Monday, November 18, 2024
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बुरी ताकतों को भगाने की आड़ में आजम ने दरगाह में किया किशोरी से बलात्कार

हैदराबाद में पुलिस ने आज़म नामक व्यक्ति को एक किशोरी के साथ बलात्कार करने के आरोप में गिरफ़्तार किया है। खबर के अनुसार बोरबंदा इलाके में रहने वाले आज़म ने उसी इलाके की 19-वर्षीया किशोरी के साथ झाड़-फूँक के बहाने दो बार बलात्कार किया।

कर्नाटक की दरगाह में पहला बलात्कार, किशोरी के घर में दूसरा

आरोपित आज़म ने कथित तौर पर पहले परिवार और उसके घर से जान पहचान बढ़ाई। उसके बाद उसने परिवार को यह कहना शुरू किया कि उनके घर में बुरी शक्तियाँ हैं, जिन्हें भगाए जाने की ज़रूरत है। आज़म ने परिवार को सलाह दी कि कर्नाटक के बीदर जिले में स्थित एक दरगाह पर जाने से इससे छुटकारा मिल सकता है।

परिवार के साथ ही गए आज़म ने दरगाह में किशोरी को परिवार से अलग कर उसके साथ पहला बलात्कार किया। पंजगुट्टा के एसीपी तिरुपाटन्ना के अनुसार, “जब वे लोग यात्रा से लौटे, तो आज़म ने फिर से उनके घर जाकर लड़की के परिवार वालों को घर से बाहर निकल जाने को कहा ताकि वह बुरी ताकतों को भगाने वाली हमदें/आयतें पढ़ सके। किशोरी को अकेला पाकर आरोपित ने कथित तौर फिर से उसके साथ बलात्कार किया।”

आज़म के खिलाफ धारा 376 (बलात्कार) का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मुकदमा एसआर नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया है। लड़की को भरोसा सेंटर में काउंसलिंग और मेडिकल जाँच के लिए भेज दिया गया है। आरोपित को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।

चर्च में नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ के आरोप में पादरी गिरफ्तार

आंध्र प्रदेश के अनंतपुरम जिले में अपने स्कूल में 14 साल की एक लड़की से छेड़छाड़ के आरोप में कल (जून 15, 2019) एक पादरी को गिरफ्तार किया गया। पादरी एमिली राज तडीपत्री में एक गिरजाघर के साथ स्कूल का संचालन करता है। पादरी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) कानून, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून की धाराओं में निरुद्ध करके उसे 28 जून तक न्यायिक हिरासत में अनंतपुरम जेल भेज दिया गया है।

इस मामले पर पुलिस का कहना है कि लड़की ने दो दिन पहले इसकी शिकायत की थी, जिसके आधार पर आरोपित एमिली राज को हिरासत में लिया गया है। लड़की द्वारा शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद तडीपत्री सर्कल इंस्पेक्टर एस चिना गोविंद और अन्य पुलिसकर्मियों ने एक टीम का गठन करके तलाशी शुरू की। तलाशी अभियान के दौरान आरोपित पादरी को हैदराबाद के बाहरी इलाके से पकड़ा गया।

एसपी बी सत्या येसुबाबू का कहना है कि एमिली राज के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने के साथ ही ये मामला गृह मंत्री एम. सुचारिता के संज्ञान में भी लाया गया है। उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले में कोई नरमी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

‘Self-Styled Godman’ या ‘धर्मगुरु’ जैसे शब्दों से मजहब नहीं मीडिया की बदनीयत पता चलती है

‘Self-Styled godman’ या ‘धर्मगुरु’ शब्द चाहे आप कहीं सुनें, या फिर गूगल इमेज सर्च में ढूंढ लें, केवल हिन्दू बाबाओं की ही तस्वीर आपके दिमाग में भी कौंधेगी (क्योंकि न जाने कितनी पुश्तें मीडिया में यही सुनते-पढ़ते बड़ी हुईं हैं), और गूगल में भी दिखेगी (क्योंकि गूगल की algorithms भी उन्हें लिखने वालों की तरह वामपंथी और समुदाय विशेष के कुकर्मों को छिपाने वाली हैं, और वह जिन वेबसाइटों से ‘सीखतीं’ और चित्र लेतीं हैं, उनमें भी ‘Self-Styled godman’ शब्द के साथ हिन्दुओं के ही चित्र लगे हुए हैं)। कुल मिलाकर ‘Self-Styled godman’ शब्द हमेशा हिन्दू धर्मगुरुओं के लिए इस्तेमाल होता है, यह मीडिया का आम सत्य है। लेकिन इंडिया टुडे समेत पत्रकारिता का समुदाय विशेष इस शब्द का इस्तेमाल उस हेडलाइन में करता है, जिसमें खबर आज़म नामक मौलवी द्वारा हैदराबाद में एक किशोरी के साथ बलात्कार की है।

झाड़-फूँक के बहाने किया बलात्कार

हैदराबाद के बोरबंदा में रहने वाले आज़म को पुलिस ने उसी इलाके में रहने वाली 19-वर्षीया किशोरी के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार किया है। आरोप है कि उसने पहले कर्नाटक की दरगाह ले जाकर, और फिर लड़की के खुद के घर में उसके साथ बलात्कार किया। उसने घर में बुरी ताकतों के घर करने का हवाला देकर माँ-बाप का ऐसा विश्वास जीता कि बेटी के साथ कर्नाटक की दरगाह में जाकर भी उसे आज़म के भरोसे उतनी देर के लिए अकेला छोड़ दिया जितनी देर आज़म को अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए चाहिए थी, और वापिस आने पर भी उन्होंने बेटी को आज़म के हुक्म पर उसके हवाले कर दिया और घर के बाहर निकल आए।

यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, इसमें कोई संदेह नहीं- अल्लाह के नाम पर बलात्कार करने वाला पीड़िता से इहलोक और परलोक दोनों में सुरक्षा का विश्वास छीन लेता है। अगर आरोप साबित हो जाए तो इसके लिए कानून को आज़म पर बिलकुल रहम नहीं दिखाना चाहिए। लेकिन इसमें प्रायः हिन्दू बाबाओं के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द ‘Self-Styled godman’ घुसाने का क्या अर्थ है?

यह शब्द मीडिया न जाने कब से हिन्दू धर्मगुरुओं को ‘एक्सपोज़’ करने के लिए इस्तेमाल करता रहा है। और ऐसा भी नहीं कि यह केवल नकारात्मक अर्थ में, नकली झाड़-फूँक करने वाले, आज़म के हिन्दू समकक्ष ढोंगियों के लिए इस्तेमाल होता आया हो। जब मर्ज़ी आती तब मीडिया इसे असली ठगों और ढोंगियों के लिए इस्तेमाल करता है (जैसे रामपाल, राम रहीम इंसां आदि), और जब सुविधा होती है तो यही शब्द बाबा रामदेव, रमन महर्षि, सद्गुरु जग्गी वासुदेव और श्री श्री रविशंकर जैसे सम्मानित और सच्चे हिन्दू आध्यात्मिक व्यक्तित्वों के लिए इस्तेमाल होता है। यकीन न हो तो यह देखिए:

वही शब्द रमण महर्षि के लिए, और वही शब्द रामपाल के लिए- और इस लिंक पर यदि आप जाएँ तो वही शब्द गुरमीत राम रहीम सिंह के लिए

और इतिहास से लौटकर यदि वर्तमान में आएं तो पत्रकारिता का समुदाय विशेष इस घटना की हेडलाइनें लिखता है:

समुदाय विशेष में कब से ‘स्वयंभू बाबा’ और ‘धर्मगुरु’ होने लगे? स्वयंभू भी संस्कृत शब्द है, जो हिन्दुओं में उन ‘शिवलिंगों और विग्रहों’ के लिए इस्तेमाल होता है जिनकी उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, और ‘धर्म’ और ‘गुरु’ दोनों ही हिन्दुओं के शब्द हैं। हेडलाइन में आज़म को या तो आज़म ही लिखते, या फिर ‘मौलवी’, ‘मौलाना’, ‘दरवेश’, ‘पीर’ या और कोई इस्लामी शब्द इस्तेमाल करते

हिन्दुओं ने क्या सबकी गंदगी अपने माथे ढोने का ठेका ले रखा है?

पहली बार नहीं हो रहा है

ऐसा भी नहीं है कि यह गलती पहली बार हो रही हो। पहले भी पत्रकारिता का समुदाय विशेष यही ‘गलती’ न जाने कितनी बार कर चुका है। और पकड़े जाने, लताड़े जाने पर माफ़ी माँगने और गलती का अहसास होने का ढोंग करने के बाद फिर से, बार-बार लौट कर चला आता है हिन्दुओं के मुँह पर थूकने। और हिन्दू हर बार उनके थूकने, कालिख मलने के लिए अपने चेहरे तैयार रखते हैं। कब खौलेगा इस देश के हिन्दू का खून इतना कि इनके सब्सक्रिप्शन रद्द कर दिए जाएंगे, इनकी वेबसाइट पर विज्ञापन देने वाले उत्पाद निर्माताओं पर ईमेल/सोशल मीडिया से यह दबाव बनाया जाएगा कि हिन्दूफ़ोबिक मीडिया में विज्ञापन देने वालों के उत्पाद हिन्दू शब्द प्रयोग नहीं करेंगे?

आजकल नेटफ्लिक्स के हिन्दूफ़ोबिक शो लीला पर हिन्दुओं के खून में बासी कढ़ी वाला उबाल आया हुआ है। अभी गुस्सा है, 24 घंटे में फुस्स हो जाएगा। ‘लीला’ बनाने वाले भी यह जानते हैं, अख़बारों में हिन्दूफ़ोबिक हेडलाइन लगाने वाले एडिटर भी यह जानते हैं। कहीं न कहीं अपना आउटरेज टाइप करते हुए अपने दिल में आप भी यह जानते है- हिन्दू पाँच मिनट भड़केगा, सोशल मीडिया पर आउटरेज करेगा, सोचेगा कि सरकार मोदी-भाजपा की होते हुए ऐसा क्यों हो रहा है, और मन मसोस कर बैठ जाएगा। लेकिन हिन्दुओं को सम्मान मिलना, या कम-से-कम यह अपमान होना तभी बंद होगा, जब उनके इस अनुमान, इस ‘विश्वास’ की धज्जियाँ उड़ाते हुए आप और हम उनके आर्थिक हितों की पाइपलाइन काट कर यह याद दिलाएंगे (एक बार नहीं, बार-बार, हर बार) कि हिन्दुओं का अपमान करने वालों को हिन्दुओं से बिज़नेस नहीं नसीब होगा।

इस्लामिक बैंकिंग के नाम पर धोखा देने वाले को कॉन्ग्रेस के मंत्री देने वाले थे ₹600 करोड़

इस्लामिक बैंक के नाम पर धोखाधड़ी करने वाले मंसूर खान से जुड़े नए ख़ुलासे लगातार हो रहे हैं। इसी कड़ी में आज फिर एक नया मामला सामने आया है। ख़बर के अनुसार, कर्नाटक सरकार के एक मंत्री मंसूर खान को बेलआउट पैकेज के तौर पर 600 करोड़ रुपए देने वाले थे। लेकिन, मंत्री साहब के इस इरादे पर एक वरिष्ठ IAS अधिकारी ने पानी फेर दिया।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार, मंसूर ख़ान ने फ़रार होने से पहले एक मुस्लिम नेता के ज़रिए मंत्री से मुलाक़ात की थी। ये लोग जिस घोटाले को अंजाम देने जा रहे थे वो लगभग 1700 करोड़ रुपए का था, जिसमें 30,000 मुस्लिम निवेशकों ने मुनाफ़ा कमाने के लालच में एक मोटी रक़म मंसूर ख़ान को दे दी थी।

ख़बर में इस बात का भी ज़िक्र है कि मंसूर ख़ान ने लोन लेने के लिए एक बैंक से सम्पर्क किया था। लेकिन, बैंक को मंसूर को मिले धोखाधड़ी के नोटिस के बारे में पहले से ही पता चल चुका था। बैंक ने मंसूर ख़ान से राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) लाने को कहा। चूँकि मंसूर ख़ान की सत्ता में बड़े स्तर पर जान-पहचान थी, इसलिए वो NOC लाने में सक्षम रहा।

मंसूर ख़ान की चाल उस वक़्त क़ामयाब ना हो सकी, जब लोन के दस्तावेज़ पर IAS अधिकारी ने हस्ताक्षर करने से साफ़ इनकार कर दिया। IAS अधिकारी पर मंत्री का दबाव भी था, बावजूद इसके उन्होंने मंसूर ख़ान के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर न करने पर अटल रहे।  

मंसूर ख़ान ने मुस्लिमों का धन हड़पने की योजना बनाई थी, जिसके तहत उसने इस्लामिक बैंकिंग और हलाल निवेश के नाम पर एक फ़र्म बनाई जिसका नाम रखा ‘आई मॉनेटरी एडवाइज़री’ (I Monetary Advisory). इस्लामिक बैंक के नाम पर मंसूर ख़ान ने अपने समुदाय के लोगों से इस फ़र्म में निवेश करने को कहा। उसने इस फ़र्म में निवेश करने के लिए उन लोगों को अपना निशाना बनाया जो किसी अन्य वित्तीय फ़र्म में निवेश करने से कतराते हैं। निवेश आने पर मंसूर ने निवेशकों के धन से ज्वैलरी, रियल एस्टेट, बुलियन ट्रेडिंग, फॉर्मेसी, प्रकाशन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में जमकर व्यवसाय किया और अँधी कमाई अपने नाम की।

मुस्लिम समाज से पैसे निवेश करवा कर और उन्हें 14% से 18% के लाभ का सपना दिखाकर अब मंसूर खान रफ़ूचक्कर हो गया। निवेशक जब बेंगलुरु के शिवाजीनगर स्थित IMA के दफ्तर में अपना पैसा माँगने पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं मिला। अब मंसूर खान कहाँ है, यह किसी को नहीं पता।

मैंगो मैन हाजी कलीमुल्लाह के बगीचे में उगेंगे अमित ‘शाह’ नाम के खास आम

बाजार में जल्द ही आम की नई किस्म बिक्री के लिए मौजूद होगी। इसका नाम भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अमित शाह के नाम पर दिया गया है। ‘मैंगो मैन’ के नाम से जाने जाने वाले हाजी कलीमुल्लाह ने अमित शाह के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर एक आम की इस नई किस्म को ‘शाह’ नाम दिया है। इस आम के स्वाद और वजन दोनों में बढ़िया होने के दावे किए जा रहे हैं। इसके जल्द ही बाजार में आने की उम्मीद है। कलीमुल्लाह के मुताबिक अमित शाह में सामाजिक ताना-बाना बुनने और लोगों को एक मंच पर लाने की काबिलियत है।

शाह आम कुछ ही दिनों में पकने लगेगा और फिर इसे बाजार में उतारा जाएगा। पद्म श्री से सम्मानित कलीमुल्लाह का कहना है कि लोगों का आना-जाना तो लगा रहता है, लेकिन फल हमेशा ही रहते हैं और लोगों को फलों से लगाव भी होता है। आम को अमित शाह के नाम से जोड़ने का उनका मकसद यही है कि ऐसे लोगों को अच्छे काम के लिए इस फल के जरिए हमेशा याद किए जाएँगे।

जानकारी के मुताबिक, लखनऊ के पास मलीहाबाद में कलीमुल्लाह के आम के बागान हैं। वे आम की नई-नई किस्में ईजाद करने और सेलिब्रिटीज के नाम पर उनका नाम रखने के लिए जाने जाते हैं। इससे पहले वो पीएम मोदी, अभिनेत्री ऐश्वर्या रॉय बच्चन, पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, अभिनेता अमिताभ बच्चन के नाम पर आम का नाम रख चुके हैं।

हाजी कलीमुल्ला ने 2015 में आम की एक शाही किस्म का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रखा था। उन्होंने तब कहा था, “मेरी इच्छा है कि मैं उन्हें खुद फलों के राजा को पेश कर सकूँ और मुझे भरोसा है कि वह इसे जरूर पसंद करेंगे।” मोदी आम का स्वाद अच्छा है तथा यह देखने में भी अच्छा है। कलीमुल्लाह ने कहा, “जिन्होंने भी इस आम को चखा है, चाहे वह अधिकारी हो या इस फल के पारखी, सभी ने इसकी स्वाद की तारीफ की है।”

‘Terror Monitoring Group’ बना रहे अमित शाह, आतंकी फंडिंग की तोड़ेंगे कमर

गृह मंत्री अमित शाह जिहादियों की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए संबंधित एजेंसियों की सदस्यता वाला एक विशेष समन्वय समूह बना रहे हैं। जम्मू-कश्मीर सीआईडी के अतिरिक्त डीजीपी की अध्यक्षता में गठित ‘टेरर मॉनिटरिंग ग्रुप’ (टीएमजी) नामक इस समूह की जिम्मेदारी घाटी के जिहादियों को मिल रही आर्थिक सहायता को काटना होगा। इसके लिए संयुक्त कदम उठाने में यह समूह, जिसमें आतंकरोधी गतिविधियों से जुड़ी लगभग हर केंद्रीय एजेंसी (रॉ के अतिरिक्त) के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल होंगे, सक्रिय भूमिका निभाएगा। इस ग्रुप के सदस्यों में आईबी, NIA, सीबीआई, CBIC, CBDT और ED के अधिकारी शामिल होंगे।

एजेंसियाँ देंगी टीएमजी को जानकारी

टीएमजी का खाका गृह मंत्रालय में इस तरह से खींचा गया है कि इसमें शामिल प्रतिनिधि अपनी-अपनी एजेंसियों द्वारा दहशतगर्दों के खिलाफ उठाए जा रहे क़दमों की जानकारी टीएमजी के ज़रिए एक-दूसरे की एजेंसियों के साथ साझा करेंगे। इससे एजेंसियों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान में कमी, जिसे दशकों से भारतीय सुरक्षा तंत्र में गंभीर चुनौती माना जाता रहा है, के भी समाधान की उम्मीद की जा सकती है। टीएमजी के सदस्यों में गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इंटेलिजेंस ब्यूरो, नैशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के अलावा सेंट्र्रल बॉर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्स ऐंड कस्टम्स, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ डायरेक्ट टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय के प्रतिनिधि सदस्य होंगे।

शाह की नज़रों में कश्मीर

कश्मीर की दहशतगर्दी गृह मंत्रालय का प्रभार संभालने के क्षण से ही गृह मंत्री अमित शाह की प्राथमिकताओं में है। उन्होंने पद ग्रहण करने के तुरंत बाद सर्वप्रथम कश्मीर मुद्दे पर जानकारी ली थी। इससे पहले लोकसभा निर्वाचन के समय भी जब महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला-फारूख अब्दुल्ला कश्मीर में अनुच्छेद 370/35-A हटाने पर भारत से अलगाव, कश्मीर में प्रधानमंत्री पद की वापसी आदि जैसे बयान दे रहे थे तो भी उन्होंने इस पर कड़ा रुख अख्तियार किया था। ऐसे में माना जा रहा है कि उनकी निगाहें कश्मीर में बड़ी कार्रवाई पर हैं। 4 जून को राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने उन्हें कश्मीर के ताज़ा हालात से अवगत कराया है। इस दौरान उन्होंने राज्यपाल से अमरनाथ यात्रा की भी सुरक्षा और अन्य प्रबंधों के संबंध में जानकारी ली।

ममता से बातचीत को सशर्त तैयार हुए डॉक्टर, जगह खुद तय करेंगे

पश्चिम बंगाल में हड़ताल कर रहे डॉक्टर शनिवार (जून 15, 2019) को सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ सशर्त वार्ता के लिए तैयार हो गए हैं। जूनियर डॉक्टरों ने कहा कि वो ममता बनर्जी के साथ बातचीत और चर्चा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए जगह वो खुद तय करेंगे। उनका कहना है कि ममता बनर्जी ने उन लोगों को बंद कमरे में बैठक करने के लिए बुलाया है, लेकिन वो बंद कमरे में उनके साथ बैठक कैसे कर सकते हैं, क्योंकि इस लड़ाई में पूरा राज्य उनके साथ है। इससे पहले उन्होंने राज्य सचिवालय में बनर्जी के साथ बैठक के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और इसकी बजाय उनसे गतिरोध सुलझाने को लेकर खुली चर्चा के लिए एनआरएस मेडिकल कॉलेज अस्पताल आने को कहा था।

हालाँकि, शनिवार (जून 15, 2019) को जूनियर डॉक्टरों के संयुक्त फोरम की ओर से प्रवक्ता ने कहा, “हम हमेशा से बातचीत के लिए तैयार हैं। अगर मुख्यमंत्री एक हाथ बढ़ाएँगी तो हम हमारे 10 हाथ बढ़ाएँगे। हम इस गतिरोध के खत्म होने की तत्परता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।” डॉक्टरों का कहना है कि ये मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए अहंकार की लड़ाई बन चुकी है, लेकिन उनके लिए ये अस्तित्व की लड़ाई है। डॉक्टरों ने कहा कि वो चाहते हैं कि जिस जूनियर डॉक्टर परिबाहा मुखोपाध्याय पर हमला किया गया, उनसे ममता बनर्जी मुलाकात करें, क्योंकि ये कोई अचानक हमला नहीं था, बल्कि सुनियोजित तरीके से किया गया हमला था।

इसके साथ ही, डॉक्टरों ने ममता बनर्जी की उस बात को भी झूठ बताया, जिसमें ममता ने कहा था कि जब वो एसएसकेएम हॉस्पिटल गईं थी, तो उन पर हमला हुआ था। डॉक्टरों ने कहा कि ये झूठ है। ममता बैरीकेड के घेरे में थीं और वो लोग न्याय की माँग करते हुए सिर्फ नारे लगा रहे थे। गौरतलब है कि, ममता ने डॉक्टरों की तुलना पुलिस से की थी, जिसका जवाब देते हुए डॉक्टरों ने कहा कि वो पुलिस का सम्मान करते हैं, लेकिन उन लोगों को ट्रेनिंग और हथियार दिए जाते हैं, डॉक्टरों को हथियार चलाने के लिए ट्रेंड नहीं किया जाता है।

डॉक्टरों ने कहा कि मुख्यमंत्री कहती हैं कि उन्होंने इस मसले पर राज्यपाल से बात की है, लेकिन राज्यपाल बयान जारी करके कहते हैं कि उनके फोन का ममता बनर्जी जवाब नहीं दे रही हैं। साथ ही डॉक्टरों ने ये भी कहा कि हड़ताल की वजह से बंगाल के लोगों की सेवा नहीं कर पाने का उन्हें दुख है।

सोमालिया में विस्फोट, 11 की मौत, अल क़ायदा से जुड़े संगठन अल-शबाब ने ली जिम्मेदारी

सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में हुए दो बम धमाकों में 11 लोगों की मौत हो गई और 25 अन्य घायल हो गए। देश के पुलिस प्रमुख ने शनिवार को यह जानकारी दी। अलकायदा से जुड़े आतंकवादी संगठन अल-शबाब ने हमलों की जिम्मेदारी ली है।

जनरल बशीर अब्दी मोहम्मद ने मोगादिशू में पत्रकारों को बताया कि पहला कार बम धमाका राष्ट्रपति भवन के नजदीक सुरक्षा चौकी पर हुआ जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई। दूसरा कार बम धमाका हवाई अड्डे के नजदीक सुरक्षा चौकी पर हुआ जिसमें चालक और उसके साथी की मौत हो गई। इससे पहले अक्टूबर 2017 में मोगादिशू में हुए धमाके में 500 लोगों की मौत हो गई थी, जिसकी जिम्मेदारी अल शबाब ने ली थी।

खबर के मुताबिक, पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने सुरक्षा अभियानों में वृद्धि का उल्लेख किया और कहा कि अल-शबाब प्रशिक्षण ठिकानों और एसेंबली प्वाइंट्स को निशाना बनाने वाले एयर स्ट्राइक की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। गुटेरेस ने कहा कि सोमालिया तीन दशकों के गृह युद्ध, चरमपंथी हमलों और अकाल के बाद एक कार्यशील राज्य बनने की दिशा में प्रगति कर रहा है, लेकिन असुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार इसकी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

अक्षयपात्र विवाद: The Hindu की पहले लीपापोती, फिर मामला ‘सलटाने’ का दावा

अक्षयपात्र मामले में The Hindu फिर विरोधाभासी बयानबाजी के ज़रिए अपना गला छुड़ाने की फ़िराक में दिख रहा है। पहले इस्कॉन द्वारा संचालित अक्षयपात्र फाउंडेशन के खिलाफ लगभग आधारहीन आरोप लगाने, फिर प्रबंध संपादिका मालिनी पार्थसारथी और चेयरमैन एन राम के बीच उस रिपोर्ट को लेकर हुई नूराकुश्ती के बाद फिर से अख़बार इस मसले पर दोतरफ़ा बयानबाज़ी को लेकर सामने है। एक तरफ़ अख़बार के आंतरिक ‘लोकपाल’ ने मामले में एन राम का अड़ियल रुख दोहराते हुए गत 10 जून को मामले की अख़बार की कवरेज में कोई खोट मानने से इंकार कर दिया था, दूसरी ओर मालिनी पार्थसारथी ने ट्वीट कर दावा किया है कि अक्षयपात्र फाउंडेशन के प्रतिनिधियों ने उनसे और दैनिक संपादन देखने वाले संपादक सुरेश नंबात से मिल कर मामले का ‘समाधान’ निकाल लिया है। इसके बाद उनके इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए अक्षयपात्र के ट्रस्टी टीवी मोहनदास पई ने उन्हें समाधान के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करने का दावा किया है, जिसे अक्षयपात्र के ट्विटर हैंडल से रीट्वीट किया गया है।

हिन्दूफ़ोबिक हिटजॉब के लिए निशाने पर था The Hindu

The Hindu ने 31 मई को एक ‘विस्तृत’ रिपोर्ट छाप कर दावा किया था कि गौड़िया वैष्णव संस्था इस्कॉन द्वारा संचालित हिन्दू एनजीओ अक्षयपात्र फाउंडेशन कर्नाटक के बच्चों को बिना प्याज-लहसुन का खाना परोस कर उनपर ‘अपनी विचारधारा थोप रहा है’, और बच्चे उसका बनाया हुआ खाना खाना ही नहीं चाहते, और इसलिए वह खाना कम खा रहे हैं (और अतः उनका विकास नहीं हो रहा, मिड डे मील स्कीम का औचित्य ही नहीं बच रहा, और यह बच्चों के साथ अन्याय है कि ‘ब्राह्मणवादी, शाकाहारवादी श्रेष्ठताबोध’ का दर्शन उन पर खाने के ज़रिए थोपा जा रहा है)। इस दावे की पुष्टि के लिए महज़ दो-चार बच्चों से ‘बातचीत’ कर निष्कर्ष को ब्रह्मसत्य की तरह पेश कर दिया। इसके अलावा अक्षयपात्र फाउंडेशन के जवाब को भी पूरी तरह प्रकाशित करने की बजाय केवल अपनी मनमर्जी से बनाया हुआ उसका ‘साराँश’ सुना दिया

इसके बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर जब The Hindu की भद्द पीटनी शुरू की तो समाचार पत्र में से दो तरह की आवाज़ें आने लगीं। एक ओर प्रबंध संपादिका मालिनी पार्थसारथी ने इसे खराब पत्रकारिता मानते हुए इसका ठीकरा संपादक सुरेश नंबात और रिपोर्ट की लेखिका अर्चना नातन के सर फोड़ दिया। दूसरी ओर समाचार पत्र के चेयरमैन और राफेल मामले में घोटाला साबित करने के लिए संवेदनशील दस्तावेजों की चोरी के बाद फोटोशॉप करने के लिए कुख्यात एन राम ने इन दोनों के बचाव में आ कर विरोध करने वालों को साम्प्रदायिक और कट्टर करार देना शुरू कर दिया

‘आंतरिक लोकपाल’ की रिपोर्ट को हरी झंडी, लेकिन मालिनी का मामले के ‘समाधान’ का दावा?

The Hindu के ‘पाठकों के संपादक’ (Readers Editor) (एक तरह से खबरों के ‘आंतरिक लोकपाल’) ए एस पन्नीरसेल्वन ने अपने कॉलम में अक्षय पात्र पर रिपोर्ट को क्लीन चिट देते हुए कहा कि एक ‘पत्रकारी खोज’ को ‘विचारधारा के प्रिज़्म’ से बदनाम किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर मोहनदास पई के इस कॉलम को ट्वीट कर उसकी आलोचना और उसे लीपापोती बताने पर मालिनी पार्थसारथी का जवाब आया कि अक्षयपात्र फाउंडेशन के प्रतिनिधि उनसे और सुरेश नंबात से The Hindu के कार्यालय में आकर मिले और मामले का ‘समाधान’ हो गया है:

इस पर मोहनदास पई ने जवाबी रीट्वीट कर उनसे ‘समाधान’ के बारे में जानकारी सार्वजानिक करने को कहा, जिसे अक्षय पात्र के ट्विटर हैंडल ने भी रीट्वीट किया।

अगर मालिनी पार्थसारथी का मामले का समाधान हो जाने का दावा सही है तो फाउंडेशन के ट्रस्टी उनसे समाधान की जानकारी सार्वजानिक करने को क्यों कह रहे हैं? और उसे अक्षय पात्र द्वारा रीट्वीट क्यों किया जा रहा है?

हमने इस मामले में संबंधित पक्षों (The Hindu, मालिनी पार्थसारथी, मोहनदास पई, और अक्षयपात्र फाउंडेशन) से संपर्क कर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया, परन्तु यह खबर प्रकाशित किए जाने तक मोहनदास पई से संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है, और बाकियों के उत्तर हमारे संपादकीय मंडल को प्राप्त नहीं हुए हैं। उनका उत्तर मिलने पर हम उसे भी प्रकाशित करेंगे।

‘ममता की पुलिस की वजह से मर गया मेरा बेटा, डॉक्टर मदद करना चाहते थे’

पश्चिम बंगाल में चल रही डॉक्टरों की हड़ताल में अपने बेटे को खोने वाले अभिजित मलिक ने आरोप लगाया है कि उनके बेटे की मौत की वजह स्थानीय पुलिस थी, जिसने उन्हें अस्पताल के अंदर नहीं जाने दिया। उन्होंने बताया कि जूनियर डॉक्टर उनके बेटे की मदद करना चाहते थे। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग को चार बार फ़ोन किया गया था लेकिन फोन किसी ने नहीं उठाया।

चाइल्ड स्पेशलिस्ट की तलाश में भटक रहे थे

अभिजित मलिक ने बताया कि वह सागर दत्ता अस्पताल से रेफर करने के कागज़ लिए-लिए चाइल्ड-स्पेशलिस्ट अस्पताल की तलाश में भटक रहे थे। 11 जून को पैदा हुए उनके नवजात बेटे को साँस लेने में समस्या थी। जब समस्या बहुत बढ़ गई तो 12 को सागर दत्ता अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें किसी शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी।

अभिजित बताते हैं कि वह अपने बच्चे को कई अस्पतालों में लेकर गए लेकिन हड़ताल के कारण कहीं भी उनके बेटे को भर्ती नहीं किया गया। अंततः इलाज के आभाव में उनके नवजात शिशु ने 13 जून को दम तोड़ दिया। उत्तर परगना में उन्होंने पत्रकारों को यह भी बताया कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग में इस बाबत किया गया फ़ोन भी नहीं उठा।

“आरजी कर मेडिकल, चितरंजन में पुलिस ने हमें घुसने नहीं दिया। मैंने उन्हें बताया कि मेरा बच्चा गंभीर हालत में है, मेरे पास सागर दत्ता कॉलेज से बेहतर इलाज के लिए कहीं और ले जाने के कागज़ात हैं। जूनियर डॉक्टरों ने अपनी ओर से भरसक प्रयास किया, हमारी सहायता करने की पूरी कोशिश की, वह रो रहे थे, लेकिन पुलिस ने हमें अंदर नहीं आने दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को भी चार बार फ़ोन किया लेकिन किसी ने फ़ोन नहीं उठाया।”

दो डॉक्टरों की मॉब लिंचिंग के बाद से हड़ताल

पश्चिम बंगाल में एनआरएस अस्पताल में एक दूसरे मजहब के मरीज की हृदयघात से मृत्यु हो जाने के बाद उसके तीमारदारों द्वारा भीड़ जुटाकर जूनियर डॉक्टरों पर हमला बोल दिया गया था। दो डॉक्टरों को इतनी गंभीर चोटें आईं कि उन्हें आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। इसके बाद इसके विरोध में पहले तो एनआरएस के और फिर पूरे प्रदेश में जूनियर डॉक्टर बड़ी तादाद में हड़ताल पर चले गए हैं। डॉक्टरों के अनुसार उनकी बस इतनी माँग है कि ममता बनर्जी हमले के आरोपितों को तुरंत गिरफ़्तार करवाएँ और डॉक्टरों की अस्पताल में सुरक्षा सुनिश्चित करें।

इस हड़ताल के दौरान पश्चिम बंगाल के सरकारी अस्पताल के 700 से ज्यादा डॉक्टरों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसा उन्होंने हड़ताल कर रहे जूनियर डॉक्टरों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए किया। इससे पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है।