जीटी देवगौड़ा ने कहा कि उनके और सिद्दारमैया की अपील के बावजूद जेडीएस कार्यकर्ताओं ने उदपुर सीट पर भाजपा को वोट दिया। उनके अनुसार गठबंधन में देरी भी हुई और गठबंधन धर्म को ठीक से नहीं निभाया गया, इससे कार्यकर्ताओं में सही संकेत नहीं गया।
मतलब, संकट मोचन मंदिर से लेकर लोकतंत्र के मंदिर संसद तक हमले में मरने वाले अधिकतर लोग हिन्दू ही होते हैं (क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है और टार्गेट पर भी वही होते हैं) और मारने वाले हर बार कट्टरपंथी होते हैं, फिर भी असली हिंसा तो गौरक्षकों द्वारा गौतस्करों को सरेराह पीट देना है।
माओवादी कहीं ना कहीं अब ये बात जान और समझ गए हैं कि 'जल-जंगल-जमीन' का उनका नारा अब प्रासंगिक नहीं रहा है। इनके पोषक ये बात अच्छे से जानते है कि यदि अब यह 3 मुद्दे ही प्रासंगिक नहीं रहे, तो अब माओवंशी किस तरह से अपना अभियान आगे बढ़ाएँ? लोगों के बीच डर पैदा कर के ही ये आतंकवादी संगठन अब प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं।
कॉन्ग्रेस और एसपी, बीएसपी के बीच चुनावी मैदान में शैडो बॉक्सिंग केवल बीजेपी के वोट काटने के लिए एक छद्म मोर्चा था, क्योंकि उनमें से कोई भी वास्तव में इतना आश्वस्त नहीं था कि वो लोकसभा चुनाव में अपने दम पर कुछ कर सकते हैं। प्रियंका गाँधी वाड्रा का बयान भी इसी की पुष्टि करता है।
UNSC के इस एक फैसले से यह साबित (जो पहले से तय था लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय मुहर लग गई) हो गया कि पाकिस्तान आतंकियों और आतंकी गतिविधियों को पनाह देने वाला देश है। चीन की फजीहत इसलिए क्योंकि अपने साथी देश पाकिस्तान को वह वीटो के नाम पर...
निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी किए गए दो नोटिसों का जवाब देने बुधवार (मई 01, 2019) दोपहर 11 बजे तेज बहादुर यादव अपने वकील के साथ RO से मिलने पहुँचे। जिसके बाद निर्वाचन अधिकारी ने तेज बहादुर के नामांकन पत्र को खारिज कर दिया।
भारत में बुर्क़ा पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग अकेले शिवसेना ने नहीं की है, हिन्दू सेना नामक संगठन ने भी गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर सार्वजानिक व निजी संस्थानों में सार्वजनिक तौर पर बुर्क़ा या नक़ाब के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग की है।
AAP ने 20 नए डिग्री कॉलेजों के निर्माण का वादा किया था लेकिन अब तक एक पर भी काम शुरू नहीं कराया जा सका है। जितने शिक्षकों की ज़रुरत थी, उससे आधे से भी कम पदों पर नियुक्तियाँ की गई हैं। फ्री वाई-फाई सर्विस से लेकर सीसीटीवी योजना सब की हालत पंक्चर है।
'वीरे दी वेडिंग' फिल्म में खुलकर अपने 'मन की बात' करने वाली स्वरा भास्कर को बहुत आसानी से नारीवाद का चेहरा बना कर पेश किया जाने लगा है। यह वर्तमान समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों को उसके शारीरिक सुख और जबरन फूहड़पन मात्र से जोड़कर पेश कर देने से वो समाज में महिलाओं की नई पहचान दिलाने वाले ठहराए जाने लगते हैं।