Monday, November 18, 2024
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मिसाइलमैन के जन्म दिवस को ‘राष्ट्रीय छात्र दिवस’ घोषित करने की माँग

बीजेपी नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद आनंद भास्कर रापोलू ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के जन्म दिवस यानी 15 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय छात्र दिवस’ घोषित करने की माँग की है। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को चिट्ठी लिखी है।

बीजेपी नेता रापोलू ने लिखा, “देश के युवाओं को इनोवेशन के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए हमारी पार्टी ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने का एक महत्वपूर्ण फैसला लिया था। मैंने इस मुद्दे को पूर्व एचआरडी मिनिस्ट्री के सामने भी उठाया था।” इसके अलावा उन्होंने दिल्ली के औरंगजेब रोड का भी ज़िक्र किया, इस रोड का नाम बदलकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम रख दिया गया है।

अपनी चिट्ठी में उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि बीजेपी ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को चुनने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और केंद्र सरकार ने भी उनके साथ राष्ट्रीय राजधानी में एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम देकर उनकी स्मृति को याद किया। उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री से आग्रह किया कि वे इस दिन को उसी उत्साह के साथ मनाएँ, जिस तरह पूरा देश 21 जून को ‘विश्व योग दिवस’ और 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ के रूप में मनाता है। जिस दिन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का निधन हुआ, देश के कई विश्वविद्यालय और संस्थान 15 अक्टूबर को अपने तरीके से मनाते हैं।

वर्ष 2002 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला था। देश उन्हें ‘मिसाइल मैन’ के नाम से भी याद करता है। भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने के पीछे उनका बहुत बड़ा योगदान था।

आप नेता बंगाल में डाक्टरों के विरोध से अनजान, सांकेतिक विरोध पर उठाया सवाल, ट्विटर पर छिड़ा घमासान

यह दावा करने के बाद कि दिल्ली में AAP सरकार द्वारा प्रस्तावित मुफ्त मेट्रो यात्रा योजना से दिल्ली मेट्रो की आय बढ़ जाएगी, पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन किया। दरअसल, कोलकाता में डॉक्टरों पर हमला करने वाले गुंडों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग करते हुए डॉक्टरों की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर छाई हुई है। इस फ़ोटों में सभी डॉक्टर्स ने अपने सिर पर जो पट्टी बाँधी है उसमें माथे पर लाल पैच (सांकेतिक चोट) लगा हुआ है।

न्यूज़ एजेंसी ANI द्वारा ख़बर स्वरूप इस फ़ोटो को शेयर किया गया जिस पर आप नेता संजय सिंह ने प्रतिक्रिया दर्ज की और लिखा, “ये ANI की फ़ोटो है या फिर फ़ोटो शाप है इसमें तो सारे डॉक्टर को एक ही जगह चोट लगी है।”

ऐसा लगता है कि AAP नेता को बंगाल में डॉक्टर्स की हड़ताल के बारे में कुछ नहीं मालूम है, और इसीलिए उन्हें यह भी नहीं मालूम है कि उन्हीं डॉक्टर्स के समर्थन में पूरे देश के डॉक्टर्स अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने प्रतीकात्मक स्वरूप माथे पर पट्टी बाँधी और सांकेतिक चोट के ज़रिए डॉक्टर्स पर हुए हमले का विरोध जताया। ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में NRS अस्पताल में डॉक्टरों पर हमले के विरोध में, डॉक्टर अपने सिर पर लाल दाग वाली पट्टियाँ लपेट रहे हैं, और कुछ हेलमेट पहने हुए भी दिखाई दिए। संजय सिंह ने जिस फ़ोटो पर प्रतिक्रिया दी, वह एम्स की है, जहाँ डॉक्टर्स ने ऐसा ही किया। यह विरोध प्रदर्शनों में इस्तेमाल किए जाने वाले काले बैंड के उपयोग के समान है, और इस बारे में AAP सांसद को छोड़कर पूरे देश में सब जानते हैं।

एक डॉक्टर एक सहयोगी को पट्टी पर लाल दाग लगाने में मदद करते हुए


बाद में, संजय सिंह ने ट्वीट किया कि एक पत्रकार मित्र ने उन्हें सूचित किया है कि एम्स में डॉक्टर नकली पट्टियों के साथ विरोध कर रहे हैं, और कहा कि यह सही नहीं है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को इस तरह के विरोध प्रदर्शनों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इस तरह की फ़ोटो से यह भ्रम फैलने का डर है कि पूरे देश में डॉक्टर्स को पीटा जा रहा है।

अत: यह बात स्पष्ट हो गई है कि श्री सिंह विरोध में प्रतीकों के इस्तेमाल के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, और उन्हें लगता है कि लोग डॉक्टर्स पर सच में हमले कर रहे हैं।

वन नेशन वन कार्ड: एक ही कार्ड से कर सकेंगे पूरे देश के मेट्रो में सफर

केंद्र सरकार जल्द ही एक नया स्मार्ट कार्ड लॉन्च करने जा रही है, जिसे देश के सभी मेट्रो में प्रयोग किया जा सकेगा। वन नेशन वन कार्ड की तर्ज पर एक शहर के मेट्रो जरिए देश में किसी भी शहर में सभी परिवहन सुविधा का लाभ उठाया जा सकता है। इस कार्ड की मदद से यात्रा के अलावा शॉपिंग भी की जा सकती है। फिलहाल लोगों को दूसरे शहर में जाने पर अलग से मेट्रो कार्ड या टोकन लेना पड़ता है, लेकिन सरकार जो नया कार्ड लॉन्च करेगी, उसका देश के किसी भी शहर में मेट्रो में इस्तेमाल किया जा सकता है, बस इसका इस्तेमाल करने से पहले उस शहर के काउंटर पर रिचार्ज कराना होगा। जानकारी के मुताबिक, शुरुआत में इस स्मार्ट कार्ड का उपयोग सिर्फ मेट्रो के लिए काम करेगा। फिर 2 महीने बाद डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड वाले फीचर भी शुरू कर दिए जाएँगे। एनएमआरसी की बसों में इसका इस्तेमाल डेबिट और क्रेडिट कार्ड की तरह किया जा सकेगा।

हालाँकि, इस स्मार्ट कार्ड का प्रयोग सीमित यात्राओं के लिए ही हो सकेगा। इन कार्ड को बनवाने के लिए Know Your Customer (KYC) प्रक्रिया अनिवार्य होगी और यह अलग-अलग बैंको से ही लिए जा सकेंगे। KYC प्रक्रिया को इसलिए अनिवार्य किया गया है, ताकि कार्ड का इस्तेमाल कोई दूसरा शख्स न कर सके। मेट्रो कार्ड एक तरह से क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड की तरह ही होगा। जिसका प्रयोग करना काफी आसान होगा। साथ ही ये भी व्यवस्था की जा रही है कि कार्ड के खो जाने या चोरी हो जाने पर इसे ब्लॉक करने के साथ ही नया कार्ड भी बनावाया जा सके।

कार्ड अगले 6 महीनों में लॉन्च किया जा सकता है। वन नेशन वन कार्ड प्रॉजेक्ट से जुडे़ एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसे लोग जो कम समय के लिए भारत आएँ हों या किसी शहर में उनके रुकने की अवधि बहुत कम हो, वो लोग वन नेशन वन कार्ड का प्रयोग नहीं कर सकेंगे। केवाईसी प्रक्रिया को पूरा किए बिना उनके लिए वन नेशन वन कार्ड जारी नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए एक वैकल्पिक कार्ड की व्यवस्था की जा रही है। जिसके लिए पासपोर्ट और आधार कार्ड जरूरी होगा। देश के नागरिकों को इस कार्ड के लिए आधार कार्ड की कॉपी तो वहीं विदेशी नागरिकों को पहचान पत्र के तौर पर पासपोर्ट की प्रति जमा करानी होगी।

पाकिस्तान से मिलने वाले रुपयों को लेकर आपस में झगड़ रहे हैं J&K के अलगाववादी

NIA द्वारा कश्मीरी अलगाववादियों के ख़िलाफ़ चलाई जा रही जाँच में कुछ अहम बातें पता चली हैं। जाँच एजेंसी ने कहा है कि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को विदेश से काफ़ी फंडिंग मिली लेकिन इन्होंने इन रुपयों का इस्तेमाल अपने व्यक्तिगत फायदों के लिए किया। अलगाववादी नेताओं ने अपने लिए अकूत संपत्ति का अर्जन किया और अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजा। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस व अन्य अलगाववादी संगठनों के कई नेताओं से पूछताछ के दौरान इन लोगों ने स्वीकार किया कि उन्हें कश्मीर में अलगाववाद फैलाने के लिए पाकिस्तान से फंडिंग मिलती है।

दुख़्तरन-ए-मिल्लत की नेत्री आसिया अंद्राबी के बेटे ने मलेशिया में पढ़ाई की है और टेरर फंडिंग मामले में गिरफ़्तार ज़हूर वटाली ने उसका पूरा ख़र्च वहन किया था। एनआईए ने इस मामले में अंद्राबी से पूछताछ की। अंद्राबी ने पूछताछ के दौरान स्वीकार किया कि वह और उनका संगठन विदेश से रुपए जुटाता है और फिर कश्मीर में महिलाओं द्वारा प्रदर्शन कराने के लिए इन रुपयों का इस्तेमाल किया जाता है। अंद्राबी के बेटे मोहम्मद बिन वसीम ने मलेशिया में रहते हुए जिन बैंक खातों का प्रयोग किया, उसके बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए एनआईए पहले ही सम्बद्ध अधिकारियों से संपर्क कर चुकी है।

एक अन्य अलगाववादी नेता शब्बीर शाह से पहलगाम में उनके होटल सम्बंधित व्यापार को लेकर पूछताछ की गई। उस होटल के पाकिस्तान से प्राप्त किए गए रुपयों का इस्तेमाल कर के बनाए जाने की बात सामने आई है। पाकिस्तान के आकाओं और “ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस” के नेताओं द्वारा हुर्रियत से जुड़े संगठनों के खातों में रुपए ट्रांसफर किए गए। एनआईए के पास इससे सम्बंधित सबूत हैं और इसे लेकर शब्बीर शाह से पूछताछ की गई। शब्बीर के जम्मू, श्रीनगर और अनंतनाग में भी व्यापार हैं।

एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि विदेशी फंडिंग को लेकर अलगाववादी नेताओं में भी आपस में मतभेद है। कश्मीरी पत्थरबाजों के ‘पोस्टर बॉय’ मशरत आलम ने एनआईए को बताया कि हवाला के जरिए पाकिस्तान से रुपए अलगाववादियों को भेजे जाते हैं। इस फंडिंग और इसके प्रयोग को लेकर अलगाववादी नेता आपस में ही लड़ाई कर रहे हैं, ऐसा आलम ने दावा किया है। यासीन मलिक और वटाली अभी जाँच एजेंसी के कब्ज़े में है और सुप्रीम कोर्ट ने वटाली की जमानत याचिका खारिज़ कर दी थी। टेरर फंडिंग की जाँच कर रही एनआईए ने कई गिरफ्तारियाँ की है और अब मामले में सिर्फ़ कड़ियाँ जोड़ने का काम किया जा रहा है।

एनआईए ने कई अन्य अलगाववादियों को भी हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की है। कयास लगाए जा रहे हैं कि टेरर फंडिंग के मामले में उनकी निशानदेही पर कश्मीर घाटी से कुछ अन्य गिरफ्तारियाँ भी हो सकती हैं।

बिहार AES त्रासदी: धिक्कार है ऐसे निकम्मे नेताओं पर, जिनकी वजह से एक-एक कर मर रहे हैं मासूम

‘एक्यूट इन्सेफ़लाईटिस सिंड्रोम (AES)’- एक ऐसी बीमारी जिसे बिहार में ‘चमकी बुख़ार’ के नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी आज की नहीं है, नई नहीं है और अचानक से पैदा हुई भी नहीं है। आज से 7 वर्ष पहले जब इसी गठबंधन की सरकार थी, यही मुख्यमंत्री थे, तब 120 बच्चों को इस बीमारी की वजह से जान गँवानी पड़ी थी। आज जब उस भयानक त्रासदी के 7 वर्ष बीतने को आए, स्थिति अभी भी जस की तस है। उस समय अगर इस बीमारी के निदान को लेकर गहनता एवं गंभीरता से रिसर्च की शुरुआत की गई होती, एक्स्पर्स्ट्स को बुला कर इस विषय में राय ली गई होती और अस्पतालों में इसके बचाव के लिए समुचित व्यवस्था की गई होती, तो शायद बिहार को आज ये दिन न देखना होता।

कुछ नहीं हुआ, और अगर कुछ हुआ भी तो सिर्फ़ कुछ औपचारिक बातें। आज स्थिति इतनी भयावह है कि बिहार स्थित मुजफ्फरपुर के डॉक्टर श्री कृष्णा अस्पताल (SKMCH) में एक बेड पर दो-दो या फिर तीन-तीन बच्चों को रखा गया और इससे भी बदतर स्थिति यह हुई कि बच्चों को फर्श तक पर लिटाया गया। ताज़ा ख़बर मिलने तक लगभग 93 बच्चों के मरने की बात सामने आई है, पूरे बिहार में यह आँकड़ा 100 से ऊपर है। स्थिति नियंत्रण से बाहर है, सरकारों के हाथ पर हाथ धर कर बैठने का परिणाम देश के सबसे पिछड़े राज्यों में एक के ग़रीब भुगत रहे हैं। वे करें भी क्या करें, जाएँ भी तो कहाँ जाएँ? मुजफ्फरपुर के अस्पताल परिजनों के क्रंदन से गूँज रहे हैं।

इस आपदा को लेकर सरकारी उदासीनता पर अजीत अंजुम की विस्तृत कवरेज (साभार: TV9 भारतवर्ष)

परिजनों के चीत्कार के बीच डॉक्टरों की कमी से जूझते अस्पतालों की समस्याएँ भी सामने आ रही हैं। आपको जान कर बहुत आश्चर्य होगा लेकिन बिहार के अस्पतालों में डॉक्टरों की 70% सीटें रिक्त हैं। जी हाँ, बिहार स्वास्थ्य सेवा आयोग के अध्यक्ष रणजीत कुमार के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं में 11,393 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं लेकिन अभी सिर्फ़ 2700 नियमित डॉक्टर ही कार्य कर रहे हैं। मेडिकल की शिक्षा की हालत तो यह है कि राज्य में 65% सीटें (असिस्टेंट प्रोफेसर से ऊपर की) खाली हैं। न अस्पतालों में डॉक्टर हैं और न मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक। इसके ज़िम्मेदार कौन लोग हैं?

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) ने जैसा प्रस्तावित किया था, प्रत्येक 1000 की जनसंख्या पर 1 डॉक्टर होने चाहिए। 1983 में भारत सरकार द्वारा ड्राफ्ट की गई पहली स्वास्थ्य नीति के अनुसार, प्रत्येक 3500 लोगों की जनसंख्या पर 1 डॉक्टर होने चाहिए। लेकिन, क्या आपको पता है बिहार की इस मामले में क्या स्थिति है? बिहार में 1000 और 3500 तो छोड़िए, यहाँ प्रत्येक 50,000 की जनसंख्या पर एक डॉक्टर हैं। आखिर स्थिति क्यों न भयावह हो? ये तो रही आँकड़ों की बात। अब वर्तमान पर आते हैं। अगर मुजफ्फरपुर में ऐसी स्थिति थी, जब एक-एक दिन में 25 बच्चों की जानें जा रही थीं, तब भागलपुर, पटना और सीवान सहित अन्य जिलों से अतिरिक्त डॉक्टरों को बुला कर क्यों नहीं लगाया गया?

ऐसे समय में जब पिछले 14 वर्षों से एक ही दल मुख्य सत्ताधारी पार्टी है और उस दल का मुखिया (जीतन राम माँझी के 10 महीने के कार्यकाल को हटा कर) ही बिहार में सरकार का भी मुखिया है, फिर भी ऐसी स्थिति क्यों आई? क्या नीतीश कुमार का अर्थ सिर्फ़ सत्ता होता है? अगर ऐसा नहीं है तो मीडिया व अपनी पार्टी के नेताओं द्वारा सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश ऐसा क्यों कहते हैं कि लोगों की लापरवाही के कारण बच्चों की जानें जा रही हैं? नीतीश के अनुसार, जागरूकता अभियान में कमी रह जाने के कारण ऐसी स्थिति आई है। नीतीश ने इतना कह कर इतिश्री कर ली। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री राज्य भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं, बड़े नेता हैं।

जब वह मुजफ्फरपुर अस्पताल का दौरा करने पहुँचे तब अस्पताल प्रशासन ने ब्लीचिंग पाउडर वगैरह छिड़कवा कर यह दिखने की कोशिश की कि उन्होंने अपने स्तर पर कोई कमी नहीं छोड़ी है। अस्पताल के अन्दर इलाज कर रहे डॉक्टर एक टीवी चैनल से बातचीत करते हुए कहते हैं कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी होने की वजह से ऐसी स्थिति आई है और वे बिना खाए-पिए बच्चों का इलाज करने में लगे हुए हैं। उसी न्यूज़ चैनल के कवरेज में एक सीनियर अधिकारी बीमार बच्चों के बिलखते परिजन को डाँटते हुए नज़र आते हैं। क्या यह ग़लत नहीं है? अपने सामने अपने बीमार बच्चे को मरते हुए देख रही माँ को डाँटने-फटकारने वाला राक्षस नहीं है तो क्या है?

और उस अधिकारी के ऊपर जो सिस्टम खड़ा है, जिसमें नेता व शीर्ष अधिकारी शामिल हैं, उन पर भी धिक्कार है। अस्पताल परिसर में मासूमों की जानें जाती हुई देखती माओं व दादियों को अस्पताल प्रशासन से इलाज के बदले फटकार मिल रही है। एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी। इस महिलाओं की आहों से तो सत्ताएँ हिलनी चाहिए थी, इन ग़रीब महिलाओं से उनके बच्चों को छीन लेने वाले बीमारी को लेकर कुछ न करने वाली सरकारों को आत्मग्लानि होनी चाहिए थी। ये स्थिति तब है, जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में राज्यमंत्री के रूप में एक बिहारी बैठा हुआ है। भागलपुर के सांसद अश्विनी कुमार चौबे कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं? हम बताते हैं आपको।

10 जून को एक दिन में 25 बच्चों की मौतें होती हैं। उसके 2 दिन बाद देश के स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे पटना पहुँचते हैं लेकिन इंसेफलाइटिस से हो रही मासूमों की मौत को लेकर कुछ एक्शन लेने के लिए नहीं, अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए। इसके बाद वह भागलपुर पहुँच पर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के निर्माण का निरिक्षण करते हैं। बच्चों की मौत के लिए लीची को ज़िम्मेदार बताते हुए वो कहते हैं कि खाली पेट लीची खाने से यह बीमारी हो रही है और इस बारे में और अधिक रिसर्च किया जा रहा है। केंद्र व राज्य की पीठ थपथपाते हुए वह कहते हैं कि अब जागरूकता फैलाने में राज्य सरकार ने अच्छा काम किया है। यह अजीब है।

एक अनुभवी नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री कहते हैं कि राज्य सरकार ने जागरूकता फैलाने के मामले में अच्छा काम किया है। राज्य के मुख्यमंत्री कहते हैं कि राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियान में अधिकारियों की उदासीनता की वजह से कमी रह गई। जनता किसकी बात मानें? केंद्र व राज्य में समान पार्टी व गठबंधन की सरकार होने के बावजूद ये उलटी गंगा बह रही है, क्यों? 12 जून को पटना पहुँचे चौबे को 4 दिनों तक मुजफ्फरपुर पहुँचने की फुर्सत नहीं मिलती, क्यों? राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जब मुजफ्फरपुर आते हैं तो उनके काफ़िले को रास्ता देने के लिए एक एम्बुलेंस को रोका जाता है, क्यों? यह असली जंगलराज है। यहाँ बच्चों की जानें क़ीमती नहीं है, क्योंकि वे ग़रीब परिवारों से आते हैं।

सरकारें रिसर्च करती रह जाएगी और इस बीमारी से बच्चे मरते रहेंगे। यह कब तक चलेगा? अस्पतालों में आईसीयू वार्ड की ऐसी हालत है, जैसी किसी घटिया धर्मशाला की भी नहीं होती। इससे जनरल वार्ड का अंदाज़ा आप लगा ही सकते हैं। आज रविवार (जून 16, 2019) को जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का स्वास्थ्य मंत्री मुजफ्फरपुर निरीक्षण के लिए पहुँचे थे, उस दौरान 4 बच्चों की जानें गईं। 12 जून को बिहार पहुँचे चौबे 4 दिनों तक भागलपुर से मुजफ्फरपुर की 240 किलोमीटर की दूरी तब तक नहीं तय कर पाए, जब तक केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन स्थिति का जायजा लेने नहीं पहुँचे। यह उदासीनता, यह नज़रअंदाज़ी, यह बेरुखी किसलिए? वो भी बिहार के मासूम बच्चों से।

मुजफ्फरपुर के विधायक भी राज्य सरकार में मंत्री हैं। सारे बड़े नेताओं के रहते हुए भी अगर 84 बच्चों की जानें चली जा रही हैं और अभी भी कोई ऐसी तैयारी हुई नहीं है जिससे निकट भविष्य में यह क्रम रुकता दिख रहा हो, ऐसे में, यह स्थिति और भी भयावह नज़र आती है। एक मासूम के भाई ने अस्पताल की चौपट व्यवस्था देख कर कहा कि अगर इसका इलाज सही से नहीं किया जाता है तो उसे भी गोली मार दी जाए। मुख्यमंत्री को अब तक मुजफ्फरपुर पहुँचने की फुर्सत नहीं मिली है। 80 किलोमीटर का रास्ता तय करने में नीतीश को कितना समय लगेगा, यह आगे पता चलेगा। लेकिन, इस बीच सवाल यह है कि नेताओं के दौरों से होगा भी क्या, क्या असर होगा?

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के दौरे से कुछ तो हुआ नहीं। बच्चों की हर घंटे मौत हो रही है। अगर यही हाल रहा तो अगले वर्ष भी हम इसी स्थिति में होंगे। मौत का आँकड़ा बढ़ता चला जाएगा, फिर मंत्रियों के दौरे होंगे, मीडिया में बात आएगी और फिर इस बीमारी के कम होते ही अगले वर्ष तक के लिए यह सिलसिला थम जाएगा। सत्ताभोगी नेताओं ने बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं को गर्त में पहुँचा कर रख दिया है, उन्हें उन माँओं की हाय लगेगी, जिन्होंने अपने बच्चे सरकारी उदासीनता की वजह से खो दिए। ये नेतागण दौरे कर के भी SKMCH में क्या बदल देंगे? एक रात में क्या बदल जाएगा? सरकार के पास न कार्ययोजना है और न कोई विजन, ऐसे में इस बीमारी को लेकर अभी तक कोई ठोस पहल की बात सामने आई नहीं है।

भारत-पाकिस्तान मैच को लेकर माहौल बना रही मीडिया भी दोषी है। भागलपुर में बैठ कर 4 दिन गुजारने वाले और फिर भी मुजफ्फरपुर में चल रही त्रासदी को लेकर कुछ न करने वाले चौबे दोषी हैं। पिछले डेढ़ दशक से सत्ता के सिरमौर बने नीतीश दोषी हैं। अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी कॉलेजों में प्रोफेसरों की भारी कमी के लिए राज्य व केंद्र सरकारें दोषी हैं। वर्षों से चली आ रही इस बीमारी को लेकर गंभीरता से रिसर्च न कराने व इसके लिए समुचित संसाधन की व्यवस्था न कर पाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में बैठने वाला हर मंत्री और शीर्ष अधिकारी दोषी है। तुरंत समुचित व्यवस्था न करने के लिए स्थानीय प्रशासन दोषी है। बीमार बच्चों को फटकारने वाला अस्पताल प्रशासन दोषी है। और ऐसे नेताओं को सर पर चढ़ाने के लिए दोषी हैं, हम और आप।

भारत बनाम पाकिस्तान विश्वकप मुकाबलों में

रविवार को भारत और पाकिस्तान एक बार फिर एक दूसरे से भिड़ेंगे। यह विश्व कप में भारत का सातवाँ मुकाबला होगा पाकिस्तान से और अब तक सभी मुकाबले भारत ने जीते हैं। बहुत सारे लोग इसको विश्व कप का एक और मुकाबला कह रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है। जब भी भारत और पाकिस्तान एक दूसरे से मिलते हैं तो दोनों देशों के प्रशंसक अति उत्साहित हो जाते हैं और ऐसा लगता है कि जैसे युद्ध आरंभ होने वाला है।

पता नहीं ऐसा क्या है कि जब भी भारत-पाकिस्तान एक दूसरे से विश्वकप में भिड़े हैं पाकिस्तान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दे पाता। हम सभी को याद है कि कैसे 80 और 90 के दशकों में पाकिस्तान भारत को हराया करता था खासतौर पर शारजाह में जहाँ कई बार ऐसा लगा कि अंपायर पाकिस्तान को मदद कर रहे हैं।

मुझे अच्छी तरह याद है 1992 का मुकाबला जब पहली बार भारत पाकिस्तान विश्वकप में भिड़े थे। यह भारत बनाम पाकिस्तान, सचिन तेंदुलकर और मेरा, तीनों का पहला विश्व कप था। वह विश्व कप जिसकी वजह से क्रिकेट मेरे लिए धर्म बन गया। वह मुकाबला मुझे अच्छी तरह याद है, भारत ने पहले बल्लेबाजी की थी और एक खराब शुरुआत, श्रीकांत के रूप में पहला विकेट जल्दी गिरने के बावजूद भारत ने अच्छा स्कोर खड़ा किया था। इस अच्छे स्कोर का श्रेय अजय जडेजा, सचिन तेंदुलकर, और कपिल देव को जाता है। खास तौर पर सचिन तेंदुलकर और कपिल देव जिन्होंने आखरी कुछ ओवर में ताबड़तोड़ बैटिंग करते हुए भारत का स्कोर 200 के पार पहुँचा दिया। उन दिनों में 200 के ऊपर का लक्ष्य भी बहुत अच्छा माना जाता था।

यह तस्वीर १९९२ विश्व कप की सबसे यादगार तस्वीरो में से एक है| ©Getty Images

पाकिस्तानी जब बल्लेबाजी करने आए तो उन्होंने भी पहला विकेट जल्दी गँवा दिया था। मुझे याद है कि इंजमाम उल हक कितना पतला हुआ करता था उस समय। सोहेल और मियांदाद के बीच एक अच्छी साझेदारी हुई थी पर उसको तेंदुलकर ने तोड़ दिया जब सोहेल ने कैच श्रीकांत को दे दिया। मियांदाद अपनी हरकतों के लिए बहुत मशहूर है उसमें भी उन्होंने एक ऐसी हरकत की जिसके लिए आज भी उन्हें याद किया जाता है। किरण मोरे की लगातार अपील करने की वजह से मियांदाद खिसिया गए थे और मेंढक की तरह उछलने लगे। इस हरकत की वजह से अजहरुद्दीन ने तुरंत ही अंपायर डेविड शेफर्ड को कहा कि यह गलत हो रहा है और डेविड शेफर्ड ने तुरंत मियांदाद को समझाया कि वह इस तरह की हरकत ना करें। इस मैच में सचिन ने मैन ऑफ द मैच जीता।

1996 में भारत का पाकिस्तान से मुकाबला बेंगलुरु में हुआ। उस समय सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था, तो हमारे घर में दैनिक जागरण आया करता था। शुरू से मेरी आदत थी कि सुबह उठते ही सबसे पहले खेलकूद का पन्ना मुझे मिल जाए और उस समय हालात तो यह थे कि मुकाबले के ३ दिन पहले से ही, तीन से चार पन्ने केवल भारत और पाकिस्तान के मुकाबले के बारे में हुआ करते थे। इतना बेहतरीन विश्लेषण होता था उसमें कि लगता था जैसे सब कुछ मेरे सामने हो रहा है ।

मुकाबला शुरू हुआ था तो मुझे लगा था जैसे कि तेंदुलकर से कहा गया है कि वह आराम से खेलें और पूरे 50 ओवर खेल कर वापस आएँ। उस समय हालात ऐसे हुआ करते थे कि सचिन आउट तो पूरी टीम आउट। शायद इसीलिए उनको कहा गया था कि वह ज्यादा से ज्यादा समय विकेट पर टिककर बताएँ। दूसरी छोर पर सिद्धू थे जिन्हें स्पिन गेंदबाजी खेलने का बहुत अनुभव था। हालांकि सचिन जल्दी आउट हो गए पर सिद्धू ने रन गति बनाए रखी। मध्यक्रम के बल्लेबाजों ने भले ही 25-30 रन बनाए पर उन्होंने बखूबी सिद्धू का साथ दिया। आखरी तीन ओवर में तो कमाल ही हो गया, जडेजा ने कुंबले और श्रीनाथ की सहायता से आखिरी 3 ओवर में 51 रन जोड़े भारत के खाते में। शायद वकार यूनुस की पिटाई पहले कभी इतनी नहीं हुई थी और ना ही कभी आगे हुई। उनके आखिरी दो ओवर में 22 और 18 रन चुराए भारतीय बल्लेबाजों ने।

प्रसाद ने सोहैल को आउट करके दर्शको मे उत्साह बढ़ा दिया ©Getty Images

खेल का असली रोमांच पाकिस्तान की पारी में आया। एक बेहद शानदार शुरुआत सईद अनवर और आमिर सोहेल ने पाकिस्तान को दी। दोनों ने मिलकर 11ओवरों में 88 रन जोड़ दिए, पूरे स्टेडियम में केवल शांति छाई हुई थी। तभी एक गलती कर बैठे सोहेल, प्रसाद की गेंद पर चौका मारने के बाद उन्होंने प्रसाद को बोला कि वह गेंद लेकर आए बाउंड्री से। उस समय रवि शास्त्री और इमरान खान कमेंट्री बॉक्स में कमेंट्री कर रहे थे। मुझे याद है कि इमरान खान बहुत प्रफुल्लित होकर इस दृश्य को बयां कर रहे थे टीवी पर और रवि शास्त्री उस समय एकदम मौन थे। अगली गेंद पर सोहेल ने फिर से कसकर मारना चाहा पर वह गेंद सीधे उनके विकेटों पर जा लगी। सोहेल का चेहरा देखने लायक था और प्रसाद तो पूरी फॉर्म में थे, उन्होंने शायद पहली बार हिंदी में गालियाँ दी थी। केवल मैदान पर ही नहीं कमेंट्री बॉक्स में भी माहौल बदल गया था। अब बारी थी रवि शास्त्री की थी और वह फूले नहीं समा रहे थे खेल का विवरण देते हुए, वहीं इमरान खान अब एकदम शांत हो गए थे।

यह एक अलग ही तरह का अनुभव था, सचिन तेंदुलकर ने शोएब अख्तर की गेंद पर जो छक्का लगाया था 2006 के विश्व कप में शायद वही एक ऐसा पल होगा जो प्रसाद की उस गेंद का मुकाबला कर सके। सिद्धू को उनकी 93 रन की पारी के लिए मैन ऑफ द मैच मिला।

1999 का मुकाबला कारगिल के युद्ध के दौरान हुआ था। दबाव ज्यादा भारतीय खिलाड़ियों पर था क्योंकि सीमा पर जवान जो लड़ रहे थे वह भी चाहते थे कि भारत जीते। कारगिल का युद्ध भारत ने नहीं शुरू किया था, यह युद्ध पाकिस्तान की तरफ से शुरू हुआ था जब उन्होंने अपने कुछ घुसपैठिये भारत की सीमा के अंदर भेजे थे। यह शायद पहला ऐसा मुकाबला भी था भारत और पाकिस्तान के बीच जब सीमा पर भारी तादाद में मीडियाकर्मी पहुँचे हुए थे और इंतजार कर रहे थे भारत की जीत का ताकि वह सेना के जवानों का जोश देख सकें। इस मुकाबले में भी भारत ने पाकिस्तान को बहुत ही आसानी से हरा दिया। 47 रन की जीत वह भी तब जब भारत ने केवल 227 रन का स्कोर खड़ा किया था। इस मैच में भी प्रसाद छाए रहे और उन्होंने 5 पाकिस्तानी बल्लेबाजों को आउट कर दिया था। इस प्रदर्शन के लिए प्रसाद को मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला।

1999 में प्रसाद एक बार फिर पाकिस्तानी बल्लेबाजों पर भारी पड़े| ©Getty Images

2003 में भारत पाकिस्तान फिर से आपस में भिड़े और 1 साल पहले ही यह पता चल गया था कि दोनों किस तारीख को एक दूसरे से भिड़ेंगे। शिवरात्रि का दिन था और पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाजी करके 273 रन का लक्ष्य दिया भारत को। सचिन तेंदुलकर जो पिछले 11 दिन से सो नहीं पाए थे केवल यह सोचकर कि भारत और पाकिस्तान का मुकाबला होगा तो वह कैसे बल्लेबाजी करेंगे, खासतौर पर उन गेंदबाजों के खिलाफ जो कि उस समय के सर्वश्रे्ठ गेंदबाजों में से एक थे। पर बल्लेबाजी आने पर जो धुनाई की उन्होंने पाकिस्तानी गेंदबाजों की वह आज तक कोई भूल नहीं पाया है। विश्व कप के ठीक पहले शोएब अख्तर ने कहा था कि सचिन तेंदुलकर तेज गेंदबाजी को सही से नहीं खेल पाते और उस मैच में सचिन तेंदुलकर ने सबसे ज्यादा धुनाई उन्हीं शोएब अख्तर की थी। शोएब के पहले ओवर में सचिन ने पहले तो अपर कट मार के छह रन लिए, उसके बाद दो बेहतरीन टाइमिंग के साथ चौके मारे, भारत का स्कोर 2 ओवर में 27 रन। गुरु को देखकर शिष्य ने भी बल्ला चलाना शुरू किया, और सहवाग ने वकार यूनुस की गेंद पर छक्का ठीक उसी अंदाज में मारा जैसे सचिन ने शोएब को मारा था। भारत केवल 5 ओवर में 50 रन पार कर गया था।

सचिन के 98 रन की वो पारी शायद ही कोई कभी भूल पाए | ©Getty Images

सचिन ने कुल 98 रन बनाए थे केवल 75 गेंदों में। युवराज सिंह और राहुल द्रविड़ ने मिलकर भारत को लक्ष्य चार ओवर पहले ही पूरा कर लिया। सचिन एक बार फिर से मैन आफ द मैच घोषित किए गए।

भारत और पाकिस्तान का पांचवा मुकाबला 2011 के विश्व कप में मोहाली में हुआ। यह विश्व कप का सेमीफाइनल था और जो टीम जीतती वो फाइनल में श्रीलंका के साथ खेलती। भारत ने पहले बल्लेबाजी की और सहवाग ने अपने ताबड़तोड़ अंदाज में भारत को बेहतरीन शुरुआत दी। मैच में रोमांच केवल खिलाड़ी नहीं बल्कि अंपायर और डीआरएस भी ला सकते हैं यह उसी दिन पता चला। सईद अजमल की गेंद पर सचिन तेंदुलकर को अंपायर ने पगबाधा करार दिया। सचिन ने गंभीर विचार विमर्श करके डीआरएस लिया और जब तीसरे अंपायर ने डीआरएस की मदद से देखा की गेंद पिच पर पड़ कर विकेट को बिना छुए निकल रही है तो उन्हें नाबाद घोषित कर दिया। यह सब एक बड़ी स्क्रीन पर दर्शकों को भी दिख रहा था और जब यह दिखा की गेंद विकेट को छू कर नहीं जा रही तो उस समय जो शोर हुआ वह सुनने लायक था। कमाल की बात यह है कि अगली गेंद पर सचिन के खिलाफ स्टंपिंग की अपील हुई और फिर से तीसरे अंपायर ने नाबाद घोषित कर दिया। दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता था क्योंकि दोनों समय सब कुछ बड़ी स्क्रीन पर देख रहा था। अजमल आज तक नहीं समझ पाए कि डीआरएस उनके पगबाधा की अपील को खारिज कैसे कर सकता है।

सचिन तेंदुलकर अकेले ही पाकिस्तान से लोहा लेते हुए |

उस मैच में सचिन को करीब चार से पाँच जीवनदान मिले थे, जिनकी मदद से सचिन ने 85 रन आउट होने से पहले बनाए। पारी के अंत में सुरेश रैना ने कुछ जबरदस्त शॉट लगाकर भारत के स्कोर को 250 के पार पहुँचाया। जब भारत की गेंदबाजी की बारी आई तो गेंदबाजों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। भारत ने पाँच गेंदबाजों का उपयोग किया था उस मैच में और पाँचों ने दो-दो विकेट लिए। यह मैच मुनाफ पटेल का जिक्र किए बिना पूरा नहीं हो सकता, उनकी एक गेंद अब्दुल रज्जाक को रुक कर आई और वो विकेट ले उड़ी। यह एक बेहतरीन गेंद थी और शायद मुनाफ पटेल ने अपने जीवन में इससे बेहतरीन गेंद शायद ही फेंकी हो। सचिन को तीसरी बार मैन आफ द मैच का पुरस्कार मिला। ये उनका विश्व कप का नौवां और आखिरी मैन आफ द मैच पुरस्कार था।

क्या विराट कोहली फिर से २०१५ वाला प्रदर्शन दोहरा पाएँगे? ©ICC

2015 का मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच उस विश्व कप का उनका पहला मुकाबला भी था। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 300 रनों का लक्ष्य दिया पाकिस्तान को। भारत बनाम पाकिस्तान के विश्व कप इतिहास में पहली बार किसी भारतीय बल्लेबाज ने 100 रन का आँकड़ा पार किया। जी हाँ, विराट कोहली भारत के ऐसे पहले बल्लेबाज, छह मुकाबलों के बाद बने जो पाकिस्तान के विरुद्ध शतक लगा पाया। पाकिस्तान ने केवल 47 ओवर में ही समर्पण कर दिया, उनकी पूरी टीम केवल 224 रन ही बना पाई। ऐसा आमतौर पर देखा गया है कि जब लक्ष्य का पीछा करना हो तो पाकिस्तानी बल्लेबाज अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दे पाते और शायद ऐसा ही कुछ इस मुकाबले में भी हुआ। विराट कोहली को उनके शानदार शतक के लिए मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला।

अब रविवार को जब भारत पाकिस्तान से भिड़ेगा तो यह वही मैदान होगा जहां पर 1999 में यह दोनों आपस में भिड़े थे। अगर बारिश ने विघ्न नहीं डाला और एक पूरा मैच हुआ तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि भारत पाकिस्तान को एक बार फिर से पटखनी देगा। सभी उम्मीद कर रहे होंगे कि इंद्र देव कृपा बनाकर रखें ताकि एक रोमांचक मुकाबला देखने से कोई भी वंचित ना हो।

पुलिसकर्मी एजाज़ ने सिविल पुलिस अधिकारी सौम्या पर तलवार से हमला कर जलाया

केरल में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक महिला पुलिस अधिकारी सौम्या पुष्पाकरन की उसके साथी पुलिस अधिकारी, एजाज़ ने तलवार से काटकर हत्या कर दी, और फिर उसे जला दिया। सौम्या एक सिविल पुलिस ऑफिसर (CPO) थीं, जिनकी तैनाती वल्लिकुन्नम पुलिस स्टेशन में थी। उनकी उम्र लगभग 35 वर्ष थी और वो तीन बच्चों की माँ थीं, उनके पति विदेश में नौकरी करते हैं।

ख़बर के अनुसार, सौम्या पास के स्कूल में छात्र पुलिस कैडेट सदस्यों के साथ अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद लगभग 4 बजे स्कूटी से घर लौट रही थी। एजाज़, जो एक किराये की कार में पहले से ही उस पर घात लगाए बैठा था, उसने सौम्या का पीछा किया और सौम्या की स्कूटी को धक्का देकर उन्हें सड़क पर गिरा दिया। एजाज़ को कार से उतरता देख सौम्या वहाँ से भागने की कोशिश करने लगी, लेकिन एजाज़ ने सौम्या पर तलवार से हमला बोल दिया। इसके बाद भी सौम्या किसी तरह वहाँ से भागने में क़ामयाब रही और अपने पड़ोसी के घर तक जा पहुँची। एजाज़ उसका पीछा करते-करते वहाँ तक भी जा पहुँच और पेट्रोल छिड़कर सौम्या को जला दिया।

आग लगने से सौम्या की मौक़े पर ही मौत हो गई जबकि एज़ाज 40 फ़ीसदी तक जल गया। फ़िलहाल, उसे अलाप्पुझा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया। ख़बर के अनुसार, सौम्या का चयन 2014 में केरल पुलिस में हुआ था और त्रिशुर स्थित केरल पुलिस अकादमी में महिला सिविल पुलिस अधिकारी के 11वें बैच का हिस्सा बनी थीं। मार्च 2015 में उन्होंने अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली थी। ट्रेनिंग के आख़िरी दिन एजाज़ ट्रेनिंग देने के लिए हवलदार के रूप में आया था। टीम को उसने दो-तीन महीने तक ट्रेनिंग दी। इसी दौरान दोनों में दोस्ती हो गई।

वहीं, एक साल पहले पुलिस स्टेशन में शामिल होने के बावजूद, सहयोगियों ने कहा कि एजाज़ का किसी से कोई क़रीबी रिश्ता नहीं था। कई अन्य ख़बरों से यह भी पता चला कि दोनों के बीच एक प्रेम संबंध था, जिसमें अब दिक्कतें आने लगी थी। हालाँकि, पुलिस ने कहा है कि सौम्या की हत्या का मक़सद अभी भी स्पष्ट नहीं है।

सौम्या की एक दोस्त ने ख़ुलासा किया था कि दोनों की मुलाक़ात पिछले कुछ महीनों के प्रशिक्षण के दौरान हुई थी जिसके बाद वे दोस्त बन गए थे। एक इंवेस्टिगेशन ऑफ़िसर ने कहा, “सौम्या का पति विदेश में रहता है। एजाज़ ने सौम्या को अपने साथ रहने के लिए दबाव डाला लेकिन सौम्या ने इनकार कर दिया और उससे दूरी बना ली। संभवत: इसी वजह से उसने सौम्या पर हमला किया हो, हालाँकि हमने अभी आरोपित का बयान नहीं लिया है और हमें जानकारी को क्रॉसचेक करना होगा।”

केंद्र सरकार ने 30 विश्वविद्यालयों में EWS आरक्षण लागू करने के लिए दिए ₹1500 करोड़

आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की दिशा में केंद्र सरकार ने पहल की है। केंद्र ने 2019-20 शैक्षणिक सत्र से सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण लागू करने के लिए 30 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को ₹1,496 करोड़ जारी करने की मंजूरी दी है। इससे 2019-20 के सत्र में एडमिशन लेने वाले छात्रों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

हालाँकि, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और विश्व भारती जैसे कुछ विश्वविद्यालयों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पहले ही स्वीकृति पत्र मिल चुके हैं और कुछ अन्य जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को जल्द ही स्वीकृति पत्र मिलने की संभावना है। डीयू को ₹143.8 करोड़ की मंजूरी मिली है, जबकि इससे संबद्ध कॉलेजों के लिए सरकार ने ₹47.2 करोड़ स्वीकृत किए हैं।

सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण किसी अन्य श्रेणी के आरक्षण को प्रभावित किए बिना मिलेगा। यानी कि ये आरक्षण एससी/एसटी/ओबीसी जैसी अन्य श्रेणियों को मिलने वाले आरक्षण से अलग होगा। इससे आर्थिक रुप से गरीब छात्रों के लिए प्रत्येक विश्वविद्यालय या संस्थान में सीटों की संख्या में 25 फीसदी की वृद्धि होगी।

जानकारी के अनुसार, अधिकतर विश्वविद्यालयों में बढ़ी हुई 25 सीटों को दो चरणों में लागू करने वाली है। 2019-20 शैक्षणिक सत्र में 10 फीसदी और 2020-21 में 15 फीसदी सीटों को लागू किए जाने की संभावना है। वैसे, जेएनयू समेत कुछ अन्य विश्वविद्यालयों के 2019-20 के शैक्षणिक सत्र में ही इसे लागू करने की खबर है।

एचआरडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आगामी शैक्षणिक सत्र से आर्थिक रुप से कमजोर छात्रों के आरक्षण के कार्यान्वयन के लिए कुल ₹1,496 करोड़ मंजूर किए गए हैं। जिनमें से रखरखाव के लिए ₹230 करोड़, सैलरी के लिए ₹249 करोड़ जारी किए गए हैं, तो वहींं ₹957 करोड़ निर्माण और बुनियादी ढाँचे के लिए दिए गए है।

फिलहाल स्नातक स्तर पर 23 आईआईटी में 12,000 सीटें हैं। दो चरणों में ईडब्ल्यूएस कोटा लागू होने पर ये संख्या बढ़कर लगभग 17,000 हो जाएगी। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने मंगलवार (जून 11, 2019) को केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों के साथ बैठक की और फिर उन्होंने कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को मंजूरी पत्र प्रदान किया।

कहाँ गायब हो गया दुर्घटनाग्रस्त AN-32 को खोजने के लिए निकला ‘लोकल टार्ज़न’?

भारतीय वायुसेना के गायब हुए विमान AN-32 का मलबा मिल गया है और इसमें सवार सभी 13 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। इस दुःखद घटना के बाद इस ट्रांसपोर्ट विमान का ब्लैक बॉक्स भी मिल गया है। पर्वतारोहियों व वायुसेना की टीम ने सभी जवानों व पायलट के शवों को घने जंगल से बरामद किया। उन शवों को वहाँ से निकालने के लिए हैलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया। ये विमान 3 जून को गायब हुआ था, ऐसे में इसे खोजने के लिए वायुसेना को ख़ासी मशक्कत करनी पड़ी। रूस निर्मित इस विमान के उड़ान भरने के 33 मिनट बाद गायब हो जाने की ख़बर आने के बाद पूरा देश इसमें सवार वायुसैनिकों की सलामती की दुआएँ कर रहा था।

जब यह विमान रडार से गायब हुआ था, तभी वायुसेना के जवानों को यह एहसास हो गया था कि अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों में उसे ढूँढना कितना कठिन है। बचाव कार्य या फिर विमान को खोज निकाल कर मलबों व शवों को ढूँढने के लिए सिर्फ़ टेक्नोलॉजी से काम नहीं चलेगा, यह बात वायुसेना से जुड़े अधिकारियों को पता थी। टी यूबी नामक एक स्थानीय व्यक्ति को उधर के गाँवों में ‘लोकल टार्ज़न’ के नाम से जाना जाता है। बता दें कि टार्ज़न एक ऐसा किरदार है, जो जंगल व जानवरों से निकटता के कारण जाना जाता है और जंगलों में बेख़ौफ़ होकर विचरण करना उसकी ख़ासियत है।

AN-32 को खोजने निकले ‘लोकल टार्ज़न’ के बारे में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की ख़बर (साभार: TOI)

टी यूबी भी बयोर पर्वत के चप्पे-चप्पे से परिचित हैं और इन जंगलों में अक्सर शिकार करते रहने के कारण उन्हें इसकी दुर्गमता के पूरा अनुभव है। 40 वर्षीय यूबी को स्थानीय अधिकारियों ने 15 किलो चावल और कई अन्य चीजें देकर इस विमान का पता लगाने को कहा और यूबी इस कार्य के लिए निकल भी गए। यूबी के साथ शिकारियों, ग्रामीणों व पुलिस वालों की टीमें भी भेजी गईं, जो साथ-साथ इस कार्य में उनकी मदद कर सके और ज़रुरत पड़ने पर ज़रूरी कार्य कर सकें।

वायुसेना को AN 32 का मलबा तो मिल गया लेकिन अफ़सोस, अभी तक यूबी का कुछ पता नहीं चला है। अभी तक उनके लौटने की कोई सूचना नहीं है। यूबी ने खोजी अभियान के दौरान अधिकारियों को कई सूचनाएँ दी थीं और काफ़ी मदद भी की थी लेकिन उनका अभी तक नहीं लौटना इलाक़े में चर्चा का विषय है। तमूत और टेकसेंग नामक पर्वतारोहियों ने परी अदि पहाड़ के पास विमान के मलबे को देखा और वहाँ तक चढ़ाई शुरू की। वायुसेना के एक चॉपर ने पर्वतारोहियों को वहाँ तक पहुंचाया। 

भारतीय वायुसेना में कमीशन पाने पर चीफ से मिले ‘विंग्स’, गौरव का क्षण

भारतीय वायुसेना में फ्लाइंग ऑफ़िसर के पद पर कमीशन पाने पर जी नवीन कुमार रेड्डी को वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ ने ऐसे नायाब तोहफ़े से नवाज़ा कि वो ज़िंदगी भर इस लम्हे को नहीं भूल सकेंगे। 15 जून 2019 को हैदराबाद के पास डुंडीगल स्थित वायु सेना अकादमी से बेहद मुश्किल ट्रेनिंग पास करने के बाद नवीन कुमार रेड्डी भारतीय वायु सेना में कमीशन पाकर फ्लाइंग ऑफ़िसर बने। इस मौक़े पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल धनोआ ने अपनी वर्दी पर से अपने विंग्स निकालकर जी नवीन कुमार रेड्डी के सीने पर सजा दिए। इस ख़ास मौक़े पर वायु सेना प्रमुख ने कहा, “मैं सितंबर में अपनी वर्दी उतार रहा हूँ तो मेरे विंग्स एक युवक के लिए दे रहा हूँ ताकि वो फ्लाइंग की चुनौतियों और कसौटियों पर खरा उतर सके।”

ग़ौरतलब है कि भारतीय सेना प्रमुख बीएस धनोवा सितंबर में रिटायर हो रहे हैं। फ्लाइंग ऑफ़िसर नवीन कुमार रेड्डी को वायु सेना अकादमी के इस बैच में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर मिला। आपको बता दें कि यह सम्मान उस कैडेट को दिया जाता है जिसने पूरी ट्रेनिंग के दौरान हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया हो। इसमें राष्ट्रपति की तरफ से सम्मान पट्टिका के साथ वायु सेना प्रमुख के हाथों एक तलवार भी मिलती है। विंग्स किसी कैडेट को तब मिलते हैं जब वो वायु सेना में कमीशन पाता है। इसे वर्दी पर सामने पहना जाता है।

ये लम्हा यादगार इसलिए भी बन गया क्योंकि इस दौरान फ्लाइंग ऑफ़िसर नवीन कुमार रेड्डी की माता-पिता भी मौजूद थे। फ्लाइंग ऑफ़िसर नवीन कुमार रेड्डी के पिता जी पुल्ला रेड्डी भारतीय सेना में सूबेदार रैंक के पद पर हैं। अपने बेटे की इस सफलता पर उन्होंने कहा कि उनकी दिल्ली तमन्ना थी कि उनका बेटा भारतीय सेना में अफ़सर बने। इसी वजह से उन्होंने अपने बेटे को आंध्र प्रदेश के विजियानगर ज़िले के कोरूकोंडा सैनिक स्कूल भर्ती कराया था।