉय के घरवालों ने इस घटना के बाद फौजियों पर प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं और दोषियों पर कार्रवाई की माँग की है।

जिस दिन रिदॉय की हत्या हुई उसके अगले ही दिन रविवार (17 नवम्बर, 2024) को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनुस ने देश में अल्पसंख्यकों पर हमले की बात को सिरे से नकार दिया। मोहम्मद युनुस ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले की बातों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है।

उन्होंने देश के नाम संबोधन में कहा, “उस समय अल्पसंख्यकों में डर भय फैलाने की कोशिश की गई थी। कुछ मामलों में उन्हें हिंसा का भी सामना करना पड़ा। हालाँकि, इन घटनाओं के बारे में बहुत ज़्यादा प्रचार बढ़ा-चढ़ाकर किया गया… हिंसा के जो कुछ मामले हुए वे राजनीति से प्रेरित थे, लेकिन बांग्लादेश को एक बार फिर अस्थिर करने के लिए उन्हें मजहबी संघर्ष के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया। हमने इस स्थिति को संभाल लिया है।”

मोहम्मद युनुस ने इस दौरान देश में दुर्गा पूजा का जिक्र भी किया। हालाँकि मोहम्मद युनुस यह बताना भूल गए कि दुर्गा पूजा के दौरान इस्लामी संगठनों ने खुली धमकियाँ दी थी। एक और इस्लामी कट्टरपंथी संगठन ने दुर्गा पूजा आयोजन के लिए 5 लाख टका की रंगदारी माँगी थी।

मोहम्मद युनुस को यह भी नहीं याद रहा कि किस तरह इस्लामी कट्टरपंथी भीड़ ने ASI संतोष साहा को मार कर उन्हें चौराहे पर लटका दिया था और उनकी देह से बर्बरता की थी। कई जगह पर हिन्दू मंदिरों पर हमले हुए थे, आग लगाई गई थी। मोहम्मद युनुस यह भी नहीं याद रख पाए कि ईशनिंदा के आरोप में एक हिन्दू युवक को मार मार कर अधमरा कर दिया गया था।

महाराष्ट्र में महायुति सरकार लाने की होड़, मुख्यमंत्री बनने की रेस नहीं: एकनाथ शिंदे, बाला साहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहने का राहुल गाँधी को दिया चैलेंज

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान का दिन बेहद नजदीक है। इस बीच शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आजतक को दिए इंटरव्यू में बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि वो सीएम पद की रेस में नहीं है। उन्होंने कहा कि महायुति में मुख्यमंत्री पद की कोई रेस नहीं है। हम सिर्फ महायुति की सरकार लाने पर फोकस्ड हैं।

इंटरव्यू में एकनाथ शिंदे से पूछा गया, “मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी से बात हुई है या नहीं। आपने ही बताया था कि उद्धव ठाकरे ने बताया कि ढाई साल का वादा किया था। आपकी अंदर कोई बात हुई है कि सीएम आप ही बनाए जाएँगे?” इस पर एकनाथ शिंदे ने कह, “मैं उद्धव ठाकरे नहीं हूँ। मैं एकनाथ शिंदे हूँ। मैं चीफ मिनिस्टर बनने की होड़ में नहीं हूँ। महाविकास आघाड़ी में वो दिल्ली तक घूम रहे हैं कि सीएम बनाओ। ऐसा हमारे में नहीं है। हमारे में कोई रेस नहीं है। हमारी रेस इस बात की है कि महाराष्ट्र में महायुति की सरकार लाना और इस महाराष्ट्र में विकास लाना।” इंटरव्यू का ये हिस्सा 2.03 मिनट से सुन सकते हैं।

आज तक को दिए इंटरव्यू में शिंदे ने उद्धव ठाकरे और कॉन्ग्रेस पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस की नीति हमेशा ‘फूट डालो और राज करो’ की रही है। बालासाहेब ठाकरे का जिक्र करते हुए शिंदे ने राहुल गाँधी से सवाल किया, “क्या राहुल गाँधी बालासाहेब को कभी हिंदू हृदय सम्राट कहेंगे?” शिंदे ने राहुल गाँधी द्वारा बालासाहेब ठाकरे की तारीफ पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, “यह पहली बार है कि उन्होंने बालासाहेब की पुण्यतिथि पर उनके लिए कुछ कहा। अगर उनमें हिम्मत है, तो बालासाहेब को हिंदू हृदय सम्राट कहकर दिखाएँ।”

शिंदे ने आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे ने अपने स्वार्थ के लिए बालासाहेब के विचारों से समझौता किया और कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन किया। उन्होंने कहा, “बालासाहेब कहते थे कि मैं अपनी पार्टी को कभी कॉन्ग्रेस नहीं बनने दूँगा, लेकिन उद्धव ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनके विचारों को त्याग दिया।”

मुख्यमंत्री ने उद्धव ठाकरे पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “अगर आज बालासाहेब ठाकरे होते, तो उद्धव से कहते कि जंगल में जाकर वाइल्ड लाइफ की फोटो खींचो। उन्होंने सिर्फ सत्ता के लिए बीजेपी की पीठ में छुरा घोंपा और महाराष्ट्र की जनता को धोखा दिया।” शिंदे ने दावा किया कि उद्धव को लगा था कि उनके बिना सरकार नहीं बनेगी, और इस अवसर का उन्होंने पूरा फायदा उठाया।

ये पूरा इंटरव्यू आजतक ने जारी किया है। राहुल गाँधी और उद्धव ठाकरे पर हमले का हिस्सा 1.50 मिनट से सुन सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे का समर्थन करते हुए शिंदे ने कहा कि यह नारा महायुति के एकजुट एजेंडे को दर्शाता है। शिंदे ने अपनी साफगोई से जिस तरह हर मुद्दे पर खुलकर बयान दिया है, वो महायुति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उद्धव ठाकरे के खिलाफ उनकी नाराजगी को भी दर्शाता है। यह साफ है कि महाराष्ट्र में इस बार का चुनाव विचारधारा और वादों के साथ-साथ व्यक्तिगत हमलों का भी केंद्र रहेगा।

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द जुटा न सके राहुल गाँधी

हिंदू हृदय सम्राट और शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की 12वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (17 नवंबर 2024) उन्हें याद किया। पीएम ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए बाला साहेब को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें एक दूरदर्शी नेता बताया और कहा कि महाराष्ट्र के लोगों के विकास में उनका अहम योगदान है।

आश्चर्यजनक बात ये है कि बाला साहेब की पुण्यतिथि पर कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी बाला साहेब के लिए ट्वीट किया। उनका ये ट्वीट पीएम मोदी के चैलेंज के बाद सामने आया है।

जब पीएम मोदी ने उद्धव ठाकरे को सीधे तौर पर चुनौती देते हुए कहा था कि वो राहुल गाँधी के मुँह से वीर सावरकर और बाला साहेब ठाकरे की तारीफ करवाकर दिखाएँ।

पीएम मोदी ने कहा था, “मैंने इनको चुनौती दी है… अघाड़ी वाले जरा मेरी चुनौती को स्वीकार करें… उनके युवराज के मुंह से, वीर सावरकर की तारीफ में एक भाषण करवा दें जरा… मैं अघाड़ी के साथियों को कहता हूं… अगर उनमें दम हो तो उनके युवराज के मुंह से बाला साहेब ठाकरे की जरा तारीफ करवाके सुनवायें महाराष्ट्र को… साथियों, कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसके पास न नीति है न नीयत है, और नैतिकता का नामोनिशान नहीं है”

इसी चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

उनका ट्वीट आने के बाद लोगों ने उन्हें जमकर घेरा। लोगों ने कहा कि 12 साल में पहली बार बाला साहेब की याद राहुल को आई है। सीएम शिंदे ने तो आजतक से बात करते हुए कहा,

“अच्छी बात है। अभी तक इन्होंने ये भी बोलने की कोशिश नहीं की थी। अनके मन में शिवसेना के लिए क्या भावना थी ये नहीं पता लेकिन उनमें अगर सच में हिम्मत है तो वो बाला साहेब ठाकरे को हिंदू हृदय सम्राट बोलकर दिखाएँ।”

मालूम हो कि आज उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने राजनीति के दाव-पेंच चलते हुए भले ही राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस से अपनी साठ-गाँठ कर ली हो। मगर सच ये हैं कि शिवसेना की नींव रखने वाले बाला साहेब कभी इन लोगों के समर्थक नहीं थे। वह स्पष्ट तौर पर कॉन्ग्रेस से गठबंधन के हमेशा खिलाफ थे और यही नहीं, वह राहुल गाँधी को ‘आज का बच्चा’ और ‘कल का पोपट’भी कहते थे।

अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले ही राहुल गाँधी की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाते हुए बाल ठाकरे ने उन्हें ‘बच्चा’ बताया था। यह दूसरी बात है कि बाद में सत्ता की लालसा में उनके बेटे उद्धव ठाकरे उसी राहुल गाँधी के शरणागत हो गए।

घर की बजी घंटी, दरवाजा खुलते ही अस्सलाम वालेकुम के साथ घुस गई टोपी-बुर्के वाली पलटन, कोने-कोने में जमा लिया कब्जा: झारखंड चुनावों का ये Video देखा क्या

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों का घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा है। जनजातीय समान की रोटी, बेटी और माटी को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रमुखता से उठाया है। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में घुसपैठ रोकने और एसटी वर्ग की जिन जमीनों पर कब्जा किया गया है, उनको वापस दिलाने के लिए कानून बनाने का वादा किया है।

इसी कड़ी में झारखंड बीजेपी ने शनिवार (16 नवंबर 2024) को अपने एक्स हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया है। बीजेपी ने लिखा है, “ध्यान से देखिए कि एक गलत वोट कितनी बड़ी गलती बन सकता है। इसलिए 2019 वाली गलती इस बार ना करें। सही चुनें, भाजपा चुनें।”

इस वीडियो में आप देख सकते हैं, एक घर के बाहर जेएमएम का झंडा लगा है। घर के अंदर परिवार के लोग खुश दिख रहे हैं। बुजुर्ग संगीत सुन रहे हैं। पिता-पुत्र नाश्ते की टेबल पर बैठे हैं। अचानक उनके घर की घंटी बजती है। दरवाजा खोलते ही सामने टोपी-बुर्के वालों की भीड़ दिखती है। वो झटके से ‘अस्सलाम वालेकुम’ कहते हुए घर में प्रवेश कर जाते हैं। परिवार के लोगों को कुछ समझ में आता, इससे पहले वो घर के कोने-कोने में कब्जा कर लेते हैं। कोई सोफे पर कूद रहा है। कोई उसी घर में रुई धुन रहा है।

ये हालात देखकर घर का मालिक सवाल करता है, “अरे ये हमारा घर बर्बाद कर रहे हैं” तब वो व्यक्ति बोलता है, “आपने जिस सरकार को जिताया है, वही इन्हें लेकर आई है।” इसके बाद घर का मालिक है, “तो?” जवाब में घुसपैठियों को लाने वाला व्यक्ति बोलता है, “तो हमारी बस्तियाँ क्यों बर्बाद हो, आपक भी तो घर बर्बाद होना चाहिए न”

झारखंड बीजेपी ने रविवार (17 नवंबर 2024) को एक अन्य वीडियो पोस्ट किया और कैप्शन में लिखा, “हेमंत सोरेन के इलाके में जनता ने बताया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है। हमारी बहू-बेटियों को गलत नजर से देखते हैं। इसलिए घुसपैठियों को भगाने के लिए सभी लोग भाजपा को जिताना चाहते हैं।”

इस वीडियो में एक बुजुर्ग बोलते दिख रहे हैं, “यहाँ से जीत जाएगा बीजेपी, कारण.. यहाँ मुसलमानों का दबदबा बढ़ रहा है। बाहरी मुसलमान आया है यहाँ, रोहिंग्या से, बांग्लादेश से। चलिए मैं दिखाता हूँ, 500 से ज्यादा घर हो गए हैं।” वो आगे बोलते हैं, “इन्हें मोदी हटाएगा।” वो खुलेआम बोलते हैं कि टोटल आदमी बीजेपी को पसंद कर रहा है। वो कहते हैं, “मुसलमानों को चाहिए आदिवासी। वो खुद ही आदिवासी में घुसा है। आदिवासी मुसलमानों को नहीं चाहता है। ये लुटेरा है। आदिवासी बहू-बेटियों पर मुसलमानों की गंदी नजर रही है। उनकी बेईज्जती करना, छीनना, झगड़ा करना, यही तो काम है उनका।”

बीजेपी ने 19 सितंबर 2024 को एक वीडियो पोस्ट किया था। जिसमें एक बुजुर्ग हेमंत सोरेन की सरकार के प्रति अपनी निराशा जता रहे हैं। वो बदलाव की बात करते हैं।

बता दें कि BJP द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में मुस्लिम बहुल बूथों की संख्या में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य की 10 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल बूथों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। 

भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची और 2024 की मतदाता सूची का अध्ययन किया है। भाजपा ने पाया है कि झारखंड की 10 विधानसभा सीटों के कुछ बूथ पर (विशेष कर मुस्लिम आबादी वाले बूथ) पर वोटरों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि पाँच वर्षों में हुई है।

रिपोर्ट में सामने आया है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में वोटरों की संख्या में यह अप्रत्याशित बढ़त 20% से 123% तक की है। यह बढ़त इन 10 विधानसभा के कुल 1467 बूथ पर हुई है। भाजपा ने कहा है कि सामान्यतः पाँच वर्षों में 15% से 17% की वृद्धि होती है, इसीलिए यह वृद्धि असामान्य है। भाजपा ने यह भी बताया है कि हिन्दू आबादी वाले बूथ पर वोटरों की संख्या में बढ़त मात्र 8% से 10% हुई है। भाजपा ने यह भी बताया है कि कई बूथ पर हिन्दू मतदाता घट भी गए हैं।

आँकड़ों में बताया गया है कि 1951 में संताल परगना में 41% आदिवासी आबादी थी जो कि 2011 में 28% ही बची है। इस बीच मुस्लिमों की आबादी 9.4% से 22% पहुँच चुकी है।

बीजेपी का घुसपैठियों का मुद्दा केवल चुनावी मंच तक सीमित नहीं है। यह पार्टी की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, सांस्कृतिक पहचान और विकास जैसे पहलुओं को जनता के समक्ष प्रमुखता से रखा जा रहा है। पार्टी की इस रणनीति का उद्देश्य मतदाताओं के बीच मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की छवि बनाना है।

मुस्लिम घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के दोहरे कुचक्र में उलझा है झारखंड, सरना कोड से नहीं बचेगी जनजातीय समाज की ‘रोटी-बेटी-माटी’

झारखंड इन दिनों विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2024) के शोर में डूबा है। इस चुनाव में रोटी, बेटी, माटी की गूँज है। इसी गूँज के बीच 8 नवंबर और 15 नवंबर (जनजातीय गौरव दिवस) भी बीता है। 8 नवंबर वह तारीख है, जिसको लेकर माना जाता है कि आज के झारखंड में जनजातीय/आदिवासी समाज (Scheduled Tribes) का पहली बार ईसाई धर्मांतरण हुआ।

झारखंड में पहली बार कब-कैसे ST बने ईसाई?

1873 में खुंटपानी (Khuntpani/Khutpani) में 6 मुंडा परिवारों के 28 लोगों का कोलकाता से आए आर्च बिशप स्टांइस ने बपतिस्मा कराया था। खुंटपानी आज के झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला का हिस्सा है। यहाँ एक शिलापट्ट भी है, जिन पर उनलोगों के नाम दर्ज हैं जो पहली बार ईसाई बने। इसकी स्मृति में हर साल 8 नवंबर को यहाँ एक ‘तीर्थ मेला’ लगता है। इसमें झारखंड और आसपास के प्रदेशों के ईसाई धर्मांतरित लोगों का जमावड़ा ही नहीं लगता, बल्कि अच्छी-खासी संख्या में विदेशों से भी रोमन कैथोलिक धर्मावलंबी आते हैं।

संताल परगना: पहले ईसाई धर्मांतरण, अब मुस्लिमों की घुसपैठ

खुंटपानी वैसे तो छोटानागपुर का हिस्सा है। लेकिन ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण कुचक्र से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में झारखंड का संताल परगना (Santhal Pargana) भी आता है। इतना प्रभावित कि इस क्षेत्र में ST से ईसाई बने लोगों का जन प्रतिनिधि चुना जाना सामान्य सी बात है।

आश्चर्यजनक तौर पर यह संताल परगना इस समय बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ (Bangladeshi Rohingya Muslim infiltrators) से डेमोग्राफी बदलाव को लेकर चर्चित है। इस क्षेत्र से सरना (जनजातीय समाज का धार्मिक स्थल) विलुप्त हो रहे हैं, मस्जिद-मजार उग रहे हैं। जनजातीय समाज अपनी जमीन-रोजगार से लेकर बेटी तक गँवा रहे हैं, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कई रैलियों में कर चुके हैं।

घुसपैठ रोकने और सरना कोड का वादा

इस विकट हालात को देखते हुए बीजेपी ने वादा किया है कि यदि प्रदेश में एनडीए की सरकार बनी तो वह घुसपैठ रोकने के साथ ही उन जमीनों को वापस लेने के लिए कानून बनाएगी, जिन पर घुसपैठियों का कब्जा है या फिर उन्होंने जालसाजी कर खरीदा है। घुसपैठ के अलावा इन चुनावों में ‘सरना धर्म कोड (Sarna Dharam Code/Sarna Religious Code)’ भी चर्चा में है।

क्या है सरना धर्म कोड?

भारत में इस समय 6 धार्मिक समुदायों को मान्यता देने वाला कानून है। ये हैं- हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन। घुसपैठ को नकारने वाला कॉन्ग्रेस-झामुमो गठबंधन ने सरना आदिवासी धर्म कोड का वादा किया है।

नवंबर 2020 में INDI गठबंधन की सरकार ने झारखंड विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था। इसमें 2021 की जनगणना में ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था। सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए बीजेपी ने भी समर्थन किया था। इस प्रस्ताव के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर भी यह माँग दुहराई थी।

झारखंड चुनावों के लिए बीजेपी का संकल्प-पत्र जारी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरना कोड पर विचार करने और उचित निर्णय लेने की बात कही थी। राज्य में बीजेपी के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई मौकों पर पार्टी की इस लाइन को दोहरा चुके हैं। वहीं असम के मुख्यमंत्री और चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा तो यह भी कह चुके हैं सरकार बनने पर पार्टी सरना कोड लागू करेगी।

सरना कोड जनजातीय समाज को अलग धार्मिक समुदाय के तौर पर मान्यता देता है। बीजेपी ने सार्वजनिक तौर पर कभी इसका विरोध नहीं किया। लेकिन वह इसको लेकर कभी मुखर भी नहीं रही है। इन चुनावों में सरना कोड पर बीजेपी के सुर में जो नरमी दिख रही है, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सोच से भी उलट है। संघ जनजातीय समाज को हिंदू धर्म का हिस्सा मानता रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के जरिए जनजातीय क्षेत्रों में वह इसी सोच के साथ कार्य करती है। संघ के ही एक संगठन जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय (बिहार-झारखंड) संयोजक संदीप उरांव का कहना है कि सरना कोड लागू होने पर कई स्तरों पर समस्याएँ पैदा होंगी।

खुंटपानी की तरह ही मदकू द्वीप में भी लगता है मेला

खुंटपानी की तरह ही मदकू द्वीप (Madku Dweep) पर भी ईसाइयत का मेला लगता है। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले का यह द्वीप शिवनाथ नदी की जलधारा से घिरा है। इसी द्वीप पर माण्डूक्य ऋषि ने ‘मुण्डकोपनिषद्’ की रचना की जिससे ‘सत्यमेव जयते (Satyamev Jayate)’ निकला है।

इस द्वीप तक पहुँचना सरल नहीं है। सितंबर 2022 में नाव से नदी पार कर मैं यहाँ तक पहुँचा था। लेकिन जब इस निर्जन द्वीप पर क्रॉस वाला एक मंच देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। पता चला कि हर साल फरवरी में इस द्वीप पर सबसे बड़ा जमावड़ा लगता है। यह जमावड़ा सप्ताह भर चलने वाले मसीही मेला को लेकर लगता है। यह मेला साल 1909 से लग रहा है।

मदकू द्वीप
मदकू द्वीप का वह मंच जहाँ लगता है मसीही मेला

खुंटपानी जैसी ही है खड़कोना की भी कहानी

छत्तीसगढ़ का जशपुर ईसाई धर्मांतरण का बड़ा केंद्र है। इसी जिले के कुनकुरी में इस देश का सबसे बड़ा चर्च है। यहाँ भी जनजातीय समाज के लोगों को ईसाई बनाने का सिलसिला तभी शुरू हो गया था, जब अंग्रेजों ने सरना को अलग से मान्यता दे रखी थी।

1906 में कोरकोटोली और खड़कोना में ईसाई बनने वाले शुरुआती लोगों की याद में लगा शिलापट्ट

जशपुर जिले के मनेरा ब्लॉक में एक गाँव है- खड़कोना। इस गाँव में प्रवेश करते ही आपको क्रूस चौक मिलता है। चर्च के पास एक शिलापट्ट पर उन 56 लोगों के नाम अंकित हैं, जिनका 21 नवंबर 1906 को बपतिस्मा हुआ था। इसी गाँव में मैंने ‘साहेब कोना’ भी देखा है, जहाँ धर्मांतरित हिंदुओं का सालाना आयोजन होता है।

सरना हासिल करने की एक लड़ाई क्लेमेंट लकड़ा की भी

सरना कोड पर 24 साल पुराने झारखंड में जारी राजनीतिक लड़ाई से भी पुरानी (30+ साल) सरना हासिल करने की लड़ाई 58 साल के क्लेमेंट लकड़ा की है। 2022 की एक शाम मैं जब क्लेमेंट से मिलने उनके घर पहुँचा था तो उन्होंने कहा था;

मेरे पिता को ठगा गया। बेवकूफ बनाया गया। इस बात को मैंने जिस दिन समझा उसी दिन मेरा मन इससे (ईसाई) उचट गया। मैंने प्रण किया है कि जिस सरना को इन्होंने (कैथोलिक संस्था) अपवित्र किया, वह इनसे वापस लूँगा और वहीं अपने पुरखों के धर्म में लौटूँगा। देखता हूँ आखिर कब तक इनसे लड़ पाता हूँ।

दो बेटियों के पिता क्लेमेंट अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ की कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र के दुलदुला में रहते हैं। उनकी पत्नी सुषमा लकड़ा दुलदुला की सरपंच हैं। उनके घर की दीवारों पर लगी तस्वीरें बताती हैं कि यह परिवार धर्मांतरित होकर ईसाई बन चुका है। लेकिन घर के कोने में एक टेबल पर पड़ी दस्तावेजों में वह दर्द अंकित है, जिसे धर्मांतरण के बाद इस परिवार ने भोगा है।

क्लेमेंट की करीब 10 एकड़ जमीन पर कैथोलिक संस्था का कब्जा है। इस जमीन पर चर्च है। स्कूल है। फादर और नन के रहने के लिए घर बने हुए हैं। खाली पड़ी जमीनों पर संस्था के ही लोग खेती करते हैं। यह जमीन क्लेमेंट के पिता भादे उर्फ वशील उरांव ने ईसाई बनने के बदले खोई थी।

ईसाई संस्था से कानूनी लड़ाई जीतने के बाद भी क्लेमेंट उस जमीन पर लौट नहीं पा रहे हैं। उलटे कैथोलिक संस्था के अधिकारी और उनके साथी उनके परिवार को प्रताड़ित करते हैं। दुलदुला पंचायत के विकास कार्यों में रोड़ा अटकाया जाता है। उनकी पत्नी से कहा जाता है कि अपने पति से केस वापस लेने के लिए कहो। ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए क्लेमेंट ने ऑपइंडिया को बताया था, “फरवरी 2022 में चर्च में एक मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में मुझसे कहा गया कि यदि केस वापस नहीं लोगे तो तुम्हें समाज से बाहर कर देंगे। फिर तुम्हारी बेटियों से कौन शादी करेगा।”

आपदा में भी अवसर तलाश लेते हैं ईसाई मिशनरी

एक संस्था है- अनफोल्डिंग वर्ल्ड। बाइबिल का हर भाषा में अनुवाद करने के मिशन पर काम कर रही है। इसके CEO डेविड रीव्स ने 2021 कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए थे। उन्होंने बताया था कि कोविड काल में करीब 1 लाख लोगों को ईसाई बनाया गया। हर चर्च को 10 गाँवों में प्रार्थना आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। महामारी के दौरान जब लोगों का मिलना-जुलना नहीं था तो फोन और व्हाट्सएप्प से उन तक प्रार्थनाएँ पहुँचाई गई।

रीव्स के अनुसार भारत में 25 साल में जितने चर्च बने थे, उतने अकेले कोरोना काल में बनाए गए। ऐसा ही एक चर्च मैंने जशपुर के गिरांग में वन विभाग की जमीन पर देखा था। यह चर्च उस जगह पर बनाई जा रही थी, जहाँ जाने के लिए रास्ता तक नहीं था। विरोध के बाद इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया था। 2022 में जब मैं यहाँ पहुँचा था तो यह बंद पड़ा था। भाजयुमो से जुड़े अभिषेक गुप्ता ने ऑपइंडिया को बताया था, “ईसाई मिशनरी इसी तरह लैंड जिहाद करती है। जहाँ खाली जगह दिखी ये क्रॉस गाड़ देते हैं। चर्च बना लेते हैं। कुछ समय बाद प्रशासनिक मिलीभगत से वहाँ जाने का रास्ता तैयार हो जाता है और फिर प्रार्थना होने लगती है। बाद में आप जितना विरोध कर लें प्रशासन कब्जा नहीं हटाता।”

कोरोना काल के दौरान गिरांग में हो रहे इस चर्च का निर्माण विरोध के बाद रोकना पड़ा था

जोशुआ प्रोजेक्ट पर अंकुश लगा पाएगा सरना कोड?

अमेरिका से संचालित एक संगठन है- जोशुआ प्रोजेक्ट। 1995 में शुरू हुए इस संगठन का कहना है कि वह बाइबल में दिए गए उस निर्देश पर काम करता है, जिसमें विश्व के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को ईसाइयत का अनुयायी बना कर उनका बाप्तिस्मा कराने का आदेश मिला है।

एक रिपोर्ट के अनुसार यह संगठन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में जनजातीय लोगों को धर्मांतरित कर उनकी जमीन पर चर्च बना रहा है। 2011-12 में इन चारों राज्यों में लगभग 12,000 चर्च थे जो अब बढ़कर 25,000 को पार कर चुके हैं। यह सब उन इलाकों में हो रहा है जहाँ बाहरी व्यक्ति जमीन तक नहीं ले सकते, लेकिन मिशनरियाँ लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं।

जनजातीय लोगों को ईसाइयत में लाने के बाद सरना (वह पेड़ जो उनके लिए पवित्र है) काटने को कहा जाता है। ईसाई धर्मांतरण का जोर ऐसा है कि पूरे के पूरे गाँव धर्मांतरित हो चुके हैं। कुछ गाँवों में नाम मात्र के हिन्दू परिवार बचे हैं। जिन गाँवों में ईसाई मिशनरी अपने काम में सफल हो रही हैं, उनके बाहर क्रॉस लगा दिया गया है।

जोशुआ प्रोजेक्ट केवल जनजातीय समूह तक ही नहीं सिमटा हुआ है। भारत की अलग-अलग जातियों और जनजातीय समूहों के आँकड़े इकट्ठा किए हैं। जोशुआ प्रोजेक्ट के पास देश की 2272 जातियों-जनजातियों के आँकड़े हैं। जोशुआ प्रोजेक्ट बताता है कि वह इनमें से अभी 2041 जातियों तक नहीं पहुँच सका है। वहीं 103 जातियों में ईसाइयत का प्रभाव डालने में यह सफल रहा है। इनमें एक छोटी संख्या में लोग ईसाइयत को मानने लगे हैं। वहीं 128 जाति समूह ऐसे हैं, जिनमे बड़े पैमाने पर ईसाइयत की घुसपैठ हो गई है।

ईसाई धर्मांतरण
जिस गाँव में बड़ी आबादी ईसाई हो जाती है, वहाँ ऐसा ही निशान लगा दिया जाता है

जोशुआ प्रोजेक्ट का डाटा बताता है कि उसने कई जातियों में 10%-100% तक ईसाइयत में धर्मांतरण करवाया है। जिन जातियों में बड़ी संख्या में ईसाइयत में धर्मांतरण हुआ है, उनको अलग नाम दे दिया गया है। तेलंगाना के मडिगा और माला समुदाय में 21000 की आबादी को ईसाइयत में बदल कर उसे आदि क्रिश्चियन का नाम दिया गया है। बोडो समुदाय की 15.7 लाख आबादी में से लगभग 1.5 लाख आबादी को ईसाइयत में लाया गया गया है।

‘रोटी-बेटी-माटी’ पर झारखंड के चुनावों को केंद्रित कर बीजेपी ने घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के उस दोहरे कुचक्र को चर्चा में अवश्य ला दिया है, जिसमें जनजातीय समाज फँसा हुआ है। उन वैध-अवैध तरीकों पर बात हो रही है, जिसके तहत गाँव-गाँव में चर्च का फैलाव हो रहा है। ईसाई बनने के कारण जनजातीय समाज आरक्षण के लाभ से वंचित न हो जाए, इसलिए उन्हें ‘क्रिप्टो क्रिश्चियन’ बनाया जा रहा है।

कन्याकुमारी के कैथोलिक पादरी जॉर्ज पोन्नैया से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने भी इस ओर ध्यान खींचा था। कन्याकुमारी की जनसांख्यिकी में बदलाव का जिक्र करते हुए उन्होंने संकेत दिया था कि तमिलनाडु का यह जिला ईसाई बहुल आबादी में तब्दील हो चुका है। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा था;

जाहिर है कि यह कुचक्र नया नहीं है। इसकी जड़ें केवल झारखंड तक सीमित नहीं है। केवल जनजातीय समाज ही इसकी चपेट में नहीं है। केवल धर्मांतरण विरोधी सख्त कानूनों से ही इसे नहीं रोका जा सकता है। कुछ दल, संगठन और परिवारों को ईसाई मिशनरियों से लड़ने की ठेकेदारी देकर हिंदू समाज सोया नहीं रह सकता है।

इस दलदल से हिंदुओं को निकालने के लिए राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ जरूरी है कि हर हिंदू भी अपने आसपास जनसांख्यिकी में हो रहे इस बदलाव को लेकर सचेत और मुखर हो। दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत में न तो राजनीति ने ऐसी इच्छाशक्ति दिखाई है और न हिंदुओं ने एक समूह के तौर पर उन्हें ऐसा करने को मजबूर किया है। यही कारण है कि राजनीतिक दाल अलग सरना धार्मिक पहचान को हवा देकर हिंदुओं को बाँटने और ईसाई मिशनरियों को खाद-पानी देने का काम करते रहे हैं।

झारखंड विधानसभा में जब जनगणना में सरना को अलग धार्मिक पहचान देने का प्रस्ताव लाया गया था तो बीजेपी ने भी इस तरह की आशंका जताई थी। अब उसे उन उपायों पर गौर करना चाहिए जो मिशनरियों का सदा-सदा के लिए बधिया कर सके। उसे इस मसले पर भी उतनी ही आक्रामकता दिखानी चाहिए जितनी घुसपैठ पर है। इस मामले में जगह/काल/परिस्थिति के हिसाब से राजनीति उन हिंदुओं को जनसांख्यिकी के स्तर पर और कमजोर करेगी, जिनके दम पर ‘अखंड भारत’ का स्वप्न बुना जा रहा है।