Tuesday, July 15, 2025
Homeदेश-समाजकैसा है वह 'साहेब कोना' जहाँ पहली बार हिंदू बने ईसाई: 1906 में जहाँ...

कैसा है वह ‘साहेब कोना’ जहाँ पहली बार हिंदू बने ईसाई: 1906 में जहाँ से भागे थे पादरी, 2022 में हमें भागना पड़ा

खड़कोना या कोरकोटोली बताते हैं कि सुदूर वनवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने घुसपैठ कर कैसे अपना विस्तार किया है। अपने ऐसे इलाके गढ़ लिए हैं, जहाँ मीडिया अपनी मर्जी से सवाल भी नहीं पूछ सकती। सड़क किनारे लगे क्रॉस उनके इलाके की मुनादी करते हैं और बताते हैं कि यहाँ नाममात्र के ही हिंदू बचे हैं।

छत्तीसगढ़ का जशपुर ईसाई धर्मांतरण का बड़ा केंद्र है। यहाँ अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribes) वर्ग के हिंदुओं को धर्मांतरित (Religious conversion) करने की पहली घटना जो जानकारी में है, वह 1906 की है। ईसाई बने कोरकोटोली और खड़कोना गाँव के शुरुआती लोगों की याद में एक स्मारक भी खड़कोना में बना हुआ है। इस पर कुल 56 नाम अंकित हैं। बताया गया है कि इनलोगों का 21 नवंबर 1906 को बपतिस्मा हुआ था।

मनोरा ब्लॉक के खड़कोना गाँव में प्रवेश करने से ठीक पहले सड़क किनारे एक बोर्ड लगा हुआ है। यह बोर्ड उस कच्चे रास्ते की ओर इंगित करता है जो पहाड़ से सटे एक जगह पर ले जाता है, जिसे स्थानीय ईसाई ‘साहेब कोना’ कहते हैं। यहाँ एक सालाना आयोजन होता है, जिसमें धर्मांतरित हिंदू शरीक होते हैं। ‘साहेब कोना’ को लेकर स्थानीय लोगों का दावा है कि आज के झारखंड के रास्ते पहली बार पादरी इसी जगह जंगल और पहाड़ों से होकर आए थे और इस इलाके में धर्मांतरण शुरू हुआ।

खड़कोना गाँव में प्रवेश करते ही है क्रुस चौक

आस्ता से करीब 10 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद मुख्य सड़क से एक रास्ता खड़कोना के लिए कटता है। खड़कोना जाने का 7.3 किलोमीटर लंबा रास्ता खेतों और जंगल से घिरा है। दूर पहाड़ नजर आता है। इस रास्ते पर कुछेक किलोमीटर चलने पर सड़क से सटा एक चर्च है। इसके बाद सड़क किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लकड़ी के बड़े-बड़े क्रॉस गड़े हैं। खड़कोना में प्रवेश करते ही क्रुस चौक है। आसपास कुछ घर हैं। एक पानी की टंकी है। एक सार्वजनिक चापाकल भी। चापाकल से लगता हुआ पैदल रास्ता एक टीलेनुमा जगह पर जाता है। इस टीले पर ही वह स्मारक है, जिस पर 1906 में धर्मांतरित हुए हिंदुओं के नाम दर्ज हैं। धर्मांतरण के 100 साल पूरे होने पर यह स्मारक बना था। एक चर्च भी है। चर्च पर लगे शिलापट्ट के अनुसार 1984 में इसका निर्माण फादर पातरस टोप्पो ने किया था।

1906 में कोरकोटोली और खड़कोना में ईसाई बनने वाले शुरुआती लोगों की याद में बना स्मारक

जब हम खड़कोना पहुँचे तो क्रुस चौक पर सन्नाटा था। लेकिन चर्च से जब हम लौटे तो वहाँ कुछ लोग जमा हो गए थे। 68 साल के मार्टिन खड़कोना के ही रहने वाले हैं। वे खेती-किसानी करते हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “गाँव में 39 घर हैं, इनमें से 30-32 परिवार ईसाई हैं। ज्यादा लोग खेती ही करते हैं।” 25 साल के रमेश राम इकलौते हिंदू थे जो हमें इस गाँव में मिले। उन्होंने बताया, “गाँव में हिंदुओं के अब 5 घर ही बचे हैं। उनलोगों को काम की भी दिक्कत है।” हमारी बातचीत चल ही रही थी तो वहाँ मौजूद ग्रामीण हमसे सवाल-जवाब करने लगे। वे इस बात से नाराज थे कि हमने चर्च के वीडियो शूट किए हैं। धर्मांतरण और ईसाई मिशनरियों की गतिविधि को लेकर सवाल पूछ रहे हैं। कुछ हमारे वीडियो भी बनाने लगे। माहौल गर्म होता देख हम गाँव से लौट गए।

क्रुस चौक पर जुटे ग्रामीण और वह जगह जिसे ‘साहेब कोना’कहते हैं

वापसी के समय हम उस कच्चे रास्ते पर बढ़े जो ‘साहेब कोना’ की तरफ जाता है। वहीं कोरकोटोली के 65 वर्षीय कलाबेल से हमारी मुलाकात हुई। चौथी तक पढ़ाई करने वाले कलाबेल भी खेती-किसानी करते हैं। वे स्नान करने के बाद खुले में अपने कपड़े सुखा रहे थे। खड़कोना की तरह ही कोरको टोली भी ईसाई बहुल गाँव है। कलाबेल ने बताया, “मेरे गाँव में 35 घर हैं। इनमें से केवल 7 परिवार अब हिंदू हैं।” उन्होंने हमें वह जगह दिखाई जहाँ कथित तौर पर पहली बार ईसाई मिशनरी के लोग पहुँचे थे। वह झरना दिखाया, जहाँ उनके पूर्वजों का बपतिस्मा हुआ। वो गुफा दिखाई जिसके बारे में दावा किया जाता है कि धर्मांतरण की सूचना मिलने के बाद जब जशपुर राजपरिवार के लोग इस गाँव में पहुँचे तो उसी गुफा के रास्ते मिशनरी के लोग भाग गए थे। अब यह जगह ईसाइयों के लिए ‘तीर्थ स्थल’ है। एक मंच भी बना हुआ है।

कलाबेल ने ऑपइंडिया को बताया, “साहेब लोग झारखंड से आते थे तो यहीं डेरा लगाते थे। यहीं गाँव के लोगों को बुलाते थे। पहले यहाँ पूरा जंगल था। 29 नवंबर को हर साल यहाँ तीर्थ यात्रा लगता है। एक-डेढ़ लाख लोग जुटते हैं।” कलाबेल के अनुसार अब ईसाई मिशनरी से ज्यादा फायदा उनलोगों को नहीं मिलता है। वे कहते हैं, “हमारे जिन पूर्वजों का धर्म बदला था, उनको फायदा दिया था। हमलोगों को वही फायदा मिलता है जो सरकार देता है।”

खड़कोना में हर जगह ईसाइयत के निशान

जब हम झरने के पास शूट कर रहे थे तो ग्रामीणों का वह समूह ‘साहेब कोना’ की तरफ आते दिखा, जिन्होंने क्रूस चौक पर हमें अपने काम से रोका था। हमारे स्थानीय संपर्क ने यह देख हमें वहाँ से निकलने की सलाह दी। उनका कहना था, “आप चले जाएँगे, लेकिन हमें यहीं रहना है…।” कच्चे रास्ते से हम मुख्य सड़क पर आ गए। रास्ते में उस चर्च के पास भी कुछ लोग जमा थे, जहाँ हमारे आने के समय सन्नाटा था और चर्च का मुख्य द्वार बंद मिला था। उनलोगों ने हमें चर्च के पास रुकने नहीं दिया। हमने तस्वीर लेने की कोशिश की तो हमें वहाँ से चले जाने को मजबूर कर दिया। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि खड़कोना में किसी प्रतिकूल परिस्थिति में फँसने पर कोई बाहरी मदद भी हमें मिलना मुश्किल था। एयरटेल और वोडाफोन के मोबाइल नेटवर्क उस इलाके में काम नहीं कर रहे थे।

खड़कोना या कोरकोटोली केवल गाँव नहीं हैं। ये बताते हैं कि सुदूर वनवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने घुसपैठ कर कैसे अपना विस्तार किया है। 2011 की जनगणना के अनुसार जशपुर जिले की करीब 22 फीसदी आबादी ईसाई है। स्थानीय वकील राम प्रकाश पांडे की माने तो यह संख्या 30-40 फीसदी तक हो सकती है। ये गाँव प्रतीक हैं, उस इकोसिस्टम का जिसे सरकारी संरक्षण हासिल है। उस संरक्षण के बलबूते उन्होंने लोकतांत्रिक भारत में अपने ऐसे इलाके गढ़ लिए हैं, जहाँ मीडिया अपनी मर्जी से सवाल भी नहीं पूछ सकती। सड़क किनारे लगे क्रॉस उनके इलाके की मुनादी करते हैं और बताते हैं कि यहाँ नाममात्र के ही हिंदू बचे हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

'द वायर' जैसे राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोधी वेबसाइट्स को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

26/11 जैसे हुई थी पहलगाम हमले की साजिश, ‘लोकल’ लोगों को शामिल ना करने का ISI ने दिया था ऑर्डर: रिपोर्ट में बताया- सरगना...

सुरक्षा एजेंसी का कहना है कि पहलगाम हमले की योजना पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने मिलकर बनाई थी।

‘अहमदाबाद-मुंबई के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन’: मीडिया रिपोर्ट्स को मोदी सरकार ने बताया झूठ, PIB ने कहा-रेल मंत्रालय ने नहीं लिया ये फैसला,...

अहमदाबाद और मुंबई के बीच जापानी बुलेट ट्रेन नहीं चलने का दावा 'फर्जी' निकला है। कुछ मीडिया संस्थानों ने इस खबर को धड़ल्ले से चलाया था।
- विज्ञापन -