Sunday, November 17, 2024
Home Blog Page 5216

बाहरी और बंगाली का एंगल तलाशती ममता अभी भी बहानेबाज़ी में ही व्यस्त है

ममता बनर्जी अपने ही राज्य के डाक्टरों को बाहरी बताते हुए उन पर हमलावर हैं। जबकि, डॉक्टरों की माँग इतनी थी कि हमलावरों-गुंडों पर गैरजमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए और उनकी सुरक्षा राज्य सुनिश्चित करे। अलबत्ता, मुद्दा सुलझाने को कौन कहे, ममता ने डॉक्टरों को हड़ताल ख़त्म करने की धमकी देकर, अपनी गैर-जिम्मेदारी का परिचय और गुंडों को समर्थन, दोनों, दे दिया। ममता की धमकी को डॉक्टरों ने न सिर्फ नज़रअंदाज किया बल्कि अपनी सुरक्षा और गुंडों पर कार्रवाई जैसी बुनियादी माँगों के लिए, अपना इस्तीफा तक देने को तैयार हो गए। इतने पर भी ममता का अहंकार शांत नहीं हुआ, उन्होंने उल्टा आरोप लगा दिया की बीजेपी है इन सबके पीछे।

ऐसा करके ममता बनर्जी डॉक्टरों के दोनों जायज़ और बुनियादी माँगों से कन्नी काट गईं। फिर क्या था पूरे देश के डॉक्टरों ने पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों को समर्थन देने के लिए शुक्रवार (जून 14, 2019) को ‘ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे’ के रूप में सड़क पर आ गए। हालाँकि, यहाँ भी मीडिया का एक बड़ा धड़ा, इस मुद्दे पर ममता की सनक साफ देखते हुए भी कुछ भी बोलने से कतरा रहा है। क्योंकि, यहाँ भी पीड़ित डॉक्टर हिन्दू और डॉक्टरों को पीटने वाले दबंग गुंडे मजहब विशेष के, आम तौर पर पश्चिम बंगाल में तृणमूल के कोर वोटर हैं। अब ममता उन पर कोई एक्शन ले तो कैसे ले। उन पर एक्शन लेना मतलब अपनी राजनीतिक जमीन में खुद ही सेंध लगा देना, वो भी ऐसे समय में जब वह हाल के ही लोकसभा चुनावों में एक तरह से अपनी आधी सत्ता बीजेपी को सौंप चुकीं हैं।

तो, ममता ने इससे पहले होती बीजेपी कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याओं की तरह ही इसे भी राजनीतिक रंग देते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया कि बीजेपी वर्कर और ‘बाहरी’ ही उनके खिलाफ लगातार प्रोटेस्ट कर रहे हैं।

जबकि, प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने ममता के इस आरोप को सिरे से ख़ारिज करते हुए ममता को यह याद दिलाने के लिए मुखर हो उठे कि वह सभी इसी राज्य के डॉक्टर्स हैं न कि बाहरी व्यक्ति। इस समस्या से खुद को निपटने में अक्षम पाकर उल्टा ममता बनर्जी डॉक्टरों पर ही आरोप मढ़ने लगीं हैं। उन्होंने कल यहाँ तक कह दिया, “जब मैं कल हॉस्पिटल के आपात चिकित्सा में गई तो वहाँ मुझे गालियाँ दी गई लेकिन मैंने उन्हें माफ़ कर दिया।”

ममता बनर्जी के इस स्टेटमेंट से भी साफ है कि वह इस मसले में यह नहीं कह रहीं कि दोषियों पर राज्य करवाई करेगी जबकि कल ही जब राज्यपाल ने सर्वदलीय बैठक बुलाई तो ममता ने राज्यपाल पर ही आरोप लगाते हुए यह कह दिया, “राज्यपाल बीजेपी के आदमी हैं उनका यहाँ के कानून से कोई लेना-देना नहीं। कानून राज्य का विषय है, इसलिए मैं नहीं जा रही, मेरी तरफ से कोई जाएगा, चाय पी के आ जाएगा।”

सही कहा ममता बनर्जी ने कि लॉ एंड ऑर्डर राज्य का विषय है लेकिन यह बताना भूल गईं कि जब राज्य कानून व्यवस्था सम्भालने में अक्षम हो जाए या जानबूझकर राज्य गुंडागर्दी, अराजकता, दंगा और हत्याओं को खुला समर्थन दे तो संविधान में इसका भी प्रावधान राज्यपाल के ही माध्यम से राष्ट्रपति शासन के रूप में किया गया है।

ममता बनर्जी शायद खुद को ही संविधान मानने लगी हैं या संविधान से भी ऊपर की सत्ता साम्राज्ञी, तभी तो अक्सर वह पश्चिम बंगाल में जघन्य से जघन्य अपराधों पर लगातार राजनीति की आड़ ले पर्दा डालती नज़र आती हैं। खुद प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण का बहिष्कार तक कर देतीं हैं, क्योंकि उसमें जिन बीजेपी कार्यकर्ताओं को तृणमूल के गुंडों ने मौत के घाट उतारा था, उनके परिवारों को बुलाया गया था। इसके बाद भी वह राज्य में लगातार हो रही बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या पर मौन हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हत्यारे उनकी ही पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडे हैं। जिनका बचाव आजकल यह कहकर किया जा रहा है कि ‘ऐसा तो बंगाल में होता ही रहता है।’ उनके खिलाफ राज्य में कोई भी आवाज उठाता है तो उसे तत्काल बाहरी कहने से नहीं चूकने वाली ममता शायद भूल गई हैं कि बंगाल उनका ‘गणराज्य’ नहीं बल्कि देश का ही एक छोटी-सी इकाई ‘राज्य’ है और देश में किसी भी नागरिक को कहीं भी आने-जाने और व्यवसाय की निर्बाध स्वतंत्रता है।

मीडिया का एक धड़ा जो खुद को लगातार निष्पक्ष बताता आया है, वह इस पर मौन है और तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इस पर चुप्पी साध ली है, जैसे बंगाल में या तो ‘कुछ हुआ ही नहीं’ या ‘हुआ तो हुआ।’ अब यहाँ किसी अवार्ड वापसी गैंग को अराजकता और तानाशाही नज़र नहीं आ रही, लेकिन इन मौन आवाजों के बीच भी आवाज उन्हीं डॉक्टरों ने उठाई है, जिन पर पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी है, जो आज अपने ही स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उनका एक साथी डॉक्टर गंभीर रूप से घायल है और दूसरा ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है। यहाँ 200 से अधिक लोगों की अराजक और आक्रोशित भीड़ में किसी को भी अपराधी या गुंडे नज़र नहीं आ रहे क्योंकि पीड़ित यहाँ न ‘नज़ीम’ है, न ‘अख़लाख़’ बल्कि यहाँ दंगाइयों और उपद्रवियों के नाम में मोहम्मद या ऐसा ही कुछ जुड़ा है।

डॉक्टरों की न्याय की माँग को नज़रअंदाज करते हुए जब राज्य की मुखिया ही अन्याय के आगे ढाल बनकर खड़ी हो तो ऐसी तानाशाही का मुखर विरोध ज़रूरी है। विरोध में, पश्चिम बंगाल में लगातार डॉक्टरों के इस्तीफे जारी हैं। देश के विभिन्न राज्यों के डॉक्टर्स खुलकर इस अन्याय के खिलाफ खड़े हो गए हैं। सबकी एक ही माँग है दोषियों पर कार्रवाई और डॉक्टरों की सुरक्षा का इंतज़ाम ताकि वे निश्चिन्त हो अपना काम कर सकें। कायदे से वहाँ सुरक्षा तो उन सभी नागरिकों को मिलनी चाहिए जो उनके ही पार्टी के गुंडों के सताए हुए हैं और उनको भी न्याय की दरकार है जो एक सत्तालोलुप मुख्यमंत्री की राजनीतिक दुश्मनी में अपने जान गँवा चुके हैं।

मुखर आवाजों ने विरोध का बिगुल बजा दिया है। ममता के ‘बाहरी’ राग के गुब्बारे की हवा निकाल दी है। रिपब्लिक को दिए अपने बयानों में सबने पश्चिम बंगाल के मौजूदा हालात की पोल खोल दी है।

NRS हॉस्पिटल में न्याय की माँग के लिए आवाज बुलंद करते हुए एक डॉक्टर ने कहा, “मैं अपने मुख्यमंत्री के बयान पर शर्मिंदा हूँ, यदि वह चाहतीं तो समस्या को सुलझा सकती थीं। वह उन पर तुरंत कार्रवाई कर सकती थीं लेकिन वह इसे नज़रअंदाज कर रही हैं। वह न्याय को नकार रहीं हैं। इस प्रतिरोध में कोई भी बाहरी नहीं है, ममता बनर्जी इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक रंग देना चाहतीं हैं।”

एक दूसरे डॉक्टर ने ममता बनर्जी के बाहरी के कहने का जवाब दिया कि “हम डॉक्टर्स हैं और आज यहाँ सफ़ेद एप्रन के लिए लड़ रहे हैं, हम बाहरी नहीं हैं, हमारा सी.पी.एम. या बीजेपी से कोई सम्बन्ध नहीं।”

ममता के आरोपों और धमकियों का विरोध कर रहे, डॉक्टरों के एक दूसरे समूह ने भी ममता के बेतुके बयानों को आड़े हाथों लेते हुए, उन्हें सिर्फ इतना याद दिलाया कि न्याय का गला घोंटकर दोषियों के साथ मत खड़े होइए, जिन्होंने डॉक्टरों पर हमला किया, उन पर तत्काल कार्रवाई किया जाए।

रेजिडेंट डॉक्टरों के एक बड़े संगठन URDA के प्रेजिडेंट डॉ मनु गौतम ने कहा, “हम आज ममता बनर्जी के बयान से केवल नाराज ही नहीं हैं, हम उम्मीद भी खोते जा रहे हैं क्योंकि अब जो हो रहा है वह बहुत ज़्यादा है। हम इसलिए डॉक्टर्स नहीं बने हैं कि इस तरह से पब्लिक द्वारा पीटें जाएँ। लोगों को समझना होगा कि हम भगवान नहीं हैं।” साथ ही यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में इंटर्न और रेजिडेंट डॉक्टर्स 36-42 घंटे तक लगातार काम करते हैं वह भी बहुत ही अमानवीय स्थिति में….

फ़िलहाल, हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के हड़ताल का समाधान बातचीत से हल करने का निर्देश दे दिया है। लेकिन ममता बनर्जी अभी भी जिद पर अड़ी हैं। एक तरफ राजनीति है तो दूसरी तरफ राज्य का लॉ एंड ऑर्डर और अब इस मुहीम में डॉक्टरों का साथ देने के लिए न सिर्फ पश्चिम बंगाल में बल्कि अन्य राज्यों के भी साथी डॉक्टरों भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। कोलकाता में अब तक लगभग 69 डॉक्टरों ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है, साथ ही एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को लेकर बंगाल में दो प्रोफेसरों ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। प्रोफेसर सैबाल कुमार मुखर्जी ने एनआरएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कोलकाता के प्रिंसिपल और मेडिकल सुपरिटेंडेंट के पद से इस्तीफा दिया तो वहीं, प्रोफेसर सौरभ चट्टोपाध्याय ने वाइस-प्रिंसिपल पद से इस्तीफा दे दिया और अब डॉक्टर्स के इस्तीफे की झड़ी सी लग गई है। सीनियर डॉक्टर भी ममता बनर्जी के विरोध में उतर आए हैं।

जिस तरह से पिछले पाँच दिनों से यह सब घटित हो रहा है और ममता बनर्जी का अभी तक का जो रवैया रहा है, लगता ही नहीं कि उन्हें सिवाय अपनी राजनीति और वोट बैंक के, डॉक्टरों की सुरक्षा या आम मरीज़ के जीवन की तनिक भी चिंता है। फिर भी, अब देखना यह है कि क्या अब भी ममता चेततीं हैं, इस घटना से सबक लेतीं हैं या अभी भी इस मुद्दे को राजनीति के चश्में से ही देखतीं हैं। उम्मीद कम ही है क्योंकि, अभी भी एक आसान सी माँग पर कुछ भी ढंग का नहीं बोल पाई हैं। सवाल ज्यों का त्यों है, क्या उनकी सरकार डॉक्टरों के काम करने हेतु सुरक्षित माहौल दे सकेगी? क्या बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की नृशंष हत्या का सिलसिला रुकेगा या राजनीतिक जंग के नाम पर बुरे से बुरे और बर्बर कृत्य को भी जायज ठहराने का सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा? यह वक्त ही बताएगा।

मेट्रो में मुफ्त सफर से लगेगा ₹1560 करोड़ का चूना, फ्री राइड का कानून में नहीं है कोई प्रावधान

पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने मेट्रो, डीटीसी बसों और क्लस्टर बसों में महिलाओं के लिए मुफ़्त सफर की घोषणा की थी। सरकार अब मेट्रो की फीडर बसों में भी महिलाओं के लिए मुफ़्त सफर की तैयारी में है। वर्तमान में, दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के पास 174 फीडर बसे हैं और जल्द ही 905 फीडर बसों को जोड़े जाने की योजना है। भारतीय जनता पार्टी ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा है और कहा है कि इस योजना को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए वोटर्स को लुभाने का प्रयास बताया है।

DMRC ने दिल्ली सरकार को सौंपे अपने प्रस्ताव में कहा कि महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा को लागू करने से लगभग 1560 करोड़ रुपए का वार्षिक ख़र्च होगा, इसमें से 11 करोड़ रुपए का ख़र्च फीडर बसों पर आएगा।

बुधवार (12 जून) को, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली सरकार द्वारा DMRC को इस रकम का भुगतान किया जाएगा। DMRC ने अपनी 8 पेज की रिपोर्ट में, इस बात का भी ज़िक्र किया कि महिलाओं को मुफ़्त सफर कराने वाली इस योजना का भविष्य में दुरुपयोग भी हो सकता है। DMRC ने क़ानूनी सलाहकार से भी चर्चा की और यह जानने का प्रयास किया कि क्या इस तरह की वित्तीय सब्सिडी या अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिल्ली मेट्रो रेलवे (संचालन और रखरखाव) अधिनियम, 2002 के तहत यात्रियों के एक विशेष वर्ग को दी जा सकती है?

लीगल टीम ने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम 1988 और एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया एक्ट, 2008 जैसे क़ानूनों का भी विश्लेषण किया ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि मेट्रो अधिनियम के तहत इस तरह का कोई प्रावधान मौजूद है कि नहीं? इस विश्लेषण से पता चला कि इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है।

इससे पहले, DMRC ने सरकार के सामने मुफ़्त सफर की व्यवस्था को लागू करने के लिए दो प्रस्ताव रखे थे। इसमें से पहले प्रस्ताव में योजना को लंबे समय के लिए लागू करने के लिए तक़रीबन 12 महीने से अधिक समय लगने की बात कही गई थी, क्योंकि इस व्यवस्था को कार्यान्वित करने के लिए सॉफ्टवेयर बदलना पड़ेगा। वहीं, दूसरे प्रस्ताव में अस्थायी रूप से लागू करने के लिए गुलाबी टोकन व्यवस्था के ज़रिए 8 महीने का समय माँगा।

NRC अधिकारी सैयद शाहजहाँ और राहुल परासर रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार

एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की टीम ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) में नाम जोड़ने के एवज में रिश्वत लेते हुए दो अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। टीम ने गुरुवार (जून 13, 2019) को सैयद शाहजहाँ और राहुल परासर को 10 हजार रुपए बतौर रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा है। इन दोनों को गुवाहाटी स्थित दिसपुर एनआरसी केंद्र नंबर आठ के कार्यालय से गिरफ्तार किया गया है।

सैयद शाहजहाँ फील्ड लेवल अधिकारी और राहुल पराशर असिस्टेंट लोकल रजिस्ट्रार ऑफ सिटिजन रजिस्ट्रेशन के पद पर तैनात हैं। दोनों के खिलाफ दिसपुर जिले की आनंद नगर निवासी कजरी घोष दत्ता ने एंटी-करप्शन ब्यूरो में शिकायत की थी। कजरी के अनुसार उनका नाम एनआरसी के ड्राफ्ट में शामिल नहीं हैं। उनका कहना है कि जब उन्होंने एनआरसी ड्राफ्ट में नाम शामिल करने के लिए आवेदन किया, तो अधिकारियों ने उनसे रिश्वत के तौर पर 10 हजार रुपए माँगे।

एसीबी निदेशक ने घटना की जानकारी देते हुए बताया कि आरोपितों के पास से रुपए और महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त कर लिए गए हैं। एनआरसी सेवा केंद्र पर भी जाँच की जा रही है। दरअसल, दोनों आरोपितों ने महिला के आवेदन में कुछ गलतियाँ निकाली थी और इन्हीं गलतियों को दूर करने के बदले में महिला से 10 हजार रुपए की माँग की गई थी। फिलहाल, दोनों आरोपितों को अदालत में पेश किया जाएगा।

जानकारी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेशनुसार आगामी 31 जुलाई से पहले एनआरसी का फाइनल और सम्पूर्ण ड्राफ्ट प्रकाशित हो जाएगा। पिछले साल जुलाई में एनआरसी की सूची आने के बाद पूर्वोत्तर के दो राज्य पश्चिम बंगाल और असम में खासा राजनीतिक हंगामा हुआ था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि एनआरसी का अंतिम प्रकाशन 31 जुलाई तक हो जाना चाहिए। कोर्ट ने पहले चरण में ड्राफ्ट से शामिल न हो पाए असम के 40 लाख आवेदकों को भारतीय नागरिकता के प्रमाण के लिए 25 मार्च, 1971 या उससे पहले के किसी भी सरकारी दस्तावेज के साथ आवेदन करने का दोबारा मौका दिया है।

17 जून को पूरे देश में डॉक्टरों की हड़ताल, IMA ने किया आह्वान

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने ऐलान किया है कि सोमवार (जून 17, 2019) को सुबह 6 बजे से लेकर 18 की सुबह 6 बजे तक 24 घंटे के लिए पूरे देश भर के डॉक्टर हड़ताल पर रहेंगे। इस दौरान केवल इमरजेंसी और कैजुएलटी की सेवाएँ जारी होंगी।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि वो अस्पतालों में डॉक्टरों की सुरक्षा चाहते हैं। कोलकाता के मेडिकल छात्र बेहद डरे हुए हैं, सड़कों पर हिंसा शुरू हो गई हैं। इसलिए वो चाहते हैं कि उनका समाज आगे आए और कोलकाता में हुई हिंसा के आरोपितों को सज़ा हो।

वो चाहते हैं कि अस्पतालों में हिंसा के खिलाफ केंद्रीय कानून लागू हो। इसलिए उन्होंने घोषणा की है कि 17 जून को पूरे देश में हड़ताल की जाएगी,और उस दौरान सिर्फ इमरजेंसी सेवाएँ जारी रहेंगी। खबरों के अनुसार डॉक्टरों की हड़ताल शनिवार को भी जारी रहेगी।

आईएमए के सेक्रेटरी ने जानकारी दी कि 17 तारीख को उन्होंने डॉक्टरों की देशव्यापी हड़ताल बुलाई है। इस हड़ताल में प्राइवेट अस्पताल भी हिस्सा लेंगे। डॉक्टरों की माँग है कि उनकी सुरक्षा में कानून लागू हो। आईएमए सेक्रेट्री ने कहा कि उन्हें पता है कि मरीज़ इस ‘बंद’ से परेशान होंगे, लेकिन उनकी सुरक्षा भी ज़रूरी है। इस बंंद के बावजूद आपातकालीन सेवाएं जारी रहेंगी।

अगर आप बंगाल में हैं तो आपको बांग्ला ही बोलनी होगी: ममता का क्षेत्रवाद भड़का

भाजपा कार्यकर्ताओं की लगातार होती हत्या और डॉक्टरों की हड़ताल से बंगाल का माहौल काफ़ी तनावपूर्ण पहले से है कि इसी बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने क्षेत्रवाद को लेकर बयान दे दिया। शुक्रवार यानी आज (जून 14, 2019) ममता बनर्जी ने नॉर्थ 24 परगना में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि वो बंगाल को गुजरात नहीं बनने देंगी। अपने बयान में ममता ने साफ़ बोल दिया कि अगर आप बंगाल में आए हैं तो आपको बांग्ला ही बोलनी होगी।

हमेशा से क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी ने कहा, “हमें बांग्ला को आगे ले जाना है, जब मैं बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब जाती हूँ तो मैं उनकी भाषा बोलती हूँ, इसलिए अगर आप बंगाल आते हैं तो आपको भी बांग्ला ही बोलनी होगी” अपने बयान में ममता ने आगे कहा कि वो बंगाल में उन अपराधियों को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगी जो यहाँ रहते हैं और मोटरसाइकल पर घूमते हैं।

सोशल मीडिया पर ममता के इस बयान की खूब आलोचना हो रही है। डॉक्टरों को दिए अल्टीमेटम पर जहाँ उन्हें हिटलर बताया जा रहा था, वहीं अब लोग उन्हें ‘बंगाली राज ठाकरे’ बताने लगे हैं। ममता बनर्जी के बारे में लोग साफ़ बोल रहे हैं कि वो अब देश को जाति और भाषा में बाँटना चाहती हैं, वो ज्यादा समय मुख्यमंत्री नहीं रहेंगी।

अमित शाह और BSF को कोसने के बाद JDU प्रवक्ता ने खुद दिया इस्तीफ़ा

बिहार में एनडीए के सहयोगी जनता दल यूनाईटेड के प्रवक्ता अजय आलोक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। आलोक ने ट्विटर पर अपने इस्तीफे की तस्वीर ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी। आलोक ने अपनी और पार्टी की विचारधारा मेल न खाने के कारण ये कदम उठाया है।

अजय ने अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री एवं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया है। साथ ही उन्होंने लिखा है कि वो उनके लिए शर्म का कारण नहीं बनना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने पद से इस्तीफ़ा दिया है। आलोक ने अपना इस्तीफा केंद्रीय गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के काम पर सवाल उठाने के बाद दिया है।

दरअसल, 11 तारीख़ को आलोक ने ट्विटर पर एक पोस्ट किया था। इस पोस्ट में उन्होंने बांग्लादेशी शरणार्थियों के मुद्दे को लेकर गृह मंत्री अमित शाह पर तंज कसा था। साथ ही एक अन्य ट्वीट में उन्होंने बीएसएफ अधिकारियों पर भी निशाना साधा था। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा था, “सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कोसने से काम नहीं चलेगा अपने तंत्र को कसने की जरूरत है, खासकर तब जब अमित शाह हमारे गृह मंत्री हैं। अवैध घुसपैठ पे रोक अति आवश्यक है। अब नहीं होगा तो कब होगा।”

अजय आलोक ने बीएसएफ अधिकारियों को लेकर बुधवार को भी बड़ा बयान दिया था। मीडिया खबरों के मुताबिक उन्होंने कहा था कि सीमा पर बीएसएफ के अधिकारी 5000 रुपये लेकर बांग्लादेशी घुसपैठियों को अवैध तरीके से भारत में प्रवेश करवाते हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए ट्विटर पर लिखा था कि बांग्लादेश बॉर्डर पर तैनात ऐसे बीएसएफ अधिकारी जो 7-8 वर्षों से वहीं पर जमे हुए हैं, उनकी संपत्ति की जाँच हो। उनका कहना है कि बांग्लादेशी शरणार्थी ऐसे ही भारत में नहीं आ गए हैं।

राजस्थान सरकार की करतूत: चैप्टर नहीं हटा सके तो सावरकर के आगे से ‘वीर’ हटाया

राजस्थान में पिछले साल दिसंबर में कॉन्ग्रेस सत्ता पर काबिज हुई। राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के साथ ही पाठ्यपुस्तकों में भी विचारधारा का टकराव देखने को मिल रहा है। अशोक गहलोत सरकार ने सत्ता में आने के 6 महीने के भीतर स्कूल की तमाम किताबों में बदलाव किया है। अशोक गहलोत ने राज्य बोर्ड के अतंर्गत आने वाले स्कूलों के छात्रों की किताबों में कई बदलाव किए हैं। इनमें ऐतिहासिक घटनाओं, शख्सियतों से लेकर एनडीए सरकार के कार्यकाल में लिए गए फैसलों में बदलाव किए गए।

राजस्थान सरकार ने कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तक में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर वाले चैप्टर में सावरकर के नाम के आगे से ‘वीर’ हटा दिया है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि कॉन्ग्रेस की नज़र में सावरकर, वीर नहीं हैं। दरअसल, ये बदलाव राज्य में 13 फरवरी को पाठ्यपुस्तक समीक्षा समिति द्वारा की गई सिफारिशों के बाद किया गया है। इस समिति का गठन इसलिए किया गया था, ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि कहीं एनडीए सरकार द्वारा राजनीतिक हितों को साधने के लिए इतिहास के साथ छेड़-छाड़ तो नहीं किया गया था।

जानकारी के मुताबिक, 12वीं की इतिहास की पुरानी किताब में स्वतंत्रता संग्राम वाले चैप्टर में सावरकर के नाम के आगे ‘वीर’ लिखा था। इस अध्याय में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में दिए उनके योगदान के बारे में काफी विस्तार से लिखा गया था। वहीं, नई किताब में सावरकर के नाम से ‘वीर’ शब्द हटा दिया गया है और उनका नाम अब विनायक दामोदर सावरकर हो गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे अंग्रेजों ने सेल्यूलर जेल में उन्हें प्रताड़ित किया था और उन्होंने दूसरी दया याचिका में खुद को पुर्तगाल का बेटा बताया था।

यह भी लिखा है कि सावरकर ने अंग्रेजों को चार बार दया याचिका भेजी। सावरकर ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की तरफ कार्य किया। इसके साथ ही इसमें लिखा है कि सावरकर ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और 1946 में पाकिस्तान के निर्माण का विरोध किया। 30 जनवरी, 1948 को गाँधी की हत्या के बाद, उन पर हत्या की साजिश रचने और गोडसे की सहायता करने के आरोप में मुकदमा चलाया गया। हालाँकि, बाद में उन्हें मामले से बरी कर दिया गया।

वीर सावरकर के नाम के आगे से वीर हटाने के साथ ही पाठ्यपुस्तक में और भी कई सारे बदलाव किए गए हैं। गौरतलब है कि, राजस्थान सरकार ने पहले तो स्कूली पाठ्यक्रम से विनायक दामोदर सावरकर से जुड़े चैप्टर को हटाने का फैसला किया था, लेकिन भाजपा के विरोध के बाद फैसला पलटा गया। अब विनायक दामोदर सावरकर का चैप्टर पाठ्यक्रम में तो है, लेकिन राजस्थान सरकार की नजर में अब वो ‘वीर’ नहीं है।

हर केंद्रीय संस्थान के समीप 2 संस्कृत बोलने वाले गाँव बनाए जाने चाहिए: निशंक

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरूवार (13 जून) को दिल्ली में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थानों के प्रमुखों की बैठक में कहा कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के समीप कम से कम दो गाँवों को संस्कृत भाषा बोलने वाले गाँव बनाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं को सशक्त बनाना उनका लक्ष्य है। इस अवसर पर केंद्रीय राज्यमंत्री संजय धोत्रे भी मौजूद थे।

ख़बर के अनुसार, केंद्रीय मंत्री निशंक ने कहा कि मानव संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों के साथ केंद्रीय भाषा से जुड़े संस्थानों के प्रमुखों की लगातार समीक्षा बैठक आयोजित होती रहनी चाहिए। इससे भारतीय भाषाओं के विकास को दिशा मिल सकेगी।

उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अधिक से अधिक शिक्षकों की भर्तियों को बढ़ाने की भी बात कही, जिससे संस्कृत भाषा सीखने वालों की संख्या बढ़ सके। ऐसा करके संस्कृत भाषा को विश्व स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने में सफलता मिलेगी। केंद्रीय मंत्री निशंक ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि देश में केंद्रीय संस्कृत शिक्षण संस्थानों के आसपास कम से कम दो ऐसे गाँव बनाने का लक्ष्य रखा जाए, जहाँ के लोग आम बोलचाल की भाषा के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हों।

केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थानों के प्रमुखों की बैठक में निशंक ने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए और भी कई महत्वपूर्ण बातें कही। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के विकास के लिए नए तरीके खोजने की ज़रूरत है। भारतीय भाषाओं में नए शोध और उन्हें वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करने की भी आवश्यकता है। इससे संस्कृत भाषा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकेगी।

इसी तरह के एक प्रयास में, फरवरी 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य का बजट पेश करते हुए संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने पर विशेष ज़ोर दिया था। इसके तहत राज्य में संस्कृत पाठशालाओं को अनुदान के लिए 242 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। अनुदानित संस्कृत स्कूलों और डिग्री कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के लिए 30 करोड़ रुपए और आवंटित किए गए थे।

संस्कृत में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काशी विद्यापीठ को 21 करोड़ रुपए दिए गए। वहींं, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को 21.51 करोड़ रुपए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वैदिक विज्ञान केंद्र को 16 करोड़ रुपए दिए गए। पिछले एक दशक में राज्य सरकार द्वारा किसी भी अनुसंधान केंद्र को दिया गया यह सबसे बड़ा आवंटन था।


इसके अलावा उन्होंने अनुवाद पर भी ज़ोर दिया और कहा कि भारतीय भाषाओं के साहित्य का दूसरी भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए, जिससे सभी लोग साहित्य जगत में अधिक से अधिक अपनी पहुँच बना सकें और उसका लाभ उठा सकें। इससे भाषा के प्रचार-प्रसार का मार्ग प्रशस्त होगा।  उन्होंने बताया कि जल्द ही भाषा भवन की स्थापना की जाएगी, जहाँ भारतीय भाषाओं से संबंधित सभी संस्थान एक साथ भाषाओं के विकास के लिए काम करेंगे।

दरअसल, भारतीय भाषा संस्थान भारतीय भाषाओं के विकास के लिए काम करता है। भारतीय भाषा संस्थान भारत सरकार की भाषा नीति को तैयार करने और उसके कार्यान्वयन के अलावा भाषा विश्लेषण, भाषा शिक्षा शास्त्र, भाषा प्रौद्योगिकी और समाज में भाषा के इस्तेमाल पर रिसर्च करता है। वर्ष 1969 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषा केंद्र भुवनेश्वर, पुणे, मैसूर, पटियाला, गुवाहाटी, सोलन और लखनऊ में हैं।

10 साल की बच्ची को बनाया हवस का शिकार, 55 वर्षीय कलाम अंसारी गिरफ़्तार

नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। ऐसा ही एक शर्मनाक मामला बिहार में शिवहर क्षेत्र का है जहाँ 10 साल की हिन्दू बच्ची का बलात्कार 55 साल के कलाम अंसारी ने किया। उसे लोगों ने रंगे हाथों पकड़ा और पुलिस के हवाले कर दिया।

यह मामला हिरम्मा थाना क्षेत्र में दर्ज किया गया है। इसकी पुष्टि करते हुए, एसडीपीओ राकेश कुमार ने बताया कि आरोपी का नाम कलाम अंसारी है, जो मस्जिद टोला का निवासी है, उसे पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है और नाबालिग बच्ची को मेडिकल के लिए भेज दिया गया है।

शिवहर के निवासी अनीस झा ने बताया कि उन्होंने शिवहर के वकीलों से अपील की है कि वो कलाम अंसारी का केस न लड़ें। साथ ही बलात्कारी अंसारी के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की माँग भी की।

इस घटना से नाराज़ ग्रामीणों ने अंसारी को कड़ी से कड़ी सज़ा देने की माँग की है। शिवहर क्षेत्र की सांसद रमा देवी, पूर्व सांसद लवली आनंद, पूर्व विधायक ठाकुर रत्नाकर, जेडीयू नेता विजय विकास, फॉरवर्ड ब्लॉक के बिहार प्रदेश महासचिव धर्मेंद्र कुमार, श्री राजपूत करणी सेना के ज़िलाध्यक्ष राजेश टाइगर, बीजेपी युवा मोर्चा के ज़िला मंत्री छोटे कुमार साह ने इस दुष्कर्म मामले को धरती का कलंक कहा और ये पुरज़ोर माँग उठाई कि स्पीडी ट्रायल कराकर दोषी को जल्द से जल्द फाँसी की सज़ा दी जाए।

जानकारी के अनुसार, 12 जून को विश्व हिन्दू परिषद ज़िला कार्यालय में एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमें अलीगढ़ और शिवहर में बच्चियों के साथ हुए बलात्कार की घटना की कड़ी निंदा की गई। शिवहर के सभी सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं के द्वारा सर्व सहमति से यह निर्णय लिया गया कि देश में सुनियोजित तरीके से लड़कियों के साथ जो बलात्कार कि घटना हो रही है, इसके लिए सरकार क़ानून बना कर 30 दिनों के अंदर बलात्कारी को फाँसी की सज़ा का प्रावधान करे। साथ ही यह निर्णय भी लिया गया कि बच्ची को न्याय दिलाने के लिए 14 जून को पूरे शिवहर के बजार पूर्णतः बंद रखे जाएँगे।

सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं ने सभी व्यापारी बंधुओं से एक दिन के बंद का अनुरोध किया है और कहा है कि इस बंद को सफल बनाएँ, जिससे ज़िला प्रशासन और कोर्ट इसे गंभीरता से ले और बलात्कारी को जल्द से जल्द सज़ा मिले। ऐसा होने से भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर लगाम लग सकेगी। इस बैठक में उपस्थित कार्यकर्ताओं में अशोक उपाध्याय, कमलेश्वरीनंदन सिंह, संजय सिंह, माधुरेंद्र कुमार, संदीप कुमार, कुणाल गुप्ता, संजय गुप्ता, अजय कुमार, अजय आर्य, शिवम सिंह, संतु कुमार, अनिल पटेल, छोटेलाल साह, पंडित वेदप्रकाश शास्त्री के अलावा दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद थे।

इसके अलावा, 12 जून को बिहार के बेगूसराय में हुई एक अन्य घटना में, मुस्लिम भीड़ ने एक हिंदू परिवार के घर में घुसकर दो महिलाओं से छेड़छाड़ की और उस समय वहाँ मौजूद अकेले पुरुष सदस्य को मारने की कोशिश की। दूसरे मजहब वाले चाहते थे कि हिंदू अपनी ज़मीन और घर बेचकर इलाक़े को छोड़ दें।

Forbes: दुनिया की शीर्ष 500 कंपनियों में भारत की 10 कम्पनियाँ शामिल, Reliance टॉप 100 में

गुरुवार (जून 14, 2019) को फोर्ब्स की ग्लोबल 2000 लिस्ट 2019 की रिपोर्ट सामने आई। इस रिपोर्ट में दुनिया की 2000 सबसे बड़ी कंपनियों की सूची में भारत की 57 कंपनियों को जगह मिली है। इनमें रिलायंस एक मात्र ऐसी कंपनी है जो शीर्ष 100 कंपनियों में जगह बना पाई है। रिलायंस को इस सूची 71वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि ऑयल एंड गैस सेक्टर की कंपनियों में रिलायंस 11वें नंबर पर है। इसके बाद इस सूची में एचडीएफसी बैंक का नाम है, जिसे 209वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। सूची में ओएनजीसी 220वें स्थान पर है, जबकि इंडियन ऑयल 288वें और एचडीएफसी लिमिटेड 332 वें पायदान पर है।

इसके अलावा टीसीएस (374), आईसीआईसीआई बैंक (400), एलएंडटी (438), भारतीय स्टेट बैंक (460) और एनटीपीसी (492) का नाम शीर्ष 500 कंपनियों में शुमार है। इस सूची में कोल इंडिया, कोटक महिंद्रा बैंक, भारत पेट्रोलियम, महिंद्रा एंड महिंद्रा, इंडसइंड बैंक, बजाज फिनसर्व, टाटा स्टील, इंफोसिस, एक्सिस बैंक, टाटा मोटर्स, आईटीसी, भारती एयरटेल, विप्रो, जेएसडब्ल्यू स्टील, पावर ग्रिड, हिंडाल्को, एचसीएल टेक, गेल, पंजाब नेशनल बैंक, ग्रासिम, बैंक ऑफ बड़ौदा, पावर फाइनेंस और केनरा बैंक शामिल हैं।

इस लिस्ट में 61 देशों की कंपनियाँ शामिल है, जिसमें सबसे ज्यादा जगह अमेरिका की कंपनी को मिली है। इस सूची में 575 नाम अमेरीका की कंपनी के हैं। जबकि चीन और हांगकांग की 309 और जापान की 223 कंपनियाँ शामिल हैं। फोर्ब्स ने बिक्री, मुनाफा, संपत्ति और शेयर बाजार के चार पैमानों पर इन कंपनियों की रैंकिंग की है।

टॉप 10 में चीन की आईसीबीसी(1), चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक(3), एग्रीकल्चर बैंक ऑफ चाइना (5), पिंग एन इंश्योरेंस ग्रुप(7), बैंक ऑफ चाइना अमेरिका(8); अमेरिका की जेपी मॉर्गन(2), बैंक ऑफ अमेरिका(5), एपल(3), वेल्स फार्गो(10); और नीदरलैंड की रॉयल डच शैल शामिल हैं।