Tuesday, September 10, 2024
Homeदेश-समाजजहाँ से निकला 'सत्यमेव जयते' वहाँ भी घुस गए ईसाई मिशनरी, प्राचीन मंदिर और...

जहाँ से निकला ‘सत्यमेव जयते’ वहाँ भी घुस गए ईसाई मिशनरी, प्राचीन मंदिर और मूर्ति वाली जमीन पर क्रॉस वाले मंच से सज रहा ‘मसीही मेला’

जो द्वीप निर्जन है। खुदाई में मिले अवशेष जिस जगह के सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण अध्याय होने का प्रमाण देते हैं। उस जगह यज्ञ स्थल से कुछ ही दूर क्रॉस निशान वाले मंच का होना, धर्मांतरित हिंदुओं का सालाना जमावड़ा लगना, बताता है कि कैसे ईसाई मिशनरी हमारी विरासतों पर कब्जा जमा रहे हैं।

सत्यमेव जयते (Satyamev Jayate)। भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य। संभवतः आप जानते होंगे कि यह मंत्र ‘मुण्डकोपनिषद्’ से लिया गया है। कहते हैं कि माण्डूक्य ऋषि ने इसकी रचना मदकू द्वीप (Madku Dweep) पर की थी। यह द्वीप आज के छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस द्वीप पर सबसे बड़ा जमावड़ा हर साल फरवरी में लगता है? यह जमावड़ा सप्ताह भर चलने वाले मसीही मेला को लेकर लगता है? मसीही मेला 113 साल से लग रहा है?

संभव है कि जिस तरह से हिंदुओं का ईसाई धर्मांतरण हो रहा है, जिस तरीके से ईसाई मिशनरी देश के गली-गली में पसर रहे हैं, वैसे में एक द्वीप पर मसीही मेला लगना आपके लिए आश्चर्यजनक न हो। लेकिन मदकू द्वीप की भौगोलिक स्थिति से परिचित होने पर यह न केवल आपको अचंभित करेगा, बल्कि ईसाई मिशनरियों के उस खतरनाक इरादे से भी परिचित करवाएगा जिसके तहत वे जल, जंगल, जमीन… हर जगह कब्जा कर रहे हैं। इसी रणनीति के तहत वे आबादी बहुल मैदान से लेकर निर्जन द्वीप तक फैल रहे हैं।

शिवनाथ नदी से घिरा मदकू द्वीप

छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख शहर बिलासपुर से मदकू द्वीप करीब 40 किलोमीटर है। इस द्वीप पर पहुँचने के लिए आपको शिवनाथ नदी को पार करना पड़ता है। नदी पार करने का एकमात्र साधन नाव है। नदी तक पहुँचने से पहले आप बैतलपुर, सरगाँव जैसे ग्रामीण इलाको से गुजरते हैं। सड़क से गुजरते हुए घरों पर दिखने वाले क्रॉस के निशान और सड़क से सटे कब्रिस्तान इन इलाकों में ईसाई मिशनरियों की पहुँच की आपको पूर्व सूचना दे देते हैं। नदी पर एक एनी कट (पानी का प्रवाह रोकने के लिए निर्मित छोटा बाँध) बना हुआ है। नदी में जब पानी कम होता है तो एनी कट के रास्ते भी लोग पैदल या छोटे वाहनों से द्वीप तक चले जाते हैं। लेकिन सितंबर 2022 में जब हम मदकू द्वीप पहुँचे तो शिवनाथ नदी पूरे वेग में बह रही थी। एनी कट डूबा हुआ था।

मदकू द्वीप जाने के लिए शिवनाथ नदी को पार करना पड़ता है

नाम मदकू द्वीप क्यों?

इस जगह का नाम मदकू द्वीप होने के पीछे दो मुख्य तर्क दिए जाते हैं। इतिहासकार डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर के अनुसार यह जगह माण्डुक्य ऋषि की तपोस्थली थी। मदकू को माण्डुक्य का ही अपभ्रंश माना जाता है। दूसरा तर्क यह है कि शिवनाथ नदी की जलधारा के कारण यह जगह तैरते हुए मेढक जैसी दिखती है। मण्डूक का अर्थ मेढक भी होता है जो कालांतर में मदकू में परिवर्तित हो गया।

मदकू द्वीप का हरिहर क्षेत्र

नाव से जब आप करीब 50 एकड़ में फैले मदकू द्वीप पहुँचेंगे तो चारों तरफ घना जंगल दिखेगा। इसी घने जंगल के बीच स्थित है श्री हरिहर क्षेत्र। हरिहर क्षेत्र में कई मंदिर हैं। इनमें से एक प्राचीन गणेश मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा 2021 में ही हुई है। इस मंदिर में भगवान गणेश की जो अष्टभुजी प्रतिमा है, वह 10-11वीं सदी की बताई जाती है। इसी मंदिर से सटा एक आवास है। इसमें हरिहर क्षेत्र के पुजारी वीरेंद्र शुक्ल अपने परिवार के साथ रहते हैं। शुक्ल ने ऑपइंडिया को बताया कि वे मूल रूप से मुंगेली जिले के ही लोरमी विकास खंड के तुरबारी पठारी गाँव के रहने वाले हैं। वे 1985 में अपने पिता के साथ इस द्वीप पर आए थे। मंदिर समिति ने पूजा-पाठ के लिए उनके पिता को यहाँ नियुक्त किया था। 1990 में वीरेंद्र शुक्ल के पिता का देहांत हो गया और उसके बाद से मंदिरों में पूजा-अर्चना का दायित्व उनके पास है।

हरिहर क्षेत्र स्थित गणेश मंदिर, पुजारी का आवास और खुदाई में मिले मंदिर तथा मूर्तियों के अवशेष

परिसर में ही एक कुटिया भी है। शुक्ल ने बताया कि इस कुटिया में करीब ढाई साल से एक साधु निवास करते हैं जो अमरकंटक से आए हुए हैं। जिस दिन हम पहुँचे वे साधु मदकू द्वीप पर नहीं थे। हरिहर क्षेत्र में ही उन प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों के अवशेष भी रखे हुए हैं जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इस द्वीप पर खुदाई में मिले हैं। लेकिन इन धरोहरों की सुरक्षा के लिए हमें कोई पुख्ता इंतजाम नहीं दिखा। शुक्ल ने ऑपइंडिया को बताया, “2010-11 में एनीकट बनने के बाद आवागमन में थोड़ी सुविधा है। लेकिन यह जुलाई से अक्टूबर तक डूबा रहता है। इस जगह आमतौर पर कोई नहीं आता। शनिवार और रविवार के दिन कुछ श्रद्धालु और पर्यटक आ जाते हैं। अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद थोड़ा-बहुत विकास इस जगह का हुआ है। लेकिन अभी भी सुविधाओं का घोर अभाव है। सबसे ज्यादा भीड़ इस द्वीप पर फरवरी में एक सप्ताह तक रहती है, जब मसीही मेला लगता है।”

मदकू द्वीप पर कैसे शुरू हुआ मसीही मेला?

मसीही मेला यहाँ कैसे शुरू हुआ इस संबंध में पूछे जाने पर शुक्ल बताते हैं, “सबसे पहले बैतलपुर में कुष्ठ रोगियों के लिए एक हॉस्पिटल खोला गया। उसके बाद यहाँ धीरे-धीरे लोगों का आना शुरू हो गया। कुछ साल बाद यहाँ मेला लगने लगा। मेला के समय को छोड़कर यहाँ मिशनरी के लोगों की गतिविधि नहीं रहती है।” जिस दिन हम द्वीप पर पहुँचे थे, उस दिन गिनती के ही श्रद्धालु हरिहर क्षेत्र में थे। रमाकांत पटेल और कोलाराम पटेल अपने परिवार के साथ आए थे। दोनों सरकारी शिक्षक हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “छुट्टी के दिनों में हम बच्चों को लेकर यहाँ आ जाते हैं ताकि वे अपनी संस्कृति के बारे में जान सके।” एक अन्य श्रद्धालु सची नारायण हैदराबाद के रहने वाले थे। पेशे से डॉक्टर नारायण ने बताया कि वे छत्तीसगढ़ की यात्रा पर आए हुए हैं। इस जगह के बारे में जानकारी मिली तो घूमने चले आए। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “इस परिसर को देखने के बाद मन को थोड़ा कष्ट होता है। यह इतना विशेष भूमि, पवित्र भूमि है इसको डेवलप करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ऐसी जगहों पर आने में आसानी रहना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी संस्कृति के बारे में जान सकें।” (मदकू द्वीप पर खुदाई में मिले अवशेष और यहाँ के मंदिरों पर विस्तार से हम आगे की रिपोर्ट में बात करेंगे)

मदकू द्वीप पर क्रॉस वाला मंच

हरिहर क्षेत्र से कुछ दूरी पर एक मंच है। यदि आप एनीकट के रास्ते द्वीप पर आते हैं तो बाईं तरफ यह मंच है, जबकि दाईं ओर जो रास्ता जाता है वह आपको हरिहर क्षेत्र ले जाता है। मंच से पहले एक शिलापट्ट लगा है। इस पर मसीही मेला के बारे में जानकारी दर्ज है। साथ ही बताया गया है कि 2019 में मेला के 110 साल पूरे होने पर इस शिलापट्ट को लगाया गया है। इस शिलापट्ट से कुछ दूरी पर क्रॉस निशान वाला लंबा-चौड़ा मंच है। उस पर उल्लेखित जानकारी के अनुसार मसीही मेला की शुरुआत यहाँ 1909 में हुई थी। 2008 में 10-17 फरवरी के बीच मसीही मेला लगा था, जो आयोजन का शताब्दी वर्ष था।

मदकू द्वीप का वह मंच जहाँ लगता है मसीही मेला

नाव से नदी पार कराने वाले सुदर्शन केवट ने ऑपइंडिया को बताया, “बैतलपुर में क्रिश्चियन लोगों का बस्ती है। अंग्रेज जमाने में वहाँ से इस द्वीप पर आना-जाना शुरू हुआ। उसके बाद ये मेला शुरू हुआ। जो क्रॉस गड़ा है, वह उनका इलाका है। बाकी उनका कुछ नहीं है। बाकी सब हिंदू का है।” केवट ने बताया, “अगल-बगल के सभी गाँव में क्रिश्चियन हैं। अभी भी वे लोग (ईसाई मिशनरी) आते-जाते रहते हैं। कभी-कभी किसी गाँव में कोई क्रिश्चियन भी बन जाता है।” उन्होंने हमें यह भी बताया कि जब से छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार बनी है इस द्वीप पर काम नहीं हुआ है। विकास के जो भी काम दिखते हैं वे रमन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के जमाने के हुए हैं।

जो द्वीप निर्जन है। खुदाई में मिले अवशेष जिस जगह के सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण अध्याय होने का प्रमाण देते हैं। उस जगह यज्ञ स्थल से कुछ ही दूर क्रॉस निशान वाले मंच का होना, धर्मांतरित हिंदुओं का सालाना जमावड़ा लगना, बताता है कि कैसे ईसाई मिशनरी हमारी विरासतों पर कब्जा जमा रहे हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

फेसबुक चाहता है वामपंथियों का टूल बना रहे विकिपीडिया, भारत विरोधी प्रचार में आता रहे काम: हमने बनाया 186 पन्नों का डोजियर, उन्होंने रिपोर्ट...

सरकार को Wikimedia Foundation पर यह प्रभाव डालना चाहिए कि वे कानूनी रूप से भारत में एक आधिकारिक उपस्थिति स्थापित करे और भारतीय कानूनों के अनुसार वित्तीय जाँच से गुजरें।

जब राहुल गाँधी के पिता थे PM, तब सिखों की उतारी पगड़ियाँ-काटे केश… जलाए गए जिंदा: 1984 नरसंहार का वह इतिहास जिसे कॉन्ग्रेस नेता...

राहुल गाँधी ने अमेरिका में यह बताने की कोशिश की है कि भारत में भारत में सिखों को पगड़ी और कड़ा पहनने की इजाजत नहीं है, जबकि इसी कॉन्ग्रेस के रहते सिखों का नरसंहार किया गया था।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -