Friday, October 18, 2024
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जेडीएस नेता की हत्या पर बोले कुमारस्वामी- आरोपियों को बेरहमी से मार डालो

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने विवादस्पद बयान दिया है। मीडिया ने कुमारस्वामी का एक वीडियो रिकॉर्ड किया है जिसमे वह जेडीएस नेता कि हत्या को लेकर फोन पर आरोपियों को बेरहमी से मार डालने की बात बोलते दिख रहे हैं। इस वीडियो में कुमारस्वामी फोन पर बात करते हुए कह रहे हैं;

“वह (जेडीएस नेता प्रकाश) बहुत अच्छा आदमी था, मैं चकित हूं कि ऐसे व्यक्ति को क्यों मार दिया गया। मैं नहीं जानता कि उन लोगों ने उसे क्यों मारा। किसी भी इंसान की राह चलते हत्या कर दी जाती है, यह दुखद है। शूटआउट में उन्हें (आरोपियों को) बेरहमी से मार डालो। कोई दिक्कत नहीं है। जो होगा देखा जायेगा। मुझे उसकी कोई भी फिक्र नहीं।”

वीडियो के वायरल होने के बाद कुमारस्वामी ने सफाई भी दी। उन्होंने कहा कि भावुक होने की वजह से उनके मुंह से ऐसा निकल गया। उन्होंने इसे एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया और कहा कि ये एक मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कोई आदेश नहीं था। वायरल वीडियो पर सफाई देते हुए कर्नाटक सीएम ने कहा;

“यह (बेरहमी से मार दो) मेरा आदेश नहीं था। उस वक्त मैं बहुत भावुक था। दो हत्याओं के लिए जेल में बंद वे लोग जब बेल पर बाहर आए तो उन्होंने जेडीएस नेता प्रकाश की हत्या कर दी क्योंकि वे वही लोग (कथित हत्यारे) थे जिन्होंने पहले भी दो हत्याएं की थी। इस तरह से वे जमानत का दुरुपयोग कर रहे हैं।”

वहीं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने कुमारस्वामी के इस विवादित बयान को लेकर उन पर निशाना साधा। कर्नाटक विधानसभा के विपक्ष के नेता येदियुरप्पा ने कहा;

“मुख्यमंत्री इस तरह का बयान देंगे, उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। अगर वो ऐसा कहेंगे तो कर्नाटक के कानून व्यवस्था का क्या होगा। ये एक गैर जिम्मेदाराना बयान है।”

ज्ञात हो कि कर्नाटक में जेडीएस के 50 वर्षीय नेता प्रकाश की हत्या की खबर आई है। वह जिला पंचायत की पूर्व अध्यक्ष के पति थे। हमलावर  बाइक पर सवार थे और  उन्होंने प्रकाश पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई,  जिसकी वजह से उनकी मौके पर ही मौत हो गई। यह हत्या उस वक्त की गई जब प्रकाश अपनी कार से मद्दूर जा रहे थे। इस घटना के खबर में आने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसकी जानकारी का आदेश दे दिया है। उधर जेडीएस के कार्यकर्ताओं ने इस हत्याकांड को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है और उन्होंने बेंगलुरू-मैसुरू हाईवे को जाम कर दिया।

केसीआर ने तीसरे मोर्चे मोर्चे को लेकर शुरू किया मैराथन दौरा, नाखुश कांग्रेस ने बताया मोदी-शाह का एजेंट

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने तीसरे मोर्चे के लिए जद्दोजहद शुरू कर दी है। गैर कांग्रेसी और गैर भाजपा दलों को एक साथ जोड़ने के लिए प्रयासरत केसीआर ने तेलंगाना का चुनाव जीतने के बाद ही राष्ट्रीय राजनितिक पटल पर बड़ी भूमिका का ऐलान कर दिया था। तेलंगाना में उनके गठबंधन साथी असदुद्दीन ओवैसी ने तो उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार भी बताया था। पिछले दिनों तेलंगाना में कांग्रेस के चार विधान पार्षद भी केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति में शामिल हो गये थे जिसके बाद से ही कांग्रेस उन पर हमला करती रही है। विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि टीआरएस कांग्रेस मुक्त तेलंगाना का लक्ष्य ले कर चल रही है। टीआरएस के एक नेता ने तो यहाँ तक दावा किया था कि अगर तेलंगाना में कांग्रेस के 19 में से 8 विधायकों को अपने पाले में करने में कामयाब हो जाती है तो देश की सबसे पुरानी पार्टी से राज्य में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी छिन जायेगा।

ऐसे में केसीआर का तीसरे मोर्चे को लेकर कमर कसना कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन गया है और कांग्रेस नेता लगातार उन पर हमले कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने रविवार की शाम उड़ीसा के अपने समकक्ष नवीन पटनायक से उनके भुवनेश्वर स्थित आवास पर मुलाकात की। नवीन पटनायक उड़ीसा में सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल के अध्यक्ष भी हैं। इस मुलाकात के बाद राव ने बयान देते हुए कहा था;

“हमारा मानना है कि देश में भाजपा व कांग्रेस के खिलाफ एक विकल्प होना चाहिए। ऐसे में देश में क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जरूरत है। देश को परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसके लिए संवाद शुरू हो गया है। हालांकि अभी तक इस मसले पर कुछ ठोस परिणाम सामने नहीं आए हैं, ऐसे में हमें और अधिक नेताओं के साथ बात करने की जरूरत है। हमने समान विचारधारा वाले दलों के बीच मित्रता सहित कई चीजों पर चर्चा की है।”

उसके बाद केसीआर ने कोलकाता स्थित राज्य सचिवालय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाकात की। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद केसीआर ने कहा था;

“दीदी के साथ चर्चा हमेशा होती है। जब दो राजनीतिक नेता मिलते हैं, तो वे निश्चित रूप से आपसी हित और राष्ट्रीय हित के मामलों पर चर्चा करते हैं। हमारी बहुत सुखद चर्चा हुई। हम अपनी चर्चा जारी रखेंगे। एक संवाद है जो मैंने कल शुरू किया था। हमारी बातचीत जारी रहेगी। बहुत जल्द ही हम एक ठोस योजना के साथ आयेंगे।”

बता दें कि केसीआर का उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और मायावती से मिलने का भी कार्यक्रम तय है। ऐसे में कांग्रेस का भौंहे सिकोड़ना लाजिमी है। खबर ये भी है कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा में गठबंधन को ले कर चल रही बातचीत में कांग्रेस को दरकिनार कर दिया गया है। ऐसे में कांग्रेस का राजग के खिलाफ देश भर में एक महागठबंधन खड़ा करने के दावों को जोरदार झटका लगा है। तमिलनाडु में द्रमुक सुप्रीमो एमके स्टालिन द्वारा राहुल गाँधी को महागठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किये जाने की अपील को चंद्रबाबू नायुडू सहित कांग्रेस के कई साथियों ने ही तवज्जो नहीं दी है। टीआरएस सुप्रीमो के ताजा मुलाकातों पर तंज कसते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से कहा;

“लोकतंत्र में नेताओं के एक दूसरे से मिलने-जुलने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। मगर इसमें कोई संदेह नहीं कि फेडरल फ्रंट स्पष्ट तौर पर केंद्र की सत्तारूढ़ का पर्दे के पीछे का सियासी खेल है और विपक्षी खेमे की कोई भी पार्टी नये विकल्प के झांसे और कपट में नहीं आएगी। केसीआर का प्रयास भाजपा की मदद के लिए हो रहा है।”

सिंघवी ने केसीआर पर हमला बोलते हुए आगे कहा कि अगर आप बहिष्कार की बात करते हैं और कांग्रेस के साथ सहयोगी बनने की इच्छा रखने वाले के सहयोगी नहीं बनना चाहते हैं तो आप ‘अलगाव की राजनीति’ कर रहे है और आप सत्ताधारी पार्टी की मदद करना चाहते है। वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने एक ट्वीट के माध्यम से राव पर निशाना साधा।

राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा;

“भाजपा सरकार को पद से हटाने के लिए संयुक्त विपक्ष के प्रस्ताव को प्रभावी ढंग से विभाजित करने के लिए केसीआर का संघीय मोर्चा बनाने के लिए उठाये गए कदम का उद्देश्य भाजपा की मदद करना है। केसीआर असल में मोदी-शाह के एजेंट हैं जिन्हें धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को को विभाजित करने का काम दिया गया है।”

बताया जा रहा है कि तीसरे मोर्चे के गठन के लिए सक्रिय केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने उनके लिए एक महीने के लिए एक स्पेशल एयरक्रॉफ्ट भी किराए में ले लिया है। इस से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह गैर कांग्रेस-गैर भाजपा गठबंधन के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं। अगर सीटों के आंकड़ों की बात करें तो अभी नवीन पटनायक की बीजद का उड़ीसा की 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर कब्जा है तो ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की झोली में पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें हैं।

बंगाल में रथयात्रा की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी BJP

भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में रथयात्रा निकालने की अनुमति के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात कही है। बता दें कि भाजपा के बंगाल में प्रस्तावित रथयात्रा के कार्यक्रम को तब झटका लगा था जब ममता बनर्जी की सरकार ने इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया था। भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोलकाता उच्च का दरवाजा खटखटाया, जिसने पश्चिम बंगाल सरकार को तगड़ा झटका देते हुए रथयात्रा की अनुमति प्रदान की। राज्य सरकार ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का हवाला देकर रथयात्रा को मंजूरी देने से इनकार किया था लेकिन अदालत ने उसकी इस दलील को मानने से इनकार कर दिया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट के माध्यम से विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर राजग, बीजेपी शासन वाले किसी राज्य में विपक्षी पार्टी को कार्यक्रम की इजाजत नहीं मिलती तो विपक्ष तत्काल अघोषित आपातकाल की घोषणा कर देता।

लेकिन ये ड्रामा और भी आगे बढ़ गया जब कोलकाता उच्च न्यायलय की दो सदस्यीय पीठ के एकल बेंच के उस फैसले को पलट दिया और भाजपा को रथयात्रा निकालने से फिर मना कर दिया। दरअसल पश्चिम बंगाल सरकार ने बीजेपी को राज्य में यात्रा निकालने की अनुमति देने के हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के पास याचिका दायर की थी। हलांकि न्यायलय ने पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाते हुए अनुमति को लेकर सरकार की चुप्पी ‘आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला बताया था। भाजपा कि बंगाल इकाई ने 7 दिसम्बर को राज्य में रथयात्रा का कार्यक्रम तय किया था, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी हिस्सा लेने वाले थे लेकिन अनुमति नहीं मिलने के कारण उन्हें ये कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।

बंगाल भाजपा ने ममता सरकार के रथयात्रा को अनुमति न देने वाले निर्णय के खिलाफ राज्य के अनेक हिस्सों में रैली करने का भी कार्यक्रम तय किया है। ज्ञात हो कि राज्य सरकार के तीन सबसे वरिष्ठ अधिकारियों के पैनल ने यात्रा को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। उस आदेश को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति तापब्रत चक्रवर्ती की एकल पीठ ने बृहस्पतिवार को भाजपा के रथ यात्रा कार्यक्रम को मंजूरी दे दी थी। ममता सरकार के फैसले के खिलाफ भाजपा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। गुरुवार को एकल पीठ का फैसला भाजपा के पक्ष में आया था, लेकिन शुक्रवार को दो सदस्यीय पीठ ने बाज़ी पलट दी थी। 18 दिसम्बर को अमित शाह ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए कहा था;

“पश्चिम बंगाल में भाजपा को एक रथयात्रा की भी अनुमति नहीं दी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी , गृहमंत्री राजनाथ सिंह और मुझे वहां प्रचार करने से रोका गया। बंगाल सरकार विकास के हर मामले में विफल रही है।”

अब भाजपा के शीर्ष अदालत जाने के ताजा निर्णय के बाद सबकी निगाहें उच्चतम अदालत पर टिक गई है। शीर्ष अदालत का फैसला चाहे जो भी आये लेकिन बंगाल कि राजनीती में चल रहे ड्रामे का अभी कोई अंत नजर नहीं आ रहा और सियासी पारा और ऊपर चढ़ने की उम्मीद है।

अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में पीएम मोदी ने जारी किया सौ रुपये का स्मृति-सिक्का

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की याद में सौ रुपये का स्मृति-सिक्का जारी किया है। ये सिक्का 35 ग्राम वजन का है। इस सिक्के पर श्री वाजपेयी की तस्वीर भी बनी हुई है। बता दें कि 1999 से 2004 भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। ऐसे में देश कल दिवंगत नेता की 94वीं जयंती मनायेगा। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा;

“अटल जी का सिक्का हमारे दिलों पर 50 साल से ज्यादा चला. हम अगर उनके आदर्शों पर चलते हैं तो हम भी अटल बन सकते हैं. हमें उनकी जिंदगी से प्रेरणा लेनी चाहिए.”

जी न्यूज़ पर प्रकशित एक रिपोर्ट के अनुसार सिक्के की दूसरी तरफ अशोक स्तंभ है। सिक्के के एक तरफ पूर्व प्रधानमंत्री का पूरा नाम देवनागरी और अंग्रेजी में लिखा गया है। वहीं तस्वीर के निचले हिस्से में वाजपेयी का जन्म वर्ष 1924 और देहांत का वर्ष 2018 अंकित किया गया है। इस सिक्के का वजन 35 ग्राम है। सिक्के की बांयी परिधि पर देवनागरी लिपि में भारत और दांयी तरफ अंग्रेजी में इंडिया लिखा गया है। ये भी ज्ञात हो कि ये आम सिक्कों की तरह प्रचलन में नहीं आयेगा। मुख्य रूप से चांदी और ताम्बे से बने इस सिक्के को सरकार द्वारा प्रीमियम दरों पर बेचा जायेगा। इस सिक्के में पूर्व प्रधानमंत्री का जन्म वर्ष और देहांत वर्ष भी अंकित है जो क्रमशः 1924 और 2018 है।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा;

“अटल जी हमारे बीच नहीं हैं, ये बात मानने को हमारा मन तैयार नहीं होता है। शायद ही कोई ऐसी घटना हुई हो कि किसी व्यक्ति का राजनितिक मंच पर आठ नौ साल तक कहीं नजर ना आना, बीमारी की वजह से सारी गतिविधियों का सार्वजनिक रूप से समाप्त हो जाना, तब भी इतने बड़े समय के बाद भी देशवासियों ने उनकी विदाई को जितना आदर-सम्मान दिया, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी तपस्या के प्रकाश पुंज के रूप में हम अनुभव कर सकते हैं।”

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन 25 दिसम्बर को पीएम नरेंद्र मोदी असम में बने भारत के सबसे लंबे रेल सह सड़क सेतु का भी शुभारंभ करेंगे। ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगीबील में बनी यह सेतु 4.94 किलोमीटर लंबी है और रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

बता दें कि वाजपेयी के जन्मदिन को देश भर में “सुशासन दिवस” के रूप में मनाया जाता है। भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी उसके पहले अध्यक्ष बने थे और उन्होंने छः साल तक ये पद सम्भाला था।  तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले चुके स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी का निधन इसी साल 16 अगस्त को हुआ था।

राजस्थान और पश्चिम बंगाल सहित कई विपक्ष शासित राज्यों ने जीएसटी दरें घटाने का किया विरोध

जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स‘ कहने वाले राहुल गाँधी और इसे ‘ग्रेट सेल्फिश टैक्स‘ कहने वाली ममता बनर्जी केंद्र सरकार द्वारा कई वस्तुओं के दरों में कटौती के बाद अपने ही राज्यों में घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल कल केंद्र सरकार ने जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद 23 वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले कर की दरों में बड़ी कटौती की घोषणा की जिसके बाद सिनेमा टिकट और टीवी सही कई वस्तुएं सस्ती हो जाएँगी। माल और सेवा कर परिषद की 31वीं बैठक की अध्यक्षता देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की। जेटली ने कहा कि फैसलों के बाद से अब टॉप टैक्स स्लैब में 1200 वस्तुओं में से केवल 0.5 या 1 फीसदी चीजें बची हैं।

लीथियम आयन बैट्री वाले पावर बैंक, डिजिटल कैमरा, 32 इंच तक के मॉनिटर और टीवी स्क्रीन सहित कुछ और उपकरणों पर जीएसटी की दरें 28% से घटाकर 18% कर दी गई। वहीं सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए दिव्यंगों के काम आने वाले उपकरणों को 28% कर वाले स्लैब से हटा कर सीधा 5% वाले स्लैब में डाल दिया जिस से इन बाजार में इन चीजों के दाम काफी कम हो जायेंगे। वही सब्जियों पर से जीएसटी दरें हटा कर 0% कर दी गई। सिनेमा के 100 रुपए से ज्यादा के टिकट पर 28% की जगह अब सिर्फ 18% जीएसटी लगेगा। वहीं 100 रुपए तक के टिकट पर पहले 18% कर देना होता था जो कि अब सिर्फ 12% रह गया है। शिक्षण संस्थानों की सेवाओं पर अब कोई जीएसटी नहीं लगेगा।

वहीं विपक्ष शासित राज्यों ने राजस्व का हवाला दे कर जीएसटी कि दरों में कटौती का विरोध किया। कांग्रेस शासित राज्य मध्य प्रदेश से तो बैठक में कोई शामिल ही नहीं हुआ। सीपीएम शासित केरल और तृणमूल शासित पश्चिम बंगाल ने कहा कि ये दरें घटाने का सही समय नहीं है। भाजपा शासित असम ने विपक्ष के दोहरे रवैये पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि एक तरफ विपक्ष के नेता भाषणों में जीएसटी के 28% वाले स्लैब को खतम करने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ काउंसिल की बैठक में दरें घटाने का विरोध करते हैं। असम ने ये भी सुझाव दिया कि इनके बयानों को बैठक के मिनट्स में शामिल किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ये ऐसा करने से बचें।

बती दें कि राहुल गाँधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताते हुए कहा था कि उनकी पार्टी ”गब्बर सिंह टैक्स” थोपने नहीं देगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीएसटी पर हमला बोलते हुए कहा था कि ग्रेट सेल्फिश टैक्स लोगों का उत्पीड़न करने और अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लगाया गया है। अब जब केंद्र सरकार लगातार कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी की दरें कम कर रही है तब इन नेताओं की पार्टी द्वारा शासित राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाना इनके दोहरे रवैये को दिखाता है। जीएसटी की दरों में कटौती का विरोध करने वाले राज्यों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल थेदोनों ही राज्यों में हाल ही में कांग्रेस की सरकार बनी है।

सिर्फ तीन महीने में ही साढ़े पांच लाभार्थियों के साथ सफलता के नये मापदंड लिख रहा ‘आयुष्मान भारत”

केद्र सरकार ने शुक्रवार को आयुष्मान भारत को लेकर आंकड़े पेश किये। लोकसभा में प्रश्नों के लिखित जवाब देते हुए केंद्रीय स्वास्थ मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने बताया कि आयुष्मान भारत योजना के तहत अब तक साढ़े पांच लाख मरीजों को अस्पतालों में भर्ती कराया जा चुका है। उड़ीसा, तेलंगाना और दिल्ली की राज्य सरकारों ने अभी तक अपने-अपने राज्यों में आयुष्मान भारत के क्रियान्वयन के लिए एमओयू पर दस्तखत नहीं किये हैं। जगत प्रकाश नड्डा ने विशेष जानकारी देते हुए बताया;

“16 दिसंबर 2018 की स्थिति के अनुसार प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के तहत अस्पतालों में मरीजों के भर्ती होने के कुल 5,52,649 मामले दर्ज किये गये। लाभार्थियों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद 4,21,474 मामलों में बीमा राशि के दावे स्वीकृत किये जा चुके हैं। अब तक आयुष्मान भारत योजना के तहत 548.11 करोड़ रुपये की दावा राशि जारी की गयी है। अभी तक ओडिशा, तेलंगाना और दिल्ली की सरकारों ने पीएमजेएवाई के क्रियान्वयन के लिए एमओयू पर दस्तखत नहीं किये हैं। मेघालय, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और केरल ने आयुष्मान योजना के लिए एमओयू पर दस्तखत किये हैं, लेकिन 16 दिसंबर तक की स्थिति के अनुसार इन्हें अपने राज्यों में लागू नहीं किया है।”

बता दें कि केंद्रीय स्वस्थ मंत्री नड्डा ने प्रसून बनर्जी और छोटे लाल के प्रश्नों के जवाब में इन आंकड़ों का जिक्र किया। इन पर गौर करने से यह पता चलता है कि समय के साथ केंद्र सरकार की इस ड्रीम परियोजना को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। अब तक लगभग 3,000,000 लाभार्थियों के लिए ई-कार्ड जारी कर दिए गए हैं जिस से इन सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वस्थ सेवाएँ मिलेंगी। सरकार ने अपने बयान में अधिक जानकारी देते हुए कहा;

“अभी तक 16,000 अस्पतालों को इस योजना से जोड़ा जा चुका है और इन में से 55 प्रतिशत निजी अस्पताल हैं।”

याद होना चाहिए कि आयुष्मान भारत को लेकर सरकार को काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ा था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसे एक जुमला बताया था। तमाम आलोचनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना यानि आयुष्मान भारत की सफलता से यह पता चलता है कि जैसे-जैसे लोगों में इस योजना को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है। इस योजना के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों की सूची में आधे से ज्यादा का निजी अस्पताल होना यह बताता है कि ये योजना सिर्फ सरकारी अस्पतालों तक ही सीमित नहीं है। किसी भी जन कल्याणकारी योजना का जब तक अच्छे से प्रचार-प्रसार नही किया जाये और जनता तक उसकी पूरी जानकारी नहीं पहुंचाई जाये, तब तक उस योजना के सफल होने की उम्मीद नहीं रहती। अब जब लोग आयुष्मान भारत को अपना रहे हैं तब ये कहा जा सकता है कि सरकार की इस महत्वकांक्षी परियोजना के सही असर दिखने शुरू हो गए हैं। यह एक लॉन्ग टर्म प्लान के आधार पर काम कर रहा है और अभी कई राज्यों में लागू भी नहीं हो पाया है।

ज्ञात हो कि आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य खासकर निम्न और निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों को महंगे मेडिकल बिल से निजात दिलाना है। इस योजना के दायरे में गरीब, वंचित ग्रामीण परिवार और शहरी श्रमिकों की पेशेवर श्रेणियों को रखा गया है। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत प्रत्येक परिवार को सालाना पांच लाख रुपये की कवरेज दी जाती है और वे सरकारी या निजी अस्पताल में कैशलेस इलाज करा सकते हैं।

कश्मीर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी; अलकायदा सरगना जाकिर मूसा के सहयोगी सहित छः आतंकी ढेर

कश्मीर घाटी के त्राल में हुए मुठभेड़ में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। अवंतीपोरा में आतंकवादियों के छिपे होने की खुफिया सूचना पर पहुंची पुलिस से आतंकियों की मुठभेड़ हुई जिसमे छः आतंकी मारे गए। बताया जा रहा है कि पुलिस ने मौके पर पहुँच कर सबसे पहले इलाके को खाली कराया ताकि मुठभेड़ की स्थिति में जान-माल की क्षति ना हो। मारे गये आतंकवादियों में से एक अलकायदा सरगना और कश्मीरी आतंकी संगठन गजवातुल हिन्द के मुखिया जाकिर मूसा का करीबी सहयोगी सोलिहा भी शामिल है। ज्ञात हो कि जाकिर मूसा एक खूंखार कश्मीरी आतंकवादी है जो घाटी ही नहीं बल्कि आसपास के इलाकों में भी पुलिस के लिए एक बड़ा सरदर्द बना हुआ है। ऐसे में इस एनकाउंटर की सफलता को पुलिस बड़ी कामयाबी मान रही है। कश्मीर के आईजी एसपी पानी ने अधिक जानकारी देते हुए समाचार एजेंसी एएनआई से कहा;

“इस ऑपरेशन में कुल छः आतंकवादी मारे गए। सुरक्षाबलों और नागरिकों को जान-माल की कोई क्षति नहीं हुई है। मारे गए आतंकियों की पहचान और उनके संगठन की पुष्टि की जा रही है। मैं नागरिकों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद देता हूँ। ये एक क्लीन ऑपरेशन था।”

बताया जाता है कि जैसे ही सुरक्षाबलों को आतंकियों के छिपे होने की खुफिया जानकारी मिली वैसे ही सेना की 44 राष्ट्रीय राइफल्स, सीआरपीएफ की 180वीं बटैलियन और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अवंतीपोरा के आरामपोरा में संयुक्त ऑपरेशन चलाना शुरू कर दिया। सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम के संदिग्ध स्थल पर पहुँचते ही वहां छिपे आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद दोनों और से भयंकर फायरिंग शुरू हो गई। इस दौरान सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में छह आतंकी मार गिराए गए।

टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक़ मुठभेड़ स्थल से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद हुआ है। इससे पहले पिछले हफ्ते भी पुलवामा जिले में एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने तीन आतंकियों को मार गिराया था। इस मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों में मोस्ट वॉन्टेड जहूर अहमद ठोकर भी था, जो पिछले वर्ष जुलाई में सेना के कैंप से फरार होकर आतंकी संगठन में शामिल हो गया था। उस एनकाउंटर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आतंकियों के समर्थन में ट्वीट भी किया था।

अभी कुछ दिनों पहले ही आतंकी जाकिर मूसा के पंजाब में छिपे होने की खुफिया जानकारी सामने आई थी। इसके बाद से ही बठिंडा और फिरोजपुर जिलों में सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। खुफिया रिपोर्टों में बताया गया था कि मूसा सिख के भेष में पगड़ी पहने छिपा हुआ हो सकता है।

बता दें कि कश्मीर में सेना द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन आल आउट के अंतर्गत मार्च 2017 से लेकर अब तक 500 से भी ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया है। इस वर्ष अभी तक पिछले वर्ष से इस समय तक मारे गए 207 आतंकियों के मुकाबले 240 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया है। इन में से 25 आतंकी संगठनों के टॉप कमांडर भी शामिल हैं। अकेले बीते नवम्बर में ही सुरक्षाबलों ने 35 आतंकवादियों को मार गिराया था। इस महीने भी यह आंकड़ा 30 के पार होने जा रहा है।

बिहार: सीट बँटवारे को लेकर राजग में बनी सहमति; आज हो सकती है घोषणा

ताजा ख़बरों के अनुसार बिहार में सीट बँटवारे को लेकर राजग में सहमति बन गई है। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज दिल्ली पहुँच रहे हैं जहां वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान सहित राजग के अन्य नेताओं से बातचीत करेंगे और इसके बाद सीट शेयरिंग को लेकर आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी। सूत्रों के अनुसार लोजपा ने छः लोकसभा सीट और एक राज्यसभा सीट की मांग की थी जिसे भारतीय जनता पार्टी ने मान लिया है और जनता दल यूनाइटेड ने भी इस फोर्मुले पर मुहर लगा दी है। अभी लोजपा से एक भी राज्यसभा सांसद नहीं है। बता दें कि लोक जनशक्ति पार्टी संसदीय दल के अध्यक्ष चिराग पासवान काफी दिनों से अपने बयानों द्वारा भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे।

कुछ दिनों पहले ही अपने ट्वीट्स के माध्यम से चिराग पासवान ने कहा था;

“टी॰डी॰पी॰ व रालोसपा के एन॰डी॰ए॰ गठबंधन से जाने के बाद एन॰डी॰ए॰ गठबंधन नाज़ुक मोड़ से गुज़र रहा है।ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में फ़िलहाल बचे हुए साथीयों की चिंताओं को समय रहते सम्मान पूर्वक तरीक़े से दूर करें।”

चिराग पासवान फिलहाल जमुई से लोकसभा सांसद हैं। अभी कुछ दिनों पहले उन्होंने नोटबंदी पर भी सवाल खड़े कर के भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की थी। कई लोगों का यह मानना था कि लोजपा राजग का साथ छोड़ कर महागठबंधन में शामिल हो सकती है लेकिन सीट शेयरिंग पर सहमति बनने के साथ ही इन कयासों पर विराम लग गया है। शुक्रवार को पासवान पिता-पुत्र ने भाजपा नेता अरुण जेटली से भी मुलाकात की थी जिसके बाद चिराग पासवान ने कहा था कि बात चल रही है और वह समय आने पर बोलेंगे।

ज्ञात हो कि बिहार में भाजपा के सहयोगी रहे उपेन्द्र कुशवाहा ने हाल ही में महागठबंधन का रुख कर लिया है। रालोस्पा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से भी इस्तीफा दे दिया और भाजपा पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया था। हालांकि इस से उपेन्द्र कुशवाहा की अपनी पार्टी के ही नेता ही उनसे नाराज हो गये और बागी तेवर अपना लिया। पार्टी के दो विधायक और एक विधान पार्षद ने रालोसपा सुप्रीमो के निर्णय का विरोध करते हुए एक प्रेस कांफ्रेंस कर राजग में बने रहने का ऐलान कर दिया।

2014 में हुए लोकसभा चुनावों में लोजपा ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी। राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 22, रोलसपा ने 3, जदयू ने 2, राजद ने 4, कांग्रेस ने 2 और एनसीपी ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी। उस समय जदयू ने भाजपा से अलग चुनाव लड़ा था। इस बार भाजपा-जदयू-लोजपा के साथ चुनाव लड़ने के कारण बिहार में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में बड़ा फैसला, सभी 22 अभियुक्त हुए बरी

सीबीआई की विशेष अदालत ने बड़ा फैसला देते हुए सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सभी 22 अभियुक्तों को सबूतों के आभाव में बरी करने का आदेश दिया है। अभियुक्तों में अधिकतर गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारी हैं। न्यायमूर्ति एसजे शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी गवाह और सबूत साजिश और हत्या को साबित करने के लिए काफी नहीं थे। अदालत ने यह भी पाया कि मामले से जुड़े परिस्थितिजन्य सबूत भी पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने इस मुठभेड़ को फर्जी मानने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने सीबीआई के बारे में कहा कि उसने 210 गवाहों को अदालत में पेश कर अपनी दलीलों को साबित करने की पूरी कोशिश की।

ज्ञात हो कि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले की जांच सीआईडी द्वारा की जा रही थी जिसे 2010 में सीबीआई को सौंप दिया गया था। अदालत ने कुल 210 गवाहों के बयान सुने जिनमे से 92 गवाह अपने बयानों से पलट गए थे इस महीने के शुरुआत में ही अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि न्यायाधीश वर्मा का कार्यकाल कुछ ही दिनों बाद समाप्त होने जा रहा है। अपने कार्यकाल का अंतिम फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा;

“सोहराबुद्दीन की मौत गोली लगने से हुए घावों से हुई जैसा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी साबित होता है लेकिन इन अभियुक्तों में से कोई भी इस मौत की वजह थे, ऐसा साबित नहीं होता। तुलसीराम प्रजापति को एक साजिश के तहत मारा गया, यह आरोप भी सही नहीं है।”

अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस वर्मा ने आगे कहा;

“अगर गवाह अपने बयानों से पलट जाये तो इसमें पुलिस या वकीलों की कोई गलती नहीं है। हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान खोई है, लेकिन कानून और सिस्टम को किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है। सीबीआइ इस बात को सिद्ध ही नहीं कर पाई कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को हैदराबाद से अगवा किया था। इस बात का कोई सबूत नहीं है।”

इसी मामले में 16 लोगों को पहले ही सबूतों के आभाव में बरी किया जा चुका है। ज्ञात हो कि इस केस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, राजस्थान के पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, गुजरात पुलिस के पूर्व डीआईजी डीजी वंजारा के नाम भी आरोपियों में शामिल थे। अमित शाह 2014 में ही इस मामले में आरोप-मुक्त करार दिए गए थे वहीं डीजी वंजारा को 2017 में इन आरोपों से बरी कर दिया गया था।

क्या है मामला?

26 नवंबर 2015 में गुजरात एटीएस और राजस्थान एसटीएफ ने अहमदाबाद के निकट मध्य प्रदेश के अपराधी सोहराबुद्दीन को शेख एक पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया था। इस घटना के लगभग एक साल बाद दिसम्बर 2016 में सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम को भी एक एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराया था। सीबीआई ने इन दोनों को फर्जी एनकाउंटर बताया था।

किसानों की कर्जमाफ़ी के नुकसान; मध्य प्रदेश में कृषि संबंधित एनपीए 24 प्रतिशत बढ़ा

किसानों की कर्जमाफी आजकल चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन कर उभर रही है। नयी धरना ये बनी है कि अगर कोई पार्टी  चुनाव से ऐन पहले किसानों को उनके कर्ज माफ़ कर देने का वादा कर दे तो वह चुनावी वैतरणी सफलतापूर्वक पार कर जाती है। हाल के विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत को भी इसी वादे से जोड़ कर देखा जा रहा है। वहीं तीनो राज्यों में सरकार गठन के साथ ही कांग्रेस ने कुछ शर्तों के साथ किसानों की कर्ज माफ़ी की घोषणा भी कर दी। कांग्रेस ने इस निर्णय के बाद अपना चुनावी वादा निभाने का दावा किया। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले मध्य प्रदेश में कृषि सम्बंधित एनपीए तीन सालों में दोगुने से भी ज्यादा हो गया।

यहाँ ये बताना जरूरी है कि एनपीए का अर्थ नॉन-पेरफोर्मिंग एसेट होता है। रिज़र्व बैंक के अनुसार अगर अल्प सामायिक कृषि कार्य जैसे कि धान, बाजरा, ज्वार इत्यादि की खेती के लिए लिए गए कर्ज पर अगर दो क्रॉप सीजन तक किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जाता है तो वह एनपीए के अंतर्गत आ जाता है। वहीं लॉन्ग टर्म वाले लोन में यह समय सीमा एक क्रॉप सीजन तक ही होती है। कहा जा रहा है कि कर्ज माफ़ी की उम्मीद में किसान लिए गए कर्ज पर ब्याज देना बंद कर देते हैं जिसके कारण बैंकों पर बोझ बढ़ता चला जता है। किसानों के कर्ज माफ़ होने से उन्हें त्वरित रहत तो मिलती है लेकिन इसका बैंक के प्रबंधन पर भी असर पड़ता है। और बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज देने की प्रक्रिया धीमी करने से अंततः किसानों को ही मार पड़ती है। उन्हें मजबूरन रुपये के अन्य श्रोतों का अहारा लेना पड़ता है जिसे से उनके घाटे में जाने की संभावना रहती है।

होता ये है कि किसानों के ऋण भुगतान ना करने से बैंकों के वित्तीय प्रबंधन पर बुरा असर पड़ता है और वो नये कर्ज देना बंद कर देती है या धीमी कर देती है। ताजा आंकड़े भी इस दावे की पुष्टि करते दिखाई पड़ रहे हैं। मध्य प्रदेश की राज्य स्तरीय बैंकरों की समिति के अनुसार केवल एक साल की अवधि में राज्य के कृषि ऋण पर 24 प्रतिशत एनपीए बढ़ गया है। एक वरिष्ठ बैंकर ने इस बारे में कहा;

“लेनदारों के लिए यह स्वाभाविक है कि एक बार त्वरित राहत मिलने के बाद वह कर्ज की रकम का भुगतान करना बंद कर देते हैं। हमने इस तरह के ट्रेंड को राजस्थान में भी देखा है।”

वहीं एक अन्य बैंकर ने कहा;

“इससे क्रेडिट साइकिल टूट जाती है क्योंकि बैंक अपनी बकाया राशि को क्लीयर करना चाहते हैं।”

उदाहरण के तौर पर हम तमिलनाडु को देख सकते हैं। वहां राज्य सरकार ने एक योजना के तहत 2016 में 6,041 करोड़ की राशि की घोषणा की थी। वह पिछले पांच सालों में सहकारी संस्थानों को केवल 3,169 करोड़ रुपये ही वापस दे पाई है। कर्नाटक की भी यही स्थिति है। वहां हाल ही में हुई राज्य स्तरीय बैंकर समिति की बैठक में यह पाया गया कि 5,353 करोड़ रुपये के उत्कृष्ट कृषि ऋण में गिरावट आई।

ज्ञात हो कि कुछ ही दिनों पहले रीर्वे बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कर्ज माफ़ी के बढ़ते चलन को लेकर चेताया था। किसानों की कर्ज माफ़ी का विरोध करते हुए उन्होंने कहा था;

“ऐसे फैसलों से राजस्व पर असर पड़ता है। किसान कर्ज माफी का सबसे बड़ा फायदा सांठगाठ वालों को मिलता है. अकसर इसका लाभ गरीबों को मिलने की बजाए उन्हें मिलता है, जिनकी स्थिति बेहतर है। जब भी कर्ज माफ किए जाते हैं, तो देश के राजस्व को भी नुकसान होता है।”

वहीं अर्थशास्त्री राधिका पाण्डेय ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि कर्ज माफ़ी का किसानों और राज्‍य सरकार की अपनी अर्थव्‍यवस्‍था पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना था कि इस कर्जमाफी का बड़े किसानों पर कुछ हद तक हो सकता है, लेकिन छोटे किसानों पर इसका कोई असर नहीं होगा। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा;

“जिस तेजी से राज्‍य सरकारों ने कर्ज माफी की घोषणा की है उससे अब राज्‍यों का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ जाएगा। इसकी भरपाई के लिए राज्‍यों को केंद्र से या फिर दूसरे विकल्‍पों के माघ्‍यम से कर्ज लेना होगा और उसके दूसरे विकास कार्य कहीं न कहीं इसकी वजह से प्रभावित होंगे। बाहर से कर्ज लेने पर राज्‍य सरकारों को इसकी अदायगी के लिए ज्‍यादा ब्‍याज भी देना होगा। इसकी वजह ये है कि भारत की बॉण्‍ड मार्किट या डेब्‍ट मार्किट दूसरे देशों के राज्‍यों की तरह से डेवलेप नहीं हैं। यही वजह है कि यहां पर ब्‍याज की दर ज्‍यादा होती है।”

ऐसे में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या वाकई किसानों के कर्ज माफ़ होने से उनके अच्छे दिन आ जाते हैं?