सत्तारूढ़ दल होते हुए भी, विपक्ष के साथ मिलकर काम करना एक प्रधानमंत्री के रूप में उनकी जिम्मेदारी है। "यह कॉन्ग्रेस हो या ममता या मायावती, मैं उनके साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।"
2004, 2009 और 2014 के चुनावों में पहले तीन स्थान पर जो पार्टियाँ थीं, 2015 के विधानसभा चुनावों में वामपंथी पार्टी को जितनी सीटें (शून्य) मिलीं, और बेगूसराय के भूमिहारों द्वारा कमल छाप पर मुस्लिम को भी जिताने का पैटर्न, कन्हैया कुमार को तीसरे पोजिशन से आगे नहीं ले जाता दिखता।
खानदान विशेष के एहसानों और पुरस्कारों के बोझ तले दबा यह मीडिया गिरोह 2014 में सवाल नहीं पूछ पाया था, शायद तब तक कभी गाँधी परिवार ने इसे एहसास भी नहीं होने दिया था कि मीडिया का काम सवाल पूछना भी हो सकता है। सवाल पूछ पाने की यह वैचारिक क्रांति इस मीडिया गिरोह में 2014 के बाद ही देखने को मिली है।
कॉन्ग्रेस ने पार्टी फ़ंड से इसरो नहीं बनवाया था, न ही डीआरडीओ के कर्मचारियों और वैज्ञानिकों को सोनिया गाँधी के हस्ताक्षर वाले चेक जारी हुआ करते थे। कॉन्ग्रेस के नाम ये संस्थान महज़ संयोग के कारण हैं क्योंकि सबसे पहले सत्ता में वही आई।
10 मार्च को सभी बच्चे चर्च गए हुए थे, जब इस हत्या को अंजाम दिया गया। अकादमी संचालक स्टीफेन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जिस से पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। स्कूल और डॉक्टरों ने शुरुआत में इसे फ़ूड पॉइज़निंग का मामला बता कर रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की।
हमलावरों के कहने का मतलब साफ़ था कि कॉन्ग्रेस को सत्ता में आने दो फिर तुम जैसे मोदी समर्थकों को सबक सिखाएँगे। और ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि कार पर लगा स्टीकर हमलावरों को नहीं भाया।
"दुनिया मुस्लिमों के प्रति चीन के पाखंड को बर्दाश्त नहीं कर सकती। एक तरफ चीन अपने यहाँ 10 लाख से अधिक मुस्लिमों को प्रताड़ित करता है, जबकि दूसरी तरफ वो हिंसक इस्लामिक आतंकी समूहों को यूएन के प्रतिबंध से बचाता है।"
"शारीरिक रूप से भले ही कॉन्ग्रेसी कार्यकर्तागण अपनी पार्टी के लिए प्रचार-प्रसार करें लेकिन मानसिक रूप से वो सभी मेरे साथ हैं। वो मुझे फोन करके बताते हैं कि मैं लोकसभा चुनाव जरूर जीतूँगा। उनका कहना है कि वह मेरे साथ हैं।"
इंतजार कीजिए, कोई मूर्ख नेता और धूर्त पत्रकार जल्द ही यह पूछेगा कि जो सेटैलाइट मार गिराया गया, उसका धुआँ तो आकाश में दिखा ही नहीं, उसके पुर्ज़े तो कहीं गिरे होंगे, उसका विडियो कहाँ है।
नाराज़ कॉन्ग्रेस विधायक अब्दुल सत्तार ने अपने समर्थकों की मदद से कॉन्ग्रेस दफ़्तर की सारी कुर्सियाँ ही उठवा लीं। उन्होंने कॉन्ग्रेस कार्यालय से 300 के क़रीब कुर्सियों को गायब करा दिया। विधायक के इस रवैये के कारण कॉन्ग्रेस की बैठक राकांपा के दफ़्तर में हुई।