Tuesday, March 19, 2024
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धर्म ही नहीं जमीन भी गँवा रहे हिंदू: कब्जे की भूमि पर चर्च-कब्रिस्तान से लेकर मिशनरी स्कूल तक, पहाड़ों का भी हो रहा धर्मांतरण

जमीन पर कब्जे से भी खतरनाक स्थानीय लोगों के मन में ईसाई मिशनरियों का डर है। हिंदुओं के भीतर का यह 'डर' ईसाई मिशनरियों के फलने-फूलने में 'खाद' का काम कर रहा है।

अपनी पिछली रिपोर्टों में हम आपको सनातन को समर्पित पहाड़ी कोरबा की जमीनों पर कॉन्ग्रेसी से लेकर ईसाई मिशनरी की गिद्ध दृष्टि के बारे में बता चुके हैं। मदकू द्वीप जैसी जगहों पर ईसाइयत की घुसपैठ से अवगत करा चुके हैं। जमीनी स्थिति इससे भी कहीं अधिक भयावह है। जमीन चाहे सरकारी (Government land) हो या अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribes) की मिशनरी कब्जा कर रहे हैं। इन जमीनों पर चर्च से लेकर स्कूल तक चल रहे हैं। कब्रिस्तान हैं। जिन पहाड़ों तक पहुँचना आसान नहीं, क्रॉस गाड़कर उनका भी धर्मांतरण कर दिया गया है। मिशनरी के इस लैंड जिहाद से वे जनजातीय हिंदू भी पीड़ित हैं जो धर्मांतरित होकर ईसाई बन चुके हैं।

यह स्थिति तब है जब छत्तीसगढ़ में विशेष कानून है। राज्य के भू राजस्व कानून की धारा 170 (ख) कहती है कि 2 अक्टूबर 1959 को यदि कोई जमीन अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के किसी व्यक्ति की रही है और बाद में उस पर किसी एसटी या गैर एसटी का कब्जा हुआ हो तो उसे दो साल के भीतर यह सूचना देनी होगी कि वह उस जमीन पर कब्जे में कैसे आया। ऐसा नहीं होने पर उसका कब्जा अवैध माना जाएगा और उसे जमीन खाली करनी होगी। वकील राम प्रकाश पांडेय के अनुसार इस कानून के तहत यदि कोई आदिवासी व्यक्ति जमीन पर कब्जे को लेकर खुद आवेदन नहीं देता है तो यह सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह पटवारी से इस बारे में रिपोर्ट माँगे कि 2 अक्टूबर 1959 को उस जमीन का मालिक कौन था और आज किसका कब्जा है। पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर भी अदालत फैसला सुना सकती है।

कुछ साल पहले राज्य के जशपुर जिले में ही ऐसे करीब 250 मामले सामने आए थे, जिनमें 170 (ख) का उल्लंघन कर एसटी वर्ग की जमीन पर चर्च बनाए गए थे। वकील राम प्रकाश पांडेय ने ऑपइंडिया को बताया, “ये मामले काफी समय से राजनितिक दखल के कारन रेवेन्यू कोर्ट में लंबित पड़े थे। इन मामलों को 2007 में हाई कोर्ट के संज्ञान में लाया गया। हाई कोर्ट ने 6 महीने के भीतर ऐसे सभी मामलों के निपटारे के निर्देश दिए। इसके बाद अधिकांश मामलों में चर्च को जमीन खाली करने के आदेश दिए गए थे। लेकिन दुर्भाग्य से कई साल बीतने के बाद जमीनें खाली नहीं हुई हैं।”

लोयोला स्कूल के प्रिंसिपल रहे आर गीट्स पर प्रशासनिक साँठगाँठ से जमीन खरीदने का है आरोप

राजनीतिक और प्रशासनिक साँठगाँठ से जुड़ा एक और मामला कुनकुरी के लोयोला हायर सेकेंडरी स्कूल का है। 50 के दशक में कुछ सालों तक इस स्कूल के प्रिंसिपल रहे आरएच गीट्स बेल्जियम के नागरिक थे। उन्होंने खुद को कुनकुरी का निवासी बताकर तत्कालीन कलेक्टर की अनुमति से इग्नेश लकड़ा नाम के एक व्यक्ति की जमीन ले ली। आज भी इस जमीन पर मिशनरी संस्था का कब्जा है और उस पर इमारत बनी हुई है, जबकि भारत में कोई विदेशी नागरिक जमीन की खरीदी कर ही नहीं सकता। पांडेय ने ऑपइंडिया को बताया, “इग्नेश लकड़ा ने इस मामले में केस किया था। कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते उसकी मौत हो चुकी है। अब उसके बच्चे इस लड़ाई को लड़ रहे हैं।”

क्लेमेंट लकड़ा जिनकी 10 एकड़ जमीन पर है मिशनरी का कब्जा

ऐसा ही मामला क्लेमेंट लकड़ा का भी है। कुनकुरी के दुलदुला निवासी क्लेमेंट के पिता भादे उर्फ वशील उरांव का धर्मांतरण 1957-58 में हुआ था। उसके बाद उनकी करीब 10 एकड़ जमीन पर मिशनरी ने कब्जा कर लिया। वशील की भी मौत हो चुकी है। क्लेमेंट ने ऑपइंडिया को बताया, “अदालत से हमारे पक्ष में फैसला आ चुका है। लेकिन मिशनरी जमीन खाली नहीं कर रहे। धमकी दे रहे हैं। बेटियों का भविष्य बर्बाद करने की बात कहते हैं।”

मिशनरियों की ताकत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि क्लेमेंट की पत्नी सुषमा लकड़ा सरपंच हैं। बावजूद इस परिवार को प्रताड़ित किया जा रहा है। निराश और हताश क्लेमेंट ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा, “अब मैं अपने पुराने धर्म में लौट जाना चाहता हूँ।” (क्लेमेंट के मामले पर हम आगे विस्तार से रिपोर्ट करेंगे। इन मामलों से जुड़े सारे कानूनी दस्तावेज भी ऑपइंडिया के पास उपलब्ध हैं)

कुनकुरी के क्रुस टोंगड़ी का विवादित कब्रिस्तान

कुनकुरी में देश का सबसे बड़ा चर्च भी है। रोजरी की महारानी महागिरिजाघर एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च भी बताया जाता है। कुनकुरी शहर के मुख्य मार्ग से जो सड़क इस चर्च के लिए जाती है, उस पर बना गेट भी विवादित है। स्थानीय लोगों का दावा है कि हाई कोर्ट के स्टे के बावजूद सरकारी जमीन पर इस गेट का निर्माण हुआ है।

चर्च के पीछे का इलाका क्रुस टोंगड़ी कहलाता है। यहाँ बहुसंख्यक आबादी धर्मांतरित है। यहाँ भी कब्रिस्तान और रोड कब्जे की जमीन पर बनाए जाने के आरोप हैं। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि कुनकुरी में मिशनरी स्कूल के पीछे जो पहाड़ी हिस्सा है, वहाँ हिंदू नियमित रूप से योग करते थे। एक दिन रातोंरात क्रॉस लगाकर उस जगह का भी धर्मांतरण कर दिया गया। इसी तरह भंडरी पहाड़ पर भी क्रॉस गाड़ दिए गए हैं, जबकि इस जगह पर आसानी से पहुँचना भी संभव नहीं है।

क्रॉस गाड़ उन पहाड़ों का भी हो रहा धर्मांतरण जहाँ पहुँचना आसान नहीं

बाइबिल का हर भाषा में अनुवाद करने के मिशन पर काम कर रही संस्था ‘अनफोल्डिंग वर्ल्ड’ के CEO डेविड रीव्स ने 2021 में बताया था कि भारत में 25 साल में जितने चर्च बने थे, उतने अकेले कोरोना काल में बनाए गए हैं। ऐसा ही एक जशपुर के गिरांग में स्थित है। यह चर्च उस जगह पर बनाई जा रही थी, जहाँ जाने के लिए रास्ता तक नहीं है। विरोध के बाद इसका निर्माण पूरा नहीं हो पाया और यह बंद पड़ा है। भाजयुमो से जुड़े अभिषेक गुप्ता ने ऑपइंडिया को बताया, “ईसाई मिशनरी इसी तरह लैंड जिहाद करती है। जहाँ खाली जगह दिखी ये क्रॉस गाड़ देते हैं। चर्च बना लेते हैं। कुछ समय बाद प्रशासनिक मिलीभगत से वहाँ जाने का रास्ता तैयार हो जाता है और फिर प्रार्थना होने लगती है। बाद में आप जितना विरोध कर लें प्रशासन कब्जा नहीं हटाता।”

कोरोना काल के दौरान गिरांग में हो रहे इस चर्च का निर्माण विरोध के बाद रोकना पड़ा था

छत्तीसगढ़ के एक जिले के इन मामलों से आप पूरे राज्य की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। इससे भी खतरनाक स्थानीय लोगों के मन में ईसाई मिशनरियों का डर है। अपनी रिपोर्टिंग के दौरान हमने पाया कि ज्यादातर लोग कैमरे पर बात नहीं करना चाहते थे। वे कई लोगों को विभिन्न मामलों में फँसाए जाने का हवाला देते हुए कह रहे थे कि खुलकर सामने आने से उनके लिए भी परेशानी खड़ी हो जाएगी। हिंदुओं के भीतर का यह ‘डर’ ईसाई मिशनरियों के फलने-फूलने में ‘खाद’ का काम कर रहा है।

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अजीत झा
अजीत झा
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